रविवार, 8 सितंबर 2013

नागरिक पत्रिका 5 सितं से 9 सितम्बर तक

* " लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि चार्ल्स डार्विन लम्बे समय तक खुद यही मानते थे कि हर जीव को ईश्वर ने बनाया है | इस सोच को बाद में उन्होंने अपनी गलती माना - -- ?
( कात्यायनी उप्रेती - एक लेख में - nbt 4 सितम्बर )
-- लेकिन हम तो अभी भी इस गलती को नहीं मान रहे हैं , और ईश्वर के चक्कर में अपना अमूल्य समय गवां रहे हैं !

* एक प्रश्न और बहुत कुलबुला रहा है | सोचता हूँ शिक्षक दिवस पर पूछ ही लूँ Vandita जी भी आ गयी हैं | और उज्जवल जी तो उपसंहार करेंगे ही |
नैतिक - आध्यात्मिक चिन्तक इसका उपाय बताएं | पुराने संत तो घपले में डाल गए हैं | एक तरफ कहते हैं - चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग | दूसरी तरफ सावधान करते हैं - कुसंग से दूर रहो और सत्संग करो | अब आप बताइए हमारे लिए कौन सी नीति उचित है ? अपनी तरफ से बता दूँ  कि - हमें दुष्टों से दो गज दूर ही रहना चाहिए | लेकिन जैसा आप लोग कहें , हम वही मानेंगे |

* हमारे लिए -
हमारे लिए न वह तब पूज्य थे , हमारे लिए न वह अब घृणित हैं | हमारे लिए वह तब भी निन्दनीय थे , हमारे लिए वह अब भी निन्दनीय हैं |

* चलिए अब आसाराम के भक्त तो भाजपा को वोट देने से रहे ? उन्होंने आसाराम को बचाया जो नहीं !

* सब कीजिये | लेकिन थोड़ी गुंजाइश रखिये कि पुरुष वर्ग नपुंसक तो न होने पाए !

* मैं आसाराम बापू से छः साल लहुरा हूँ

* ध्यान रखियेगा ! नास्तिक हैं तो आपको ' वास्तविक ' मनुष्य होना होगा |

* यदि Juvenile लड़कों को Adult मानने का आग्रह है , तो नाबालिग लड़कियों को क्यों नहीं ?

* बंटवारा हो तो चूका है , हमारे नेता उसे पूरा  नहीं होने दे रहे हैं |

* अरे हाँ , तो जब मैं कोई सांप्रदायिक दंगा करूँ तब न प्रगतिशील साहित्यकार लिखें कहानियां, कवितायेँ, उपन्यास ?

* शासक वह जो दूसरों को शरण - संरक्षण देता है | वह नहीं , जो अपने लिए आरक्षण लेता है |

* ( नाटक सम्वाद अंश )
" यह ठीक है कि आप न ढोल हैं, न शूद्र, न पशु, न ही नारी ! लेकिन बाबा तो गँवार को भी ताडन का अधिकारी बता गए हैं ! वह तो आप हैं | "

* बहुत से लोग बाहें चढ़ाए मार पीट , युद्ध, बदला आदि की बातें करते हैं | वे एक किताबी प्रश्न का उत्तर बताये तो हम भी मानें वे बड़े लड़ाका हैं  -
" अस्त्र और शस्त्र में क्या अंतर है ? " :)
Naveen Mishra शस्त्र हाथ में लेकर लड़ते है जैसे तलवार ,अस्त्र फेंक कर मारते है जैसे भाला

Right to information = RTI = Right to Inform
Right to education = RTE = Right to Express
हाँ याद आया | RTE में लड़कियों ( और दलितों ) को ज़बरदस्ती आरक्षण क्यों न दिया जाय ?
अजीब स्थिति है | रेग्युलर पढ़ने जाते ही नहीं | वजीफा मिलना होता है तब बन ठन कर जाते हैं | अभिभावकों में भी , पढ़ाने की अभिलाषा ही नहीं दिखती |

* ब्राह्मणों से बड़ा गुरेज़ है तो यदि दलितों को शनैः शनैः ब्राह्मण बनाने कि प्रक्रिया शुरू कर दी जाय तो क्या हर्ज़ है ?
जो लोग क्लास 4th की नौकरी में आ जाएँ , उनकी जाति वैश्य कर दी जाय . जो 3rd श्रेणी में आयें उन्हें क्षत्रिय , और क्लास प्रथम एवं द्वितीय कि नौकरी पाने वालों को ब्राह्मण करार दिया जाय |
लेकिन दिक्कत यह है कि इन्हें ब्राह्मण बनना स्वीकार भी तो नहीं है , अविरल आरक्षण की लालच में  | तो प्रक्रिया को पलट दिया जाय | जाति व्यवस्था के प्रतिकूल अब ब्राह्मण - क्षत्रिय - वैश्य - शुद्र को क्रमशः चार - तीन -दो - प्रथम श्रेणी का राजकीय स्तर दिया जाय |

* धर्म का नाम - जाति का नाम
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एक और बड़ी समस्या है | न धर्म का कालम छूट रहा है , न जाति का | मनुवाद को ही यदि मानें या दोष दें , तो इसके अनुसार भी चार ही तो श्रेणियां हैं - ब्राह्मण - क्षत्रिय - वैश्य -शुद्र , ब्रह्मा के कथित चार अंगों से उपजे ? फिर ये इतने जाति - नाम कहाँ से आ गए ? हम उन्हें क्यों स्वीकार करें | तो नामकरण केवल इन्ही चारों में से हो, इतर कोई जाति न हो | इसे भी निर्मूल करने या धीरे धीरे फेड आउट करने के लिए व्यवस्था यह हो कि जो जाति प्रथा न माने उसे सच्चा ब्रह्म ज्ञानी अर्थात ब्राह्मण लिखा जाय , उसे कोई आरक्षण न मिले | इस प्रकार सारी जातियों को समेट कर केवल मौलिक चार में सीमित कर दिया जाय |

और धर्म को मिटने का काम तो चुटकियों में हो सकता है ( कमल पाशा याद आ गए ) | इसे हमारे एक युवा मित्र ने बड़ी बुद्धिमत्ता पूर्वक सुलझाया और सुझाया | जाति का कालम मिटा दिया जाय और धर्म के कालम में जाति [ उन्ही चार में से ] लिखी जाय | या इसका पलट भी हो सकता है |
और यह तो कहना रह ही गया | कि इन सब श्रेणी बद्धताओं में व्यक्ति के नाम से कोई सम्बन्ध न रखा जाय | वह किसी भी भाषा में हो |
बात कुछ जम तो रही है !


* गुजरात के राज्यपाल , और उनके बहाने राज्यपाल की प्रविधा को ही , उसे केंद्र का एजेन्ट , वायसराय कहकर समाप्त करने की बात की जा रही है |
अरे कतई न मानियेगा | केंद्र के वायसराय सही, ये हैं तो राष्ट्र का राज्यों पर कुछ अंकुश है | वरना आश्चर्य नहीं कोई राज्य USA में शामिल होने का निर्णय ले ले ! तबाह हो जायगा देश !

* " पार्टी हाई कमांड "
राज्यपाल के पद को कायम रखने के पक्ष में है |

* क्या यह आँकड़ा सही है , या होना चाहिए ,कि भारत में केवल दो सम्प्रदाय हैं - हिन्दू और मुसलमान ?

* " मैं अपनी जायदाद किसके नाम करूँ ? "

विज्ञानं हो | तो कुछ भी हो - साहित्य, संस्कृति, धर्म, दर्शन, कला, खेलकूद, सिनेमा, मनोरंजन, कुछ भी | चलेगा | विज्ञानं न हो तो विज्ञानं भी स्वीकार नहीं

" ज्ञान उत्सव "
किसी पार्क में लगाया जाए | लोहिया जी ने रामायण मेला लगवा कर जो गुड गोबर किया , उसे पलटा  जाए |
बस मेला | Fanfare , पुस्तकों कि दुकानें , rational बातचीत , सभा-सम्मेलन , परिचय - युवा युवतियों के , बूढ़ों के , अधार्मिक जीवन के साथी संगती मिलें | इसमें  विज्ञानं  के क्रिया कलाप तो हों , पर इसका नाम विज्ञानं उत्सव न रखें , वरना यह स्थूल हो जायगा | इसे संस्कृतिक नाच गाना बजाना ही रखें मनमोहक , आकर्षक | खुला सबके लिए रखें , संचालक नास्तिक वैज्ञानिक चेतना वाला संगठन हो |
#  #

* भजन गीत =  " मैं हुशियारी सीख गया हूँ "
दुनिया में रहने के नाते दुनियादारी सीख गया हूँ |

तन मेरा चाहे जैसा हो मन मेरा अब भी चन्दन है ,
ह्रदय नहीं मेरा बदला है, कोमल भावों का नंदन है 
लेकिन अभिनय करते करते, मैं  हुशियारी सीख गया हूँ |
                       
मन मेरा कब यह कहता है किन्चित मन को दुःख पहुँचाऊँ 
ह्रदय भला कब अनुमति देता किसी हृदय को ठेस लगाऊँ ,
पर जंगल में रहते रहते, मैं वटमारी सीख गया हूँ  |

पावन मन से जब सच बोला, घर बाहर सब धोखे खाया 
आखिर जग में रहना था ही, मैंने भी यह पथ अपनाया -
मन में छूरी, मुंह से कहना - " कृष्णमुरारी" सीख गया हूँ ||
#  # 

हम दुनिया को 
नहीं बना सकते ,
हम दुनिया को बिगड़ने से 
नहीं बचा सकते |
----------- Feeling sorry 

* गर्ल फ्रेंड को रिझाने में बना लुटेरा =
गर्ल फ्रेंड को मंहगे गिफ्ट देने के लिए लूट करने वाला , चेन स्नेचिंग कर भाग रहा युवक धरा गया |
[NBT 6 सितं]
* मेरी डिमांड है कि उस गर्ल फ्रेंड को भी पकड़ा जाय | यह क्या है कि मीठा मीठा गप कड़वा कड़वा थू ? कुछ वह भी भुगतें |

* ख़ुशी कि खबर -
भटकल पर बयान देने वाले जनाब कमाल फारुकी साहेब कि सपा कि राष्ट्रीय सचिव की कुर्सी छिनी |


* अहमद हसन , स्वास्थ्य एवें कल्याण मंत्री साहेब ! पहले प्रदेश में डेंगू की बीमारी का हाल लीजिये , महिला अफसरों के 
अहंकार कि खबर बाद में दीजियेगा |

*श्री अहमद हसन साहेब , स्वास्थ्य मंत्री जी ! आप के मरीज़ को मिला वेंटिलेटर , जिसके चलते सुम्बुल को मिली मौत ?
 - क्या यह मंत्रि पद का अहंकार नहीं है ?

* दंगे यदि दंगाई करते हैं , तो फिर ये हिन्दू मुसलमान भला क्या करते हैं ? जो इतनी जगह छेकाए हुए हैं ? फिर इनकी ज़रूरत क्या है ?

Trial of Errors में रेहान का नाटक { 7 सितं } तो हुआ | लेकिन मलाला , सुष्मिता पर कब नाटक कारों की कृपादृष्टि  जायेगी ? हाँ , इनमे कोई Errors अलबत्ता नहीं हैं :)

आज आसाराम के दिन खराब हैं तो सभी उनके पीछे हाथ धोकर पड़े हैं | सारे गड़े मुरदे अब उखाड़ने लगे | अन्यथा अभी ट यही लोग उनकी सेवा में लगे थे | वे सब उनके नादाँ दोस्त हैं |लेकिन हम उनके दानादार ( बुद्धिमान / मानववादी ) दुश्मन हैं ? एक कैदी को देय सुविधाओं के लिए हम उनकी वकालत करेंगे, वह जो भी हों | हम वह मानवाधिकारवादी नहीं हैं जो केवल नक्सलियों / आतंकियों के लिए झंडा उठाते हैं | आसाराम को भी उनकी आयु और स्वास्थ्य के अनुकूल ही व्यवहार किया जाना चाहिए | मेरा ख्याल है लोगों को पसंद शायद न आये यह सोचकर कि मैं तो नास्तिक आदमी हूँ , ढोंग पाखंड विरोधी , और आसाराम वह सब करते थे !
क्योंकि हमारे यहाँ मनुष्य का शारीरिक मूल्य भी है |)

दो तरीके =
1 - पहले स्वीकार करो ( मानो )
     फिर संदेह करो ,
     फिर इन्कार करो ( न मानो )

2 - पहले इन्कार करो ( न मानो )
     फिर संदेह करो ,
     फिर स्वीकार करो ( मानो )

#  #

* रामदेव ने कहा  - साधू संतों के लिए बने आचार संहिता |
  - यूँ है तो यह हास्यास्पद और भारत का दुर्भाग्य | क्योंकि जो साधू संत जनता के लिए आचार संहिता बनाते और उन्हें पढ़ाते हैं , स्थिति ऐसी आ गयी है कि उनके लिए आचार संहिता बनानी बनानी पड़ रही है ! 

लेकिन फिर भी यदि बनानी ही पड़ रही है , तो उसे बनाएगी जनता | अर्थात भारत का संविधान , और उसके तहत चल रही सेक्युलर सरकार |

* ईश्वर तो वह जिसका अपमान ( Blasphemy ) असंभव हो !

सारा दोष राजनीति, सपा बसपा, भाजपा को ही न दें | कुछ अपने लिए भी बचा  कर रखें  जो धर्म को   बड़ा महत्व , अत्यंत महिमामंडित करते हैं | अरे बहुत ज़रूरी है धर्म मनुष्य के लिए - धारयति सः धर्मः ! अन्यथा मानव तो दानव हो जायगा | तो भुगतिए अब अपने देवताओं को !

क्या यह कहावत सच है कि मूर्खों के सींग - पूंछ नहीं होते ? मेरा तो ख्याल है कि, होते हैं हमें दिखाई नहीं देते |

* सुष्मिता बंद्योपाध्याय ! यूँ तो सजातीय, सधार्मिक विवाह में भी कुछ भी हो सकता है | लेकिन अंतरधार्मिक विवाह से ही क्या सुख हासिल हो गया ? शान्ति सुनिश्चित हो गयी ? - - - - 

आखिर " इस बात का भी क्यों नहीं कुछ मायने हो पाया कि वह इस्लाम स्वीकार करके साहब कमाल हो गयी थीं, और लोगों की सेवा कर जिंदगियां बचा रही थीं " ?

* तालिब कहते हैं शिक्षार्थी को , शिक्षा की तलब, प्यास रखने वाले को | तालिबानी का अर्थ भी कुछ इसी के आसपास होना चाहिए !


* हिन्दुओं के साथ बैठकर खाना जायज़ " = दारुल उलूम |

- - चलिए अब मेरा चिकन बिरयानी पक्का हो गया !


* इस जग का ईश्वर है मालिक 
तुम मानो हम नहीं मानते ,
धरती का इकलौता मालिक
तुम मानो हम नहीं मानते | 

* ईश्वर = अदृश्य सत्ता का एहसास ,

* धर्म  = स्व अर्जित नैतिकता |

* हम नास्तिक इसलिए हैं , क्योंकि आस्तिक लोग आस्तिक नहीं रह गए | इसलिए हम अपनी आस्तिकता का नाम नास्तिकता कहते हैं !

" धर्म की हानी " इसलिए हो रही है क्योंकि ' धार्मिक ' जनानि के आध्यात्मिक ' दूध के दाँत ' टूटते ही नहीं | उनके माथे से ' छाप तिलक ' बुढ़ापे तक भी नहीं छूटता , तो कैसे मिलें ' नैना ' उस समग्र - समष्टि से ? वही प्राइमरी स्कूल में प्रार्थना में ताउम्र शामिल , मूर्तियाँ, घंटे घड़ियाल बजाते आरती हवं करते ! अरे भाई , गोलियों की ज़रूरत तो बच्चों को गिनती - पहाड़ा सिखाने के लिए पड़ती है ! क्या वही जिंदगी भर लिए रहेंगे ? फिर कहेंगे , हाय मैं तो एमएससी में फेल हो गया | अरे, वार्धक्य के बल पर अध्यात्म के सोपान नहीं चढ़े जाते मित्र ! छोडो सब छोडो , गोरख गुरु तो कहते हैं - मरो , मरो रे जोगी मरो ! 

यात्रा का आनन्द लेने का अपना तरीका मैं आप को बता रहा हूँ , बिना पैसा व धन बरबाद किये | बैंक खाते में दो तीन हज़ार हर हाल में पड़ा रहने देता हूँ | हर महीने irctc से कहीं जाने और वहाँ से लौटने का टिकट बुक करा लेता हूँ , स्लीपर में , ए सी में | कहीं का भी , कभी दिल्ली, कभी कोलकाता नहीं तो कभी गोरखपुर अपने घर तक का ही | जहां भी कन्फर्म मिले | बिना पक्के टिकट के मैं यात्रा नहीं करता | फिर क्या करता हूँ कि यात्रा प्रारंभ होने के 24 घंटे पहले उन्हें कैंसिल कर देता हूँ | है न घर बैठे यात्रा के आनंद का नायाब तरीका ? :)


* इतनी धार्मिक विविधताओं के बीच नास्तिक [ धर्मों से असम्बद्ध / निर्मोही ] कारकुन, पुलिस कर्मी, अधिकारी, न्यायाधिकारी, राजनेता ,शिक्षक ही, यहाँ तक कि चपरासी और सफाईकर्मी भी  सेक्युलर राज्य के सही संवाहक हो सकते हैं | वर्ना यह मंत्री लाखों की भीड़ में पहले स्नान करेगा (भीड़ कुचल कर मरे तो मरे ), राज्य में नरसंहार करेगा या वह मंत्री हज के लिए विदेश यात्रा कर लेगा | कोई क्या कर लेगा उनका ? कौन समझाए , कौन रोकेगा उन्हें ? आखिर वह व्यक्ति हैं अपनी धार्मिक आस्था के साथ और साथ ही राज्य के सूबेदार भी हैं | हम कौन है और आप कौन हैं ? पलटते रहिये शब्दों की किताबी परिभाषाएं ! तब तक तो वह बहुत कुछ अंजाम दे चूका होगा | आधी सदी से अधिक तो ले ही लिया इसने ! मित्र , बाहरी शब्दों को अपनी ज़मीनी यथार्थ से जोड़ कर सोचना होगा | तभी सटीक परिभाषा निकलेगी | मच्छिका स्थाने मच्छिका बैठाने से नहीं     

* हिन्दू हिन्दुई 
दंगा करें दंगाई 
तुर्क तुर्कई |

* मैं पूछता हूँ -
इतनी लम्बी तो है 

कविता कहाँ ?

* लस्त पस्त हो 
सुरसती का पापा 
घर आता है |

* कोई तो मिथ 
काम नहीं करता 
छद्म युग में |

* होगा क्यों नहीं 
इतना पैसा है तो 
धूम धड़ाका ?

* आत्म अलग 
अध्यात्म अलग है ?
फिर से सोचूँ  |

* क्या होगा कुछ 
कहने सुनने से 
हो तो बताओ !

* इतनी जल्दी 
प्यार के प्रतिमान 
मत बदलो !

  अजीब बात !
हर समय व्यस्त 
रहता हूँ मैं |

लक्ष्य इतने 
कर्तव्य कुछ नहीं 
क्या सफलता ?

अच्छा जीवन 
मुश्किल से बनता 
शीघ्र टूटता |

साहित्य चर्या 
है सम्पूर्ण अध्यात्म 
हृदयान्तर !

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