सोमवार, 23 सितंबर 2013

नागरिक पत्रिका 21 से -23 सितम्बर तक

धर्म व्यक्तिगत ?
1 - चूँकि धर्म व्यक्तिगत मामला है , इसलिए होना तो यह चाहिए कि राज्य केवल जाति पूछे और जनता केवल अपनी जाति बताये | वह भी कुछ सीमित वर्गीकरण में | जैसे - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र ( हिन्दू का वैशिष्ट्य ) | इसके अतिरिक्त जो जातियां हों, वे मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी आदि जिन्हें वे धर्म कहते हैं भारत में जाति के रूप में माने जाएँ , और इनका अंकन व्यक्ति के परिचय के साथ उसके जाति के कालम में लिखा जाय | धर्म , कोई किसी का नहीं |
2 - लेकिन चूँकि व्यवहार में धर्म व्यक्तिगत नहीं रहा, इसलिए दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि फिर जाति नाम कोई न हो | जाति ही जनता का धर्म हो | धर्म के कालम में  व्यक्ति अपनी जाति का उल्लेख करे |
आखिर कोई तो जाय , धर्म या जाति ?      
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अप्रिय संवाद :--
भारत में हिन्दू राज्य का आशय केवल यह कि हिन्दुस्तान में अब हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं होने चाहिए | न इसके दलितों पर, न औरतों पर, न ब्राह्मणों पर | विशेषकर मुसलमानों और ईसाइयों द्वारा जैसा कि भूतकाल में हुआ | चाहे कोई अल्पसंख्यक या अतिअल्पसंख्यक , सबको मालूम होना चाहिए कि भारतवर्ष पाकिस्तान नहीं है जहाँ हिन्दू और हिन्दू लड़कियों पर अत्याचार हुए , फलस्वरूप उनका पलायन हुआ और वे बस गिनती के रह गये| हमारे हिन्दू राज्य का मतलब यह नहीं कि कियाहान का राजा ब्राह्मण या क्षत्रिय हिन्दू हो | वह कोई हो लेकिन उपरोक्त शर्त और पाबंदी के साथ |
इस हेतु  दलितों पिछड़ों को आरक्षण की भांति पूरे हिन्दू समाज को आरक्षण मिलना तय किया जाना चाहिए , संविधान संशोधन द्वारा , इसके " सेक्युलर " होने के बावजूद | यह लिखित होना चाहिए कि स्वतंत्र भारत में अब हिन्दू इसका मूल अधिकारी निवासी है और यही उसकी मूल संस्कृति | यहाँ का सेक्युलरवाद इसी के अंतर्गत चलेगा |
क्यों नहीं हो सकता ऐसा ? जब इसी संविधान के तहत ज़मीदारी उन्मूलन हुआ, दलित आरक्षण हुआ, पिछड़ों को अरक्ष्ण मिला और अब मुसलमानों कि बारी है | तो फिर सेक्युलर के साथ साथ यह मुल्क हिन्दू प्रमुख सांस्कृतिक देश , राष्ट्र और राज्य , क्यों नहीं माना जा सकता ?
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ईश्वर हो कोई , तो उसे अपने मन में ही रखना
ईश्वर तुम्हारे मन से बाहर गे नहीं
कि हुआ वह प्रदूषित
इन्फेक्शन ,
ठण्ड बयार , जूडी बुखार सब धर लेगा
डेंगू मच्छर भी काट सकता है
एड्स भी असंभावित नही ,
और जब बीमारी कंट्रोल के बाहर हो जायगी
तब लोग उसके मरने की कामना करने लगेंगे |
सार्त्र जैसे लोग घोंषणा कर देंगे -
God ? God is dead !
ईश्वर ? ईश्वर तो मर गया |
इसलिए हिंदुस्तान की आध्यात्मिक आत्मा
का सन्देश सुनो -
अपने भगवान् को अपने मन में रखो
यदि उसे जिंदा रखना है तो !
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" ईश को मान कर जो खतरे हैं ,
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किन्ही शायद राशिद साहेब का एक लाजवाब शेर है -
" दीन को मान कर जो खतरे हैं ,
दीन को जानकर नहीं होते | "
इसे समझना कभी कभी मुश्किल हो जाता है | क्योंकि दीन एक बड़ी चीज़ है जिसमे धर्म , मजहब , कर्तव्य , ईमान सभी आ जाते हैं | इससे जानने - मानने में भ्रम हो जाता है | जैसे यदि मानें नहीं तो जानकर ही क्या कर लेंगे | लेकिन शेर तो गहरा है | मैं सोचता हूँ अपनी आसानी के लिए इसे इस प्रकार समझूं -
" ईश को मान कर जो खतरे हैं ,
ईश को जानकर नहीं होते | "
- क्योकि ईश को मानने से पहले और उसके प्रति अन्धविश्वासी होने का बजाय हम यह तो जान ही लें , जान ही सकते हैं कि वह वास्तविक नहीं , मनुष्य की कल्पना की उपज है !
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 वैसे एक तरह से देखा जाय तो Sanjay Grover जी की बात सही है - " अब मैं इस ग्रुप को ख़त्म करना चाहता हूं। " मैं एक नास्तिक गुप चलता हूँ , मैं उनकी पीड़ा समझ सकता हूँ |
चलिए इसकी आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता कि ईश्वर के खिलाफ जमकर प्रचार किया जाय | लेकिन कभी कभी एक रट , एक धुन से  ऊब सी होने लगती लगती है | किसी ग्रुप में इससे आगे जाने कि भी तो बात होनी चाहिए
तय है कि ईश्वर नहीं है | तो आदमी तो है ? आदमी को तो होना चाहिए ? कहाँ है वह आदमी ? क्या वही , जो ईश्वर नहीं की रट लगा रहा है ? जैसे एकनाम संकीर्तन ? उधर देखिये आस्तिकों को | ईश्वर है इस पर वह रुकते नहीं | आगे बढ़ते जाते हैं - रीति रिवाज़ , संस्कृति , शिक्षा , कला , साहित्य , राज्य , अंतरराष्ट्रीय राजनीति तक |
इधर हम अधर में हैं | यही तय नहीं हमारे जन्म ,विवाह , मृत्यु संस्कार कैसे हों | या यही कि पैदायशी संस्कृति के तरीके से हो | तब यह तय करना होगा पुराने धर्मों / संस्कृतियों से हमारा क्या रिश्ता हो ?इत्यादि --
तमाम कौमें अपने सरवाईवल या शक्ति के लिए मारा मारी कर रही हैं | डेनमार्क - म्यांमार में कुछ हो तो हिंदुस्तान समेत सारी दुनिया हिला दी जाती है | मरते रहें हमारे दोभाल्कर , क्या कर लेंगे हम ?
नास्तिकों की कोई रूचि नहीं है समाज कर्म में | कितने ही संस्था संगठन अपने पर्चे लिए घोमते हैं और हम सौ दो सौ कि सदस्यता नहीं लेते | उधर ढोगी बाबाओं के पास अकूत धन क्यों हो जाता है ? एक समुदाय में अपनी आमदनी का निश्चित हिस्सा देय होता है | हम एक सेमिनार नहीं करा सकते | क्या खाकर मुकाबला करेंगे उनका | यह तो कहिये वे हमे तवज्जो नहीं देते वर्ना हम गिनती के लोग एक घंटे के अंदर साफ़ हो जाएँ |
एक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर के आन्दोलन, कई राजनीतिक दल बन रहे हैं | उनमे शामिल होने की बात मैं नहीं करता | पर क्या नास्तिक का नैतिकता का कोई अजेंडा है | क्या यह तय हुआ कि नास्तिक भ्रष्टाचार में रत न हों ?
फिर चलिए एक प्रचार कि ही बात ! हम इसके प्रचार प्रसार के
 लिए ही क्या कर रहे हैं फेसबुक के बाहर ?
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* स्थितियों , परिस्थितियों को देख समझकर मनुष्य के मन में ईश्वर का न होना अपने आप सिद्ध हो जाय तब तो मज़ा ! हम किसी को क्या और क्यों बताते फिरें ? हमारे पास भी तो उतना ही दिमाग है जितना उनके पास ?

* हम मौसम नहीं देखते, आंधी तूफान की परवाह नहीं करते , जाड़ा गर्मी बरसात हमारा रास्ता नहीं रोक सकता | हम समय का इंतज़ार नहीं करते | हम कुत्ते नहीं हैं !

* आस्तिकों के मोहल्ले में हम नास्तिक नहीं हो सकते | यूँ कीड़ों की तरह जीना न हो तो हमें भी आस्तिक होना होना पड़ेगा - नास्तिकता के साथ जीवन मूल्यों के प्रति 'आस्तिक' | विचार वायवीय , केवल सब्जेक्टिव तक सीमित नहीं होने चाहिए सरवाईवल के लिए | हमे व्यावहारिक , ओब्जेक्तिव होना चाहिए | वैज्ञानिक निष्कर्ष तुलनात्मक अध्ययन से प्राप्त होते हैं , अकेले एक चावल कि खिचड़ी पकाने से नहीं |
इस प्रकार हम अपनी आस्तिकता की नज़र खोलें , तो हमें देखने होगा हमारे बीच उपस्थित अन्य धार्मिक जन, समूह , संस्थाएं , संगठन , उनके राजनीतिक दल क्या कर रहे हैं ?
ज़ाहिर है अभी कोई नास्तिक नास्तिक में पैदा नहीं होता | अभी सब किन्ही पुराने धर्म से ही निकले हैं | ऐसे में यदि कोई जन्मना है तो स्वाभाविक है हिन्दू और हिंदुत्व के प्रति ज्यादा कटु और आक्रामक होगा | कई नास्तिक हिन्दू धर्म को समाप्त करने का झंडा आक्रोश में उठाये हुए हैं | स्वागत है उनका | लेकिन उनसे यह देखने का आग्रह तो हो ही सकता है कि - तब कौनसा तीर मार लेंगे वह ? [ मैं हिंदुत्व नहीं हिन्दू समूह की बात कर रहा हूँ ] | थोड़ा आगा पीछा सोच लें | यही तो बुद्धिवाद का तकाज़ा है ? तब क्या वह जिंदा रह पाएंगे ? राजनीति भी यही कहती है कि जहां सभी आपके दुश्मन हों वहां उस दुश्मन से दोती रखो जो आपका सबसे छोटा ( कम से कम ) दुश्मन हो | यह भी गौर कीजिये कि इतनी वैश्विक छीछालेदर के वावजूद क्या किसी इस्लामी बौद्धिक गुट ने यह कहा , या कहने का साहस कर पाया कि इस्लाम का नाश होना चाहिए ? हाँ हिन्दू को कह सकते हैं , क्योंकि आसान है यह | लेकिन क्या आसान काम करके आप सफल हो पायेंगे | आज तो बुद्धि का तकाजा यह है कि नास्तिक मुस्लिम भी हिन्दू कौम को जिंदा रखने की मुहीम में घुसें | वर्ना नास्तिकों का कोई सम्प्रदाय तो बनेगा नहीं , नरम हिन्दू की अनुपस्थिति में वे नेस्तनाबूद कर दिए जायेंगे | नास्तिकता या इस -उस ईश्वर में आस्था एक बात है और राजनीतिक मानव चाटने दूसरी बात | और दुनिया में अस्तित्व , और अस्तित्व का प्रकार राजनीति से तय होता है , इतना तो समझते ही होगे ?

* No doubt Modi is looking like a sole alternative . But sorry , we can not accept him . Rather, we should wait for other alternative to evolve . We can't spoil our nation and give a bad name to it . Because , once this " dictatoriat" is throned and given the seat , he will gain ( अभी तो अपनी पार्टी और गुजरात तक सीमित हैं ) thatso called " Absolute Power " , which , as the saying goes , will corrupt him " Absolutely ".
And why to lose heart ? BSP is very much in the contest ? Also , if I could feel your anxiety about Hindu Rajya, yes Mayavati is best suited to carry it over . She is more hindu than modi .
मैं यह नहीं समझ पाया कि धार्मिक हिन्दुस्तान में सड़क , बिजली और कार की फैक्ट्री कैसे विकास के मापदंड हो गए | यदि हिन्दू की ही बात करें तो इसकी प्रगति तो आध्यात्मिक , सामाजिक , शक्षिक , समतावादी न्याय के मूल्यों में निहित होना चाहिए ( यदि इसके think टैंक स्वयं को धोखा न दें और हमे भ्रम में रखने कि कोशिश न करें तो ) | ऐसी दशा में मायावती का शासन ही असली हिन्दू राज्य होगा | और जोड़ दे तो तमाम तनाओं की विनाशक भी !
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* तब तक बंद नहीं होगा
हमारा हमला
जब तक नहीं बंद होते
ड्रोन हमले ,
और जब ड्रोन हमले रुकेंगे
तब हमारे शुरू होंगे
हमले | "
कुछ इस तरह बन सकती है कविता |
कई सवाल हैं | एक तो अपने नास्तिक मित्रों से | मरने वालों ने कोई खता नहीं की थी | इस्लाम का कुरान का , पैगम्बर का कोई अपमान नहीं किया था | बस गैर मुस्लिम थे , यही उनका दोष था | और शायद इस कुकर्म - कुपंथ के दोषी तो नास्तिक जन भी हैं !
दोनों हाथों संभालिये दस्तार (पगड़ी )
मीर साहेब ,  ज़माना नाजुक है |
अब कोई कहे कि आतंकवादियों का कोई मज़हब नहीं होता , तो क्या उसे दो झापड़ रसीद करने का मन नहीं होता ?
जी हाँ , नहीं होती पिटाई और आतंकवादियों का हौसला बढ़ता जाता है ( वैसे भी वे इनके भरोसे नहीं हैं )
और कहिये कि बलात्कारियों का , हत्यारों का कोई धर्म नहीं होता ! कहते जाईये | कम्युनिस्टों का, नक्सलियों का या किसी का कोई धर्म नहीं होता ! फिर तो यह हमारी ही बात की पुष्टि हुयी ! फिर ज़रूरत क्या है धर्मो की , ईश्वरों कि , किताबों की ? अनैतिक ही होना है तो हमारी नास्तिकता ही भली !
अंतिम संबोधन दलित ब्राह्मण विरुद्ध आन्दोलन को | कल्पना कीजिये , ऐसे व्यवहार पर यदि कोई समुदाय यह तय कर ले कि वह मुसलमानों का बहिष्कार करेगा | उठाना बैठना , खाना पीना , छुवा छोट , शादी व्याह नहीं करेगा तो क्या वह अनुचित होगा ? असंभव नहीं ऐसा ही कुछ उनकेसाथ भी कभी हुआ हो | लेकिन अब बुद्धिमत्ता इसी में है कि वह " ब्राह्मण वाद " पर कब्ज़ा ( Occupy Wall ) कर लें , और हिन्दू राज्य को अपने हाथों में ले लें | हीनभावना से मुक्त हो घोषित कर दें पुराने ब्राह्मणों और मुसलमानों से कि अब हम है ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शुद्र सब और हम ही है मुग़ल सल्तनत के उत्तराधिकारी | अब मनुवाद का रोना लेकर बैठने से काम नहीं चलेगा  , उससे कुछ नहीं होगा सिवा आरक्षण के कुछ टुकड़ों के | अब उन्हें राजा की भूमिका में आना होगा पुरे आत्मविश्वास के साथ पूर्ण हिन्दू पहचान के साथ | तब न कोई दलित , न कोई हिन्दू , न कोई नास्तिक , न कोई मुसल्मान इन आतंकवादियों के हाथों मारा जाएगा | सिंहासन खाली होगा यदि तुम आते हो !
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* किसके लिए मरे जा रहे हो , लोगों को मारे जा रहे हो ?
उसके लिए , जो कहीं है ही नहीं ?

* वैसे उग्रनाथ जी , बुरा न मानो तो तुम्हे एक बात समझाऊँ | तुम हो पक्के मूर्ख , कहते भले हो कि तुम बुद्धिमान हो | असली बुद्धि तो मुस्लिम परस्त बुद्धिजीवियों के पास है, इसीलिए ही तो उन्हें बुद्धिजीवी की संज्ञा और सम्मान प्राप्त है | वे जानते हैं कि आखिर ति इस्लाम को ही आना है , दुनिया पर छाना है | उन्ही में है हर तरह की काबलियत शासन करने की | तो अभी से चढ़ते सूरज को क्यों न अर्घ्य चढ़ाते रहा जाय ? पूर्ण हिन्दू चतुर हैं वह ! इसीलिए वे हर बात पर अमेरिका का विरोध भी करते हैं , भले अपने बाल बच्चों , बिटिया दमाद को वहाँ भेज दें , पर खुद कटे रहते हैं | कटे रहना ज़रूरी जो है मुस्लिम मैत्री के लिए ! तुम भी इनमें शामिल क्यों नहीं हो जाते ?

* दुनिया भर में मुसलमान गैरमुस्लिमों के प्रति असहिष्णु हो रहे हैं , और उन्हें रोक्न्र , बरजने के लिए कोई भी पारंपरिक या प्रगतिशील विचारधारा जुमान तक खोलने को तैयार नहीं है | यह दुखद स्थिति है | नास्तिक प्रगतिशील , कम्युनिस्ट , मानव अधिकारवादी किसी की भी हिम्मत नहीं पड रही है | जो कबीर की कभी तब थी जब विचार और विज्ञान 5 - 6 सौ वर्ष पीछे थे , इतना आगे नहीं बढ़े थे जितना कि आज | अब तो हमने मारक अस्त्रों में इतना विकास और विस्तार कर लिया है कि कबीर भी नहीं कह पाते कि इस्लाम एक अमानवीय, निहायत बर्बर, दकियानूसी धार्मिक धारणा है, ईश्वर के प्रति अपराध है इनके कृत्य | फिर हमारी आप की क्या औकात ?

* क्या मतलब ?
आज अपने राष्ट्रपति श्री प्रणब जी का बयान आया है कि , मानवता और सभ्यता को बचाने लक्ष्य " सिर्फ कानून की मदद से हासिल नहीं किया जा सकता | इसके लिए समाज को मिलकर कोशिश करनी होगी " |बात लगती तो साधारण आह्वान जैसी है लेकिन आइये ज़रा इसे इससे सेक्युलरवाद के दार्शनिक धरातल को समझने कि कोशिश करते हैं | हर सेक्युलर चिन्तक, प्रोफेसर भाँय - भाँय  भाषण देता चला जाता है सेमिनार - सभाओं में अखबार - पत्रिकाओं के लेखों में , कि यह ( सेक्युलरवाद ) व्यक्ति नहीं राज्य का विषय है | और हम बराबर कहते रहे हैं - कि जनता को वैसा ही शासन मिलता है , जिसका वह पात्र होता है ; दूसरे तरीके से - यथा राजा तथा प्रजा | दोनों अन्योन्याश्रित हैं | इसीलिए धार्मिक अन्धविश्वासी भारत में लोकवाद आधारित लोकतंत्र स्थापित नहीं हो सका | अजीब बात , यह साधारण तथ्य लोगों की समझ में नहीं आता कि जनता तो कट्टर मुसलमान होगी और राज्य सेक्युलर हो जायगा ? या यह कैसे संभव होगा कि वोटर कट्टर हिन्दू होगी , लेकिन अपने लिए सेक्युलर राज्य चुन लेगी ? नहीं राष्ट्रपति जी का भी आशय यही है कि जनता और समाज को भी सेक्युलर ( नास्तिक ) होना चाहिए |
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* हिन्दुस्तानी तहजीब की सफाई और सौन्दर्य ही नहीं , इसकी कुरूपता और गन्दगी भी मुझे प्यारी लगती है |

* जो मेरा है
वह तो ज़रूर है ,
लेकिन तुम्हारा जो
वह कहीं भी नहीं है -
कोई ईश्वर !
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* छोटा ही सही
अपने पैरों पर
खड़ा तो सही !

* संभालो यार !
अपने पास जो है
दिल दिमाग |

*  कला संकाय
है कोई तेरे पास ?
बचा रखना !

* छिछोरापन
कहीं बैठा हुआ है
गहराई में |

* सत्य मार्ग में
अपनी आस्था तो है
लागी लगन |

* कुछ लोगों को
मारो और मरो भी
कैसी है नीति ?

* मैं जानता हूँ
तू है तो नहीं तो भी
क्यों इंतज़ार ?

आनंद देती
झूठी उपस्थिति भी
हाय ! उसकी |

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