* जो व्यक्ति छुईमुई के पौधे में ईश्वरीय अस्तित्व नहीं देख पाता और मंदिरों की मूर्तियाँ में ईश्वर के दर्शन खोजता है, तीर्थस्थलों के चक्कर लगाता है उसे नास्तिक भले न कहें, आस्तिक भी न ही कहें तो श्रेयस्कर !
*अपने तमाम धर्म और ईश्वर विरोध के बावजूद मेरी पूरी सहानुभूति आसाराम बापू के साथ है | सही बात है | इच्छा तो होती है | लेकिन मेरे फ़ाज़िल दोस्त ! ऐसे व्यवहारों के लिए समय देखना होता है, समाज,लोकमत, लोकलाज का ख्याल रखना होता है | अपनी आयु , पद , मान सम्मान का लिहाज़ रखना होता है | और इसकी दिक्कत तो आपने खुद खड़ी की हुई है | अपना रुतबा आपने अपनी भक्त मण्डली में ऐसी बना रखी है कि लोग आपको भगवान् से बस ज़रा सा ही कम समझते हैं | ऐसी दशा में वे आपसे देवतुल्य व्यवहार की अपेक्षा करते हैं तो उनकी क्या त्रुटि ? वरना यदि आप आम आदमी की होते / रहते तो जैसे लोग करते , और सहयोगी से सहमति बना लेते हैं, आप भी करते | कौन आपको पूछने जाता, कौन आपके पीछे पड़ता ? लेकिन आपने अपनी प्रतिष्ठा से कन्या को तो आतंकित ही कर दिया | तो अब मेरी आपसे पूरी सहानुभूति के बावजूद भारत राज्य का कुछ कोप तो आपको सहन करना पड़ेगा |
* अब प्रश्न है - क्या हम नास्तिक भी हिन्दू हैं ?
{मित्र विवाद में न जायँ , प्रश्न को बिलकुल सीधा रखने के लिए एक प्रमुख धर्म का नाम लिया है } |
व्यक्तिगत मैं तो हिन्दू शब्द और संस्कृति के प्रति अपनी कृतज्ञतावश हिन्दू हूँ , क्योंकि इसने मुझे यह अवसर दिया कि मैं नास्तिक [या कुछ भी ] हो सकूँ | बल्कि इसकी विसंगतिपूर्ण विविधता ने ही मुझे नास्तिकता कि और उन्मुख किया | इसलिए मैं तो इसका आभारी हूँ | कृतघ्नता, अहसान फरामोशी उचित तो नहीं है ? दुसरे, और राष्ट्रीय - राजनीतिक कारण भी हैं | यदि हिन्दू नहीं हूँ तो क्या हूँ ? क्या हम शुद्ध , निखालिस नास्तिक होकर जीवन जी सकते हैं ? अभी नास्तिकता की कोई स्वतंत्र जीवन शैली तो बनी नहीं है | इसलिए इसी के अंतर्गत जो कुछ हो पाता है करता हूँ - कुछ विरोध - किंचित समर्थन के साथ सह लह कर |
* जानदेवा ( जीवनदायी ) औषध एंटीबायोटिक्स का आविष्कार किसने किया ? इस दवा से लाभान्वित हुए कितने मरीज़ उस वैज्ञानिक के समक्ष सर झुकाते हैं ? पूजा तो दूर !
* Byomkesh Mishra
"शूल सेज राणा नै भेजी, दीज्यो मीरां सुलाय, सांझ भई मिरां सोवन लागी, मानों फूल बिछाय"
कहते हैं मीरा के चित्तोड़ त्यागने के बाद मेवाड़ भी उजड़ गया, राणा के वंश का नाश हुआ और राजपुताना सदा के लिए ध्वस्त हो गया । पतन तो मीरा की प्रताड़ना के साथ ही आरंभ हो चुका था, किन्तु मीरा के बाद इसका ऐसा मानभंग हुआ कि इतिहास ने कभी राजपूतों की सत्ता नहीं देखी । इतिहास कुछ ऐसी घटनाएँ व कुछ ऐसे चरित्र गढ़ता है जो मिथक हो जाते हैं, फिर ये मिथक सामाजिक आस्थाओं में संघटित हो, ऐतिहासिक प्रामाणिकता की कसौटी लांघ जाते हैं । इसलिए मिथक साक्षी हैं कि महात्माओं, संतों व पुण्यात्माओं का जाने-अनजाने अपमान, उत्पीड़न व प्रयाण घोर अपशगुन का सूचक है । हालाँकि, घटनाएँ सांयोगिक, तुलनाएँ सांकेतिक तथा प्रासंगिकता रचनात्मक होती है...
फिर भी आज मन दुखी हुआ ये जान कर कि "उग्रनाथ जी" ने ये ग्रुप छोड़ दिया है ! "भक्ति" पर उनसे संवाद अधूरा ही रह गया...इसीलिए शायद...आज फिर मीरा का स्मरण हो आया...
* संस्कृतियों का
अप्राकृतिक होना -
उनकी इच्छा |
* बस थोड़ी सी
चेतना और बस
काम हो गया |
* किसके लिए
जिया आपने, मरे
हेतु किसके ?
* जिनके होंगे
उनके वह होंगे
मेरे तो नहीं !
* सामने नहीं
तो भी हैं इतने तो
फेसबुक में |
* शिक्षा व्यवस्था
का एक काम अच्छा
टाई लटकी |
* प्रगतिशील
हैं तो, किंतु गाड़ी है
अभी एक ही !
* आज हेमामालिनी का बयान पढ़ा कि चूँकि अब द्रोपदी को बचने वाला कोई कृष्ण सरीखा नहीं है , इसलिए लड़कियों को बच - बचा कर रहना चाहिए | लेकिन मेरी उलटी बुद्धि कल से ही अन्य दिशा में चल रही है |कल हुआ यह कि मैं दांत के डाक्टर के क्लिनिक से वापस आ रहा था स्कूटर से | रास्ते में पानी बरसने लगा | देखा कि एक लड़की जल्दी कदम बढ़ाते अगले चौराहे कि और जा रही है , जहाँ से उसे टेम्पो मिलता | मैंने सारी बातें दिमाग में सोची और स्थितियों की बिगाड़ को देखते मैं जानता हूँ मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए | लेकिन मैंने तय किया - मुझे ऐसा करना ही चाहिए स्थितियां जैसी भी हों | मैंने रुक कर कहा - क्या मैं आपको चौराहे तक छोड़ दूँ ? उसने कहा - नहीं नहीं | मैंने कहा -पानी बरस रहा है , इसलिए मैने कहा | कोई बात नहीं | और मैंने स्कूटर बढ़ा दिया |
अब सोचिये - ज़माने कि खराबी के कारण ही तो उसने मना किया ? लेकिन क्या इस तरह समाज चलेगा जहाँ विशवास का , या सहयोग का इतना अभाव हो ? अतः मेरा ख्याल बन रहा है कि यह साहस लड़कियों को करना चाहिए | ठीक है दुर्घटनाएं हो सकती हैं , कहाँ नहीं होती हैं ? लेकिन जीवन कि घटनाये तो चलेंगी ? और यह तो मैं कह ही चूका हूँ कि कुछ दुर्घटनाओं को दुर्घटना ही समझा जाना चाहिए , न कि आजीवन के इज्जत का प्रश्न | तभी दुर्घटनाएं रुकेंगी और नारी मुक्त भी होगी | ऐसा न होगा तो वह तो फिर घर में सिकोड़ दी जायगी | यही तो पुरुष चाहता है | लड़कियों को वैसा नहीं होने देना चाहिए | उसे लिफ्ट लेना चाहिए और निर्भय होकर देना भी चाहिए | लड़कों के साथ बराबर होना चाहिए | जब चाहे मौज मस्ती - दोस्ती करे , तब न चाहने पर वह इनकार भी कर सकेगी | अब जैसा वह चाहे लेकिन डर से तो कुछ नहीं होगा | दुर्घटना भले न हो, तो कोई घटना भी तो नहीं घटेगी , आत्मविश्वास की, बराबरी की , कुछ आगे होड़ की ? एक उदहारण - क्या याद करेंगे हवा में उड़ने कि कोशिशों में कितने साहसी दुर्घटनाग्रस्त हुए ? एक सज्जन तो हाथों में सूप बांधकर पहाड़ी से चिड़िया कि तरह उड़ने की कोशिश में कूदे और जान गवां बैठे | तो लड़कियों को भी खतरा ही उठाना होगा , उससे बचना नहीं |
* एक अप्रिय स्थिति का अनुमान मुझे हो रहा है | जब हम नास्तिकों कि अल्पसंख्यक राजनीति करेंगे तो यह ज़रूरी नहीं कि हम केवल हिन्दू का विरोध करें | हम समानांतर मुस्लिम राजनीति का भी विरोध कर सकते हैं , और सहधर्मी नास्तिकों कि राजनीति का भी | और हमारा यह रुख सेक्युलरों और कम्युनिस्ट मित्रों को नागवार लग सकता है |
कृपया 2 सितम्बर , सायं 3 बजे शहीद स्मारक , गाँधी भवन के सामने आयें | मित्रजन - परिवार एवं विरोध उल्लिखित प्लेकार्ड के साथ ! धन्यवाद !
...हम लोग बहुसंख्यक ईश्वर-वादियों के बीच रहते हैं, मानवता बहुसंख्यक ईश्वर-वादियों के कुचक्रों में फंसी कराह रही है, हम मानवता के पक्षधर हैं. हम सामाजिक और आर्थिक हर तरह के भेद-भाव को मिटाना चाहते हैं इसलिए जोर देकर कहते हैं कि हम 'नास्तिक' हैं.
Drafted by - Ram Kumar Savita
* तो चलिए , ईश्वर तो नहीं है |
लेकिन फिर ?
उसके बाद ?
उसके आगे ?
कुछ आदमी ,
कुछ मनुष्य है ?
क्या है मनुष्य ?
मनुष्य क्या है ?
और कुछ ?
यह दीन दुनिया ?
और - - - ?
कुछ तो है आखिर !
# #
* हम सब अपना अपना जीवन जीते हैं | तो क्या हमें कहना चाहिए कि हम " जीवन वादी " हैं ? क्या ऐसा बताये बगैर हम जीवन नहीं जी सकते ? या हमारा जीवन तब क्या जीवन न होगा ?
* मैं बहुत गंभीरता से सोचता रहा हूँ - संत कौन ? इतना तो पाया - जो निहित स्वार्थ और लालच से मुक्त हो | लेकिन अपने शरीर, समाज और दुनिया से सर्वथा कटा, अलग, असम्पृक्त हो उसे संत मानने में मुझे थोड़ी दिक्कत रही है | पलायन नहीं, अलबत्ता दूर से मुक्तदृष्टा हो, चलेगा | फिर आया - जो अविच्छिन्न, अविचलित सत्यवादी हो | यहाँ मैं मात खा गया | मैं सत्य को देख और विचार तो सकता हूँ लेकिन खुला बोल , कह नहीं सकता | तो मैं तो संत नहीं हूँ , अपने निकष पर |
* हम जन्माष्टमी की बधाई दे ले नहीं रहे हैं | लेकिन इतना तो तय समझा जा सकता है कि 5 हज़ार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों को दुग्ध शास्त्र का पूरा ज्ञान था | दूध से दही बनाना , मक्खन निकलना , उसे सुरक्षित टांग कर रखना - - | और यह भी कि तब ऐसी स्वतंत्रता थी कि राधाकृष्ण ग्वाल बाल सखा समेत रात रात भर रास लीला [ डान्स ] कर सकते थे | जैसा कि कथाओं से ज्ञात होता है - - और आगे गीता का ज्ञान तो है ही ----- !
* अल्पसंख्यक नास्तिक ( राजनीतिक )
* तो थोड़ी सी राजनीति हो जाए , अल्पसंख्यक सही ! जानते हैं हम BJP को क्यों नहीं सपोर्ट करते ? जब कि हम यह मानते हैं कि भारत " हिन्दू राष्ट्र " है , संस्कृति के अर्थों में | लेकिन यहाँ भी केवल शाब्दिक एकता है, शेष मतभेद है | वे सनातन को राष्ट्र मानते हैं , हम दलित संस्कृति को भारत राष्ट्र मानते हैं , और इसलिए सेक्युलर [ अस्पष्ट ] के स्थान पर ' दलित हिन्दू राज्य ' या अब तो ' नास्तिक हिन्दुराज्य' भी कह सकते हैं ' की स्थापना का पक्ष लेते हैं | लेकिन इनका देखिये | आसाराम का मामला तो अभी अधर में है |फिर भी उनकी वकालत क्यों कर रहे हैं जब तक जांच न हो जाय ? यह तो कुछ गनीमत है , पर असमय 84 कोसी यात्रा रोके जाने को धार्मिक स्वतंत्रता का हनन बताना तो निहायत दकियानूसी बात है | ऐसे में इनके हाथ में हिन्दू देश कि तकदीर देना खतरे से खाली नहीं है , बागडोर सौंपना कतई असुरक्षित है | ये तो हिन्दू युवाओं को मंदिर के कंगूरे दे देंगे , और एक एक घंटा | लो बच्चो इसे हिलाओ , प्रभु के गुन गाओ , स्कूल मत जाओ | जब कि संविधान में राज्य की ज़िम्मेदारी है नागरिकों में विज्ञानिक विचार भरना | आगे वह हम लोगों का काम होगा बताना कि वैज्ञानिकता नास्तिकता में ही शरण पाती , फूलती फलती है | तो बताइए ऐसे गैर ज़िम्मेदार राजनीतिक दल को समर्थन कैसे दे सकते हैं ?
* देश में , समाज में , किंवा कम्यून में गरीबी है | तो इसका सीधा अर्थ यह है कि हम हार्दिक कम्युनिस्टों को चाहिये कि हम खुद गरीबी में रहें , गरीबों का जीवन जियें | बिना जिए गरीबी कि पीड़ा समझी नहीं जा सकती , और न कोई उपचार संभव होगा |
* डा डाभोलकर तो न ईश्वर का विरोध कर रहे थे , न मज़हब और धर्म की मुखालिफत | वह तो केवल ढोंग - पाखण्ड - टोना टटका का विरोध कर रहे थे | तब भी मारे गए | हम लोग तो वह भी करते हैं जो वह नहीं करते थे | हम तो मज़हब और खुदा ( राहुल सांकृत्यायन ) के खिलाफ भी बोलते हैं | तो क्या हम सब मारे जायेंगे ? नहीं | कितनों को कोई मार पायेगा भला ? हम बहुत सारे हैं , अकेले एकलव्य नहीं |
[ विरोध भी किस हद तक ? किन तरीकों से ? वे जादू टोना करके भी तो मार सकते थे ? मतलब न तो उनके जादू टोन में कोई ताकत है , न उन्हें स्वयं उसकी शक्ति पर भरोसा |]
यह संतप्त मन का विषाद बोल रहा है कि यदि डाभोलकर मुस्लिम नागरिक होते तो देखता विरोध प्रदर्शन का जलवा ! जैसा कि इशरत जहाँ के केस में दिखा और आश्चर्य नहीं भटकल की गिरफ़्तारी पर दिखे ! बाटला इनकाउंटर में एक ही मुस्लिम , वह भी संदिग्ध , मारा गया था एक थानेदार की जान लेकर | और एक आरोपित आतंकी पुलिस क़ैद में - - - - छोडिये
* डाक्टर डाक्टर से शादी कर रहे हैं | फ़िल्मी अभिनेता अभिनेत्रियों से | अमरीकन अमरीकन से , अफ्रीकन अफ्रीकन से, अँगरेज़ अँगरेज़ से | तो यदि भारतीय भारतीय से , हिन्दुस्तानी हिन्दुस्तानी से , मुस्लिम मुस्लिम से , हिन्दू हिन्दू से , ब्राह्मण ब्राह्मण से , यादव - कुर्मी यादव - कुर्मी में , बनिया बनिया में , हलवाई हलवाई में, जुलाहा जुलाहा में , दलित दलित में शादियाँ होती हैं तो परेशानी क्या है ? इसमें अमानवीय क्या है ? और जाति बाहर में प्रगति क्या ? क्या आप लोग चाहते हैं तमाम जनता कुंवारे रह जाएँ ? अभी तो जैसे तैसे लगभग सबकी हो ही जाती है ! मैंने कहा नहीं लेकिन जाने रहिएगा गरीब की शादी गरीब में और आमिर की आमिर में ही होगी | यह सबसे सत्य जाति है | भले तमाम छटपटाकर पैदायशी जाति को इधर उधर कर लें | तब भी उन शादियों का मूलाधार भी गरीबी - अमीरी ही होगा |
अल्पसंख्यक नास्तिक
( धार्मिक - सांस्कृतिक - राजनीतिक )
* "महजिदिया "
जब तक मेरी नानी दादी मस्जिद का नाम बिगाड़कर महजिदिया कहती थी, तब तक साम्पदायिक कटुता सुषुप्तावस्था में थी | मंदिर को वह मन्दिल बोलती थी | सब उन बुज़ुर्गों का पुण्य प्रताप था | अब, जब से शुद्ध उच्चारण का आग्रह हो गया है, मेरी माँ चुप है | साम्प्रदायिकता बडबोली हो गई है |
* स्वान्तः सुखाय -
भिखारी अपने पेट के लिए भीख माँगता है , मजदूर अपने परिवार के लिए खटता है , व्यापारी अपने मुनाफे के लिए दूकान रखता है, गृहिणी अपने बच्चों के लिए खाना बनाती है, डाक्टर अपने फायदे के लिए डिस्पेंसरी चलाता है, इंजीनियर अपने लिए,नेता भी अपने पक्ष में वोट पाने के लिए तमाम तिकड़म करता है | सम्पादक प्रकाशक भी अपने नाम -पद -धनलाभ के लिए पत्रिका - पुस्तक छापते हैं | लेखक कवि भी अपने सम्मान के लिए लिखते हैं | यहाँ तक कि बाबा तुलसीदास ने भी सारा कुछ घोषित रूप में स्वान्तःसुखाय लिखा |
लेकिन एक वर्ग (वर्ग ही कहना उचित होगा) हिन्दुस्तान में ऐसा है जो अपने लिए कुछ नहीं करता , लिखता पढ़ता | वह सब काम समाज और केवल समाज के लिए करता है | कविता , लेख , कहानी , उपन्यास वह सर्वजन सर्वहारा के लिए लिखता है | वह है हमारा प्रगतिशील , जनवादी , संस्कृतिकर्मी और सशक्त विचारधारा से लैस वामपंथी |
मेरा सादर नमन उनको, खासकर इसलिए क्योंकि मैं तो किसी भी अन्य के लिए कुछ भी नहीं लिख पाता | सब कुछ मैं अपने , केवल अपने सुख के स्वास्थ्य के लिए लिखता हूँ | खेल खेल में , मनोरंजन के लिए |यह अपराध मैं स्वीकार करता हूँ |
* द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का साधारण hindi में अर्थ है - दोगलात्म्क बात व्यवहार |
* Thank god ! I am not a born brahimin .
* आज तुम्हारी यादों की
बारिश में भीग गया
कपड़े धुल गए होंगे
सुखाकर इन्हें
कल फिर पहन लूँगा
फिर भीगूँगा
तुम्हारी यादों में |
# #
* [कविता ] - " लम्हों ने खता की थी "
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इतिहास अपनी बात
जल्दी पूरा ही नहीं कर पाता |
हें हें हकलाते हुए कहने में
सदियाँ लगा देता है ,
तब भी उसकी बात
पूरी होने में मुझे संदेह है
क्योंकि यह स्वयं
इतिहास को भी नहीं पता
कि कब वह चिल्ला पड़े -
सुनो भाई पुराणी मेरी बात
तब पूरी नहीं हुई थी ,
यह इतनी और बात तो
कहनी रह ही गई थी
अब सुन लो आगे की छुटी हुई बात,
और वह फिर शुरू हो जाय
अपनी बकवास लेकर !
क्या पता कब वह
सुकरात का मामला उठा दे
कब ब्रूनो गैलिलियो का और फिर
उसमें क्रुसेड घुसेड दे !
किसे पता कब यवनों का
आक्रमण बताने लगे
और आते आते जालियाँवाला
बाग़ भूलने न दे !
कुछ कहा नहीं जा सकता
कब उसे मथुरा काशी याद आ जाए
कब बाबरी गाने लगे ,
आजकल वह रामजन्मभूमि
खोद निकालने के कार्य में
जी जान से जुटा है |
ठहरिये, ठहरिये , यह फिर
ठहर सकता है पाँच साल
और फिर उठा देगा
पाँच हजार साल पहले का -
ब से बाभन , भ से भंगी का सवाल
म से मनुस्मृति के खोल दे पन्ने
और फिर कह दे - ले रख दे
इन्हें फ्रिज में, फ्रिज के फ्रीज़र में
मन तनिक विश्राम कर लूँ
बड़े काम हैं मेरे जिम्मे
थक जाता हूँ करते करते और
यह काम है कि कभी पूरा ही नहीं होता
ऐतिहासिक काम है यह
न जाने कब मुझे फिर जगना पड़े !
इस तरह इतिहास अपनी बात
कभी पूरी तरह पूरी नहीं कर पाता ,
इस पर फाइनल रिपोर्ट , क्लोज़र रिपोर्ट
लगाना इतिहासकारों के लिए
संभव नहीं होता ,
असफल हैं हिस्टोरियन
हिस्ट्री का कोई भी चैप्टर
बंद करने में |
इसी को कहते हैं -
लम्हों ने खता की थी,
सदियों ने सजा पायी ?
# #
* कारण को भी
पार कीजिये, ऐसे
कार्य कीजिये !
* कारण को भी
पार कीजिये,
ऐसे भी कुछ
कार्य कीजिये !
* मन इतना
अपवित्र नहीं है
जितना तन !
* भटकल बा |
के भटकल बा हों ?
उहै मनई |
[ भोजपुरी हाइकु ]
[एक कविता ] सारे योद्धा , अ -योद्धा में ! डरपोक कहीं के !
# #
निष्कर्ष _
नरेन्द्र डोभालकर कि हत्या से निष्कर्ष निकलता है कि इस देश में अंधविश्वास ही चलेगा | इसके विरुद्ध कोई भी कोशिश - आन्दोलन व्यर्थ ही जाने हैं | यहाँ एक अंधविश्वास ही दूसरे अन्धविश्वास को हटाएगा | बुद्धिवाद Rationalism फ़ैलाने का कोई काम तो न ही किया जाय | मैं बहुत दुखी हूँ | 25 -26 सौ साल से बुद्ध महाबीर , 5 -6 सौ साल से कबीर रैदास फैला ही तो रहे हैं ? क्या अब हम इतने तार्किक न बनेंगे कि इनकी असफलताओं से कुछ सबक लें , अनुभव ग्रहण करें और अपना रास्ता बदलें | कोई भी , जो न्यूनतम कुछ तो सफल हो | यह तो मानकर ही चलना होगा कि मनुष्य मूल्त्तः विशवास से संचालित होता है | कहाँ हैं नास्तिक जन ?
* आज हम शोक मना रहे हैं | आज १२ बजे रात तक कोई सदस्य तर्क और विज्ञानं के पोस्ट न करे |
* बहुत अच्छी और उपयोगी बहस | मैं दोनों से सहमत हूँ | सैद्धांतिक रूप से दीपक से | विचार फैलेगा तो क्या कर लेगा ? अशक्त होगा संगठित धर्मों के आगे , और सिर्फ विचार बनकर किताबों में रह जायगा | सत्य जी व्यावहारिक हैं , और समर्थन योग्य | पहली बात तो इनके संगठन भेड़िया धसान हो ही नहीं सकता | फिर यदि मानवीय बुराइयाँ आती है तो आयें | अगली पीढ़ी पर भरोसा करें , वह ठीक करेगी या फिर नया बनाएगी | क्या कीचड़ लग जाने के भय से हम कीचड़ कि सफाई में न उतरें ? अभी अधिक तो नहीं कह सकता पर कोई उपाय कीजिये कि नास्तिको, बुद्धिवादियों कि संतानें भी वैसी बने | जिस प्रकार हिन्दू - मुसलमान के बच्चे हिन्दू मुस्लमान | और हाँ , राजनीति में नास्तिकों का पदार्पण सुनिश्चित करें | अभी सप्रदाय बनें न बनें |
| नास्तिकता अपने आप में एक सम्पूर्ण समृद्ध सशक्त मानववादी विचारधारा है | उसमें व्यक्ति से लेकर समाज और साम्य सबका सर्वांगीण समावेश और समन्वय है |
* धर्म और राजनीति अलग चीज़ें हैं , यदि हम इस भ्रम से निकल आयें तो कुशल हो और कुछ तर्कसंगत रणनीति बनाई जा सके | ठीक है आप इस परिभाषा से सहमत नहीं हैं , लेकिन जिन्हें आयोजन करने हैं वे तो इसी परिभाषा के अनुसार सक्रिय हैं !
तुष्टीकरण = Appeasement
* खुश रहो अहले चमन हम तो सफर करते हैं "
यह कहा शहीदों ने हिंदुस्तान से | और यही कहते हैं हिन्दुस्तानी सेक्युलर भारत के मुसलमानों से |
लेकिन यह तो तुष्टीकरण है ! ?
* Shraddhanshu Shekhar
Sad News
Anti-superstition activist Narendra Dabholkar shot dead in Pune
Edited byDeepshikha Ghosh| Updated: August 20, 2013 10:36 IST
Pune: Renowned anti-superstition activist Narendra Dabholkar, who was pushing for law against superstition and black magic, was shot dead this morning in Pune, Maharashtra.
Mr Dabholkar was on a morning walk when he was shot near the Omkareshwar Bridge in the city by gunmen on a motorcycle. He died in the Sassoon hospital. More details are awaited.
The senior rationalist, known for his campaigns against superstition, Mr Dabholkar had for many years pushed for an anti-superstition Bill in the state assembly. He had also authored several books and was the editor of the "Sadhana" magazine devoted to progressive thought.
Narendra Dabholkar - Wikipedia, the free encyclopedia
http://en.wikipedia.org/wiki/Narendra_Dabholkar?seg=1
Prathak Batohi wrote:
"अन्धभक्ति अन्धविश्वास व् अंधउन्माद।
देश बड़ा है, बड़ा है सो बड़े स्केल पर चीजे है जैसे बड़ी आबादी और उस बड़ीआबादी की बड़ी अशिक्षा और बड़ी गरीबी। जब इन दोनों से निजात न मिला तो सबल की अंधभक्ति, भाग्योदय के लिए अंधविश्वास और अंधभक्ति अन्धविश्वास के घालमेल से बना अंधउन्माद इसकी बड़ी तीन बड़ी डेरिवेटिव समस्याएँ बन गई है। इनमे से एक अंधउन्माद की भेंट आज नरेंद्र दाभोलकर चढ़ गये है।
आज का दिन महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा निर्मूलन में लगे नरेंद्र की जान लेकर उदय हुआ है तो यही दिल्ली में एक राजनेता की अंधभक्ति से परवान चढ़ा है। नरेंद्र की हत्या महज इसलिए कर दी गई क्यूंकि वे धर्म में तर्कशीलता या वैज्ञानिकता के पक्षधर थे। जब धर्म में तर्क आयेंगे तब धर्म में अन्धविश्वास व् कट्टरता भी क्षीण होंगी पर यह हर एक को सुहाएगा ऐसा संभव नही।
रिफार्म या सुधार हर समाज में आहुति लेकर ही आते है कहीं किन्ही को किसी स्मृति का दहन करना पड़ता है या कही जॉन हस सरीखा स्वयम दहन होना पड़ता है। अभी 15 अगस्त को ध्वजारोहण पर जो कुछ बिहार में हाशिये पर पड़े समाज पर हुआ वह भी रिफार्म के विरोध की परिणिती थी। आप अपने सुधारवादी संतो मसलन यहा संत रविदास के अस्तित्व को नही स्वीकारते।
बड़ी विडम्बना है आप नरेंद्र की हत्या पर मौन रहते है, बिहार की घटना पर मौन रहते है पर किश्तवाड़ आपको सालता है सरकारे आपको अकर्मण्य और अपराध अक्षम्य लगते है ।सोचिये हे मुख्यधारा समाज आप गैलिलेयों की प्रताड़ना पर मौन रहे,आप जॉन हस को जलाकर खुश हुए पर वही जॉन जब चिता से मिटटी बन कर उड़ा तो मठ के मठ ढह गये ह्स्माईट युद्धों से यूरोप की तन्द्रा टूटी और विश्व में प्रोटेस्टेंट का जन्म हुआ। घबराइये नही आप संत रविदास या नरेंद्र को जब जब हटायेंगे वे आपको प्रभावित किये बिना या प्रोटेस्टेंट बनाये बिना नही छोड़ेंगे। विशवास ना हो तो अपना कबाइली वैदिक इतिहास से सूफ़ी सिखी कबीरपंथी और सबको लीलकर समृद्ध हो चुके सनातन समाज को देख लो ।
* जब कुछ न कर पाओ तो शहीदों के जन्म दिवस , शहादत दिवस मनाओ |
* हैं अभी भी हुमायूँ बहुत देश में ,
कोई राखी तो बाँधे बहन की तरह !
[ लक्ष्मी चाँद दद्दा , गोंडा ]
* राखी की जय हो !
लखनऊ | शादी का झांसा देकर गौतम पल्ली क्षेत्र की तीन नाबालिग बहनों का आठ दिन तक दिल्ली के एक कमरे में यौन शोषण किया गया | यौन शोषण करने वाले तीनो आरोपी रिश्ते में भाई थे | [अमर उजाला 20 अगस्त ]
राखी का त्यौहार किसे मुबारक कहें ?
* बदल दिया
पुराना जो धर्म था
नया लाये हैं |
[Great News]
" इज्ज़त के डर से क्या अपना आनन्द छोड़ दें ? "
( ओशो नीरव / मीरा आनंद )
जाति प्रथा तो एक Gradation System जैसा है | इसलिए इसका आधार इतना मजबूत है कि इसे हटाया ही नहीं जा सकता | चाहे वह वर्गीकरण किसी भी प्रकार का हो | विज्ञानं , इतिहास , समाज शास्त्र आदि सभी अनुशासनों के अध्येता यही प्रणाली अपनाते है | यह आधुनिक इतिहास है , वैज्ञानिक युग है , मनुष्य स्तनधारी जीव है क्यों कहते हैं हमारे स्कूल ? और प्रथम से लेकर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तक के लोग क्या हैं ?
Communists are Elitists of Rural India .
महाजनों येन गतः स पन्था |
और कोई सुविधा गावों में भले नहीं पंहुची , लेकिन गावों कि दशा के तमाम सर्वेक्षणों की बड़ी बड़ी रपटें तो ज़रूर पहुँच गयीं | गावों के बारे में जितनी सूचनाएं और आंकड़े NGO'S के पास है , उतनी किसी गाँव वाले को भी नहीं पता होगी |
जाति प्रथा तो एक Gradation System जैसा है | इसलिए इसका आधार इतना मजबूत है कि इसे हटाया ही नहीं जा सकता | चाहे वह वर्गीकरण किसी भी प्रकार का हो | विज्ञानं , इतिहास , समाज शास्त्र आदि सभी अनुशासनों के अध्येता यही प्रणाली अपनाते है | यह आधुनिक इतिहास है , वैज्ञानिक युग है , मनुष्य स्तनधारी जीव है क्यों कहते हैं हमारे स्कूल ? और प्रथम से लेकर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तक के लोग क्या हैं ?
व्यवस्था खुद ही आतंकवादी पैदा करने में जी जान से जुटी हुई है |
- लखनऊ में रिहाई मंच पर डाक्यूमेंट्री फ़िल्मकार आनंद पटवर्द्धन |
* बहुत सही फ़रमाया पटवर्द्धन जी ! कहीं इस्लाम का नाम जुबान पर मत ले आना , वरना - - - ?
हाँ हिंदुत्व को इसमें शामिल कर सकते हो |
* कल 24 अगस्त कि शाम अपने गृह क़स्बा बेवां से बस्ती 45 किमी गया , लखनऊ कि बस पकड़ने के लिए | अच्छी बस देखकर सवार हुआ और तिक्त भी कटा लिया |बस चली तो बजाय अयोध्या - फैजाबाद ले जाने के वह मुझे फिर बेवां ले आई , और फिर उतरौला - गोंडा रगड़ गंज , कर्नलगंज , घुमाते हुए लखनऊ पोलिटेक्निक लायी | इस रूट से मैं बचना छटा था , वर्ना बेवां से ही इसकी बस ले लेता | कहाँ इरादा उनका था उसके पहले हमारी 84 कोसी परिक्रमा हो गई |
इस दौरान मुझे दो ख्याल आये | एक तो यह कि इस रूट की सड़कों को देखकर यह कहने का मन होता है कि इन इलाकों में M.P. , M.L.A. की ज़रूरत क्या है ?
दुसरे यह कि जब सामान्य आवागमन ही नहीं सुनिश्चित हो सका तो सपा सरकार अपनी व्यस्था पर अपनी पीठ कैसे ठोंक सकता है ? यह तो सरकार ने विश्व हिन्दू [ पता नहीं कौन से हिन्दू हैं ये लोग ? क्या हम लोग हिन्दू नहीं हैं ?] परिषद का ही मकसद पूरा किया !
*अपने तमाम धर्म और ईश्वर विरोध के बावजूद मेरी पूरी सहानुभूति आसाराम बापू के साथ है | सही बात है | इच्छा तो होती है | लेकिन मेरे फ़ाज़िल दोस्त ! ऐसे व्यवहारों के लिए समय देखना होता है, समाज,लोकमत, लोकलाज का ख्याल रखना होता है | अपनी आयु , पद , मान सम्मान का लिहाज़ रखना होता है | और इसकी दिक्कत तो आपने खुद खड़ी की हुई है | अपना रुतबा आपने अपनी भक्त मण्डली में ऐसी बना रखी है कि लोग आपको भगवान् से बस ज़रा सा ही कम समझते हैं | ऐसी दशा में वे आपसे देवतुल्य व्यवहार की अपेक्षा करते हैं तो उनकी क्या त्रुटि ? वरना यदि आप आम आदमी की होते / रहते तो जैसे लोग करते , और सहयोगी से सहमति बना लेते हैं, आप भी करते | कौन आपको पूछने जाता, कौन आपके पीछे पड़ता ? लेकिन आपने अपनी प्रतिष्ठा से कन्या को तो आतंकित ही कर दिया | तो अब मेरी आपसे पूरी सहानुभूति के बावजूद भारत राज्य का कुछ कोप तो आपको सहन करना पड़ेगा |
* अब प्रश्न है - क्या हम नास्तिक भी हिन्दू हैं ?
{मित्र विवाद में न जायँ , प्रश्न को बिलकुल सीधा रखने के लिए एक प्रमुख धर्म का नाम लिया है } |
व्यक्तिगत मैं तो हिन्दू शब्द और संस्कृति के प्रति अपनी कृतज्ञतावश हिन्दू हूँ , क्योंकि इसने मुझे यह अवसर दिया कि मैं नास्तिक [या कुछ भी ] हो सकूँ | बल्कि इसकी विसंगतिपूर्ण विविधता ने ही मुझे नास्तिकता कि और उन्मुख किया | इसलिए मैं तो इसका आभारी हूँ | कृतघ्नता, अहसान फरामोशी उचित तो नहीं है ? दुसरे, और राष्ट्रीय - राजनीतिक कारण भी हैं | यदि हिन्दू नहीं हूँ तो क्या हूँ ? क्या हम शुद्ध , निखालिस नास्तिक होकर जीवन जी सकते हैं ? अभी नास्तिकता की कोई स्वतंत्र जीवन शैली तो बनी नहीं है | इसलिए इसी के अंतर्गत जो कुछ हो पाता है करता हूँ - कुछ विरोध - किंचित समर्थन के साथ सह लह कर |
* जानदेवा ( जीवनदायी ) औषध एंटीबायोटिक्स का आविष्कार किसने किया ? इस दवा से लाभान्वित हुए कितने मरीज़ उस वैज्ञानिक के समक्ष सर झुकाते हैं ? पूजा तो दूर !
* Byomkesh Mishra
"शूल सेज राणा नै भेजी, दीज्यो मीरां सुलाय, सांझ भई मिरां सोवन लागी, मानों फूल बिछाय"
कहते हैं मीरा के चित्तोड़ त्यागने के बाद मेवाड़ भी उजड़ गया, राणा के वंश का नाश हुआ और राजपुताना सदा के लिए ध्वस्त हो गया । पतन तो मीरा की प्रताड़ना के साथ ही आरंभ हो चुका था, किन्तु मीरा के बाद इसका ऐसा मानभंग हुआ कि इतिहास ने कभी राजपूतों की सत्ता नहीं देखी । इतिहास कुछ ऐसी घटनाएँ व कुछ ऐसे चरित्र गढ़ता है जो मिथक हो जाते हैं, फिर ये मिथक सामाजिक आस्थाओं में संघटित हो, ऐतिहासिक प्रामाणिकता की कसौटी लांघ जाते हैं । इसलिए मिथक साक्षी हैं कि महात्माओं, संतों व पुण्यात्माओं का जाने-अनजाने अपमान, उत्पीड़न व प्रयाण घोर अपशगुन का सूचक है । हालाँकि, घटनाएँ सांयोगिक, तुलनाएँ सांकेतिक तथा प्रासंगिकता रचनात्मक होती है...
फिर भी आज मन दुखी हुआ ये जान कर कि "उग्रनाथ जी" ने ये ग्रुप छोड़ दिया है ! "भक्ति" पर उनसे संवाद अधूरा ही रह गया...इसीलिए शायद...आज फिर मीरा का स्मरण हो आया...
* संस्कृतियों का
अप्राकृतिक होना -
उनकी इच्छा |
* बस थोड़ी सी
चेतना और बस
काम हो गया |
* किसके लिए
जिया आपने, मरे
हेतु किसके ?
* जिनके होंगे
उनके वह होंगे
मेरे तो नहीं !
* सामने नहीं
तो भी हैं इतने तो
फेसबुक में |
* शिक्षा व्यवस्था
का एक काम अच्छा
टाई लटकी |
* प्रगतिशील
हैं तो, किंतु गाड़ी है
अभी एक ही !
* आज हेमामालिनी का बयान पढ़ा कि चूँकि अब द्रोपदी को बचने वाला कोई कृष्ण सरीखा नहीं है , इसलिए लड़कियों को बच - बचा कर रहना चाहिए | लेकिन मेरी उलटी बुद्धि कल से ही अन्य दिशा में चल रही है |कल हुआ यह कि मैं दांत के डाक्टर के क्लिनिक से वापस आ रहा था स्कूटर से | रास्ते में पानी बरसने लगा | देखा कि एक लड़की जल्दी कदम बढ़ाते अगले चौराहे कि और जा रही है , जहाँ से उसे टेम्पो मिलता | मैंने सारी बातें दिमाग में सोची और स्थितियों की बिगाड़ को देखते मैं जानता हूँ मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए | लेकिन मैंने तय किया - मुझे ऐसा करना ही चाहिए स्थितियां जैसी भी हों | मैंने रुक कर कहा - क्या मैं आपको चौराहे तक छोड़ दूँ ? उसने कहा - नहीं नहीं | मैंने कहा -पानी बरस रहा है , इसलिए मैने कहा | कोई बात नहीं | और मैंने स्कूटर बढ़ा दिया |
अब सोचिये - ज़माने कि खराबी के कारण ही तो उसने मना किया ? लेकिन क्या इस तरह समाज चलेगा जहाँ विशवास का , या सहयोग का इतना अभाव हो ? अतः मेरा ख्याल बन रहा है कि यह साहस लड़कियों को करना चाहिए | ठीक है दुर्घटनाएं हो सकती हैं , कहाँ नहीं होती हैं ? लेकिन जीवन कि घटनाये तो चलेंगी ? और यह तो मैं कह ही चूका हूँ कि कुछ दुर्घटनाओं को दुर्घटना ही समझा जाना चाहिए , न कि आजीवन के इज्जत का प्रश्न | तभी दुर्घटनाएं रुकेंगी और नारी मुक्त भी होगी | ऐसा न होगा तो वह तो फिर घर में सिकोड़ दी जायगी | यही तो पुरुष चाहता है | लड़कियों को वैसा नहीं होने देना चाहिए | उसे लिफ्ट लेना चाहिए और निर्भय होकर देना भी चाहिए | लड़कों के साथ बराबर होना चाहिए | जब चाहे मौज मस्ती - दोस्ती करे , तब न चाहने पर वह इनकार भी कर सकेगी | अब जैसा वह चाहे लेकिन डर से तो कुछ नहीं होगा | दुर्घटना भले न हो, तो कोई घटना भी तो नहीं घटेगी , आत्मविश्वास की, बराबरी की , कुछ आगे होड़ की ? एक उदहारण - क्या याद करेंगे हवा में उड़ने कि कोशिशों में कितने साहसी दुर्घटनाग्रस्त हुए ? एक सज्जन तो हाथों में सूप बांधकर पहाड़ी से चिड़िया कि तरह उड़ने की कोशिश में कूदे और जान गवां बैठे | तो लड़कियों को भी खतरा ही उठाना होगा , उससे बचना नहीं |
* एक अप्रिय स्थिति का अनुमान मुझे हो रहा है | जब हम नास्तिकों कि अल्पसंख्यक राजनीति करेंगे तो यह ज़रूरी नहीं कि हम केवल हिन्दू का विरोध करें | हम समानांतर मुस्लिम राजनीति का भी विरोध कर सकते हैं , और सहधर्मी नास्तिकों कि राजनीति का भी | और हमारा यह रुख सेक्युलरों और कम्युनिस्ट मित्रों को नागवार लग सकता है |
कृपया 2 सितम्बर , सायं 3 बजे शहीद स्मारक , गाँधी भवन के सामने आयें | मित्रजन - परिवार एवं विरोध उल्लिखित प्लेकार्ड के साथ ! धन्यवाद !
...हम लोग बहुसंख्यक ईश्वर-वादियों के बीच रहते हैं, मानवता बहुसंख्यक ईश्वर-वादियों के कुचक्रों में फंसी कराह रही है, हम मानवता के पक्षधर हैं. हम सामाजिक और आर्थिक हर तरह के भेद-भाव को मिटाना चाहते हैं इसलिए जोर देकर कहते हैं कि हम 'नास्तिक' हैं.
Drafted by - Ram Kumar Savita
* तो चलिए , ईश्वर तो नहीं है |
लेकिन फिर ?
उसके बाद ?
उसके आगे ?
कुछ आदमी ,
कुछ मनुष्य है ?
क्या है मनुष्य ?
मनुष्य क्या है ?
और कुछ ?
यह दीन दुनिया ?
और - - - ?
कुछ तो है आखिर !
# #
* हम सब अपना अपना जीवन जीते हैं | तो क्या हमें कहना चाहिए कि हम " जीवन वादी " हैं ? क्या ऐसा बताये बगैर हम जीवन नहीं जी सकते ? या हमारा जीवन तब क्या जीवन न होगा ?
* मैं बहुत गंभीरता से सोचता रहा हूँ - संत कौन ? इतना तो पाया - जो निहित स्वार्थ और लालच से मुक्त हो | लेकिन अपने शरीर, समाज और दुनिया से सर्वथा कटा, अलग, असम्पृक्त हो उसे संत मानने में मुझे थोड़ी दिक्कत रही है | पलायन नहीं, अलबत्ता दूर से मुक्तदृष्टा हो, चलेगा | फिर आया - जो अविच्छिन्न, अविचलित सत्यवादी हो | यहाँ मैं मात खा गया | मैं सत्य को देख और विचार तो सकता हूँ लेकिन खुला बोल , कह नहीं सकता | तो मैं तो संत नहीं हूँ , अपने निकष पर |
* हम जन्माष्टमी की बधाई दे ले नहीं रहे हैं | लेकिन इतना तो तय समझा जा सकता है कि 5 हज़ार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों को दुग्ध शास्त्र का पूरा ज्ञान था | दूध से दही बनाना , मक्खन निकलना , उसे सुरक्षित टांग कर रखना - - | और यह भी कि तब ऐसी स्वतंत्रता थी कि राधाकृष्ण ग्वाल बाल सखा समेत रात रात भर रास लीला [ डान्स ] कर सकते थे | जैसा कि कथाओं से ज्ञात होता है - - और आगे गीता का ज्ञान तो है ही ----- !
* अल्पसंख्यक नास्तिक ( राजनीतिक )
* तो थोड़ी सी राजनीति हो जाए , अल्पसंख्यक सही ! जानते हैं हम BJP को क्यों नहीं सपोर्ट करते ? जब कि हम यह मानते हैं कि भारत " हिन्दू राष्ट्र " है , संस्कृति के अर्थों में | लेकिन यहाँ भी केवल शाब्दिक एकता है, शेष मतभेद है | वे सनातन को राष्ट्र मानते हैं , हम दलित संस्कृति को भारत राष्ट्र मानते हैं , और इसलिए सेक्युलर [ अस्पष्ट ] के स्थान पर ' दलित हिन्दू राज्य ' या अब तो ' नास्तिक हिन्दुराज्य' भी कह सकते हैं ' की स्थापना का पक्ष लेते हैं | लेकिन इनका देखिये | आसाराम का मामला तो अभी अधर में है |फिर भी उनकी वकालत क्यों कर रहे हैं जब तक जांच न हो जाय ? यह तो कुछ गनीमत है , पर असमय 84 कोसी यात्रा रोके जाने को धार्मिक स्वतंत्रता का हनन बताना तो निहायत दकियानूसी बात है | ऐसे में इनके हाथ में हिन्दू देश कि तकदीर देना खतरे से खाली नहीं है , बागडोर सौंपना कतई असुरक्षित है | ये तो हिन्दू युवाओं को मंदिर के कंगूरे दे देंगे , और एक एक घंटा | लो बच्चो इसे हिलाओ , प्रभु के गुन गाओ , स्कूल मत जाओ | जब कि संविधान में राज्य की ज़िम्मेदारी है नागरिकों में विज्ञानिक विचार भरना | आगे वह हम लोगों का काम होगा बताना कि वैज्ञानिकता नास्तिकता में ही शरण पाती , फूलती फलती है | तो बताइए ऐसे गैर ज़िम्मेदार राजनीतिक दल को समर्थन कैसे दे सकते हैं ?
* देश में , समाज में , किंवा कम्यून में गरीबी है | तो इसका सीधा अर्थ यह है कि हम हार्दिक कम्युनिस्टों को चाहिये कि हम खुद गरीबी में रहें , गरीबों का जीवन जियें | बिना जिए गरीबी कि पीड़ा समझी नहीं जा सकती , और न कोई उपचार संभव होगा |
* डा डाभोलकर तो न ईश्वर का विरोध कर रहे थे , न मज़हब और धर्म की मुखालिफत | वह तो केवल ढोंग - पाखण्ड - टोना टटका का विरोध कर रहे थे | तब भी मारे गए | हम लोग तो वह भी करते हैं जो वह नहीं करते थे | हम तो मज़हब और खुदा ( राहुल सांकृत्यायन ) के खिलाफ भी बोलते हैं | तो क्या हम सब मारे जायेंगे ? नहीं | कितनों को कोई मार पायेगा भला ? हम बहुत सारे हैं , अकेले एकलव्य नहीं |
[ विरोध भी किस हद तक ? किन तरीकों से ? वे जादू टोना करके भी तो मार सकते थे ? मतलब न तो उनके जादू टोन में कोई ताकत है , न उन्हें स्वयं उसकी शक्ति पर भरोसा |]
यह संतप्त मन का विषाद बोल रहा है कि यदि डाभोलकर मुस्लिम नागरिक होते तो देखता विरोध प्रदर्शन का जलवा ! जैसा कि इशरत जहाँ के केस में दिखा और आश्चर्य नहीं भटकल की गिरफ़्तारी पर दिखे ! बाटला इनकाउंटर में एक ही मुस्लिम , वह भी संदिग्ध , मारा गया था एक थानेदार की जान लेकर | और एक आरोपित आतंकी पुलिस क़ैद में - - - - छोडिये
* डाक्टर डाक्टर से शादी कर रहे हैं | फ़िल्मी अभिनेता अभिनेत्रियों से | अमरीकन अमरीकन से , अफ्रीकन अफ्रीकन से, अँगरेज़ अँगरेज़ से | तो यदि भारतीय भारतीय से , हिन्दुस्तानी हिन्दुस्तानी से , मुस्लिम मुस्लिम से , हिन्दू हिन्दू से , ब्राह्मण ब्राह्मण से , यादव - कुर्मी यादव - कुर्मी में , बनिया बनिया में , हलवाई हलवाई में, जुलाहा जुलाहा में , दलित दलित में शादियाँ होती हैं तो परेशानी क्या है ? इसमें अमानवीय क्या है ? और जाति बाहर में प्रगति क्या ? क्या आप लोग चाहते हैं तमाम जनता कुंवारे रह जाएँ ? अभी तो जैसे तैसे लगभग सबकी हो ही जाती है ! मैंने कहा नहीं लेकिन जाने रहिएगा गरीब की शादी गरीब में और आमिर की आमिर में ही होगी | यह सबसे सत्य जाति है | भले तमाम छटपटाकर पैदायशी जाति को इधर उधर कर लें | तब भी उन शादियों का मूलाधार भी गरीबी - अमीरी ही होगा |
अल्पसंख्यक नास्तिक
( धार्मिक - सांस्कृतिक - राजनीतिक )
* "महजिदिया "
जब तक मेरी नानी दादी मस्जिद का नाम बिगाड़कर महजिदिया कहती थी, तब तक साम्पदायिक कटुता सुषुप्तावस्था में थी | मंदिर को वह मन्दिल बोलती थी | सब उन बुज़ुर्गों का पुण्य प्रताप था | अब, जब से शुद्ध उच्चारण का आग्रह हो गया है, मेरी माँ चुप है | साम्प्रदायिकता बडबोली हो गई है |
* स्वान्तः सुखाय -
भिखारी अपने पेट के लिए भीख माँगता है , मजदूर अपने परिवार के लिए खटता है , व्यापारी अपने मुनाफे के लिए दूकान रखता है, गृहिणी अपने बच्चों के लिए खाना बनाती है, डाक्टर अपने फायदे के लिए डिस्पेंसरी चलाता है, इंजीनियर अपने लिए,नेता भी अपने पक्ष में वोट पाने के लिए तमाम तिकड़म करता है | सम्पादक प्रकाशक भी अपने नाम -पद -धनलाभ के लिए पत्रिका - पुस्तक छापते हैं | लेखक कवि भी अपने सम्मान के लिए लिखते हैं | यहाँ तक कि बाबा तुलसीदास ने भी सारा कुछ घोषित रूप में स्वान्तःसुखाय लिखा |
लेकिन एक वर्ग (वर्ग ही कहना उचित होगा) हिन्दुस्तान में ऐसा है जो अपने लिए कुछ नहीं करता , लिखता पढ़ता | वह सब काम समाज और केवल समाज के लिए करता है | कविता , लेख , कहानी , उपन्यास वह सर्वजन सर्वहारा के लिए लिखता है | वह है हमारा प्रगतिशील , जनवादी , संस्कृतिकर्मी और सशक्त विचारधारा से लैस वामपंथी |
मेरा सादर नमन उनको, खासकर इसलिए क्योंकि मैं तो किसी भी अन्य के लिए कुछ भी नहीं लिख पाता | सब कुछ मैं अपने , केवल अपने सुख के स्वास्थ्य के लिए लिखता हूँ | खेल खेल में , मनोरंजन के लिए |यह अपराध मैं स्वीकार करता हूँ |
* द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का साधारण hindi में अर्थ है - दोगलात्म्क बात व्यवहार |
* Thank god ! I am not a born brahimin .
* आज तुम्हारी यादों की
बारिश में भीग गया
कपड़े धुल गए होंगे
सुखाकर इन्हें
कल फिर पहन लूँगा
फिर भीगूँगा
तुम्हारी यादों में |
# #
* [कविता ] - " लम्हों ने खता की थी "
--------------------------------------------------
इतिहास अपनी बात
जल्दी पूरा ही नहीं कर पाता |
हें हें हकलाते हुए कहने में
सदियाँ लगा देता है ,
तब भी उसकी बात
पूरी होने में मुझे संदेह है
क्योंकि यह स्वयं
इतिहास को भी नहीं पता
कि कब वह चिल्ला पड़े -
सुनो भाई पुराणी मेरी बात
तब पूरी नहीं हुई थी ,
यह इतनी और बात तो
कहनी रह ही गई थी
अब सुन लो आगे की छुटी हुई बात,
और वह फिर शुरू हो जाय
अपनी बकवास लेकर !
क्या पता कब वह
सुकरात का मामला उठा दे
कब ब्रूनो गैलिलियो का और फिर
उसमें क्रुसेड घुसेड दे !
किसे पता कब यवनों का
आक्रमण बताने लगे
और आते आते जालियाँवाला
बाग़ भूलने न दे !
कुछ कहा नहीं जा सकता
कब उसे मथुरा काशी याद आ जाए
कब बाबरी गाने लगे ,
आजकल वह रामजन्मभूमि
खोद निकालने के कार्य में
जी जान से जुटा है |
ठहरिये, ठहरिये , यह फिर
ठहर सकता है पाँच साल
और फिर उठा देगा
पाँच हजार साल पहले का -
ब से बाभन , भ से भंगी का सवाल
म से मनुस्मृति के खोल दे पन्ने
और फिर कह दे - ले रख दे
इन्हें फ्रिज में, फ्रिज के फ्रीज़र में
मन तनिक विश्राम कर लूँ
बड़े काम हैं मेरे जिम्मे
थक जाता हूँ करते करते और
यह काम है कि कभी पूरा ही नहीं होता
ऐतिहासिक काम है यह
न जाने कब मुझे फिर जगना पड़े !
इस तरह इतिहास अपनी बात
कभी पूरी तरह पूरी नहीं कर पाता ,
इस पर फाइनल रिपोर्ट , क्लोज़र रिपोर्ट
लगाना इतिहासकारों के लिए
संभव नहीं होता ,
असफल हैं हिस्टोरियन
हिस्ट्री का कोई भी चैप्टर
बंद करने में |
इसी को कहते हैं -
लम्हों ने खता की थी,
सदियों ने सजा पायी ?
# #
* कारण को भी
पार कीजिये, ऐसे
कार्य कीजिये !
* कारण को भी
पार कीजिये,
ऐसे भी कुछ
कार्य कीजिये !
* मन इतना
अपवित्र नहीं है
जितना तन !
* भटकल बा |
के भटकल बा हों ?
उहै मनई |
[ भोजपुरी हाइकु ]
[एक कविता ] सारे योद्धा , अ -योद्धा में ! डरपोक कहीं के !
# #
निष्कर्ष _
नरेन्द्र डोभालकर कि हत्या से निष्कर्ष निकलता है कि इस देश में अंधविश्वास ही चलेगा | इसके विरुद्ध कोई भी कोशिश - आन्दोलन व्यर्थ ही जाने हैं | यहाँ एक अंधविश्वास ही दूसरे अन्धविश्वास को हटाएगा | बुद्धिवाद Rationalism फ़ैलाने का कोई काम तो न ही किया जाय | मैं बहुत दुखी हूँ | 25 -26 सौ साल से बुद्ध महाबीर , 5 -6 सौ साल से कबीर रैदास फैला ही तो रहे हैं ? क्या अब हम इतने तार्किक न बनेंगे कि इनकी असफलताओं से कुछ सबक लें , अनुभव ग्रहण करें और अपना रास्ता बदलें | कोई भी , जो न्यूनतम कुछ तो सफल हो | यह तो मानकर ही चलना होगा कि मनुष्य मूल्त्तः विशवास से संचालित होता है | कहाँ हैं नास्तिक जन ?
* आज हम शोक मना रहे हैं | आज १२ बजे रात तक कोई सदस्य तर्क और विज्ञानं के पोस्ट न करे |
* बहुत अच्छी और उपयोगी बहस | मैं दोनों से सहमत हूँ | सैद्धांतिक रूप से दीपक से | विचार फैलेगा तो क्या कर लेगा ? अशक्त होगा संगठित धर्मों के आगे , और सिर्फ विचार बनकर किताबों में रह जायगा | सत्य जी व्यावहारिक हैं , और समर्थन योग्य | पहली बात तो इनके संगठन भेड़िया धसान हो ही नहीं सकता | फिर यदि मानवीय बुराइयाँ आती है तो आयें | अगली पीढ़ी पर भरोसा करें , वह ठीक करेगी या फिर नया बनाएगी | क्या कीचड़ लग जाने के भय से हम कीचड़ कि सफाई में न उतरें ? अभी अधिक तो नहीं कह सकता पर कोई उपाय कीजिये कि नास्तिको, बुद्धिवादियों कि संतानें भी वैसी बने | जिस प्रकार हिन्दू - मुसलमान के बच्चे हिन्दू मुस्लमान | और हाँ , राजनीति में नास्तिकों का पदार्पण सुनिश्चित करें | अभी सप्रदाय बनें न बनें |
| नास्तिकता अपने आप में एक सम्पूर्ण समृद्ध सशक्त मानववादी विचारधारा है | उसमें व्यक्ति से लेकर समाज और साम्य सबका सर्वांगीण समावेश और समन्वय है |
* धर्म और राजनीति अलग चीज़ें हैं , यदि हम इस भ्रम से निकल आयें तो कुशल हो और कुछ तर्कसंगत रणनीति बनाई जा सके | ठीक है आप इस परिभाषा से सहमत नहीं हैं , लेकिन जिन्हें आयोजन करने हैं वे तो इसी परिभाषा के अनुसार सक्रिय हैं !
तुष्टीकरण = Appeasement
* खुश रहो अहले चमन हम तो सफर करते हैं "
यह कहा शहीदों ने हिंदुस्तान से | और यही कहते हैं हिन्दुस्तानी सेक्युलर भारत के मुसलमानों से |
लेकिन यह तो तुष्टीकरण है ! ?
* Shraddhanshu Shekhar
Sad News
Anti-superstition activist Narendra Dabholkar shot dead in Pune
Edited byDeepshikha Ghosh| Updated: August 20, 2013 10:36 IST
Pune: Renowned anti-superstition activist Narendra Dabholkar, who was pushing for law against superstition and black magic, was shot dead this morning in Pune, Maharashtra.
Mr Dabholkar was on a morning walk when he was shot near the Omkareshwar Bridge in the city by gunmen on a motorcycle. He died in the Sassoon hospital. More details are awaited.
The senior rationalist, known for his campaigns against superstition, Mr Dabholkar had for many years pushed for an anti-superstition Bill in the state assembly. He had also authored several books and was the editor of the "Sadhana" magazine devoted to progressive thought.
Narendra Dabholkar - Wikipedia, the free encyclopedia
http://en.wikipedia.org/wiki/Narendra_Dabholkar?seg=1
Prathak Batohi wrote:
"अन्धभक्ति अन्धविश्वास व् अंधउन्माद।
देश बड़ा है, बड़ा है सो बड़े स्केल पर चीजे है जैसे बड़ी आबादी और उस बड़ीआबादी की बड़ी अशिक्षा और बड़ी गरीबी। जब इन दोनों से निजात न मिला तो सबल की अंधभक्ति, भाग्योदय के लिए अंधविश्वास और अंधभक्ति अन्धविश्वास के घालमेल से बना अंधउन्माद इसकी बड़ी तीन बड़ी डेरिवेटिव समस्याएँ बन गई है। इनमे से एक अंधउन्माद की भेंट आज नरेंद्र दाभोलकर चढ़ गये है।
आज का दिन महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा निर्मूलन में लगे नरेंद्र की जान लेकर उदय हुआ है तो यही दिल्ली में एक राजनेता की अंधभक्ति से परवान चढ़ा है। नरेंद्र की हत्या महज इसलिए कर दी गई क्यूंकि वे धर्म में तर्कशीलता या वैज्ञानिकता के पक्षधर थे। जब धर्म में तर्क आयेंगे तब धर्म में अन्धविश्वास व् कट्टरता भी क्षीण होंगी पर यह हर एक को सुहाएगा ऐसा संभव नही।
रिफार्म या सुधार हर समाज में आहुति लेकर ही आते है कहीं किन्ही को किसी स्मृति का दहन करना पड़ता है या कही जॉन हस सरीखा स्वयम दहन होना पड़ता है। अभी 15 अगस्त को ध्वजारोहण पर जो कुछ बिहार में हाशिये पर पड़े समाज पर हुआ वह भी रिफार्म के विरोध की परिणिती थी। आप अपने सुधारवादी संतो मसलन यहा संत रविदास के अस्तित्व को नही स्वीकारते।
बड़ी विडम्बना है आप नरेंद्र की हत्या पर मौन रहते है, बिहार की घटना पर मौन रहते है पर किश्तवाड़ आपको सालता है सरकारे आपको अकर्मण्य और अपराध अक्षम्य लगते है ।सोचिये हे मुख्यधारा समाज आप गैलिलेयों की प्रताड़ना पर मौन रहे,आप जॉन हस को जलाकर खुश हुए पर वही जॉन जब चिता से मिटटी बन कर उड़ा तो मठ के मठ ढह गये ह्स्माईट युद्धों से यूरोप की तन्द्रा टूटी और विश्व में प्रोटेस्टेंट का जन्म हुआ। घबराइये नही आप संत रविदास या नरेंद्र को जब जब हटायेंगे वे आपको प्रभावित किये बिना या प्रोटेस्टेंट बनाये बिना नही छोड़ेंगे। विशवास ना हो तो अपना कबाइली वैदिक इतिहास से सूफ़ी सिखी कबीरपंथी और सबको लीलकर समृद्ध हो चुके सनातन समाज को देख लो ।
* जब कुछ न कर पाओ तो शहीदों के जन्म दिवस , शहादत दिवस मनाओ |
* हैं अभी भी हुमायूँ बहुत देश में ,
कोई राखी तो बाँधे बहन की तरह !
[ लक्ष्मी चाँद दद्दा , गोंडा ]
* राखी की जय हो !
लखनऊ | शादी का झांसा देकर गौतम पल्ली क्षेत्र की तीन नाबालिग बहनों का आठ दिन तक दिल्ली के एक कमरे में यौन शोषण किया गया | यौन शोषण करने वाले तीनो आरोपी रिश्ते में भाई थे | [अमर उजाला 20 अगस्त ]
राखी का त्यौहार किसे मुबारक कहें ?
* बदल दिया
पुराना जो धर्म था
नया लाये हैं |
[Great News]
" इज्ज़त के डर से क्या अपना आनन्द छोड़ दें ? "
( ओशो नीरव / मीरा आनंद )
जाति प्रथा तो एक Gradation System जैसा है | इसलिए इसका आधार इतना मजबूत है कि इसे हटाया ही नहीं जा सकता | चाहे वह वर्गीकरण किसी भी प्रकार का हो | विज्ञानं , इतिहास , समाज शास्त्र आदि सभी अनुशासनों के अध्येता यही प्रणाली अपनाते है | यह आधुनिक इतिहास है , वैज्ञानिक युग है , मनुष्य स्तनधारी जीव है क्यों कहते हैं हमारे स्कूल ? और प्रथम से लेकर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तक के लोग क्या हैं ?
Communists are Elitists of Rural India .
महाजनों येन गतः स पन्था |
और कोई सुविधा गावों में भले नहीं पंहुची , लेकिन गावों कि दशा के तमाम सर्वेक्षणों की बड़ी बड़ी रपटें तो ज़रूर पहुँच गयीं | गावों के बारे में जितनी सूचनाएं और आंकड़े NGO'S के पास है , उतनी किसी गाँव वाले को भी नहीं पता होगी |
जाति प्रथा तो एक Gradation System जैसा है | इसलिए इसका आधार इतना मजबूत है कि इसे हटाया ही नहीं जा सकता | चाहे वह वर्गीकरण किसी भी प्रकार का हो | विज्ञानं , इतिहास , समाज शास्त्र आदि सभी अनुशासनों के अध्येता यही प्रणाली अपनाते है | यह आधुनिक इतिहास है , वैज्ञानिक युग है , मनुष्य स्तनधारी जीव है क्यों कहते हैं हमारे स्कूल ? और प्रथम से लेकर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तक के लोग क्या हैं ?
व्यवस्था खुद ही आतंकवादी पैदा करने में जी जान से जुटी हुई है |
- लखनऊ में रिहाई मंच पर डाक्यूमेंट्री फ़िल्मकार आनंद पटवर्द्धन |
* बहुत सही फ़रमाया पटवर्द्धन जी ! कहीं इस्लाम का नाम जुबान पर मत ले आना , वरना - - - ?
हाँ हिंदुत्व को इसमें शामिल कर सकते हो |
* कल 24 अगस्त कि शाम अपने गृह क़स्बा बेवां से बस्ती 45 किमी गया , लखनऊ कि बस पकड़ने के लिए | अच्छी बस देखकर सवार हुआ और तिक्त भी कटा लिया |बस चली तो बजाय अयोध्या - फैजाबाद ले जाने के वह मुझे फिर बेवां ले आई , और फिर उतरौला - गोंडा रगड़ गंज , कर्नलगंज , घुमाते हुए लखनऊ पोलिटेक्निक लायी | इस रूट से मैं बचना छटा था , वर्ना बेवां से ही इसकी बस ले लेता | कहाँ इरादा उनका था उसके पहले हमारी 84 कोसी परिक्रमा हो गई |
इस दौरान मुझे दो ख्याल आये | एक तो यह कि इस रूट की सड़कों को देखकर यह कहने का मन होता है कि इन इलाकों में M.P. , M.L.A. की ज़रूरत क्या है ?
दुसरे यह कि जब सामान्य आवागमन ही नहीं सुनिश्चित हो सका तो सपा सरकार अपनी व्यस्था पर अपनी पीठ कैसे ठोंक सकता है ? यह तो सरकार ने विश्व हिन्दू [ पता नहीं कौन से हिन्दू हैं ये लोग ? क्या हम लोग हिन्दू नहीं हैं ?] परिषद का ही मकसद पूरा किया !
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