* अन्ना बाबा को
कहीं मार न डाले
लोकपालिका !
## [हाइकु ]
* समय तो अवश्य ही व्यस्तता का है ,होना ही चाहिए प्रगति के लिए | वक्त आपाधापी का भी है | लेकिन उस अनुपात में समय की कीमत भी समझी जा रही है , इसमें मुझे संदेह है | एक टेम्पो में छः सवारियां बैठती हैं | कोई बीच में उतरता है , बड़े आराम से सभी जेबें टटोलता है ,पर्स के सारे खाने तलाशता है | फिर एक जेब से दो रूपये ,दूसरी से दो रूपये और ऊपर कमीज़ की जेब से एक रुपया , कुल पाँच रूपये ड्राइवर को देता है | इस दौरान शेष सात सवारियों का कितना समय बर्बाद होता है उसे इसकी कोई फ़िक्र नहीं होती | जब कि यह टटोलना गाडी रुकवाने से कुछ पहले भी बैठे - बैठे भी किया जा सकता है | तब तो कुछ और टटोलते हैं | और कहीं यदि कोई नारी सवारी उतरी तो गज़ब ही समझिये | उसका नाटकीय चित्रण बड़ा मनोरंजक हो सकता है दर्शकों के लिए | सहयात्रियों के लिए तो वह समय खाऊ ही होता है | पहले उतरेंगी ,फिर बड़ा बैग खोलेंगी | सारे खाने दूंध कार एक छोटा पर्स निकालेंगी | उसके सारे चेन चलाएंगी, पर कोई पैसा नहीं निकलेगा | निकलेगा तभी जब हाथ ब्लाउज के अन्दर जायगा |
यह तो सवारियों का हाल है जब वे छः हों | विक्रम टेम्पो ड्राइवर को यह मंजूर नहीं | उसे चार + चार + तीन सवारियां पूरी होनी चाहिए , तभी वह गाडी हांकेगा | आप को देर हो रही है तो आप चिल्लाते रहिये | बैठाने का गुन भी उसे मालूम है | बहन जी , आप पीछे खिसकिये , भाई साहब , आप आगे होकर बैठिये | और इस तरह इस तरह एक का पुट्ठा दूसरे की जांघ से सटा कर तीन की सीट पर चार सवारियां फिट कर देता है |
इस भ्रष्टाचार पर न राम देवता बोलेंगे , न किरन देवी और उनकी अन्ना -टीम ,न अति उत्साही बालक केजरीवाल , न घुटे हुए वकील भूषण बाप -बेटे | उन्हें तो सारा भ्रष्टाचार केवल पी एम की कुर्सी में नज़र आता है | मुझे कुछ अतिरिक्त नज़र आता है तो मैं टपर - टपर बोलता हूँ | तूती की आवाज़ की तरह | ##
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