सोमवार, 10 अगस्त 2015

Hindi Atheist - 3 , July, 15 / 2015 Issue

Hindi Atheist -  3 , July, 15 / 2015 Issue
Weekly : by , Ugra Nath @ Lko

Title - क्या होंगे हम ?
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1 - क्या होंगे हम 
आदमी नहीं हुए 
अगर हम ?

2 -  क्या किसी विषय विशेष में ज्ञान की अल्पता या अभिज्ञता उसके लिए हीनबोध का कारण बन सकती है ? मुझे तो ऐसा नहीं लगता । मुझे मेरे देश पर कोई शर्म नहीं आती, कोई उपालम्भ नहीं होता, न इससे मेरे देशभक्ति में कोई कमी आती है कि भारत विमान बनाने की कला नहीं जानता था ( यदि ऐसा हो ? पौराणिक गल्प को परे रख दें तो ! ) । यह अन्य किन्हीं विधाओं में प्रवीण, पारंगत और अग्रणी रहा हो सकता है । यदि ऐसा भी हो तो उस पर भी गुमान करने की मैं कोई ज़रूरत नहीं समझता । ज्ञान-विज्ञान सम्पूर्ण मानव सभ्यता की संपत्ति और धरोहर है । महत्वपूर्ण यह होगा कि किसने व्यापक हित सोचा !
या अभी तक नहीं सोचा गया , तो अब से सोचा जाना चाहिए ।

3 -  So what if a person is recognized by his name ?
क्या हुआ यदि आदमी को उसके नाम से पहचाना जाता है ? 
तमाम मित्रों के साथ हम भी चिंतित हो जाते हैं कि हम नाम से ही हिन्दू जान लिए जाते हैं, मुसलमान पहचान लिए जाते हैं ? 
तो क्या ? नाम से ही तो औरत मर्द की भी पहचान हो जाती है ! तो क्या औरत मर्द साथ नहीं रहते ? 
इसी प्रकार , नाम है तो है । बस नाम के लिए । नाम से बाहर निकलें । उसे एक किनारे रखकर उसके भीतर के आदमी को पहचानें । और उसी को मान्यता दें । उसे निखारें । 
नाम को नकारें । यह केवल परिचय के लिए identity card भर है । उतनी आवश्यकता भर उसका काम सीमित रखें ।
मेरा नाम उग्रनाथ है , लेकिन यकीन कीजिये मैं अपनी विनम्रता के लिए जाना जाता हूँ । गुस्से में कुछ चीखना चिल्लाना अलग बात है ।

4 -  मुसलमान भाइयों की यह बात तो सही ही है । आतंकवादी संगठन कोई भी हिन्दू मुस्लिम नाम रखें, आतंकवादी किसी भी नाम से हों , उन्हें हिंदुत्व या इस्लाम से क्यों जोड़ें ? राजनीतिक रूप से वे हत्यारे हैं तो उन्हें हत्यारे मानें । 
मजबूरी सबकी होती है । हर कोई किसी मुल्क-देश का होता है, सबकी कोई खास भाषा होती है जिसमे उनके नाम शिक्षा दीक्षा होती है, उसके खानदान उसके धर्म का बैनर उसके साथ चिपकता ही है चाहे वह चाहे न चाहे । फिर उसे / सबको उन मजबूरियों से कुछ मोह भी हो जाता है, जिसे छेड़ने कुरेदने से उसे तकलीफ होती है । ऐसा ही हमें भी तो महसूस होता है ? फिर केवल मुसलमान को ही क्यों दोष दें । एक मित्र सही कहते हैं - सब आपके कथनानुसार- निर्देशानुसार तो आचरण-व्यवहार करेंगे नहीं । और इसकी आशा भी नहीं करनी चाहिए । 
धर्म मजहब भाषा राष्ट्रीयता आदि आदमी की मजबूरियाँ हैं । वह मजबूरी उनकी है तो वही आपकी और हमारी भी है । 
कुछ ऐसी समझ रखें तो कुहरा कुछ साफ़ होता दिख तो रहा है ।

5 -  पहले मैं जानता था 
नास्तिकों का कोई धर्म नहीं होता ,
फिर पता चला 
कम्युनिस्ट लोग अधर्मी होते हैं 
लेकिन इन्होंने भाषण दिया 
आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता ।
अब अपने ज्ञान से मुझे लगा
आज़ादी के दीवानों का कोई धर्म नहीं हुआ करता ,
भगत सिंह, अशफाक़ुल्लाह क्या किसी कोण से हिन्दू मुसलमान थे ?
फिर तो ग़ालिब भी मुझे मुसलमान नहीं लगे
अर्थात, शायर-कवि का धर्म
धर्मातीत होता है ।
वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर
धार्मिक हो नहीं सकते ।
फिर मैं उलझन में हूँ
धार्मिक कौन लोग होते हैं ?
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6 - यदि " ईश्वर का होना " होना ही होना है, तो यह भी तय समझ लीजिये कि सब उसी का करा धरा है | वही सब कर करा रहा है |
वही नास्तिकों का भी संचालक, गुरु, उत्प्रेरक और दिशा निर्देशक है | 
वही हमसे कहता है कि मेरे लायक बच्चो, दुनिया से बोलो कि, ईश्वर का ( मेरा ) कोई अस्तित्व नहीं है | या सूचित कर दो ईश्वर मर चुका है ।
और अगर है भी तो उनसे कहो कि मेरे पूजा पाठ श्रृंगार आरती चापलूसी के चक्कर में न रहें | मैं इनसे खुश होने वाला नहीं हूँ |
उनसे साफ़ बोलो कि अपने बुद्धि विवेक से अपना काम मन लगाकर ज़िम्मेदारी पूर्वक करो और इंसानियत का जीवन व्यतीत करो |
तो इस प्रकार हम ईश्वर का विरोध उसी की इच्छा और आदेश पर करते हैं | इसमें हमारी कोई भूल नहीं है | हरि की ही ऐसी इच्छा है |
ईश्वर का कहना आप भी मानो !


7 -  आ बैल मुझे मार = 1 
यदि पकिस्तान में आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं तो भी हम यह नहीं कहना चाहते कि इससे इस्लाम का कोई लेना देना है |
लेकिन जब आपने स्वयं अपने देश को इस्लामी राज्य घोषित किया हुआ है , तो यह आँच अपने आप आप पर लग जाती है |
* आ बैल मुझे मार = 2
कहते हैं खाली दिमाग शैतान का घर | अंग्रेजी में - Empty mind is devil's workshop .
इसलिए पुराने लोगों ने दिमाग को ईश्वर, धर्म और देवी देवताओं से भर दिया | जिससे उसमे शैतान प्रवेश न कर पाए |
उन्हें पता नहीं था कि वे वही तो कर रहे हैं !
इससे अच्छा था दिमाग को खाली रहने देते | और उसे आदमी के हवाले कर देते !

8 - अगर कोई मज़हब दावा करता है कि वह मोहब्बत सिखाता है , तो उसपर भी हमारा प्रश्नचिन्ह है । क्यो करें हम मोहब्बत ? आदमी मोहब्बत करने लायक होगा तो करेंगे ही, तुम चाहे कहो या न कहो । 
और कोई आदमी घृणित, बहिष्कार करने योग्य है या सजा का हक़दार है तो उससे क्या तुम्हारे कहने से मोहब्बत कर लें ?
और फिर, मोहब्बत हम करें, उसका श्रेय तुम ले जाओ ? कि देखो, मैंने ही इसे मोहब्बत करना सिखाया है ?

9 - आज मानो या कल मानो । मानो या बिल्कुल नहीं मानो । लेकिन यह बात तय मानो कि ईश्वर को मानना हर तरह से, समाज के लिए तो है ही, अपने लिए भी नुकसानदेह है ।

10 - Dr Narendra Kumar लिखते हैं :
धर्म इंसानों के लिए नहीं बल्कि उन अधर्मियों के लिए है जिन्हें अपनी इंसानियत पर शक होता है !
बहुत ही उम्दा वाक्य बन पड़ा है यह ,जो नास्तिकों के लिए एक banner एक नारा के रूप में काम आ सकता है । कोई प्रदर्शन , प्रदर्शनी करें तो यह playcard का matter हो सकता है । 
इसकी ख़ास बात यह जो लेखक ने लिखा " इंसानियत पर शक होता है "। यह नहीं कहा कि जो इंसान नहीं होते । बधाई Dr NK जी को ।

11 - समझ से बाहर है कि इस्लाम पर कुछ भी लिख दो तो तमाम मुसलमान उसके बचाव में उतर आते हैं ,मानो इस्लाम उनकी ज़िम्मेदारी है । अथवा इस्लाम को save करना उनका फ़र्ज़ है ! क्या ईश्वर पर उन्हें भरोसा नहीं ?

12 -  धर्म तो धर्म , अपना क्या पराया क्या ?
प्रबुद्ध मित्र बताते हैं :- सरदार भगतसिंह का कहना था कि अपने धर्म की आलोचना ज़रूर करो । तभी उसकी बुराई जान पाओगे ! ( और उसमे सुधार कर पाओगे ? )
लेकिन मेरा ख्याल है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य और भारत के सन्दर्भ में इस्लाम को पराया मानना बिल्कुल गलत और अनुचित होगा । क्योंकि वह भी धर्म या मजहब के रूप में इस ज़मीन पर सक्रिय है और एक धर्मकी भूमिका प्रमुखता से, प्रभावशाली ढंग से निभा.रहा है । कहा भी जाता है कि वह इस देश की मिट्टी में पूरा घुल मिल गया है । इसलिए केवल हिन्दू को अपना मानना और सिर्फ उसकी आलोचना करना फलदायी न होगा । बल्कि यदि हम ऐसा करते हैं तो यह माना जाना स्वाभाविक है कि हम हिन्दू ही नही , सांप्रदायिक भी हैं । हिन्दू कौम पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा । अभी भी वह कहते ही हैं कि आप लोग 'उनके' बारे में कुछ नहीं लिखते/कहते ! तो, यह अपना पराया वाली बात मुझे त्रुटिपूर्ण प्रतीत हो रही है ।

13 - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते के चक्कर में ज़्यादा नहीं पड़ना चाहिए ।
नारियों के आस पास देवताओं का रमने देना उनके लिए सुरक्षित न होगा ।
हा हा हा !
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Honestly yours'
उग्रनाथ 

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