मंगलवार, 3 सितंबर 2013

थोड़ा लिखना 1 / 9 से 4 / 9 / 2013

* नकलची नास्तिक ?
मुझे नहीं लगता कि नास्तिकों ने कोई मौलिक काम किया है नास्तिक होकर | काम तो किया है आस्तिकों ने किया - यह ईश्वर, वह भगवान् , इतने देवी देवताओं का आविष्कार करके , इधर उधर से काल्पनिक तथ्य खोजकर मोटे मोटे किताब लिखकर | नास्तिक ने सिर्फ उन्हें देखा है | वह देखता है कि सामने खड़े समूचे प्राणी को तुम कैसे पैर से पैदा बताकर उसे अछूत कर देते हो | चोरी बेईमानी घटियाही करते हो , अन्याय अत्याचार करते हो और तुम्हारा ईश्वर तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाता , रोक ही नहीं पाता | तब तुम कहते हो इसका फल स्वर्ग नर्क के माध्यम से या फिर अगले जन्म में मिलेगा | अब इतना इंतज़ार कौन करे ? तब नास्तिक कहता है - अरे , जब यही काम, यही व्यवहार, यही दिनचर्या करनी है तो हम तो इसे बिना ईश्वर को माने ही कर सकते हैं | और वह ईश्वर को नकार देता है | फिर अपनी बुद्धि विवेक भावना के बल और आधार पर जैसी भी जिंदगी जी पाता है जीता है | वह किसी ईश्वर को अपने कुकर्मों का आलम्ब नहीं बनाता |

- " वक़्त पर काम नहीं आया मेरा भगवान " --- DIG गुजरात वंजारा |
सुन लीजिये और गाँठ बाँध लीजिये - किसी के भी किसी भी काम नहीं आएगा भगवान |

* लखनऊ के एक पुलिस अधिकारी ने अपनी महिला सहकर्मी के हाथ पर दिल बनाया और लिख दिया - " I Love You " .
गलत बात | लिखना चाहिए था - " I Hate You " . तब वह शिकायत भी न करती , और अधीन काम भी ढंग से करती | कि साहब कहीं नाराज़ न हो जाएँ !
[ यह भी छेड़खानी हो गयी | आखिर वह उतने देर तक हाथ फैलाये क्यों रही जितनी देर दरोगा उसके हाथ पर लिख रहा था | वह फ़ौरन अपना हाथ खींच सकती थी | लेकिन तब शिकायत का आधार और पुरुष को बदनाम करने का मौका कैसे मिलता ? आखिर वह भी सिपाही है उसी विभाग में ! यह गलत परिपाटी है | इतना तो मान कर चलना होगा कि स्त्री पुरुष में आकर्षण स्वाभाविक है और यदि कोई अभद्र बल प्रयोग नहीं है तो उसे छेड़ खानी नहीं माना जाना चाहिए | I love you लिखने से हाथ नहीं कटता| ]
शायद यही सब देख कर इस्लाम कहता है - औरतों को घर में महफूज़ रखो | मैं महिला कांस्टेबल कि इस दबंगई की निंदा करता हूँ |

* मुसलमानों पर यह आरोप तो सरासर नाजायज़ ही है कि वह हिन्दुस्तान को अपना नहीं मानते | यह हो ही कैसे सकता है ? यह हो ही नहीं सकता | जब उनके नेता, धार्मिक नेता अमरीका जैसे अपने दुश्मन मुल्क तक को अपना बनाने पर तुले हैं तो भला वे हिन्दुस्तान को अपना क्यों न बनाना चाहेंगे | और बिना अपना समझे तो किसी को अपना बनाया नहीं जा सकता !
यही बात हिन्दू राष्ट्र्वदियों पर भी लागू है | लगता तो है कि उनके कृत्य देश को तोड़ने वाले हैं , लेकिन नहीं | वह भी तो विश्व बंधुत्व का भाव रखते हैं |
कहीं युद्ध इसी बात को लेकर तो नहीं , कि हर समुदाय पूरी दुनिया को अपना बनाना चाहता है, अपनी झोली में रखना चाहता है ?

* मैं इस बात से सहमत हूँ कि हिन्दुस्तान में हिन्दू आतन्कवाद से सख्ती से निपटा जाना चाहिए | क्योंकि यह उनका राष्ट्र है , हिन्दू राष्ट्र है | वही जब देश की बदनामी करेंगे, मेंड़ ही खेत खायगा तब देश क्या रहेगा ?
इससे , उनके कृत्यों से एक तो राष्ट्र हित  प्रभावित होता है , दुसरे इसके चलते भारत को हिन्दू राज्य  बनाने की हमारी कोशिशों , तर्कों - दलीलों को धक्का लगता है | तीसरे जब हिन्दू राज्य बन जायगा तब यही आतंक वादी उस राज्य के लिए सर दर्द बन जायेंगे, खतरा साबित होंगे |और उसे चलने न देंगे यदि इनकी ऐसे ही चलने दी गयी और ये धीरे धीरे ताक़त ग्रहण कर ले गए | जैसा कि पडोसी पाकिस्तान में हो रहा है | इसलिए क्या कहा है कि - Nip the evil in the Bud | इनसे अभी से निपटते रहना चाहिए , भले हम इनकी पीड़ा समझते हैं | इन्हें हिंसा के खून का स्वाद न चखने दिया जाय | इसलिए हाय मुस्लिम -हाय मुस्लिम जैसी बात हम न करें | चिंता करें हिन्दू राज्य की | वह क्या होगी , कैसी होगी , दलितों अल्पसंख्यकों को पूरा सहारा , सहयोग और संरक्षण होगा ,किस प्रकार बेहतर तरीके से होगा ,यह हमें अभी से अपने व्यवहारों और राज्य की संस्थाओं के माध्यम से प्रकट - प्रदर्शित करना चाहिए | जिससे लोग इसकी प्रशंसा करें , इसकी और आकर्षित हों | हमारा काम आसान हो , मार्ग प्रशस्त हो |

* क्या करें ? इतने सारे तो इश्वर और भगवान् हो गए हैं , किसको मानें किसको न मानें ?

* जब सुकरात से लेकर गौतम बुद्ध , कबीर , रैदास से होते हुए महर्षि अरविन्द , जे. कृष्णमूर्ति तक नहीं समझा पाए , तो हम तो उनके मूली भला क्या समझा पायेंगे ?

* कव्वाली -
कुछ झूठ कहा कुछ सच बोला
लेकिन यह बात सही तो है ,
सब झूठ कहो सब सच बोलो
दुनिया में गुज़ारा होता क्या ?

* हिन्दुस्तान अपने नाम से तो हिन्दू राष्ट्र है , लेकिन राज्य तो सेक्युलर है हमारा | अर्थात हम हिन्दुत्व  को किसी के ऊपर राज्य कि शक्ति के बल पर थोप नहीं सकते , जैसा कि अतीत में राजाशाही काल में होता आया है | वैसे हम चाहें भी तो भी हिंदुत्व को किसी के ऊपर लाड नहीं सकते | हम तो स्वयं उसके निरर्थक, अनुपयोगी, अनावश्यक भार [वज़न] को शनैः शनैः उतार रहे हैं |

* अल्पसंख्यक होने के साथ एक  परसंख्यक होने का भाव भी जुडा है | एक परायापन महसूस करते हैं वह |  अथवा बहुसंख्यक को अनुभव कराते हैं कि देखो - हम पराये हैं | दोनों बातें हैं , और अल्पसंख्यक वाद का यह खतरनाक पक्ष है | वर्ना अल्पसंख्यक तो तमाम वे भारतवासी हैं जो ह्रदय से मानवता और राष्ट्र के हितैषी हैं , जाति सम्प्रदायवाद, नोच खसोट वाद के खिलाफ है | तार्किक बुद्धिवादी , वैज्ञानिक मिजाजी अथवा नास्तिक हैं |

* आया मुझको
करते ही करते
थोड़ा लिखना

जिसकी आस्तिक होना हो वह मुसलमान हो जाय | आस्तिकता की इसे बड़ी मिसाल कोई नहीं |
जिसको धार्मिक होना हो वह हिन्दू हो जाय } धार्मिकता का इतना बड़ा माया जाल और कहीं नहीं |
जिसको ईश्वरविहीन नैतिक मनुष्य होना हो वह यहीं रहे |


हमारा एक धुन = ईश्वर नहीं है |
हाँ आदमी हैं ,
हम हैं तुम हो ,
आसाराम बापू हैं '
आसाराम बापू आदमी हैं '
हम सब आदमी हैं ,
कोई ईश्वर नहीं है |

* ईश्वर से भेंट हो तो ज़रा पूछकर बताइए | उसने हमें बुद्धि दिया ही क्यों जब हमें उसका प्रयोग करना नहीं है | यदि प्रयोग कर दें तो सबसे पहले ईश्वर ही निरर्थक साबित होता है ?
दुसरे यह भी कि उसने हमें मानव योनी में ही क्यों पैदा किया ? जीव जंतु , कीड़े मकोड़े हम क्या बुरे होते ?

" कोई नहीं है ईश्वर अल्ला
दरवाजे पर नहीं है पल्ला |"
सुबह नींद खुलने पर यह सिद्ध मन्त्र साढ़े तीन बार पढ़ो | तभी उठकर दरवाज़ा खोलो |
तुम्हारा दिन शुभ होगा | पत्नी या पति चाय नाश्ता खाना सब देगी / देगा | आफिस में बॉस खुश रहेगा  | परीक्षा में उत्तीर्ण होगे | कचहरी में जीत होगी | शीघ्र संतान होगी |धन सम्पत्ति घर आएगा |
जो राम नाम , ईश्वर अल्ला जपता बिस्तर छोड़ेगा , उसका सारा दिन चिंता और दुःख में बीतेगा |

* राष्ट्र वादी =
एक कहानी याद आती है , कहीं पढ़ी हुई | कम से कम १९६६ के पहले , क्योंकि मैंने इस कथा का उल्लेख तब एक अधिकारी कि विदाई पार्टी में किया था |
कोई विदेशी भारत भ्रमण के बाद स्वदेश लौट रहा था | टेक्सी से एअरपोर्ट के रस्ते में ड्राईवर ने विदेशी से प्रतिक्रिया पूछी | विदेशी ने उसे वह बताया जो कटु था उचित न था | पहुँच कर विदेशी उसे किराया देने लगा तो ड्राईवर ने कहा -किराये के बदले मुझे एक आश्वासन दीजिये | इस बुरे अनुभव का ज़िक्र आप अपने देश में किसी से न करें |अन्यथा मेरे देश कि बदनामी होगी |
मेरे ख्याल से उस ड्राईवर को राष्ट्रवादी घोषित करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए |

* DHISHUM =
धर्म और ईश्वर से ऊबे मनुष्य
( ढिशुम )

* लोग हमारी नास्तिकता से बड़े खफा रहते हैं | अच्छे लोग हैं धार्मिक जन , नहीं देखते धर्मों की बुराई , सुन भी नहीं सकते बेचारे - अंध आस्था के मारे | उनसे हमारा आदरपूर्ण निवेदन है कि परेशान न हो , और हमें अपना काम करने दें | जिसको हमारी बात सुननी होगी सुनेगा , माननी होगी मानेगा , अन्यथा नहीं मानेगा | आप अपना काम कीजिये , कर ही रहे हैं | आखिर हम उतना बुरा काम तो नहीं कर रहे हैं जितना आपके फलां फलां और फलां कर गये , और कर रहे हैं | फुर्सत और हिम्मत हो तो उनसे भिडीये

* कोई माई का लाल ईश्वर नहीं है जो मनुष्य को समझा सके | वह खुद समझेगा तभी समझेगा कि ईश्वर नहीं है |

आसाराम प्रकरण पर कुछ विचारणीय बिंदु ( विचार नहीं )
* बालिग़ नाबालिग का मापदंड कानून की किताब का , वरना - -
* यौन शोषण की परिभाषा आपकी , वरना - -
* सारे कानून आपके बनाये हुए - - प्रकृति तो अपना काम - -
* आकर्षण और motivation तो प्राकृतिक - -
आगे आप ले जाएँ बात को --
- दोषी प्रकृति है या मनुष्य
* आस्तिक धार्मिक बताएं | वे तो इस बुराई से मुक्त होने का दावा और वादा करते हैं ? फिर कहाँ चली गयी आत्मसंयम भरी गुरु की वाणियाँ ?
* उमा भारती कैसे कह सकती हैं कि वह ' ऐसा नहीं कर सकते ' ? क्या मात्र इस अनुभव पर कि उनके साथ ऐसा हादसा नहीं हुआ, संभव नहीं हो सका ?

* वह होता , तो निपटा न देता हमारा झगड़ा कि वह है कि नहीं है ?

* आपके लिए है तो है | हमारे लिए ईश्वर नहीं है |

* आखिर मुद्दा तो नीति और नैतिकता का है न ? तो यह तो आपने देख लिया कि ईश्वर और धर्म इतने समय से यह काम कर रहे हैं और वे असफल रहे हैं | तो अब कुछ दिनों के लिए मनुष्य की सत्ता मनुष्यों को , धर्म विहीन नास्तिकों को सौंपने में तुम्हे क्या परेशानी है ? आखिर कितने दिन अकेले राज करोगे और किसी अन्य को नहीं आने दोगे ?

* हम आस्तिक हैं या नास्तिक | हम आस्तिक कैसे भी हैं या कैसे भी नहीं हैं | हम कैसे नास्तिक हैं , कितने है, किस प्रकार के हैं , क्यों है ? इत्यादि | ये सारे प्रश्न निरर्थक हैं , और आप क्या करेंगे जानकर | आप तो आस्तिक हैं ? हम आपसे यह बताते हैं कि हम नास्तिकता का प्रचार करते हैं | हमें इसका काम ऊपर से एलॉट हुआ है | सो हम कर रहे हैं | आपको जो काम मिला है वह आप करिये | यदि आप पैसे कि भाषा समझते हैं तो समझिये कुबेर जी ने हमें इसके लिए पैसा दिया है | यदि आप भाग्य वादी हैं तो समझिये चित्रगुप्त महाराज ने हमारे भाग्य में यही लिखा है | यदि आप कर्मवादी हैं तो जानिये श्री कृष्ण ने हमें ऐसा ही उपदेश दिया है | कर्मफल मानते हैं तो हम फिछले जन्म की सजा भुगत रहे हैं | और ईश्वर को मानते हैं तो ईश्वर ने कहा कि अब मैं अवतार नहीं लूँगा , तुम लोग जाओ और यह काम करो | तो भाइयो , हम तो हरि इच्छा पूरी करने में लगे हैं | अब तुम इसे मानो या न मानो तुम्हारी मर्ज़ी } हमारा क्या है ? जब दोजख और नरक में धकेले जाओगे तब पता चलेगा | तब हमारी बात याद आएगी के वे कहते थे ' मनुष्य बनो, मनुष्य ही रहो ' | तब पछताओगे | इसलिए अभी मान लो तो बेहतर | कि इश्वर नहीं है , किसी कि पूजा पाठ न करो , किसी भी सीमा तक मनुष्य  बनो | हम तो चाहते हैं भगवान् तुम्हारा भला करे |
( नास्तिकता प्रचार दल)

* क्या बुरा नहीं लग रहा है कि कोई एक ईश्वर इतने पुराने सडे, गंधाये कपड़े पहने, बिना नहाए धोए , इतने दिनों से मनुष्यों के बीच रह रहा है ?

1 - महा प्रश्न =
" क्या यासीन भटकल 'मुसलमान ' है फारुकी साहेब ? "
इस सवाल का जवाब आपके अलावा यदि बड़े बड़े कुछ इस्लामी उस्ताद - जाकिर नायक , बुखारी सरीखे लोग देते , तो हमे भी उनसे उलझने [ क्या तक़रीर सुनने ] में मज़ा आता | हमारी बड़ी रूचि है इन विषयों में , और बड़ी खोज खबर ली है | ऐसे ही नास्तिक नहीं हुए हम !

2 - * आप तो गिरफ्तार नहीं हुए कमाल फारूकी साहेब ? आप मुसलमान नहीं हैं  क्या  ?

3 - एक अप्रिय स्थिति का अनुमान मुझे हो रहा है | जब हम नास्तिकों की अल्पसंख्यक राजनीति करेंगे तो यह ज़रूरी नहीं कि हम केवल हिन्दू का विरोध करें | हम समानांतर मुस्लिम राजनीति का भी विरोध कर सकते हैं , और सहधर्मी नास्तिकों की राजनीति का भी | और हमारा यह रुख सेक्युलरों और कम्युनिस्ट मित्रों को नागवार लग सकता है |

४ - सोचना पड़ेगा , सोचना तो पड़ेगा =
सपा के जनाब कमाल फारुकी साहेब के बयान का तर्ज़ और लय मुझे इतना प्यारा लगा कि वह बात बात पर मेरे दिमाग में गुनगुनाने लगता है |
अब यही देखिये कि कल 31 अगस्त को राही मासूम रजा साहित्य अकादमी के तत्वावधान में डा अब्दुल बिस्मिल्लाह को अवार्ड दिया गया , तो वहां भी यह गीत सर में सस्वर गाने लगा :-
ज्ञातव्य हो कि सेक्युलर आइकन के तौर पर इस अकादमी का गठन हुआ है | तो
1 - यदि डा राही मासूम रज़ा को सेक्युलर होने के नाते संस्था का आइकन बनाया गया तब तो ठीक , लेकिन यदि उन्हें मुसलमान होने के कारण ऐसा किया गया तो सोचना पड़ेगा |
[ज़ाहिर है इन्हें इतने तमाम जातियों में से कोई हिन्दू सेक्युलर आइकन नहीं मिला, शायद हिन्दू सेक्युलर हो ही नहीं सकता | इसलिए पेरियार, रामस्वरूप वर्मा, गोरा , या अभी मरे / मारे गए डोभालकर सेक्युलर नहीं थे ]
उसी तर्ज़ पर एक और छंद बनता है :-
2 - यदि डा अब्दुल बिस्मिल्लाह को सेक्युलर कलम के धनी लेखक के रूप में सम्मानित किया गया तब तो ठीक , लेकिन यदि उन्हें मुसलमान होने के नाते अवार्ड से नवाज़ा गया तो फिर सोचना पड़ेगा |
सोचना तो पड़ेगा !

* हमने कभी किसी के लिए
मृत्युदंड नहीं चाही ,
न हमने तब उन्हें
फांसी पर लटकाने की माँग की ,
न हम अब इन्हें
सूली चढ़ाने की माँग कर रहे हैं |
हम हमेशा मृत्युदंड के खिलाफ थे
हम अब भी मृत्युदंड के खिलाफ हैं |
#   # 

* अभी मृत्यु दंड तो समाप्त नहीं कर पाए , चले हैं बड़े धार्मिक राष्ट्र बनने !

* अंधा ही होना है तो सावन में हो लेंगे | अभी तो पतझड़ की उदासी के दिन हैं !

* पोलिटेक्निक चौराहे पर जाम और भीड़ कि वजह से वहां सड़कें कुछ चौड़ी कि जानी  हैं और गोलाई कुछ कम | इसके लिए आज भूमि पूजन हुआ | क्यों हुआ भूमि पूजन ? पूजा का अभीष्ट क्या है ? उससे क्या फल मिलेगा ? अभी साल भर ही पहले थोडा चिनहट की ओर एक पुल टूट कर गिर गया था और उसके नीचे सोये मजदूर मर गए थे | क्या उस निर्माण के पूर्व पूजन हुआ था ? यदि हुआ था तो फिर वह टूटा क्यों ? और जब काम ठीक नहीं होना है , ज़िम्मेदारी निभानी नहीं जानी है, निर्माणों को क्षतिग्रस्त होना ही है , तो फिर पूजा का पाखण्ड क्यों ? सेक्युलर देश में यह किसके आदेश पर हो रहा है ? हमें सख्त ऐतराज़ है | क्या देश को सरकार भी पाखंडी बना रही है आसरामों कि तरह ? मैं याद दिलाना चाहता हूँ - सरकार का कर्तव्य वैज्ञानिक चेतना फैलाना है , ब्राह्मणी अंधविश्वास नहीं | 

*  करता तो हूँ
जितना कर पाता हूँ
क्या जान दे दूँ ?

* इनके बनें
बनना गुलाम है
चाहे उनके !

* देखना होगा
समाज का चलन
व्यवहार में |

* भ्रम में हम
दुनिया बदलेंगे ?
अजी हटिये !

* पहले आप !
नहीं , पहले आप !
छूटीं गाड़ियाँ |

* न विचारों का
आदर करेंगे, न
ही व्यक्तियों का |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें