गुरुवार, 19 सितंबर 2013

नागरिक पत्रिका 16 से 20 सितम्बर तक

" नैतिकता ही ईश्वर है "

* जो भाषा जुबान को जितना तोडती है, वह उतनी ही अच्छी होती है |

* आंसू, रुदन, विलाप स्त्री कि कमजोरियां हैं | न हों तो भी , पुरुष इन्हें इसी तरह समझता है |

* धर्म क्या सिखाता है, हम जानते हैं | हमें न सिखाइए |

* संस्कृति का अर्थ है - हया , शर्म , पर्दा और बनावट | प्रकृति को छिपाना ही संस्कृति, तहजीब का आशय है | ( विवाद अस्वीकार्य, इस पर खुद सोचें )

* ईसाई धर्म आसान था | बस विश्वास, एक चर्च, एक पोप ! इसलिए वहाँ, यूरोप में सेक्युलरवाद उसे हटा कर राज्य पर आसीन होने में सफल हो गया | लेकिन हिन्दुस्तान में तो धर्म आदमी के पैर के नाखून, हस्त की रेखाओं से लेकर तारे सितारे, ग्रह नक्षत्र, अन्तरिक्ष, ब्रह्माण्ड तक व्याप्त है | क्या कर लेगा सेक्युलरवाद  इसका ? उलटे उसी को यह संस्क्रति पट्टी पढ़ा देगी | यहाँ का ईश्वर कहीं ऊपर, अन्य लोक में रहता ही नहीं, यहाँ तो रोम रोम में राम का वास है | तो " इहलौकिकता " की परिभाषा वाला सेक्युलरवाद इसे क्या लौकिक बनाएगा ? यहाँ तो सब कुछ लौकिक ही है | यहाँ के धार्मिक पदों का नाम ही श्लोक है - इसलोक ? ha ha ha        

* लोहे की रॉड का डाला जाना :
मैंने हर काण्ड के बाद यह लिखकर सुझाया कि बलात्कारियों के मनोविज्ञान का अध्ययन कर लिया जाना चाहिए, उनकी फांसी से पहले | हाँ लेखकों को भी उनके साथ कुछ समय रह , बिताकर तभी उनके ऊपर कथा - उपन्यास लिखना चाहिए | लेकिन हमारे लेखक इतनी मेहनत नहीं करना चाहते | और देखिएगा इसी विषय पर रचनाओं की मनगढ़ंत झाड़ लगा देंगे |
तो मेरे सुझाव का कोई असर विश्वविद्यालयों - शोध संस्थाओं पर कुछ हुआ इसकी कोई सूचना नहीं है | लेकिन मुझे एक पतला सा सूत्र मिला है =
कथाकार शिवमूर्ति जी की एक कहानी है ' तिरिया चरित्तर ' | उस पर किसी ख्यात कला फिल्म निर्देशक ने उम्दा फिल्म भी बनायीं है और उसमे नसीरउद्दीन शाह जैसे मंजे कलाकार ने काम किया है | कहानी यह है कि श्वसुर अपनी पुत्रबधू से सम्बन्ध बनाने में असफल होने पर उस पर छिनाली का आरोप जड़ देता है और फिर पंचायत से सजा का निर्णय कराकर उसकी योनी में लोहे का रॉड घुसेड देता है |
साहित्य में यूँ ही अतिशयोक्ति होता है, फिर कथाकार कुछ प्रगतिशील जैसे भी हैं | उन्होंने सोचा होगा कि नारी पर जितना वीभत्स अत्याचार पुरुष द्वारा किया जाते वह कहानी में दिखायेगा  , कहानी उतनी ही सफल होगी | और हुई भी | कहानीकार को बड़ी प्रसिद्धि और सम्मान मिले | फिल्म निर्माता को भी उसी अनुपात में प्रशंसा ज्ञापित हुई होगी | स्मरण तो नहीं , लेकिन शायद इस पर नाटक का भी सफल मंचन हुआ है |
लेकिन उन्हें क्या इल्म था कि इस कहानी को दिसम्बर माह में कुछ युवक एक रात चलती बस में साक्षात् एक लड़की के साथ करके दिखा देंगे ! अभी उन युवकों को फ़ासी की सजा हुई है |
कहते हैं साहित्य समाज का आईना होता है | इस दृष्टि से तो लेखक की दूरदृष्टि की सराहना ही करनी होगी | लेकिन यह भी तो कहा जाता है कि समाज साहित्य से सबक लेता है |
फिर भी लेखक को इस हेतु दोषी नहीं ठहराया जा सकता | संभव है उनका उद्देश्य समाज के परिमार्जन का रहा हो | उन्होंने सोचा हो कि इसे पढ़कर समाज स्त्रियों पर घिनौने अत्याचार करने से विरत होगा | और सचमुच एवं निश्चय ही जनमानस इसके विरोध में उमड़ पड़ा | मोमबत्तियां, जुलूस, धरना, घेराव कि बाढ़ आ गयी | नतीजा, पहले वर्मा आयोग बना, फिर त्वरित सुनवाई करके दोषियों को रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर दंड, मृत्युदंड दिया गया |
लेकिन एक बात तो दिमाग से उतर ही नहीं रही है | कि इस सब के लिए एक युवती को अपना प्राण गवाँना पड़ा | अब, उसे वीरता का कोई भी पुरस्कार इसके लिए दे दिया जाय अपनी ख़ुशी के लिए , उस कन्या के लिए इसकी क्या उपयोगिता ?

* पियजिया भी जानती है , वह इस्तेमाल की वस्तु है | इसलिए वह अपना भाव बढ़ा देती है |

* आदमी नग्न होना चाहता है , नग्न होता है | यह उसकी कुदरत का दबाव है | लेकिन जब वह नग्न होता है , उसे अश्लील कहकर अपमानित किया जाता है |

* राज्य धर्म से अलग नहीं रहेगा , असम्पृक्त, निस्पृह, | राज्य का अलग धर्म होगा | सारे धर्मों से अलग , सबसे सशक्त , सबसे ऊपर | वह होगा राजधर्म |

* ज्यादा प्रेम व्रेम के चक्कर में मत रहिये | और यह जानिये कि यदि आप नहीं चाहेंगे तो नहीं ही पड़ेंगे | और  दिक्कतों से बचेंगे, बदनामियों से छुटकारा पायेंगे | और यदि प्रेम , इश्क करना ही चाहते हैं , तो आपके लिए मुश्किलों का अम्बार, कठिनाईयों का साजोसामान, कैद जेलखाने का इंतजाम , या कहें जिंदगी के नर्क का द्वार तो सामने खुला ही हुआ है |

* मुझे अनुभव हो रहा है कि हमें अपने बाप दादा का कहना मान लेना चाहिए | तरुनाई युवावस्था में प्रगतिशीलता के प्रभाव में उस समय तो लगता है जैसे हम बहुत बड़ी तोप मार रहे हैं | लेकिन समय बीतने के साथ पता चलते है कि नहीं यार , उनकी बात सही थी , अनुभवजन्य | वह ठीक कहते थे | और बाद में पछताना पड़ता है | लेकिन मित्रो , बात यह भी है कि यदि उनकी सभी बातें याद की जाएँ तो मिलता है कि उनकी कुछ बातें निश्चय ही गलत थीं और उन्हें न मान कर हमने अच्छा ही किया | ऐसे में क्या किया जाय ? शत प्रतिशत कुछ भी, कोई भी सत्य नहीं !

* विस्तार में जाने का समय नहीं है लेकिन मैं यह कहना चाहता हूँ कि Secularism का भारतीय परिप्रेक्ष में आशय न धर्म निरपेक्षता है न पंथ निरपेक्षता | हो भी तो स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए , न यह चलेगा ही | क्योंकि कोई भी राज्य इन , फ़िज़ूल ही सही , कर्मकांडों से निरपेक्ष, अलग, कटा हुआ, विरक्त कैसे रह सकता है ? वह भी तब, जब ये समाज - समुदाय में पूरी तरह सक्रिय भूमिका में हों ? धर्म और पंथ दोनों में आध्यात्मिक पुट है, और राज्य उसे सँभालने में असफल होगा क्योंकि उसके पास इसके औजार, मशीनरी नहीं हैं |
इसलिए इसको बस एक अर्थ दीजिये - "" राजधर्म "" | राज्य अपने क्रियाकलाप , अपनी फंक्शनिंग स्वयं संविधान के अनुसार तय करेगा और उसे धार्मिक संस्थाओं पर भी लागू होना होगा | आँख मूंदने से काम नहीं चलेगा , वरना धर्म राज्य पर हावी होंगे | जब कि इसे स्पष्ट, सख्ती से घोषित करना होगा कि राज्य धर्म से ऊपर होगा | तभी राज्य काम कर पायेगा न्याय पूर्वक | यह त्रुटिपूर्ण चिन्तन होगा कि राज्य धर्म से अलग रहेगा और / अथवा राज्य धर्म में कोई दखल नहीं देगा | क्योंकि यह निश्चित है कि धर्म तो राज्य में पूरा प्रवेश करने का प्रयास करेगा | अतः भारतीय सेक्युलर वाद में राज्य की सुप्रिमेसी धर्म पर रखनी होगी | यदि आज़ादी और लोकतंत्र बचाना है तो ! नहीं तो धर्म राज्य को खा जायेंगे |    


* भारत में हिन्दू राज्य से मेरा मतलब यह है कि यहाँ केवल हिन्दू को ही पाखंडी , अन्धविश्वासी या जैसा भी, होने का अधिकार होगा | अन्य समुदायों को नहीं | जैसे वह अपने बच्चों को संस्कृत या वेद पढ़ाना चाहे , अथवा पुलिस लाईन में जन्माष्टमी मानना चाहे तो वह ऐसा कर सकता है |

* स्त्री और पुरुष की, हर स्त्री और प्रत्येक पुरुष की आवाज़ों / कंठध्वनियों में अन्तर क्यों होता है, कैसे हो पाता है ? जिससे हर व्यक्ति उसकी आवाज़ से पहचाना जा सकता है , जैसे कि किसी भी व्यक्ति का चेहरा किसी अन्य व्यक्ति के चेहरे से पूर्णतः नहीं मिलता | आखिर इतनी बड़ी जनसंख्या बनाने वाली प्रकृति ऐसा कर कैसे लेती है और क्यों करती है | उसकी मंशा क्या होती है ? कहीं यह जताना तो नहीं कि हर व्यक्ति विलक्षण है , उसमे कुछ विशिष्ट गुण हैं ?

अनुचित बात : द्वारा अनुचित आदमी (अ आ)
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* शादी का मतलब है बिस्तर बिछौने में तो आधी, लेकिन सम्पात्ति में पूरी की पूरी हिस्सेदारी !

* दवा का पैसा इतना नहीं , जितना डाक्टर की फीस खल जाती है !

* ज्यादा पढ़े लिखे विद्वान लोग जाने क्यों साधारण - सामान्य बुद्धि से ज्यादातर हीन होते हैं !

* सॉरी मित्रो , यह समाज , यह दुनिया इतनी पाशविक हो चुकी है कि मुझे नहीं लगता हमारा कोई मानववादी काम इसमें कुछ प्रभावी हो पायेगा ! अब तो मैं इसे छोड़ने जा रहा हूँ | मुझमें ताक़त नहीं बची | सहमति - सहयोग भी उत्साहवर्द्धक नहीं | बस मनोरंजनार्थ करना रह गया है, क्योंकि इस काम में मुझे आनंद मिलता है | वरना मैं करता कुछ नहीं - - - -

* दुनिया के पापों में से कुछ की ज़िम्मेदारी औरतों को भी लेनी चाहिए | मसलन - शारीरिक संबंध !

* हम नहीं कहते | यह तो , आप ही तो एक स्पष्ट आतंकवादी को ' मुसलमान ' कहते हो !

* मार्क्स जी यहूदी थे | मार्क्सवादी यहूदियों के दुश्मन के दोस्त बने हुए हैं !

* बातों को एक बित्ता तूल तो दिया जा सकता है , लेकिन उसे एक योजन तक तो नहीं बढ़ाया जा सकता !

* जब तक लडकियाँ अपने मन के प्यार के लिए खुद आगे नहीं बढ़ेंगी , तब तक उनके साथ बलात्कार होता रहेगा | चाहे माँ बाप द्वारा विवाह बंधन में बाँधी जाकर, अथवा मनचलों द्वारा अगवा की जाकर | ठीक भी है | हम पुरुष औरतों के लिए सेक्स समाधान के उपाय करना अपनी ज़िम्मेदारी समझने लगते हैं |

* मेहनत का कोई विकल्प नहीं | न कभी था, न है, न कभी होगा | दुनिया कितनी भी तकनीकी तरक्की कर जाय !

* दुनिया की बुराइयों में से कुछ की ज़िम्मेदारी औरतों को भी लेनी चाहिए |

* यदि अविवाहित Sex & Progeny पर ऐसे ही प्रतिबन्ध रहा , तो मुझे संदेह है कि भारत में कोई दानवीर कर्ण और संसार में कोई ईसा मसीह पैदा होगा !!

* सिनेमा, कहानियों , उपन्यासों के छोटे छोटे सम्वादों पर रोने, टेसुयें बहाने वाला यह आदमी कब कैसे अपने अन्दर इतनी क्लिष्ट क्रांतियाँ पाल बैठा , कि कुछ कहा नहीं जा सकता ?

* हम आसाराम जी के आभारी हैं कि उन्होंने यह सिद्ध करने में हमारी सहायता कि, उदहारण प्रस्तुत किया कि कोई भगवान् नहीं होता , देवदूत या परा मानव | सारे कथित ढोंगी बाबा लोग साधारण इंसान ही होते हैं, अपनी इंसानी अच्छाईयों - बुराइयों के साथ | और यह भी कि इन पर अंधश्रद्धा और धर्म का धंधा बुरी चीज़ है |

* धार्मिक राजनीति ( धारा )धर्म, जाति, अध्यात्म का रिश्ता हिन्दुस्तान से समाप्त नहीं हो सकता | और इन सबका सामाजिक जीवन से, राजनीति से | वही है यह |

* अभी तक तो हम अंधविश्वास और निरीश्वरवाद आदि का हवाला देकर लोगों से अमरनाथ - केदारनाथ आदि जगहों पर जाने से मना करते थे | लेकिन अब किस मुंह से, किस बात का सन्दर्भ देकर , क्या कहकर मना करें कि हिन्दुओं मुजफ्फरनगर मत जाओ  ?

* मैं कुछ नहीं हूँ | तो बताइए मैं क्या हूँ यदि हिन्दू नहीं हूँ ? कुछ न होना ही हिन्दू होना है | और कुछ भी होना भी हिन्दू होना है | उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता कि व्यक्ति यदि हिन्दू है तो वह क्या होगा ? आस्तिक नास्तिक या किसका पूजक ! क्या मानता होगा क्या खाता पीता होगा ? कोई स्थायी गुण या अवगुण उस पर चस्पा नहीं किया जा सकता | लेकिन आखिर कुछ न होने को भी कोई नाम तो देना होना होता है पहचान के लिए ? बस यही है हिन्दू ! ऐसा ही माना जाना चाहिए हिन्दू को |

* हम वह लड़ाईयाँ लड़ते हैं जो धर्म और ईश्वर के समाप्त होने के बाद लड़ी जाती हैं | इसलिए जैसे ही हम अपनी कोई तलवार उठाते हैं , धर्म सामने आ जाता है | एक दो कदम आगे रखना चाहते हैं, ईश्वर राह रोक खड़ा हो जाता है | हम हैं न मियाँ, अभी तुम्हारे लड़ने के लिए ! आगे कहाँ जाते हो ? और हमारा सारा प्रयास  टायँ - टायँ फिस्स हो जाता है |

* दंगे की ही बात नहीं है | आज़म खां ने भाई - भतीजे के साथ सामान्य वफ़ादारी नहीं दिखाई | कि अखिलेश सरकार को चलने दें, सहयोग करके उनका नाम रोशन करें ! रास्ते में रोड़े और नखरे अटकते रहे | उनका यह कृत्य आलोच्य है , और शायद इस्लाम के भी बरखिलाफ !

* अब किया यह जाना चाहिए कि दंगे में जो मुस्लिम परिवार प्रभावित हुए हैं , उनकी मदद की जाय | और यदि कोई आरोपित पुरुष सदस्य मुसलमान होने के नाते गिरफ्तार किया गया हो तो फारूकी साहब के लिए भले " सोचने " की बात हो , हमारे मन में कोई संदेह नहीं है कि वह निर्दोष हैं और उन्हें छोड़ दिया जाना चाहिए !
( हम विमूढ़ )

[कविता ]
* लड़की ने कहा - हाँ
लड़के ने कहा - हाँ ,
मम्मी ने कहा - ना
पापा ने कहा - ना |

लड़की ने कहा - हाँ, लड़के ने कहा - हाँ ,
मम्मी ने कहा - हाँ
पापा ने कहा - ना |

लड़की ने कहा - हाँ, लड़के ने कहा - हाँ ,
पापा ने कहा - हाँ
मम्मी ने कहा - ना | 

लड़की ने कहा - हाँ, लड़के ने कहा - हाँ ,
मम्मी - पापा ने कहा - हाँ 
जाति - कुल - गोत्र ने कहा - ना |

लड़की ने कहा - हाँ, लड़के ने कहा - हाँ ,
मम्मी ने कहा - हाँ
पापा ने कहा - हाँ |
खाप पंचायत ने कहा - 
यह ले गोली , खा गंडासा 
स्वर्ग लोक को जा !
#  #  #

* कैसे मना करूँ ?
कोई झूठ ही
बोल रहा है
मैं तुमसे
प्यार करती हूँ !
#   #

* इतना नहीं
बिगड़ा है समाज
जितना हौव्वा !

* ऐसी की तैसी
गुमनाम मित्रो की
फेसबुक की !

* थोड़ी सी आड़
मिले तो प्यार करें
धर्म की सही !

* धर्म क्या तो है,
ज़िन्दगी की नीतियाँ
न कि पाखण्ड !

* सोचता तो हूँ
संभल कर चलूँ
चल न पाता |

* सोचता तो हूँ
गलतियाँ करता
फिर सोचता |

* या तो सोते हैं
हम जीवन भर
या जागते हैं |

* करते काम
सब स्वार्थ के लिए
अपने लिए |

* वापस लेता
आज अपनी बात -
मैं आदमी हूँ !

* दरअसल
सच कोई नहीं है
सब झूठे हैं |

* मेरा दुर्भाग्य
मेरा मित्र रूठा है
अब क्या करूँ ?

* दिखावा नहीं
फिजूलखर्ची नहीं
मने त्यौहार !

* कुछ तो हूँ ही
कुछ नहीं हूँ तो भी
आदमी तो हूँ !

* तुमने भी क्या
मतलब निकाला
मेरी बात का !

* उन्हें तो मैंने
अभी देखा ही नहीं
देखन जोगू !

* महामानव
होना ही है, तो है न
आम आदमी !

* हर समूह
मूर्खों का जमघट
फेसबुक का |

* मैं क्या करता
सड़क धँस गई
मैं गिर गया |

* मेरी, उनकी
अलग तलब है
सूखे लब हैं |

* घोषित हुआ
मैं तो सांप्रदायिक,
कोई बताये
वह तो नहीं है न !
मुस्कराइए नहीं |

* रह पायेगी
भारतीय संस्कृति
कैसे तो ज़िन्दा ?
या इस मायने में
कोई भी संस्कृति ?

नए युग में
बच नहीं सकतीं
बदलने से |
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* उज्जवल जी बताते हैं कि किसी जनाब मार्क्स ने प्रसिद्ध पत्रिका Readers Digest में लिखा था - धर्म जनता कि अफीम है | लेकिन उलटे मुझे तो सारे मार्क्सवादी अफीमची ही दिखे !

* सेक्युलर व्यक्ति नास्तिक होता है | यदि इसे यूँ न भी मानें | तो तजुर्बा करके देखें , वह व्यक्ति अपने धर्म या मज़हब का उतना पाबन्द तो नहीं होता ! फिर उसे नास्तिकता तक जाने में कितनी देर लगती है ?

* अभी के मृत्यु दण्ड के फैसले के हवाले से हम जनजागरण की यह अपील तो कर ही सकते हैं, कि देखिये , आदमी किसी भी राक्षस, भूत -प्रेत से कम नहीं है | इसके अतिरिक्त किसी अन्य पिशाच, चुड़ैल आदि पर विश्वास मत कीजिये | न उन्हें भगाने के लिए किसी ओझा - सोखा- बाबा - दाई के  तंत्र मन्त्र का सहारा लीजिये | हमारे डॉ डाभोलकर की बात मानिये |
- (हम सब डाभोलकर) संस्था |
और यह भी कि हो सकता है कोई नर पिशाच या नारी पिशाचिनी हमारे आपके अंदर भी हो | उसे भी भगाने के लिए पूजा -पाठ का नहीं आत्मबल पर भरोसा कीजिये |
वैसे नास्तिकता सारे पाखंडों का एकमुश्त आखिरी इलाज है |

* परेशानी तो होती ही है :
अपने घर से बाहर या जगह से काटने पर परेशानी सबको होती है , चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान | मुसलमान मार्क्सवादी या सेक्युलर भाई लोग सेक्युलर भारत को हिन्दू शासन कहकर इसकी आलोचना करते हैं कि यहाँ अल्पसंख्यक परेशानी में है | मैं यह कहना चाहता हूँ कि यह दशा स्वाभाविक है | अरब संस्कृति का पूरा मज़ा तो अरब में ही मिल सकता है | क्या समझते हैं हिन्दुओं को परेशानी नहीं होती ? अभी देखिये हरिद्वार के ड्राई होने के कारण ही तो वहां सपा की सभा नहीं रखी गयी ? इस बात को ध्यान में रखते हुए कि सम्मिलित होने वाले प्रतिनिधियों को असुविधा होगी | इसी प्रकार अयोध्या में मांसाहार प्रतिबंधित होने वहां कोई 'खाता पीता ' व्यक्ति कहाँ 24 घंटे रुकता है ? बस दौड़ भाग दर्शन कर अपने समुचित स्थान चला जाता है | मैं स्वयं कभी गुरूद्वारे या जैन धर्मशाला में नहीं रुकता, क्योंकि मैं सिगरेट पीता हूँ | इस मामले में मेरे लिए जामा मस्जिद के पास होटल मुफीद पड़ते हैं | लेकिन वहां कुछ दूसरी दिक्कतें होती हैं | कहने का आशय - कि परेशानी तो हो ही  जाती है |

* कुछ चीज़ें सचमुच बदली नहीं जा सकतीं | जैसे माँ - बाप से प्राप्त जीन्स , अपने DNA !

* पुनर्संरचना [ Restructuring God and Religion

* यदि ज्यादा झाम न फैलाया जाय, अंधविश्वास न बढ़ाया जाय , तो हमारे लिए " In Nature We Trust " के रूप में - " In God we trust " भी चल सकता है | 

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