गुरुवार, 26 सितंबर 2013

नागरिक पत्रिका 24 से 26 सितम्बर तक

* प्यार का नाटक होता है सेक्स के लिए | इसलिए यदि इसे सीधे सेक्स कहा जाय , और प्यार के नाटक का चेप्टर हटा दिया जाय तो प्यार के नाम पर होने , खाए और खिलाये जाने वाले वाले धोखे समाप्त हो जायँ |

* भारत के चितकों का भारत में होना , न होना बराबर है | वे भारत का कुछ नहीं सोचते |
( ये भारत की चिंता नहीं करते )

* चलो, हुसैन तो हिन्दू बदमाशों के कारण देश में नहीं रह पाए | लेकिन तसलीमा नसरीन भारत में क्यों नहीं रह पायीं ? सलमान रुश्दी क्यों नहीं बोल पाए ?
मेरा तो यह ख्याल है कि जब तक तसलीमा को भारत में शरण नहीं मिलती तब तक मैं सच्चर कोमेती लागू नहीं होने दूंगा | तसलीमा का भारत में रहना - न रहना ही इसके सेक्युलर होने या न होने का पैमाना है मेरे लिए |और मैं ऐसे हर MLA -MP उम्मीदवार का बहिष्कार करूँगा जो इसके पक्ष में होगा | चाहे वह प. बंगाल की कम्युनिस्ट पार्टी का हो , चाहे भारतीय जनता पार्टी का |

* पता नहीं क्या
विश्वास है , और क्या
अंधविश्वास ?

* पोंगा पंथ है
जन्मसिद्ध आधार
कार्ड देश का !

* ईश्वर नहीं
ईश्वर का 'लोगो' है ( Logo )
यह तो यार !

* हिंदुस्तान है
पाकिस्तान नहीं है
यह भारत !
(बस तुलना के लिए कभी कभी | जैसे हम यह भी कहते है - भारत अमरीका ब्रिटेन नहीं है / न बनाओ )

* तो क्या भाइयो , अब वेद भी वेग (Vague) हो गए ? और साथ में तब तो कुरआन, बाईबल इत्यादि भी ? :)

* अप्रिय संवाद :-
1 - भाइयो, सुनने में आ रहा है कि अब वेद भी वेग (Vague) हो गए ? लेकिन कुरआन, बाईबल वगैरह के बारे में कुछ पता नहीं चल पा रहा है |
2 - इतनी कमी है भारत में नेतृत्वकर्ताओं की, कि दागियों और अपराधियों के अलावा कोई और मिलता ही नहीं चुनाव लड़ने के लिए !
3 - जनरल वी के सिंह कुछ भी कहते , सजाई देते रहें | इनके काम तब भी तब भी संदिग्ध थे | इनके लक्षण अब भी दुरुस्त नहीं हैं |
4 - केवल मुस्लिम, केवल मुस्लिम खेलकर सपा सरकार सांप्रदायिक सद्भाव को स्वयं बड़ा नुक्सान पहुंचा रही हे | और दोष दूसरों पर लगा रही है |
5 - यह सरकार हिन्दुओं के मन में मुसलमानों के प्रति ईर्ष्या और द्वेष भावना भर रही है जिसके परिणाम अशुभ संभावित है |
6 - भोले बालक मुख्य मंत्री का कहना बचकाना है कि मामूली मारपीट और छेड़ छाड को सांप्रदायिक बना दिया जाता है | कवाल जैसी छोटी घटना को क्या तब तक नज़र अंदाज़ किया जाय जब तक वह दामिनी काण्ड न बन जाय ?
7 - सामजिक राजनीतिक चिन्तन तुलात्मकता कि अपेक्षा रखती है , इसके पक्ष में मुझे एक अनुभव मिला | किसी से किसी ने आसाराम की आलोचना की तो उसने पलट कर पूछा - आपको पता है मौलाना बुखारी के खिलाफ कितने आपराधिक ( उसने तो बलात्कार शब्द का भी इस्तेमाल किया ,लेकिन सच्चाई क्या है वही जाने ) | क्या आपको पता है उत्तर ? मुझे भी नहीं पता | मैंने तो इतना समझा कि आसाराम को आप एकल रूप से अनैतिकता का पर्याय नहीं बना सकते समाज में | समाज के अन्य सम्प्रदायों की नैतिकता के साथ ही उनकी तुलना करनी पड़ेगी |
( अभी बस )

अप्रिय संवाद :
1 - महिलाओं की रक्षा के लिए महिला सिपाहियों की नियुक्ति हुयी | अब इनकी रक्षा के लिए किनको लगाया जाए ?
2 - " नहीं रोक सकते धार्मिक कार्य " = दुर्गा पूजा पर हाईकोर्ट |
- तो अब तय रहा कि दुर्गा पूजा एक " धार्मिक कार्य " है | न ' परहित सरिस ' , न नैतिक आचरण , न सेवा , न दान , न प्रेम , न दया ?
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* आज के काम की संस्था :
" मर्यादा "
इसका अग्रेज़ी में अर्थ बताया गया है - Limit , और यही मैं चाहता था | मेरी मूल theory ही है - Limitation (सीमांकन) की | इसके लिए मर्यादा एक अच्छा शब्द है |
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* हम साहित्यकार नहीं , साधारण जनता हैं | दुष्ट राजनीतिक जन ( दुर्जन पार्टी ) :)
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* भक्ति -प्रेम का मार्ग हो या ज्ञान का | उसे तुम इसलिए मानते हो क्योंकि वैसा तुम्हे बताया गया है { गीताप्रेस में दोनों पक्षों के साहित्य प्रचुर हैं } | कोई अपना मार्ग निकालो , अपना बनाओ , उसे चुनो , उस पर चलो | तब तो वह हो कोई मार्ग ! उसे ही हम मानववाद , बल्कि मैं तो स्पष्टता के लिए ' एकल मानववाद ' , Individual Humanism कहना prefer करता हूँ | क्योंकि उसे मानने वाला केवल एक व्यक्ति होगा , और वह होगे 'तुम' | मैं सम्पूर्ण मानवीय धार्मिक स्वतंत्रता का प्रेमी हूँ | यह क्या कि किसी ने लकीर बनायी और सब , या तमाम लोग चल दिए | क्यों न आज़ाद रहा जाय कुछ भी मानने , कुछ भी न मानने को ; कोई विश्वास करने या न करने के लिए  ! कोई दूसरा उसमे दखल क्यों दे , जब कि कहा जाता है कि ' धर्म ' आदमी का निजी मामला है ?
ऐसे में गांधी का एक लाजवाब शेर याद आता है - " There are as many religions as there are minds ."
और यह मेरी अक्षमता हो सकती है , लेकिन ज्ञान और भक्ति का अन्तर मेरी समझ में नहीं आता  | क्या भक्ति विवेक पूर्वक नहीं की जा सकती ? प्रेम में अँधा होना अनिवार्य है क्या ? और क्या ज्ञान का रास्ता ज्ञान के प्रति एक अटूट आस्था, अप्रतिम भूख - प्यास, निस्सन्देह- विश्वासपरक प्रेम और अपरिहार्य समर्पण के बगैर तय किया जा सकता है ?
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Hate humans - Save Humanism -
यह मेरे मुंह से गलत बात निकलने जा रही है | बहुत सुना - ' पाप से घृणा करो , पापी से नहीं ' | लेकिन ऐसा हो नहीं पाया | पापी से प्रेम करो तो पाप को भी सुरक्षा मिल जाती है उसी के साथ | पापी जब बहिष्कृत होगा तो उसके अंदर का पाप भी कुछ शर्मिंदा होगा | मैं तो इसलिए, इस कदर दुष्ट जनों के प्रेम में घायल नहीं होता | यह नहीं कि उनकी हर वक्त अवमानना ही करता फिरता हूँ , चाहूँ भी तो सामजिक जीवन में ऐसा नहीं कर सकता | लेकिन उनसे थोडा दूरी बनाने , बहुत आत्मीय न होने की रणनीति अपनाता हूँ | और उसे यदा कदा यह अहसास भी करा देता हूँ | क्या आश्चर्य कि मेरे मित्रों की संख्या अत्यल्प है , क्योंकि आप जानते है कि आदमी क्या है ! कोई मेरे तराजू पर आता ही नहीं | तराजू थोड़ा ऊपर तो नहीं टंग गयी है - -  देखना है
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कहा गया कि छोटी मारपीट या छेड़खानी को साम्परादायिक झगड़ा बना दिया जाता है | इस पर दो एक वाक्य कहने का मन है | कोई भी झगडा या समस्या , मूलतः दो जनों के ही मध्य | और मान लीजिये वह सुलझ नहीं रहा या सुलझाया नहीं गया | तो आखिर बात आगे तो बढ़ेगी |  ऐसे में दोनों पक्षों के यदि उनके परिवार वाले या रिश्तेदार साथ न दें तो इसे आप क्या उचित कहेंगे ? और फिर उनके मित्र , मोहल्ले वाले ? आगे बढ़िये तो उनकी जाति बिरादरी वालों को उनका साथ सहयोग नहीं देना चाहिए ? क्या तब इसे आप उनकी बेरुखी नहीं कहेंगे ? हो सकता है आप इसे इंसानियत के भी विपरीत बताएं | अब इसी भावना को उठाकर तनिक सम्प्रदाय पर रख दीजिये | यदि जाति समप्रदाय व्यक्ति के काम न आये तो उनमे व्यक्ति शामिल ही क्यों रहे ? फिर इनकी उपयोगिता और ज़रूरत ही क्या रह जायगी | लेकिन तब तो आप कहते हो यह सांप्रदायिक दंगा हो गया !
जैसे एक उदाहरन और है दिमाग में | सीमा पर एक जवान का सर दुश्मन देश का जवान काट दे तो आप कहिये यह दोनों देशों के बीच का दुश्मनी का मामला क्यों बने ? आखिर एक आदमी ही की तो हत्या हुयी ? लेकिन मैं कहूँगा - तब देश के होने का मतलब ही क्या है ?
यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि सांप्रदायिक मसलों को भी गंभीरता से लिया जाय , उनका न्याय पूर्ण हल निकाला जाय | वरना इससे छुटकारा यह कहकर नहीं पाया जा सकता कि साम्प्रदायिकता गलत है जब कि सम्प्रदाय तो यथार्थ हैं !

* मैं जानता हूँ
मेरी बात सुन, तुम
नाराज़ हो जाओगे ,
मैं तुम्हे
नाराज़ करना
नहीं चाहता |
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खुले अशआर -

* क्या ज़रूरत है ज़ुर्म करने की ,
ज़ुर्म खुद मेरे हाथ हो लेगा |

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* राष्ट्र की गद्दी की होड़ में वे हैं ,
जिन्हें कुछ राष्ट्र से मोहब्बत ना |


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