बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

नागरिक पत्रिका 27 से 30 सितम्बर तक

* जातिवादी होने का ही तो आरोप है ? वह तो मैं तब भी बना रह सकता हूँ | लेकिन मुझे अपने नाम से जातिगत उपनाम हटाने दीजिये | बड़ी घुटन होती है इसके साथ |

* मै यदि नेता हूँगा तो अपनी कुर्सी के पीछे गांधी जी का चित्र नहीं लगाऊँगा | वह तो मैं अपने ध्यान कक्ष में रख सकता हूँ | लेकिन कार्यालय में तो सुभाष चन्द्र बोस का चित्र लगेगा | अहिंसा परमो धर्मः ' धर्म की भाँति मन में रखने का आध्यात्मिक मन्त्र है , व्यक्तिगत धारणा और गुण, निजी व्यवहार | वह राज धर्म बनने लायक नहीं होता | राज्य का काम काज तो शक्ति , सख्ती और अनुशासन से चलता है |

* भारत - पाक एक नहीं हो सकते तो न हों | लेकिन भाई चारे में एक नवल समझौता तो कर सकते हैं , जो अन्य किन्ही राष्ट्रीय सीमाओं के बीच नहीं होता | वह यह कि यदि किसी देश में आतंक की घटना होती है , तो वह आतकी को पकड़ने , धर दबोचने के लिए दूसरे देश में बिना किसी अनुमति के घुस सकता है , और इस दबिश की प्रक्रिया में उसका इनकाउंटर भी कर सकते हैं |

* चलो दलितों के घर में जो कुछ रहा सहा अनाज खाद्यान्न है , हम भी रोटी - भात - पकोड़ियाँ खाकर समाप्त करें , जिससे उनकी आत्महत्या का मार्ग प्रशस्त हो | हमारे युवा नेता राहुल बाबा खा ही रहे हैं !

* [ सोद्देश्य Objective नास्तिकता ] * हमसे यह कहा जा रहा है कि यदि आपकी नास्तिकता मनुष्य को उच्चतर बनाने के उद्देश्य से है तब तो हम ( मित्र ) आपके साथ हैं | लेकिन यदि आपका उद्देश्य केवल ईश्वर के न होने का प्रचार मात्र है तो हम आपके साथ नहीं हैं आप चाहें तो हमें ब्लाक कर सकते हैं | इसपर मैं सोच रहा हूँ मुझे / हमें अपनी सीमाएं पहचान लेनी चाहिए , और स्वीकार कर लेनी चाहिए की हम इतना ही कर सकते हैं | संक्षेप में कहूँगा - मनीषियों ने ईश्वर गढ़े कि इससे इंसानियत बढ़ेगी , फैलेगी | तो इन्सानियत तो आई नहीं लेकिन श्रीमान ईश्वर महोदयान जमें रह गये | अब ठीक है कि हमारी भी नीयत यह है , कि मनुष्य - समाज और दुनिया बेहतरीन और नैतिक बने, लेकिन हमारी सीमा यह है की हम भगवान् विश्वकर्मा नहीं हैं जो संसार को दो चार दिन में अपने मानचित्र के अनुसार निर्मित कर दें | कोशिश भले करते हैं | लेकिन हमें इतना भर काम भी कुछ कमतर और कम महत्वपूर्ण नहीं लगता कि इंसानियत के पिरामिड तो इंसान बनाएगा - बनता रहेगा , किन्तु अभी तो हम ईश्वर महाशय के भ्रमजाल से निकलने का प्रयास कर रहे हैं , सप्रेम आपका - उग्रनाथ नागरिक

सही कहते हैं लोग , कि आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता , क्योंकि -
१ - आतंकवादी लोगों के धर्म पूछकर उन्हें मारते हैं |
२ - जिनका कोई धर्म होता है वे हमेशा अच्छे काम करते हैं ,
उदाहरण मुझसे न पूछिए , मैं न बता पाऊँगा |

* योजना -
वर पक्ष {श्रेष्ठ पार्टी } :)

* क्या मनुष्यों की निर्मितियाँ कम आश्चर्यजनक हैं , जो ईश्वर ईश्वर चिल्लाये जा रहे हो ?

* देखिये हम राजनीति से बाहर नहीं है | लेकिन बताएं हम इसे बुरा या गन्दा क्यों कहते हैं ? क्योंकि राजनीति करने वाले Political करेक्टनेस का जो ख्याल रखकर व्यवहार करने लगते हैं , वह बुरा है | क्योंकि इससे सत्य की हत्या न कहें तो ह्रास तो बहुत होता है |

* लड़कियों का बॉयफ्रेंड के मोटर साईकिल के पीछे बैठकर उसे दोनों हाथों से लपेटना |
मैं इसे उनकी परनिर्भरता , उनकी कमजोरी के रूप में देखता हूँ , न कि उनके प्यार के रूप में !

* आज एक रूसी लेखक व्लादिमीर नबोकोव के बारे में NBT में पढ़ने को मिला जिसके स्वभाव से मेरा स्वभाव कुछ मिलता है | वह कहते हैं - ' जीनियस की तरह सोचता हूँ , बच्चों की तरह बोलता हूँ ' | वह अपना इंटरव्यू भी लिखकर देते हैं |
अब न तो मई उतना जिनिअस की तरह लिखता हूँ , न उतना बोलने में असमर्थ हूँ | हाँ लेकिन अपने आप को बही मुखर करने में संकोच तो मेरा भी वैसा है |

* कभी मुझे संदेह होता था कि जो मैं कह रहा हूँ , वह शायद गलत हो | लेकिन आज तवलीन सिंह ने अमर उजाला में लिखा है :-
- कहना मै यह चाह रही हूँ कि पाकिस्तान से बातचीत करने या न करने से जेहादी हमले रुकने वाले नहीं | जेहाद वैश्विक स्तर पर हो रहा है और भारत ख़ास निशाना है जेहादियों का | पर आज तक सरकार ने जेहादियों को हराने की स्पष्ट रणनीति नहीं बनायीं है , क्योंकि हमारे सेक्युलर राजनेता डरते हैं की अगर कहीं उनके मुँह से जेहाद शब्द निकल गया , तो मुस्लिम मतदाता नाराज़ हो जायेंगे | "
[ अजीब संयोग है , मैंने अपने एक मित्र से यह कहकर नाराजी मोल ली थी की 'आप लोग मुसलामानों से डरते हैं ' :) ]

* आस्तिकता एक भटकाव है , और कुल मिलाकर भक्त ( आदमी ) का बड़ा नुकसांन करती है |

* हाँ , नागाओं या दिगम्बर जैनियों का नग्नावरण एक विचार है , वस्त्र नहीं  | जैसे खादी के बारे में भी यही कहा जाता है | यह किसी एक व्यक्ति की हसरत नहीं , जीवन शैली की बात है | और इसमें कोई अश्लीलता नहीं है |

* हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं है तो नहीं है | गलत या सही यह नाम तो पड ही गया है , एक कौम, एक जनसमूह के लिए | किसी का नाम वह नहीं होता जो वह होता है | कोठे पर बैठी सावित्री का नाम सावित्री ही होता है |

* किसी खूसट महिला से अगर 'प्रेम' बोल दो तो वह बड़ा खुश होती है !

* प्रेस सम्मेलन में अब तो यह भी बोल दो राहुल बाबा , कि देश ( पार्टी ) एक व्यक्ति चला सकता है !
[ अभी तक तो नहीं मानते थे , कहते थे देश व्यक्ति से नहीं चलता | और अभी खुद साकार के अध्यादेश को अकेले पलट दिया ?]

* मैं भी देख आया | दीपा ( अग्रवाल ) साहसी हैं जो इतनी आलोचना कर पायीं | मेरी हिम्मत नहीं है | क्योंकि सिनेमा आरभ होता है हनुमान जी की तस्वीर और गायत्री मन्त्र से | कुछ लिखूंगा तो ईशनिंदा , Blasphemy में धर लिया जाऊँगा :) | + यह प्रौढ़ों की नहीं बचकानी फिल्म है | 'A ' का मतलब प्रौढ़ की , प्रौढ़ों के द्वारा , प्रौढ़ों के लिए प्रौढ़ों की ख़ास समस्याओं पर आधारित होना होता है | ऐसा कुछ नहीं इसमें | एक पौराणिक या गढ़ी हुई कथा सुनाता हूँ | इंद्र दरबार में ऐसा ही कैबरे हो रहा था | संत ऋषि मुनि सब बैठे थे | नर्तकी एक एक कर सारे कपड़े उतारती गयी | ( बीच में टपक कर बता दूँ कि इस कथा ने मेरे जीवन और सोच को बहुत प्रभावित किया और मैं इसके माध्यम से प्रौढ़ बना | इसका विम्ब मेरे अन्य ,अनेक चिन्तन में भी देखा जा सक ता है ) | जब शरीर के सारे कपड़े उतर गए तब मुनि बोले - और उतारो बेटी , अभी तो तुमने तमाम और भरी कपड़े लाद रखे हैं { उनका आशय आत्मा से था / मुझे आंसू आ रहे हैं यह लिखते }| तो हम तो वह लोग  हैं | ज्ञान की पराकाष्ठा तक जाने को उत्सुक ! इतनी नग्नता क्या है ? इतना और इससे भी ज्यादा तो हम पहले से जानते थे | हाँ , निश्चय ही कुछ लौकिक ( सेक्सिस्ट भी ) समस्याएं होती हैं एडल्ट्स की | बननी चाहिए वैसी फिल्म , फिर देखेंगे [ Ref - Grand Masti ]

* करो ज्ञान से प्रेम (ज्ञान भक्ति )
यूँ समझें मानो दो कोठरियां ( निकाय, faculties ) हैं
ज्ञान - तर्कविचार और भक्ति भावना - प्रेम -अनुराग की
तो दोनों भरी होनी चाहियें
अन्यथा तर्क की कोठरी अंधभक्ति भर जायगी
( surface tension, पृष्ठ तनाव का नियम जानते हैं न ? इसी से जलेबी में चासनी जाती है )
और भावना के कक्ष में भर जायेंगे कुतर्क |
फिर दोनों में विरोध कहाँ है
अंतर अवश्य है , तो अंतर तो बेटा बेटी में भी है
तो क्या उनका बराबर भरण - पोषण नहीं करते ?
अतः ज्ञान से प्रेम करो , और
प्रेम के दुवरिया पर ज्ञान का सिपाही बैठाओ
तभी दोनों बचेंगे और ज़रूरत दोनों की है संतुलित जीवन के लिए |
प्रेम का मार्ग है तो यह ज्ञान तो होना ही चाहिए कि
तुम्हारा प्रेमपात्र कौन है , किस दिशा में है ?
किस मंजिल पर किस नम्बर के फ़्लैट में रहता है वह ?
या मैं कुछ गलत बोल रहा हूँ ?
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* जाने क्या हुआ था
कुछ ठीक याद नहीं ,
लेकिन कुछ तो हुआ था
और वह अभी तक
हुआ ही है |
#   #

* अहं ब्राह्मण
अहं शूद्रवर्णं च
अहं मनुष्यं |

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