Hindi Atheist - 2 , July - 8 Issue
Weekly : by , Ugra Nath @ Lko
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Title - धर्म रहे , आदमी रहे न रहे !
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1 - धर्म रहना चाहिए , आदमी रहे न रहे ।(क्यों यही तो है न ? )
2 - वैसे भाई नीति तो यही है | कि किसी की मूर्खता पर मत हँसो | उसी प्रकार यह बात भी उचित ठहरती है | कि किसी धर्म की आलोचना मत करो ?
3 - पदचिन्हों पर चलना यद्यपि व्यापक है ,प्रश्नचिन्ह का गायब होना घातक है ।
4 - मैं यह समझने में असमर्थ हूँ कि कोई कैसे कैसे कह देता है कि वह हिन्दू है या मुसलमान ? कोई कैसे जान लेता है कि वह अन्य आदमी हिन्दू या मुसलमान ? नाम को पर्याप्त सुबूत मानने से मैं इन्कार करना चाहता हूँ ।
5 - हमेशा आदमी हिन्दू मुसलमान थोड़े ही रहता है ! कभी वह आदमी भी होता है । यह ज़रूर है कि आदमी की आदमीयत को उसका मज़हब अपने खाते में डाल लेता है , और मज़हब हर हैवानियत को आदमी के मत्थे जड़कर किनारे हो जाता है । सच है कि आदमी ज़िम्मेदार है आतंकवाद का , लेकिन मजहब पर भी कभी तो उँगली उठाई जानी चाहिए ?
6 - चलिए, कुछ देर के लिए मानते हैं कि धर्म रहना चाहिए । लेकिन इसके पैरोकार सुधी जन यह भी मानते हैं कि धर्म की बुराइयों को हटाया जाना चाहिए ।अब यह बताइये कि धर्म में क्या रहना चाहिए और क्या कालातीत, अप्रासंगिक हो गया है, इसे कौन तय करेगा ? धर्म प्रतिष्ठान और गुरु तो ऐसा करने से रहे ! तो यह बात तय तो आपका विवेक ही करेगा न ? फिर तो उसी विवेक को ही अपना सच्चा और असली धारणीय धर्म क्यों न माना और बनाया जाय ?हिन्दू मुसलमान तो बस समझो जातियाँ हैं । धर्म तो एक है ऐसा तो आप भी मानते हो ।
7 - आज मानो या कल मानो । मानो या बिल्कुल नहीं मानो । लेकिन यह बात तय मानो कि ईश्वर को मानना हर तरह से, समाज के लिए तो है ही, अपने लिए भी नुकसानदेह है ।
8 - अकेला ईश्वर तो है नहीं अल्लाह भी हैं और गॉड भी तो किसे छोड़ें , किसकी शरण में जाएँ ?
नहीं, एकै साधे सब नहीं सधता
एक भी साधोगे तो
दुसरे सब नाराज़ हो जाते हैं
उनमे आपसी द्वंद्व बढ़ जाते हैं |
सो , सबसे निरपेक्ष रहना ही उचित
श्रेय और श्रेयस्कर
सबका विरोध
सबको प्रणाम !
9 - मुस्लिम देशों, शिया सुन्नी झगड़ों और मार काट पर कोई पोस्ट आता है , तो बचाव में कमेंट आने लगते हैं । इस्लाम यह नहीं है, वे मुसलमान नहीं हैं । इस्लाम तो यह, इस्लाम तो वह ! पैग़म्बर के सुकर्मों के उदाहरण आने लगते हैं ।अब यहाँ दो बाते हैं :-एक तो यह कि मानो यदि इस्लाम उसी शुद्ध और अपनी नैतिकता के अनुसार होता तो दुनिया स्वर्ग हो जाती ! क्या यह सत्य है ?दूसरे यह कि इस्लाम यदि दूषित हुआ है तो भला ऐसा क्यों और कैसे होने पाया, परमशक्ति के वरदहस्त के बावजूद ? मुसलमान ऐसा कर रहा है तो ऐसा क्योंकर करने ही पा रहा है ? यदि मनुष्य ही उसके कर्मों के लिए ज़िम्मेदार है तो ईश्वर की फिर ज़रूरत क्या है ?
प्रश्न आखिर कब उठेंगे ? उठेंगे भी या ईश्वर के नाम पर ऐसे ही चलता रहेगा ?
10 - अगर कोई मज़हब दावा करता है कि वह मोहब्बत सिखाता है , तो उसपर भी हमारा प्रश्नचिन्ह है । क्यो करें हम मोहब्बत ? आदमी मोहब्बत करने लायक होगा तो करेंगे ही, तुम चाहे कहो या न कहो । और कोई आदमी घृणित, बहिष्कार करने योग्य है या सजा का हक़दार है तो उससे क्या तुम्हारे कहने से मोहब्बत कर लें ?और फिर, मोहब्बत हम करें, उसका श्रेय तुम ले जाओ ? कि देखो, मैंने ही इसे मोहब्बत करना सिखाया है ?
11 - क़ुरान याद हो तो यजीदी लड़कियाँ मिलेगी ।खबर तो जो है सो है । इस प्रकरण पर मैं पृथक अंदाज़ ए गौर रखता हूँ । मेरा ख्याल है कि इस मज़हब के प्रवर्तक और उसको फ़ैलाने वाले इंसानी प्रकृति और नीच प्रवृत्ति के अद्भुत ज्ञानी थे । उन्हें पता था कि मनुष्य के sex drive को लालच दे उसे किसी भी तरफ चलाया, drive किया जा सकता है ।इसीलिए उन्होंने स्वर्ग में 72 हूरों का प्रबंध किया । और शर्त यह रख दी कि इस दुनिया में ज़िना (बलात्कार) नहीं करना । मतलब, यहाँ का अनुशासन तुम्हें वहाँ वृहत्तर सुख देगा । प्रमुखतः यौन सुख । है न लीडरशिप की बुद्धिमत्ता और मनो- मैनेजमेंट ?सोचना पड़ता है, कहीं धर्म का मूल आकर्षण यौन सुख तो नहीं है ?
12 - बात सही है । यह मुझे भी उचित लगता है, यदि नास्तिकता कोई धर्म (संस्था के रूप में) न बने। यूँ तो यह वैसे भी नहीँ बन सकता क्योंकि यह स्वतंत्र विचार पर आधारित है । इसलिए इसका धर्म बनना इसके लिए घातक होगा । क्योंकि इसका कोई नपा तुला आचार व्यवहार का कोई पैमाना तो है नहीं । हर सदस्य स्वतंत्र होगा । कोई कट्टर आतंकवादी बन सकता है । कोई महान वैज्ञानिक डॉक्टर इंजीनियर राजनेता बनेगा । कोई चोर उचक्का बनेगा तो कोई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी । कहना न होगा शहीद भगत सिंह के नास्तिक स्वरुप को आदर नहीं देता, बल्कि शहीद के रूप में पूजा करता है ।
ऐसे में नास्तिकता, ठीक है कि नाम कमाएगी, लेकिन सच यह है कि यह बदनामी भी बटोरेगी । कम से कम यह गारंटी तो कतई है ही नहीं कि सारे नास्तिक उच्च कोटि के ही होंगे । तय यह है कि अन्य धर्मावलंबियों की भाँति नास्तिक भी अलग अलग प्रकृति और प्रवृत्ति के होंगे, और उन्हें कोई रोक नहीं सकता । ऐसे में यह विचार धर्म बन कर क्या करेगा ? ध्यान योग्य बात है कि धार्मिक लोग तो चाहते ही हैं कि हम धर्म बनें और वे हमसे पट्टीदारी का व्यवहार करें ।
13 - ईश्वर ने आदमी बनाया वह मर जाता है ,आदमी ने ईश्वर बनाया कोई छूकर दिखाए !
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Honestly yours' ,
उग्रनाथ
Weekly : by , Ugra Nath @ Lko
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Title - धर्म रहे , आदमी रहे न रहे !
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1 - धर्म रहना चाहिए , आदमी रहे न रहे ।(क्यों यही तो है न ? )
2 - वैसे भाई नीति तो यही है | कि किसी की मूर्खता पर मत हँसो | उसी प्रकार यह बात भी उचित ठहरती है | कि किसी धर्म की आलोचना मत करो ?
3 - पदचिन्हों पर चलना यद्यपि व्यापक है ,प्रश्नचिन्ह का गायब होना घातक है ।
4 - मैं यह समझने में असमर्थ हूँ कि कोई कैसे कैसे कह देता है कि वह हिन्दू है या मुसलमान ? कोई कैसे जान लेता है कि वह अन्य आदमी हिन्दू या मुसलमान ? नाम को पर्याप्त सुबूत मानने से मैं इन्कार करना चाहता हूँ ।
5 - हमेशा आदमी हिन्दू मुसलमान थोड़े ही रहता है ! कभी वह आदमी भी होता है । यह ज़रूर है कि आदमी की आदमीयत को उसका मज़हब अपने खाते में डाल लेता है , और मज़हब हर हैवानियत को आदमी के मत्थे जड़कर किनारे हो जाता है । सच है कि आदमी ज़िम्मेदार है आतंकवाद का , लेकिन मजहब पर भी कभी तो उँगली उठाई जानी चाहिए ?
6 - चलिए, कुछ देर के लिए मानते हैं कि धर्म रहना चाहिए । लेकिन इसके पैरोकार सुधी जन यह भी मानते हैं कि धर्म की बुराइयों को हटाया जाना चाहिए ।अब यह बताइये कि धर्म में क्या रहना चाहिए और क्या कालातीत, अप्रासंगिक हो गया है, इसे कौन तय करेगा ? धर्म प्रतिष्ठान और गुरु तो ऐसा करने से रहे ! तो यह बात तय तो आपका विवेक ही करेगा न ? फिर तो उसी विवेक को ही अपना सच्चा और असली धारणीय धर्म क्यों न माना और बनाया जाय ?हिन्दू मुसलमान तो बस समझो जातियाँ हैं । धर्म तो एक है ऐसा तो आप भी मानते हो ।
7 - आज मानो या कल मानो । मानो या बिल्कुल नहीं मानो । लेकिन यह बात तय मानो कि ईश्वर को मानना हर तरह से, समाज के लिए तो है ही, अपने लिए भी नुकसानदेह है ।
8 - अकेला ईश्वर तो है नहीं अल्लाह भी हैं और गॉड भी तो किसे छोड़ें , किसकी शरण में जाएँ ?
नहीं, एकै साधे सब नहीं सधता
एक भी साधोगे तो
दुसरे सब नाराज़ हो जाते हैं
उनमे आपसी द्वंद्व बढ़ जाते हैं |
सो , सबसे निरपेक्ष रहना ही उचित
श्रेय और श्रेयस्कर
सबका विरोध
सबको प्रणाम !
9 - मुस्लिम देशों, शिया सुन्नी झगड़ों और मार काट पर कोई पोस्ट आता है , तो बचाव में कमेंट आने लगते हैं । इस्लाम यह नहीं है, वे मुसलमान नहीं हैं । इस्लाम तो यह, इस्लाम तो वह ! पैग़म्बर के सुकर्मों के उदाहरण आने लगते हैं ।अब यहाँ दो बाते हैं :-एक तो यह कि मानो यदि इस्लाम उसी शुद्ध और अपनी नैतिकता के अनुसार होता तो दुनिया स्वर्ग हो जाती ! क्या यह सत्य है ?दूसरे यह कि इस्लाम यदि दूषित हुआ है तो भला ऐसा क्यों और कैसे होने पाया, परमशक्ति के वरदहस्त के बावजूद ? मुसलमान ऐसा कर रहा है तो ऐसा क्योंकर करने ही पा रहा है ? यदि मनुष्य ही उसके कर्मों के लिए ज़िम्मेदार है तो ईश्वर की फिर ज़रूरत क्या है ?
प्रश्न आखिर कब उठेंगे ? उठेंगे भी या ईश्वर के नाम पर ऐसे ही चलता रहेगा ?
10 - अगर कोई मज़हब दावा करता है कि वह मोहब्बत सिखाता है , तो उसपर भी हमारा प्रश्नचिन्ह है । क्यो करें हम मोहब्बत ? आदमी मोहब्बत करने लायक होगा तो करेंगे ही, तुम चाहे कहो या न कहो । और कोई आदमी घृणित, बहिष्कार करने योग्य है या सजा का हक़दार है तो उससे क्या तुम्हारे कहने से मोहब्बत कर लें ?और फिर, मोहब्बत हम करें, उसका श्रेय तुम ले जाओ ? कि देखो, मैंने ही इसे मोहब्बत करना सिखाया है ?
11 - क़ुरान याद हो तो यजीदी लड़कियाँ मिलेगी ।खबर तो जो है सो है । इस प्रकरण पर मैं पृथक अंदाज़ ए गौर रखता हूँ । मेरा ख्याल है कि इस मज़हब के प्रवर्तक और उसको फ़ैलाने वाले इंसानी प्रकृति और नीच प्रवृत्ति के अद्भुत ज्ञानी थे । उन्हें पता था कि मनुष्य के sex drive को लालच दे उसे किसी भी तरफ चलाया, drive किया जा सकता है ।इसीलिए उन्होंने स्वर्ग में 72 हूरों का प्रबंध किया । और शर्त यह रख दी कि इस दुनिया में ज़िना (बलात्कार) नहीं करना । मतलब, यहाँ का अनुशासन तुम्हें वहाँ वृहत्तर सुख देगा । प्रमुखतः यौन सुख । है न लीडरशिप की बुद्धिमत्ता और मनो- मैनेजमेंट ?सोचना पड़ता है, कहीं धर्म का मूल आकर्षण यौन सुख तो नहीं है ?
12 - बात सही है । यह मुझे भी उचित लगता है, यदि नास्तिकता कोई धर्म (संस्था के रूप में) न बने। यूँ तो यह वैसे भी नहीँ बन सकता क्योंकि यह स्वतंत्र विचार पर आधारित है । इसलिए इसका धर्म बनना इसके लिए घातक होगा । क्योंकि इसका कोई नपा तुला आचार व्यवहार का कोई पैमाना तो है नहीं । हर सदस्य स्वतंत्र होगा । कोई कट्टर आतंकवादी बन सकता है । कोई महान वैज्ञानिक डॉक्टर इंजीनियर राजनेता बनेगा । कोई चोर उचक्का बनेगा तो कोई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी । कहना न होगा शहीद भगत सिंह के नास्तिक स्वरुप को आदर नहीं देता, बल्कि शहीद के रूप में पूजा करता है ।
ऐसे में नास्तिकता, ठीक है कि नाम कमाएगी, लेकिन सच यह है कि यह बदनामी भी बटोरेगी । कम से कम यह गारंटी तो कतई है ही नहीं कि सारे नास्तिक उच्च कोटि के ही होंगे । तय यह है कि अन्य धर्मावलंबियों की भाँति नास्तिक भी अलग अलग प्रकृति और प्रवृत्ति के होंगे, और उन्हें कोई रोक नहीं सकता । ऐसे में यह विचार धर्म बन कर क्या करेगा ? ध्यान योग्य बात है कि धार्मिक लोग तो चाहते ही हैं कि हम धर्म बनें और वे हमसे पट्टीदारी का व्यवहार करें ।
13 - ईश्वर ने आदमी बनाया वह मर जाता है ,आदमी ने ईश्वर बनाया कोई छूकर दिखाए !
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Honestly yours' ,
उग्रनाथ
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