मंगलवार, 11 अगस्त 2015

Hindi Atheist - 6 , August,1 / 2015 Issue

Hindi Atheist  - 6 , August,1 / 2015  Issue   
Weekly : by , Ugra Nath @ Lko
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Title -  नास्तिकता को जीकर दिखाइए !
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1 - आस्तिकता नास्तिकता की बात ही मत.उठाइये । उसे जीकर दिखाइए !

2 - दीजिये फांसी , लेकिन मैं मृत्युदंड का विरोध करता हूँ | 
प्रतीतितः, इस पर गहन चिन्तन नहीं किया गया | बस एक उन्माद्वश, फाँसी दो फाँसी दो , चिल्लाये जा रहे हैं | मानो इधर फाँसी हुई और उधर अपराध समाप्त हुआ ! जबकि फर्क कुछ भी नहीं पड़ता | यह गंभीर विषय है, किसी की ज़िंदगी और मौत का सवाल है | चलिए एक दिन आप वह जल्लाद ही बनकर दिखाइए ! थोड़ा practical करके देखिये ! बड़ा त्रासद होगा यह !
2 ( b ) - एक व्यक्ति की खून के प्यासे इतने सारे लोग !
कौन हैं भाई हम लोग ?
2 ( c ) - धनञ्जय के जाने के बाद देश जिस प्रकार बलात्कार के कोढ़ से मुक्त हुआ , उसी प्रकार अब यह आतंक से मुक्त हुआ, समझो |
2 ( d ) - मुझे यदि कोई पर्याप्त गोलियां दे दे तो मैं उन तमाम मुस्लिमों को गोली मार दूँ जो अब भी ईश्वर पर यकीन करना चाहते हैं | याकूब पूरा आस्तिक था |
2 ( e ) - 
मित्रगण मुझसे निजी तौर पर नाराज़ हुए प्रतीत हो रहे हैं | वह हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी | हम किसी के मित्र नहीं , और कोई हमारा नाजायज़ तरीके से मित्र हो , चाहते भी नहीं | हम केवल सत्य और सच्चाई के दोस्त हैं | मैं उनसे साफ़ कह दूँ कि हम सत्यनिष्ठ प्राणी हैं | जिन मूल्यों को हम जीवन का आधार बनाते हैं या जिन्हें हम उत्तम और श्रेयस्कर मानते हैं तो उसके पक्ष में हम हर तरह की दलीलें , तर्क ढूँढ ढूँढकर , आविष्कार कर सामने लाते ही रहेंगे | किसी को बुरा अवश्य लग सकता है इस अतार्किक समाज में | लेकिन आप भी तो स्वतंत्रता पूर्वक अपनी बात , विचारधारा जो मेरे विलोम में है कहते ही हैं !
तो जैसे हम मृत्युदंड के खिलाफ हैं तो हैं | कोई किंतु परन्तु , if & but , नहीं | इसी प्रकार हम ईश्वर के अनस्तित्व पर विश्वास करते हैं, तो इसका प्रचार करेंगे ही | इसे हमारे उदार, सहिष्णु मित्रों को स्वीकार करना चाहिए | बल्कि हमें ताक़त भी देनी चाहिए |
अभी एक मित्र ने अच्छी बात कही | कि यह सुविधा केवल हिन्दुस्तान में संभव है | शिरोधार्य है आपकी बात और आप द्वारा प्रदत्त यह सुविधा | अब बताइए कि यदि इस देश में भी हम इस option का लाभ न उठायें , तो हमसे ज्यादा नालायक भला कौन होगा ? आप ही बताइए !
2 ( f ) - देखा जा सकता है | देखा जाना चाहिए कि " न्याय होने " से ज्यादा " न्याय होता " दिखा / दिखाया गया |
2 ( g ) - 257 जान के बदले एक लाश ? मँहगा हुआ ।
2 ( h ) - अभी तक आपने पढ़ा :- हिन्दू जीवन जीने का एक तरीका है ।
अब आगे पढ़िए :- हिन्दू जीवन लेने का भी एक तरीका बनने जा रहा है । या यदि ना भी बन पाये तो बनने के प्रति सहमति आम होती जा रही है ।
2 ( i ) - उपसंहार = और फिर बात यह भी तो है कि मुझे अपने धर्म" के अनुसार मृत्यु दंड का विरोध तो करना ही था ! उसमें मुल्जिम के अपराध अनअपराध, एक हंता या 275 हंता होने से क्या मतलब ? यहाँ धार्मिक भावना का सवाल है न ? और आप तो जानते हैं ( आप भी तो पीड़ित होते रहते हैं जब तब ) , इसमें तर्क वितर्क, उचित अनुचित नहीं चलता !
तो अपने मजहब के अनुसार मैं राजीव गांधी के हत्यारों, दारा सिंह से लेकर धनञ्जय और वह क्या नाम है उसका जो अभी 30 जुलाई को लटकाया गया ? हाँ हाँ याकूब मेनन, सभी के capital punishment का विरोध करता हूँ ।
अच्छा , आप यह कहना चाहते हैं कि यह नास्तिकता भला कौन सा धर्म बन गया ? हा हा हा | 
आपका धर्म धर्म, और हमारा धर्म कुछ भी नहीं ?

3 - " सोच न पाना " तार्किकता के अभाव की ही तो स्थिति है ? यह तो आपको मानना ही पड़ेगा । हारे गाढ़े वक़्तों में तो ऐसा सबके साथ होता है । दिमाग काम करना उस वक़्त बन्द कर देता है । लेकिन तदुपरांत सामान्यतः भी यदि " तार्किकता के अभाव " में सोच न पाएँ , तो यह हमारी कमजोरी है ।

4 - मेरी परेशानी,मेरा संत्रास अत्यंत विकट है । जिन लोगों के बारे में आप जानते हैं कि उनका पक्षपाती हूँ , उनसे भी मेरी गंभीर असहमतियाँ हैं ।

5 - बड़े दुखी और भारी मन से आपसे एक निजी प्रार्थना करनी है, यदि इसका भी बुरा न बनाएं तो | लेकिन इसके लिए मैं आपके inbox में नहीं जा सकता | आप में से अधिकाँश तो संवेदनशील कवि भी हैं | किन्हीं स्थितियों और अनुभवों में विचरण आपके लिए कठिन न होगा | 
काफ्का की एक मशहूर कहानी है कायांतरण , जो मुझे पढ़ते समय बहुत पसंद आई थी | उसी तरह आपसे कायांतरणों, यथा पुनर्जन्मों की अपेक्षा-याचना है |
तो आप कभी पुरुष से स्त्री, स्त्री से पुरुष, पुरुष से हिन्दू, हिन्दू से पंडित, पंडित से दलित, दलित से मुसलमान, मुसलमान से ईसाई, ईसाई से अंग्रेज़, अँगरेज़ से अमरीकन, जापानी etc होकर देखिये / होते जाइए | फिर आप अपने आपसे अपने आपको लडवाइये | अपना महाभारत स्वयं अपने मन में लड़िये | तभी मैं आपके आक्रोश से बच पाऊँगा | आप ऐसा बखूबी कर सकती हैं | आखिर कहते हैं न , ब्रह्म एक ही है, वही आपमें भी है / होगा | और मैं अपने सुख के लिए आपसे निवेदन कर रहा हूँ कि इसका उत्तर मुझे न दीजियेगा | आपके बहाने यह निवेदन मेरे सारे स्त्री पुरुष मित्रो से भी हो जायगी, जो सम्प्रति मुझसे खिन्न से लगते हैं | 

6 - इस्लाम की आलोचना सभी करते हैं । लेकिन इससे सबक लेकर अपनी आस्तिकता पर भी नज़र डालना, सवालिया निशान उठाना , कोई नहीं करता !

7 - मैंने किसी हिन्दू को आध्यात्मिक हिन्दू नहीं पाया । सबके सब राजनीतिक हिन्दू मिले । दूसरी तरफ सारे नास्तिकों को आध्यात्मिक नास्तिक पाया । राजनीतिक पक्षधरता में विभिन्न मत वाले । कोई आरक्षण का समर्थक, कोई विरोधी ! लेकिन आध्यात्मिक नास्तिकता पर एकमत । 
हिन्दू , आध्यात्मिक हिन्दू तो है ही नहीं , राजनीति में भी बस एक मुद्दे पर एकमत । शेष सब स्वारथ के संगी !
दलित नास्तिक अलबत्ता आध्यात्मिक और राजनीतिक दोनों रूप से पर्याप्त एकमत हैं ।

8 - स्वार्थ में आसक्ति ही आस्तिकता है ।
और भला काहे के लिए पूजा पाठ कियेजाते हैं, जब कि इनका कोई उपयोग दैनिक जीवन में नही गई ? नास्तिक अपने पुरुषार्थ से जितना मिल जाय , बस उतना चाहता है ।
नास्तिक स्वार्थी नहीं हो सकता ।

9 - जब वह है नहीं ,
तो एक क्या, अनेक क्या ?
मूर्त क्या, अमूर्त क्या ?
वह कुछ भी हो सकता है -
एक -अनेक, नाम -अनाम ,
मूर्त - अमूर्त !
या कुछ भी नहीं हो सकता -
जब वह है ही नहीं !

10 -  ऐसी की तैसी
धार्मिक भावना की 
सब छद्म है !

11 - मुझे अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं मिलती । यही मेरी आध्यात्मिकता है ।
और, अपने बारे में सोचने से मन को हटाना मेरा ध्यान है ।

12 - देखिये , अब कहिये तो गम्भीर बात लिख दूँ ? अपनाइये " निजतावाद " , Individualism . अब यह न देखिये कि यह भी Humanism का हिस्सा है ! यह वाद तो है सारे वादों से ऊपर । आप स्वतन्त्र हैं अपना विचार स्वयं बनाने और कर्म निर्धारित करने को । यह अवश्य है कि यह आत्मवान व्यक्तियों के अधिक अनुकूल है । पुष्ट बुद्धि न होंगे तो उल्टा पुल्टा तो कर ही देंगे । यदि आत्मविश्वास न हो तो किसी वाद की छत्रछाया में पड़े रहिये । वहाँ कुछ तो अनुशासन में रहेंगे ? यहाँ तो सब अपने बल पर करना है । जिन्हें यहाँ आना हो वह खुद , निज का व्यक्तित्व बनाएँ, विकसित करें । स्वयं को sublimate , उत्तिष्ठित - जागृत -प्राप्य वरान्निबोधत करना ही व्यक्तित्ववाद, निजतावाद है । और यह उच्चतर आध्यात्मिकता है ।

13 - यह देखिये, अभी अभी आधी रात को कितनी बढ़िया बात मैंने सोची आपके लिए (यद्यपि यह भी पूर्ण बदमाशी ही है ) कि - सफल वही होगा जो विनम्र होगा, soft होगा ।
Microsoft की ही कहानी आप देख लीजिये न !

Honestly your's ,
ugranath 

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