मंगलवार, 11 अगस्त 2015

Hindi Atheist - 7 , August,8 / 2015 Issue

Hindi Atheist  - 7 , August,8 / 2015  Issue   
Weekly : by , Ugra Nath @ Lko
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Title - सबका मालिक फेक Fake है ।
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1 - सबका मालिक फेक ( Fake ) है ।
( इसे बार बार दुहराना पड़ेगा , इसका परचा छपवाकर बाँटना होगा, इसका sticker जगह जगह चिपकाना होगा , इसका glow sign board लगाना होगा । )
1 ( b ) - अपना तो है बस यह टेक , 
ऊपर वाला बिल्कुल FAKE !

2 - पता नहीं क्यों मैं अप्रिय बातें बोल जाता हूँ । मैं अपने को रोक नहीं पाता उन्हें लिखने से , क्योंकि वे सत्य के बहुत निकट होती हैं । 
मैं सोच रहा था कि इस्लाम की आलोचना करने वाला व्यक्ति आस्तिक नहीं हो सकता । ऐसा इसलिए कि ईश्वर के प्रति उनका अडिग विश्वास अपरिमित है और उस पर संदेह नहीं किया जा सकता, प्रश्न चिन्ह नहीं उठाया जा सकता ।
आप अब इस पर अगर मगर, किन्तु परंतु, if and but मत ठोंकिए । मैं विशुद्ध आस्था की बात कर है, जो मुसलमान में अल्लाह के प्रति अविच्छिन्न है |

3 - आप क्यों परेशान हैं मित्र ! मारे तो secular जा रहे हैं । अब उनकी सेकुलरवाद की परिभाषा और समझ भारतीय संस्कृतिवादी जानने की कोशिश न करें । आप नहीं पचा पाएँगे , उनकी छीछालेदर करना आप अवश्य जानते हैं। लेकिन यह तो जान लें कि उन्हीं सेकुलरों ( ज़ाहिर है, यहाँ वह हिंदुत्व की आलोचना करते होंगे ) को भारत में फेकुलर कहा जाता है । अब बांगला देश में दूसरा फेकुलर मारा गया तो भले टेसू बहा लें। वरना सेकुलर और नास्तिक यहाँ भी गरियाये जा रहे हैं । Rationalist की हत्या यहाँ भी हो रही है । डॉ नरेंद्र डाभोलकर हिन्दुस्तान के ही निवासी थे ।

4 - एक भाई बिल्कुल सही कहते हैं । आलोचना करोगे तो अध्ययन तो होगा !
सचमुच इधर भारतीय संस्कृति ने क़ुरआन की तिलावत बड़ी मशक्कत से की ।

5 - माना जाना चाहिए कि मैं एक अजीब आदमी हूँ | अजीब का मतलब अजीब ही , अद्भुत और अनोखा नहीं | 
मेरा अजीबपन आज इससे प्रकट होता है कि कहाँ तो मुझे उलझनों को सुलझाना चाहिए , और कहाँ मै सुलझी हुई बातों को उलझाता फिरता हूँ | 
यथा , बिल्कुल सुलझी हुई बात है कि जानने को ज्ञान कहते हैं , न जानने को अज्ञान ! लेकिन नहीं , मैं कहना चाहता हूँ - न जानना ज्यादा बड़ा ज्ञान है , और जानना सबसे बड़ा अज्ञान |
उदहारण , ईश्वर को जानना ज्ञान होना चाहिए | Stop please ! यह सबसे बड़ा अज्ञानता का लक्षण है | जो जितना ही कहता है कि वह ईश्वर को जितना ज्यादा जानता है , वह उतना ही बड़ा अहंकारी और अज्ञानी है | मिथ्यावादी , असत्यवादी |
दूसरी तरफ वह कथित अज्ञानी है जो ईश्वर को नही जानता , और जाने बगैर उसे मानने से इन्कार करता है , मतलब नास्तिक है , वह बहुत बड़ा ज्ञानी है |
अतएव ,
नास्तिकता ज्ञान का स्वरुप है , आस्तिकता घोर अज्ञान है !
है न अजीब बात ? और अजीब बात हम करते हैं !

6 - एक युवा मित्र ने मित्रता निवेदन के साथ inbox में जो लिखा वह इतना स्वच्छ , स्पष्ट और ईमानदार था कि उसने मुझे अभिभूत कर दिया | सहर्ष , सप्रेम उन्हें मित्र बनाया | किसी ने ऐसा बोलने का साहस तो किया ! 
नाम बताने में कोई हर्ज़ नहीं है , न इसमें उनका अपमान | मुस्लिम नामधारी हैं - जनाब शफीक उर रहमान खां | वह लिखते हैं :-
" वैसे धार्मिक तौर तौर पर घोर नास्तिक हूँ मगर खान पान और रहन सहन में थोड़ा कल्चरल बायस आ ही जाता है | बाक़ी राजनीतिक तौर पर मुसलमान होना सच में मज़बूरी है | "
कितनी सच्ची बात की भाई ने, दिल खोलकर !
यह मज़बूरी हमारी और शायद सबकी है , भले वह सम्पूर्ण नास्तिक हैं | हम विवश हैं / हो जाते हैं / हो रहे हैं हिन्दू मुसलमान होने के लिए | यह विवशता तोड़ें , इस पर तो बाद में चर्चा करेंगे | अविलम्ब हमें यह मानना चाहिए कि हम बहुत बड़ी गलती हैं जो मुसलमान को मुसलमान और हिन्दू को मान लेते हैं ( मात्र नाम देखकर ही , यह बात अभी अलग रखें तो भी ! वह भी एक विवशता है उसकी ) | और एक बार यह संदेह मन में बैठ जाय कि हिन्दू मुस्लिम नामधारी व्यक्ति बिल्कुल ज़रूरी नहीं कि हिन्दू मुसलमान हो ही , तो हमारा आधा काम पूरा हो जाय | समझें कि हिन्दू मुसलमान होना एक राजनीतिक मजबूरी भी है व्यक्ति की , वह वहाँ स्वेच्छा से नहीं है , और वह वहां खुश नहीं है |
बाकी रही बात राजनीतिक तौर पर हिन्दू मुसलमान होने कि मज़बूरी मिटाने की
, तो वह भी हो जायगा जब ऐसे ऐसे सत्यनिष्ठ जन खुले दिल से , परस्पर प्यार और विश्वास का भाव लेकर एक साथ बैठेंगे | और इसका उपाय तो है , यह हम अच्छी तरह जानते हैं | याद है न वह आप्त वचन - यदि हम जान जायँ कि हम गुलाम हैं , तो हमारी गुलामी आधी समाप्त हो जाती है ?
तो , जय हो शफीक भाई की , और ऐसे समस्त नास्तिकों की , उनकी तमाम विवशताओं के बावजूद !

7 - Islam is the way .
इस पोस्ट पर भाई कुछ भड़केंगे , यदि मैं कहूँ कि सारे रास्ते इस्लाम से होकर गुज़रते हैं | लेकिन यह एक निष्पक्ष विवेचन है |
जब भी आप कोई काम करेंगे , आपको इस्लाम का रास्ता अपनाना पड़ेगा | एक संगठन बनाइये , तो सबक लीजये इससे | वही सख्ती , वही निष्ठां , वही दृढ़ता दरकार होगी | इस्लाम की सांगठनिक गुणवत्ता और प्रबंधन से सभी परिचित है | पाँच वक़्त नमाज़ , जुम्मे की नमाज , ईद बकरीद और दिवंगतों के लिए त्यौहार , बुजुर्गों के प्रति उनकी भावना और व्यवहार , हिफाजत की व्यवस्था कि कुरआन कि सारी प्रतियां नष्ट हो जायँ और एक भी हाफ़िज़ जिंदा बचे तो हुबहू कुरान लिख ली जाय | इत्यादि -- सब अनुकरणीय ही नहीं श्लाघ्य है इनकी व्यवस्था | क्या समझते हैं सब ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए है ? जी नहीं , सब इस ज़िंदगी के लिए है , बिल्कुल practical , और दूरदर्शी , जिसका परिणाम हम देख रहे हैं |
यहाँ तक कि जिनकी कठोर आलोचना की जाती है , उन कथित इस्लामी अवगुणों को वही लोग अपनाते भी है | कुछ अपनी ओर से समीक्षा कीजिये | जिस हिंसकता , आक्रामकता , जड़ता का हम विरोध करते हैं , अपनी परी आने पर हम उन्ही को अपनाने की वकालत भी करते है | किसी भी हिन्दू मानस और संगठन को देख लीजिये | क्या वह वस्तुतः Hinduist है ? क्या वह इस्लामियत से वंचित है ? कह दें तो कटु हो जायगा , हिन्दू कि रक्षा के लिए बना ( अब तो एक अलग धर्म ) को वही तलवार उठाना पड़ा , जिसके लिए उनका आरोप था कि तलवार के बल पर इस्लाम फैला |
हम कोई आपत्ति नहीं कर रहे हैं | वह तो करना ही पड़ेगा | लेकिन कहना यह है कि फर्क कहाँ रहा ? क्या हम परोक्ष islamist नहीं हुए ? इसे स्वीकार करने में क्या हर्ज़ ? भय बिन प्रीत को चाहे हिन्दू नीति कहिये चाहे मुसलमान | जब भी आप कुछ निष्ठापूर्वक कुछ करने पर उतारू होंगे , आपको उसी रास्ते पर जाना होगा जिसे आप कहते हैं यह इस्लाम का दूषित और गलत रास्ता है | यूँ केवल हवाई बात करके आत्मसंतोष प्राप्त करना हो तो अवश्य गर्व से कहो हम हिन्दू हैं | निश्चयतः , हिन्दू जीवन का एक मार्ग है / होगा, लेकिन वह बचेगा कैसे ?

8 - समरथ को नहिं दोष गुसाईँ 
यह तो समझ में आती है जनता कि मजबूरी कि वह शक्तिशाली , बाहुबली , धनबली के समक्ष झुकता है | लेकिन ईश्वर के आगे क्या नाक रगड़ना जो अशक्त है , शक्तिहीन है ? उसका कोई वश चलता तो नहीं दीखता !

9 - मान लीजिये कोई पुलिस वाला या प्रशासक या न्याधिकारी राधे माँ का भक्त हुआ , तो वह उनके खिलाफ जांच क्या करेगा ? सज़ा क्या दिलाएगा ?

10 - मैं कभी कभी ब्राह्मणवाद को श्रेष्ठता का मार्ग , भले थोड़ा अहंकार मिश्रित , समझता हूँ | और उसमें कोई बुराई न मान सबसे कहता हूँ कि ब्राह्मण बनो | लेकिन , लगता है ऐसा है नहीं | यह केवल श्रेष्ठता के दंभ से ग्रस्त / पीड़ित होने की भावना नहीं है | इसका मूल है , मनुष्यों के बीच विभाजन , श्रेणीबद्धता | और वह भी जन्मजात अर्जित | भले कहते हैं कि कोई भी अपने कर्मों से ब्राह्मण या शुद्र बन सकता है , लेकिन इसके उदहारण तो सामने आये नहीं | तो ऊँच नीच का तफरका , भेदभाव और इसकी शास्त्रीय मान्यता , स्वीकार्यता इसकी असली परिभाषा है |
अब यह बात तो खैर गलत है ही !

11 - नये सिरे से 
विचार करना है 
स्थितियों पर !

12 - पैर छुएँ या न छुएँ, मेरा इस पर कहना यह है कि पैर कोई गन्दा अंग नहीं है , किसी का भी !

13 - ( Last )  बात में दम मुझे भी लगता है । हिन्दू अवश्य ही उदार हैं । मुसलमानों के प्रति तो और भी ज़्यादा । देखिये मांसाहार ये इसीलिए करते हैं , और इसमें सुना कि ब्राह्मण कौम का महती योगदान है । जिससे चिकवा ( कुर्रेशी ) मुसलमानों की आमदनी बढ़े , उनकी माली हालत सुधरे । वरना भला वे मांसाहार करते !

Honestly your's ,


उग्रनाथ 

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