मंगलवार, 11 अगस्त 2015

नागरिक Facebook 6 / 7 / 2015 to 6 / 8 / 2015

नागरिक Facebook  6 / 7 / 2015   to  6 / 8 / 2015

( कविता )
~~~~~~~
साधु अपना काम करता है 
मैं अपना काम करता हूँ ,
वह मुझे बार बार 
पानी से बाहर निकालता है
मैं उसे बार बार डंक मरता हूँ ,
साधु अपना काम करता है
मैं अपना काम करता हूँ |
*******


आगाह कर रहा हूँ । चेतावनी समझ लीजिये । राष्ट्रभक्ति को इंसानियत का पैमाना न बनाइएगा ! जानते हैं, सारी दकियानूसी मज़हबी संस्थाओं ने आज़ादी की लड़ाई लड़ी । उन्हें पता था कि तब उनकी बन आएगी, वह मनमानी कर सकेंगे ! सर सैयद लोग इसे जानते थे । इसलिए आज़ादी के खिलाफ थे । वह जानते थे प्रगतिशीलता अंग्रेजी राज में सुरक्षित है, और कठमुल्लाओं पर नकेल ।

चिंताजनक न सही , चिंतनीय तो है ही यह बात कि धर्म का बयान, बखान, या परिभाषित करने का काम ज़्यादातर ब्राह्मण लोग ही क्यों करते हैं ? 
या उनसे मिलते जुलते लोग ?

जय श्री कृष्ण ! जय राधे माँ !
हिंदुस्तान में जो न हो जाय वह थोड़ा । और दुर्भाग्य यह कि यह कोई सबक नहीं लेता ।
नास्तिकता - वैज्ञानिकता तो दूर , मूर्तिपूजा ही छोड़ने की बात करो , तो देखो ये कैसे झौंझिया लेते हैं ? भारतीय संस्कृति (अज्ञानता ) पर हमला ? बिल्कुल बर्दाश्त नहीं !

छिछोरा होना एक बात है , छिछोरा दिखना और बात !
छिछोरापन , तो चलो मान लेते हैं, सभी होते हैं । लेकिन छिछोरापन अपने मन में रखो , उसे बाहर क्यों प्रदर्शित करते हो ?
जिद पकड़ लो कि तुम्हें ऐसा नहीं करना है, मन कुछ भी कहता रहे । इसलिए नहीं कि प्यार करने की स्वतंत्रता में यह नीति बाधक है , बल्कि इसलिए कि हमारे भारतीय समाज में प्यार का सर्वजनिक प्रदर्शन अच्छा नहीं माना जाता । और यह बात समझ लीजिये कि समाज में नीति अनीति की नहीं, उसके प्रति समाज की मान्यता का ज़्यादा प्रभाव होता है । इसलिए जैसा देश वैसा भेष का पालन किया ही जाना चाहिए ।
ऐसे मेरा ख्याल है । सारे सच से काम नहीं चलता । सच तो सब सुंदर नहीं , अत्यंत कुरूप भी है ।

आपकी मर्ज़ी 
आप आयें, न आएँ 
मैं बुलाऊँगा !

बुराई तो बुराई, बुराई शब्द के उदगम का आरोप भी औरत के ऊपर ? क्योंकि बुराई शब्द महिला के अंगविशेष से उद्भूत है ? 
यह तो स्त्री का सरासर अपमान है और खुलेआम, स्पष्ट ! 
इसे खोज निकाला था राजेन्द्र यादव की पत्रिका हंस ने ।
शर्मनाक !

Freelance Journalists की तरह Freelance Politicians भी तो हो सकते हैं ?

जो भी जन इस मानसिकता से ग्रस्त होंगे कि हिन्दू मेरा धर्म है, इस्लाम उनका धर्म है ( or vice versa ) वह मेरी बात समझ , पचा नहीं पायेंगे | बहतर होगा वह चुपचाप उसे पढ़ लें | अनावश्यक टिप्पणी करके उसे बरबाद न करें |

मृत्युदंड के समर्थकों की संख्या गवाह है कितना इस्लामी हैं राष्ट्रवादी हिन्दू समाज ! और उधर उनके कुछ संगठन तो कहे ही जाते हैं " तालिबान " | तालिबानियत हिन्दू चरित्र तो नहीं ही है , ऐसा हिन्दू जन ही बताते हैं | वह तो उदारचरितानाम वसुधैव कुटुम्बकम वगैरह का जाप करते हैं और PM समेत ये लोग इसे दुनिया में बखानते , आदर सत्कार पाते और विश्वगुरु का सम्मान बटोरते हैं |

( Badmesh Thinking )
सबसे बड़ा गुरु ज्ञान यह है , कि स्त्री पुरुष इकठ्ठा होते हैं , और संतान का जन्म होता है !

एक उद्धरण मैंने एक लड़के के T -Shirt पर लिखा देखा | अच्छा लगा था , तो सोचा मित्रो से साझा करूं |
" Intellectuals solve the problems , Geniuses prevent the problems . "

मेरा एक Page तो है - Bloggers ' Party - " क्यों ? Why ? "
लेकिन अभी एक पार्टी सोच रहा था -
" ख़फ़ा " Angry 
यह सटीक है , मेरे स्वभाव के अनुकूल |

आज Pelvic girdle से लेकर पैर की ऐंड़ि तक बहुत दर्द रहा । रात कराहना पड़ा । कोई दवा नहीं है इसकी । कोई safest pain killer दवा का नाम authentic जानकार मित्र सुझाएँ ।
अभी जगने पर एक युवा दिन की विडम्बना याद आई । 61-62 में इण्टर में था । गोरखपुर जुबिली टॉकीज़ के पीछे तेलियाना टोला में चारपाई की दो टाँग नाली के इस पार और दो टाँग थोड़ी सड़क पर बिछाकर सोता था । एक दिन सिरहाने रखी किताब को सुबह सुबह गाय खा गयी । SLLoney की trigonometry की थी । दुःख था नई कैसे आएगी ? चार रूपये की थी ।

मेरी एक चाह है । कामना - वासना ही कह लीजये । स्थूल जगत में तो मैं अपने मित्रों के साथ हूँ ही , इस आभासी संसार fb के भी अपने मित्रों का मैं (कम से कम कुछ के साथ तो अवश्य ही ) पूर्ण विश्वसनीय मित्र बनना चाहता हूँ । वह आँख मूँद कर मुझपर भरोसा कर सकें , उनकी अंतरतम, गुप्त से गुप्त स्वभाव और आचरणों का सुरक्षित Locker बन सकूँ , और साझीदार।
इसके लिए मुझे कौन सी परीक्षा पास करनी होगी ?

चलिए आपलोग बहुत जिद करते हैं, चिरौरी - मनुहार करते हैं , तो मैं माने लेता हूँ कि प्यार भी कोई चीज होती है ! वरना मैं तो इसे बस कामदेव महाराज का प्रताप या प्रकोप ही समझता हूँ । लेकिन इतना आसान भी नहीं है मुझसे मनवाना ! मेरी एक शर्त है । प्यार को प्यार मैं तभी मानूँगा जब वह कामेच्छा विहीन हो ! जैसे ही यौनिक कामना की दुर्गन्ध घुसी , मैं उसे प्यार नही सेक्स कहूँगा । 
Idea अच्छा है । Love is love only when it is sexless . भाई राजेन्द्र राज कहते हैं , प्यार देना सिखाता है निःस्वार्थ । अबिस बात में भी पेंच है कि दोनों पार्टी देने पर आमादा हों, तो देगा तभी तो कोई जब दूसरा उसे लेगा ? और इस लेन देन में लेना देना पूरा हो जाय ? लेकिन इसकी जिम्मेदारी राजेन्द्र राज की होगी क्योंकि यह मेरा सिद्धांत नहीं है । मेरे अनुसार Caring is love . एक दूसरे की परवाह करना प्रेम है , कोई gift दे पाएँ या न दे पाएँ !
प्रोग्राम भी अच्छा है ! इस बात और विचार को promote किया जाय कि Only sexless love is love, otherwise it is passion .
नयी पीढ़ी जो प्यार को सिर्फ डेटिंग, शारीरिक नैकट्य, फिर विवाह/ विवाहविहीन घर से पलायन समझती है , उसे कुछ दिशा मिले और प्यार कायम भी रहे ।

मैं अभी सोच रहा था 
क्या ऐसा हो सकता है कि -
हम स्वाधीनता की चाह के ही गुलाम हो जाऐं ?
कभी कभी लगता है , हम ऐसे हैं 
बहुत तंग करती है यह चाह,
इसकी वासना ,
तो यह भी गुलामी तो है ?

मैं विचारों में महान हो सकता हूँ , लेकिन रहन सहन में तो बिल्कुल नहीं !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें