शनिवार, 9 जुलाई 2011

तब तक-जब तक

  • मैं तब तक नक्सलवाद का समर्थन करता रहूँगा , जब तक मेरे घर - परिवार - रिश्तेदार का कोई सदस्य माओवादियों के हाथों मारा नहीं जाता  । 0 

  • scientist  होना आसान है , scientific होना मुश्किल ! #
  • आप लोग 2G-Fuji scam, राजा -रानी -कलमंदी की बात करते हो | लेकिन अक्लमंदी इस में थी और मैं होता तो यही करता कि commonwealth Game ही भारत में न कराता | क्योंकि मुझे पता है कि हिन्दुस्तान के वश का कुछ नहीं है | फिर यह तो इतना बड़ा आयोजन था | गड़बड़ी और घोटाला तो होना ही था | अकूत पैसा , गैर ईमानदार , बे ईमान , कर्त्तव्य परायणता -विमुख , भुक्खड़ अधिकारी -कर्मचारी इसे ऐसा ही अंजाम देंगें इसे हम सब जानते थे, और हैं , सिवा उनके जो हिन्दुस्तान से परिचित नहीं हैं | अब , जो संपत्ति [wealth] सबकी [common ] थी , वह उन सबकी हो गयी तो क्यों चिल्लाते हो ? तब तो बड़े गुरूर में थे कि इतना बड़ा खेल कराकर मेरे देश का मस्तक बड़ा ऊँचा होगा | लो ,हुआ तो ! अब जाँच-फाँच कराकर क्यों दुनिया के सामने अपनी फज़ीहत कराते हो ? #
 * टेलीविजन के कार्यक्रम में टेलीफोन बजता है , मैं अपने घर के टेलीफोन की ओर लपकता हूँ | #

*  लगे रहो मुन्ना भाई मार्का राजनीति खूब चल रही है | बूढों की तो जैसे -तैसे निपट गयी , युवकों की बारी है | आज युवा इस संगठन ,उस संस्था , इस जुलूस , उस धरने , इनके सेमिनार , उनके विचार गोष्ठी , इनके नाटक , उनके केरीकेचर में आता -जाता ,भाग लेता रहता है , सक्रियता से शिरक़त करता रहता देखा / पाया जा सकता है | उसकी क्या ग़लती ? विचार , आस्था , नीति ,समर्पण , एकनिष्ठता , देश के लिए बलिदान या स्वयं कुछ कर गुज़रने का मनोबल , साहस या उत्साह तो है नहीं , और इस सबसे कोई फल भी मिलने वाला नहीं , तो फिर इन्ही के पीछे लग लिया जाए | और स्व -विवेक, अपनी समझदारी , सही - गलत का चुनाव तो बिलकुल न किया जाय , न किसी आदर्श के चक्कर में पड़ा जाय | ये जो कर रहे हैं वही ठीक है | इन्ही की हाँ में हाँ मिलाने में भलाई है | दूसरे मंच से भले दूसरी बात बिलकुल उल्टी कहनी पड़े लेकिन ज़रा बच -बचाकर ,भाषा को घुमा फिराकर | इसी को तो राजनीति कहते हैं ! नाराज़ किसी कार्य समूह को नहीं करना | न जाने कब किसकी बन जाए , कौन सत्ता में या सत्ता के पूछटटे में  आ जाए ! सो, भाई मुन्ना भाई , बस लगे रहो | #     

*  जाति प्रथा ख़त्म हुयी या नहीं | पर जाति का अब कोई मतलब नहीं है \ हर जाति हर कार्य क्षेत्र में है | जो थोड़ा शेष है वह है  मनुष्य  की  appendics की तरह , निरर्थक ,बेमानी | वह भी सभ्यता के कालक्रम में समाप्त हो जायगा , या यह अंग शीर में कोई दूसरा काम पकड़ लेगा | इस पर ज्यादा ध्यान देना ,इसकी चिंता करना इसे और बढ़ाएगी | # 

0--  LIKE  SEPARATE ELECTORATE , LIKE THE AUTHORITY OF LOKPAL BILL.

* Knowledge-
"Aam admi is the largest generator of black money"
--Surjit S Bhalla [Indian Express 9/7/11] #

* I am not a citizen of God's kingdom . I don't pay taxes to him .  #

* A civil society in the drafting committee of Jan Lokpal Bill is alright  [UPA did it at centre]. But Salwa Judum , an armed civilian vigilante group to fight against is unconstitutional in Chhattisgarh [Said The Supreme court] . ? ? ?

* I appreciate the idea of Sri Sri Ravi Shankar ji [Indian express 29/6/11] . He says, we are all made up of a substance called God .
Really , instead of saying that GOD MADE US , it is very logical and aesthetc . Scientifically too , instead of naming so many things our body and mind is made up of , we can simply answer ,we are a combination of infinite substances and elements [ some may be yet unknown to us] which as a collective in one we have given a single name [proper noun. And ,that is God . that is a SUBSTANCE we all are made up of .  ##

* [exerpt]  A LETTER IN MY TUNE =
                                            GUEST CONTROL 
            iT IS WITH DEEP ANGUISH  that I AM WRITING this letter as a concerned citizen about the colossal wassage of food at weddings and other social functions . It is painful to see 100 dishes being served to a thosand or more guestsat several of these weddings. One can imagine the colossal wastage of food in a country where 40 per cent of the population sleeps on an empty stomach . how can we justify such vulgar displayof wealth and conspicuous consumption in a country with extreme poverty ? I sincerely feel that we need to revive the guest control order which limits the number of dishes that can be served and also limits the number of guests . This will help embellish the image of the government and show that it cares . It will be most appropriate if a guest control order is promulgated and implemented with all seriousness. #
                  - Sudarshan Agrawal , New Delhi    [Indian Express 8/7/11]

* कहा तो कचहरी ने जे डे की हत्या के मामले में पुलिस से , कि प्रेस को हर बात न बताया करो । क्यों भाई , सूचनाओं की गर्मी का मौसम है । ल बताएँ तो आरटीआई वाले खा जायँ । इसलिए वाले बताते हैं - पत्रकार को इसने मारा । कल बताया था उसने मारा । कल बताएँगे , उसने मारा । लो सूचनाएँ, चलाओ प्रेस का कारोबार , जाँच का काम चले न चले । 0


0 (कविता)
                मैंने तो एक
                कविता करी थी ,
                आप नाहक़
                बुरा मान गये । 0

  * वासांसि जीर्णानि -
  मरना तो है ही 
  अन्ना हजारे को भी 
  बाबा रामदेव को भी 
  और मुझे भी तो !  #
   

0 बेईमानी का
उत्स क्या है , स्वार्थ तो
उसे मिटाओ
उसकी ज़रूरतें
तो पूरी करो ।   (हाइकु) 0

0 कुछ न भूलो
कुछ न याद करो
निरपेक्ष हो ।   (हाइकु) 0

0 बदसूरत
बहुत है जमाना
आईना देखो ।  (हाइकु) 0

0 हैं तो ज़रूर
  लड़कियाँ सुंदर
  जैसे भी हुईं  ।  (हाइकु) 0


0 जैसे उड़ि जहाज का पंछी पुनि जहाज पर आवै , (एक राजनीतिक परिकथन)
  - आप जैसी पंछियाँ जहाज पर आएँगी नहीं तो जहाज डूबेगा कैसे ।

0 सीबीआई को आरटीआई के दायरे बाहर रखने के विरुद्ध एक विशिष्ट व्यक्ति की टिप्पणी थी कि सीबीआई क्या है, जैसे पुलिस । आश्चर्य है कि फिर हर कांड पर जाँच की माँग सीबीआई से कराने की क्यों की जाती है , जब कि पुलिस वह काम करती ही करती है ।

      
0 डेनमार्क अदालत ने पुरुलिया केस के अपराधी किम डेवी को भारत को न सौंपने के निर्णय में भारत में मानवाधिकारों और जेलों की दशा पर जो टिप्पणी की है , उसका राजनयिक स्तर पर विरोध तो उचित ही है । लेकिन यह भारत के लिए आत्म निरीक्षण  का भी क्षण है । हमें लोकतंत्र के लायक़ बनने के लिए मेहनत करने की जरूरत है । हमसे अभी लोकतांत्रिक संस्कृति में और अधिक शिक्षित - प्रशिक्षित-दीक्षित होना अपेक्षित है ।0

0 मैं मूर्ख हूँ या बेवकूफ़ ,कोई सही - सही उत्तर दे दे , तो उसे मैं अपना एक माह का पेन्सन ईनाम दूँ  । 0

0 दरअसल, सचमुच मेरे साहित्य में ऐसा कुछ भी नहीं है जो उसे बिकाऊ बना
सके । 0

शायरी - 1 -औरतों से लोग घबराने लगे ,
                 मर्द मर्दुल्लों के संग जाने लगे । 0

    2 - वह तो कुछ कम था , यह ज़ियादा है ,
         यह तो बिल्कुल हरामज़ादा है  । 0

3 - तुम भी तो यार शायर करते हो क्या कमाल ,

    हरदम उसी का ख्याल , हरदम उसी का ख्याल  ।0

      4 - चाहिए तो मगर , करेंगे क्या ,
         वह जो न मिली , मरेंगे क्या । 0

0 मेरे पास क्या नहीं है । मैं संसार का सर्वोत्तम ग़रीब हूँ । (व्यक्तिगत)0


0 भाग्यवान
कही जाए अभागी
जो औरत
हिंदुस्तान आ जाए । (बदमाश चिंतन)
  
0 जैसे कम आयु के बच्चों को चश्मा लग जाना कोई बीमारी नहीं है , वैसे ही लड़कियों का हाइमन फट दाना भी कोई हैरानी को बात नहीं है  ।  (बदमाश चिंतन)0 















































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