बुधवार, 27 जुलाई 2011

धर्म का भ्रम

* कुछ मुसलमान भ्रमित हो जाते हैं कि इस्लाम उतना ही है जितना वे जानते हैं , और आतंकवादी गलत हैं | इसी प्रकार हिन्दू भ्रमित हो जाते हैं कि हिंदुत्व उतना ही है जितना गुरुजन उन्हें समझाते हैं , और उनके साधु- संत , बाबा -दाई बिल्कुल ठीक फरमाते हैं | भ्रम ही भ्रम है धर्म का भ्रम | ##

* हिन्दू जन अक्सर मुसलमानों की आलोचना करते हैं , की मुसलमान ऐसे , मुसलमान वैसे हैं | अब मैं उनसे पूंछता हूँ की यदि हिन्दू धर्म इतना ही महान और विशाल है तो फिर मुसलमानों की ज़िम्मेदारी उन पर क्यों नहीं है ? हिन्दू जवाब दे की मुसलमान ऐसे -वैसे क्यों हैं ? ##

* जो जन इस्लाम का ठीक -ठीक पालन पालन करते हैं , वे मुसलमान हों , न हों ,पर वे मुसलमान ज़रूर हैं जिनका खतना हो चुका है ! ##

* हिन्दू सचमुच धर्म नहीं है | कैसे ? और मुसलमान भी तो हैं ,ऐसे ! आस्थाएं अब अर्थ हीन हैं | पैदायशी जातियां हैं तो वे धर्म कैसे हो गयीं ? हिन्दू तो जाति प्रथा के लिए कृत संकल्प और विख्यात - कुख्यात है , इस से सिद्ध है किवह धर्म नहीं है | किन्तु इस्लाम भी तो जातियों में पूरी तरह विभक्त है , इसलिए अब उसे भी धर्म नहीं माना जा सकता / नहीं माना जाना चाहिए | अब कोई धर्म , धर्म नहीं रहा |
धर्म बचेगा तो व्यक्तियों में , क्योंकि वह आस्था का प्रश्न है | और आस्थाएं व्यक्ति पालता है , समूह नहीं | ##

* तक़रीर नहीं / तकरार बड़े हैं / बड़े -बड़े संतों / मौलाना -मौलवियों के बीच / हम तो / मामूली आदमी ! ##

* खुदा के वास्ते
खुदा पर
न कर तक़रीर तू ,
न फैला तकरार | ##

*
हमारा विश्वास है कि ईश्वर नहीं है , लेकिन ईश्वर विश्वासियों की बातों से हमें तो ठेस नहीं लगती | फिर हमारी बातों से उनकी आस्था को क्यों चोट लग जाती है जो मानते हैं कि ईश्वर है ? ? ##

* आखिर पंक्ति -
ईश्वर धरती छोड़ कर भागे देख यहाँ की मंहगाई |
आये थे कुछ बात बताने, कुछ बातें तो बतलाईं , |
प्रवचन बीच में छोड़ के भागे
देख यहाँ की मंहगाई | ##

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