सोमवार, 10 अगस्त 2015

Hindi Atheist - 4 , July, 21 / 2015 Issue

Hindi Atheist - 4 , July, 21 / 2015 Issue
Weekly : by , Ugra Nath @ Lko
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Title - अलग आदमी 
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1 - पहले कभी लिखा था, आज फिर अनुभव हुआ । =
खाने से ही नहीं, खिलाने से भी पेट भरता है !

2 - उस दशा में जबकि एक बड़ा सा हिन्दू धर्म स्वयं कह रहा है कि वह कोई धर्म नहीं वरन जीवन शैली है | ऐसी दशा में नास्तिकता भला धर्म बनने के बारे में कैसे सोच सकती है ?

4 - मुस्लिम मंदिर नहीं जाते । तो भी उनका काम चल जाता है । हिन्दू मस्जिद नहीं जाते । तो उनका भी मानसिक आध्यात्मिक उद्देश्य पूरा हो जाता है । ईसाई मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारा नहीं जाते । तो भी वह कुछ असंतुष्ट नहीं रह जाते ।
प्रतिप्रश्न आ सकता है, और आएगा ही कि वह अपने अपने धर्मस्थल तो जाते हैं ? 
जी नहीं , मैं यही तो कहना चाहता हूँ । कि यदि वे वहां भी, और कहीं भी न जायँ तो भी वह बाक़ायदा मानुषिक जीवन व्यतीत कर सकते हैं ।

5 - ब्राह्मण हैं तो मनुवाद है | 
मनुवाद है तो जातिवाद है | 
जातिवाद है तो जातियाँ हैं | 
जातियाँ हैं तो दलित हैं | 
दलित हैं तो आरक्षण है | 
आरक्षण है तो दलित हैं |
दलित हैं तो जातियाँ हैं |
जातियाँ हैं तो ब्राह्मण हैं |
ब्राह्मण हैं तो मनुवाद है |
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मनुवाद शाश्वत है ?
ब्राह्मणवाद जिंदाबाद ?


6 - हमारी औरतें न हुयीं गोया ईसा मसीह, जीसस क्राइस्ट हो गयीं , जो हमारे पापों के लिए सूली पर निरंतर चढ़ती हैं । कभी माँ, कभी बहन, कभी साली बनकर गालियाँ सहती हैं और पुरुषों के क्रोध का क्रास अपने कन्धों पर ढोती हैं ।

7 - इस्लाम उतना ही नहीं है जितना हम देखते जानते और जिसकी आलोचना करते हैं | हिंदुत्व भी उतना नहीं है , न ईसाइयत या सिखिज्म | इनमे मानव मन के अगम मनोविज्ञान और प्रवृत्तियों के सूत्र छिपे हैं |
Between the lines , लकीरों के बीच पढ़िये सबमे नास्तिकता, बुद्धिमत्ता के महीन मन्त्र मिलेंगे |

8  - अ आ - - -
यहीं से तो शुरू होती है हिंदी / नागरी ( मने सभ्यता वाली ) वर्णमाला ?
तो यहीं से आदमी बनने की भी शुरुआत होती है | जानते हैं -
" अ आ " का पूरा रूप, Full Form है - " अलग आदमी " |
अर्थात अलग आदमी बनो | किसी जैसा न बनो | आसान नहीं, मुश्किल काम है यह | लेकिन यही आदमीयत है | नकल करके अनुयायी बनकर कोई आदमी नहीं बना आजतक | वह तो शिष्य बनकर रह गया |
इसलिए गाँधी न बनो, बुद्ध विवेकानंद आंबेडकर न बनो | ब्राह्मण न बनो, दलित न बनो | बलात्कारी अपराधी न बनो तो महात्मा भी न बनो | हिन्दू मुसलमान नहीं | न भारतीय न अमरीकी कुछ भी किसी की तरह नहीं | तुम जो भी बनो खुद बनो | अलग बनो |
किंचित भी अपने पर संदेह न करो कि अरे तब तो तुम कहीं के नहीं रह जाओगे | नहीं, कुछ भी तुम्हारा जाने, बिगड़ने वाला नहीं | तुम हो न समुच्चय, सम्पूर्ण ! सारे धर्म, सारे देश, सारी जातियाँ, सारी सभ्यताएँ तो आपमें समाहित हैं | गौर कीजिये, ये सारे प्रतिष्ठान आप पर ही तो आधारित हैं, आपके बल पर जिंदा हैं !
तो आप अपनी ज़िंदगी, अपना बनकर क्यों न जियें ? एक सर्वथा नया - " अलग आदमी " होकर !

9 - एक तो RTI activist जैसा कोई पेशा नहीं हो सकता था । यह नागरिक का निजी अधिकार है और हर व्यक्ति उसका मालिक है । लेकिन सो तो हो ही गया है , ऊपर से RTI activists के फोरम / संगठन भी बन गए हैं, जिनका कोई औचित्य न था ।
तो ऐसी दशा में यदि नास्तिकों का कोई संगठन बनता है तो आस्तिकों के अलावा नास्तिकों का भी पेट क्यों फूलने लगता है ?

10 - नास्तिकता की लोकप्रियता नास्तिकता पर समझौता करने से नहीं , बल्कि नास्तिकों के उम्दा, अनुकरणीय व्यवहार से बढ़ेगी |

11 - अतिथि सत्कार + =
अतिथि सत्कार में केवल यही नहीं कि आप उन्हें मिठाई नमकीन बिस्कुट चाय शर्बत पेश करें , और उन्हें ज्यादा से ज्यादा आग्रहपूर्वक खिलाएं पिलायें < स्वयं कम से कम खाएं | 
इधर मेरा अनुभव यह भी हुआ है कि अतिथि सत्कार में यह भी शामिल कीजिये कि वह ज्यादा से ज्यादा बोले , अपना दिल आपके समक्ष खोले | आप कम से कम बोलें , और जो बोलें तो ज़्यादातर उसे बोलने के लिए उकसाने , उत्साहित - प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बोलें | एक बात और , जब भी वह बोलने को है आप चुप हो जायँ | 
हाँ तो भाई साहब , आप क्या कह रहे थे ?

12 - उलटबासी - विसंगतियों में जीवन =
एक नास्तिक मित्र , आदित्य निगम ने अपने एक उम्दा पोस्ट के प्रथम वाक्य में गज़ब की बात लिखी |
" नास्तिक, यानी समस्त प्राकृतिक नियमों का पालन करते हुए, जीवन को स्वनियंत्रित करने वाला व्यक्ति | "
मामूली विचार नहीं है यह | सार निकाल कर रख दिया इस नास्तिक ने नास्तिकता का , जिसे हम इतनी आयु में भी न जान पाए , या जान पाए तो शब्द न दे पाए | 
अब इस पर विचाररत होकर मुझे अजीब स्थिति नज़र आई |
वस्तुतः तो यह आस्तिक का जीवन है , सम्पूर्ण आस्तिक का | प्रकृति में आस्था रखने वाले का |
लेकिन विडम्बना देखिये कि उसे नास्तिक कहा जाता है , उसे भी खुद को नास्तिक बताना पड़ता है , जिसकी आलोचना में लोग कहते हैं , कहकर उसे उपेक्षित / अपमानित करते हैं कि यह तो negative विचारधारा है |
और यह विसंगति भी , कि जो इसे अनदेखी कर , त्याग कर किसी आसमान की ओर मुँह किये हुए है , उसे आस्तिक कहा जाता है | बिल्कुल गलत और उलटी बात |
कितना भ्रमपूर्ण जीवन , और इसका दर्शन !
जिस ज्ञान की शाखा को सचमुच अध्यात्म कहा जाना चाहिए , प्रकृति के साथ संश्लिष्ट , उसे विज्ञान कहकर खोटा बताया जाता है | और प्रकृति से पलायनवाद , संसार की उपेक्षा को अध्यात्म कहकर सम्मानित किया जाता है !
तो इस प्रकार - नास्तिक को आस्तिक ,
आस्तिक को नास्तिक ,
अध्यात्म को ज्ञान ,
अज्ञान को अध्यात्म ,
भले को बुरा ,
पापी को पुण्यात्मा
परिभाषित किया जा रहा है |
किस राजनीतिक पार्टी ( विश्व ) में जी रहे हैं हम लोग भाई ?
जहाँ सब झूठ ही झूठ चलता है ?


13 - हाय हाय , 72 हूरों के लिए कितने ज़हमत उठा रहे हैं लोग !
         हा  हा  हा  !
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Honestly yours'
उग्रनाथ 

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