बुधवार, 27 जुलाई 2011

भ्रष्टाचार से त्रस्त

* वैसे यह मेरे जैसे समझदार व्यक्ति के लिए शोभा तो नहीं देता , लेकिन जाने क्यों ऐसा होता है कि भाजपा के किसी भी राजनीतिक -अराजनीतिक नाटक का मुझ पर कोई असर नहीं होता | उल्टा , चिढ़ ही पैदा होती है | न इसके नेता ही किसी कोण से प्रभावित करते हैं | अब यही उमा भारती को देखिये | गंगा प्रदूषण के मुद्दे पर क्या -क्या कर रही हैं | पर यह इनसे नहीं होता , जो कि ये कर सकती थी ,कि संत -साध्वी की तरह हिन्दू जनता को समझाएं , मनाएं , जागृत करें कि वह गंगा ही क्यों किसी भी नदी में मूर्तियाँ विसर्जित न करे , शव -अस्थि विसर्जन न करे , सड़े गले फूल न डाले ,गन्दा न करें | और इन सब कार्यों के लिए कोई नए पाखंड ईजाद करें, यथा इन्हें जमीन में गाड़ने की की प्रथा प्रारंभ करें | बस सब काम सरकार करे | यह तो हिन्दू संस्कृति की कोई सही दिशा नहीं है , जो अपने संस्कारों के लिए सरकारों पर आश्रित हो ! फिर इनसे क्या आशा की जाय ? जब कि यह भी तय है कि ये भी शासन में आकर गंगा का कुछ भी भला न कर पाएंगे | क्योंकि इनके नेतृत्व की नीव ही स्वयं प्रदूषित है | ##


* मेरे संज्ञान में यह बात आई है , और इसे कुछ लोगों ने मुझसे ही कही है कि वे स्वयं के भ्रष्टाचार से त्रस्त और तंग आ गए हैं | वे सरकार के छोटे मोटे कर्मचारी है जो अनियमित ताएँ करने के लिए विवश है | ज़ाहिर है इसमें उनको भी लाभ मिलता है , पर वे इसे जलालत की ज़िन्दगी मानते हैं , और इससे निकलना चाहते हैं | कहते हैं , कुछ जिम्मेदारियां पूरी हो जायं , जैसे बिटिया का ब्याह , तो वे समय पूर्व रिटायरमेंट ले लें | कहना न होगा , जैसा मैंने समय से पहले इस्तीफ़ा देकर किया | ##

* फँस ही गया
सीधा -सादा आदमी
अन्ना हजारे | # [हाइकु ]

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