मंगलवार, 9 जुलाई 2013

नागरिक लेखन 8 से 10 जुलाई 2013

* मित्रो, क्या यह उल्लेखनीय बात है ? हो तो बताऊँ, नहीं तो रहने दूँ , कि कल तक मैंने अपने blog पर 999 पोस्ट पूरे किये, 1000 में एक कम | फिर कल तो एक डालना ही है | आप सब को धन्यवाद |
 पता है - nagriknavneet.blogspot.com  

* 1 - VOTER Party ? वोटर पार्टी ( मतदाता दल )

2 - लोक धर्म
[ Secular Party]

3 - अन्तिम पार्टी
[ The Last Party ]
in rhyme with the story - The Last Leaf , by - O ' Henry

* दो बातें ( विचार )
1 - बच्चों को अश्लील तस्वीरें
नहीं देखनी चाहिए, नहीं
दिखायी जानी चाहिए बच्चों को
भजन कीर्तन के सी डी ,
उन्हें मंदिर मस्जिद
नहीं ले जाया जाना चाहिए |
#
2 - [ आदमी का भला ईश्वर की बातें न मानने में है ] :--
मनुष्य के आदि पूर्वजों , आदम और हौव्वा ने उसकी बात न मानकर " वर्जित " फल खाया, जिसका परिणाम हुआ कि मनुष्य का वंश बढ़ा | उसी क नतीजा है आज हम हैं हमारे आसपास की सृष्टि है , यह दुनिया है, सभ्यता है, संस्कृति है | काल्पनेय है यदि पहले मनुष्य ने ईश्वर की बात ली होती और उसका वर्जित फल न खाया होता, तो हम क्या होते ? क्या हम होते ?
इसलिए मनुष्य का भला तो ईश्वर की बातें न मानने में है, और अपनी प्रवृत्ति, दिल और दिमाग की बात मानने में है |      
       * अभी याद् आया कि रामानुजाचार्य जी ने भी पने गुरु की अंतिम  गोपनीय शिक्षा नहीं मानी थी |उनके बताये सार्वजनिक रूप से  [कथित स्वर्ग जाने के लिए ] निषिद्ध  मन्त्र - " ॐ नमो नारायणाय " को सार्वजनिक कर दिया था जिससे सब जन स्वर्ग जा सकें भले उन्हें [ रामानुज को ] इस अवमानना के लिए नर्क जाना पड़े | यह थी आचार्य की लोक कल्याण की भावना |और इस विचार ने उन्हें अपने गुरु का आदेश न मानने के लिए प्रेरित किया | यही तो सन्देश बुद्ध का , Rationalism ( बुद्धिवाद ) का भी है कि बिना उचित - अनुचित देखे गुरु की भी बात मत मानो |

* तनिक तमाशा तो देखिये | पहले चर्च राज्य पर दबाव डालकर अपनी अनुचित बातें मनवाते थे | यूरोप (के राज्य एवं दार्शनिकों) ने चर्च के दबाव को अस्वीकार कर दिया और परिणामस्वरूप secularism का उदय और विकास हुआ | अब दो - तीन सौ वर्षों बाद भारत राज्य (के प्रतिनिधि एवं पार्टियाँ) खुद धर्मों के पास अपनी पीठ पर दबाव डलवाने 'धर्म' के पास जाते हैं | और धर्म राज्य पर दबाव डालते हैं | और मज़े की बात यह कि हिंदुस्तान अपने इस कुकृत्य को भी " SECULARISM " कहता है |
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“धर्म जीवन का आधार है” ?
रूद्र प्रताप दुबे

कल किसी के फेसबुक स्टेटस पर “धर्म जीवन का आधार है” देख के रुक गया। थोड़ी देर सोचा की कुछ लिखूं या ना। फिर विचार किया कि ये बड़ा व्यक्तिगत मत होता है सबका इसलिए किसी के व्यक्तिगत मत में मेरा हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा। लेकिन वो विचार थोड़ा अतार्किक और असंगत लगा तो उस पर लिखने का जरूर सोचा।

‘धर्म जीवन का आधार है’ वाक्य मुझे कभी संगत नहीं लगता क्यूंकि जहाँ तक मेरा विचार है रोटी, कपड़ा और मकान ही किसी जीवन का मूल आधार हो सकते हैं। क्यूंकि इन्ही तीनों चीजों से ही व्यक्ति की सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति का पैमाना तय होता है और शायद इन्ही तीनों में से किसी के अभाव में ही उसकी मृत्यु भी हो सकती है। लेकिन ये स्थिति धर्म के साथ नहीं उत्पन्न हो सकती है क्यूंकि मैंने अनेक अधार्मिक लोगों को बड़ी शांति के साथ अपनी पूरी जिन्दगी गुजारते हुए देखा है। अतः अपने इस पहले तर्क के साथ ही मैं धर्म को जीवन का मुख्य आधार मानने से इनकार करता हूँ।

जहाँ तक मुझे जानकारी है वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर भी जीवन के कुछ अंशों को खोज निकाला है तो क्या वहां भी पहले से ही धर्म मौजूद है? क्यूंकि ‘धर्म जीवन का आधार है’ वाक्य को अगर ध्यान में रखें तो जीवन तो वहीँ मुमकिन है जहाँ धर्म है। तो क्या कोई धार्मिक व्यक्ति मंगल पर भी अपनी धर्म की दुकान पहले ही खोल के बैठ चुका है?

एक बात और, धर्म कभी ना तो आपको जीवन देता है और ना ही वो मृत्यु प्रदान कर सकता है। धर्म आपको महानता भी नहीं देता, ये काम तो कर्म के पास है। धर्म आपको तब तक रोजगार भी नहीं देता जब तक आप स्वयं धार्मिक ठेकेदार बन कर धर्म को बेचने ही ना निकल पड़ें। धर्म आपको ना तो मकान देता है, ना कपड़ा और ना रोटी। धर्म देता है तो केवल अलगाव चाहे वो पूजा पद्धति में हो, चाहे इन्सानों के खान-पान में हो, चाहे इंसानों की धार्मिक पुस्तकों में हो या चाहे इंसानों के पूजा गृहों में। राजनीति शास्त्र के महान सिद्धांत को जन्म देने वाले चिन्तक पोप ग्लेसिअस नें यूँ ही नहीं बोल दिया था कि धर्म और राजनीति को अलग-अलग काम करना चाहिए।

विश्वास मानिये आज की राजनीति की सबसे बड़ी समस्या यही है की वो धर्म आधारित हो चुकी है और सबसे ज्यादा अखरने वाली बात भी यही है की ये धर्म आधारित राजनीति एक धर्मनिरपेक्ष मुल्क में लगातार होती जा रही है। पहले तो ये राजनीति केवल धर्मों में बंटी लेकिन अब ये जातियों तक में विभाजित हो चुकी है। क्या हमें नहीं लगता राजनीति अर्थात राज्य को संचालित करने वाली नीति में धर्म जैसी किसी भी चीज़ का प्रयोग वर्जित होना चाहिए? ऐसा इसलिए बोल रहा हूँ क्यूंकि धार्मिक होना या ना होना किसी व्यक्ति का विशेष अधिकार है और राजनीति एक सार्वजनिक कसरत। अब जब सब अपने-अपने विशेष अधिकार का प्रयोग सार्वजनिक और लोगों के लिए बन रही नीति में करने लगेंगे तो अव्यवस्था तो फैलेगी ही। आज किसी भी सोशल साइट्स के आधे से अधिक अपडेट्स आपको किसी न किसी तरह से धर्म से ही जुड़े मिलेंगे। या तो उनमें कोई धार्मिक फोटो को लाइक या शेयर कर रहा होगा या कोई धर्म को अनावश्यक चीज़ मान रहा होगा। खुद सोचिये, कितने लोग चाँद पर मानव के पहुँच जाने, परखनली शिशु के पैदा होने, रोबोट के निर्माण, टीबी और पोलियों को नियंत्रित करने वाली दवाओं या ‘गॉड पार्टिकल’ की खोज को लेकर निरंतर अपडेट्स करते हैं? शायद उँगलियों पर गिनने लायक, लेकिन धर्म पर चर्चा, विवाद और विमर्श लगातार होते रहते हैं। इसलिए इन बहुतायत अपडेट्स और विमर्श से एक बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि आदमी आज भी अपने द्वारा बनायीं चीज़ों में धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानता है। क्यूंकि जाहिर सी बात है कि डायनासौर के समय में तो धर्म नहीं ही होगा पृथ्वी पर। निश्चित तौर पर जीवन की उत्पत्ति और फिर मनुष्य के क्रमिक विकास के दौरान ही ये शब्द परवान चढ़ा और फिर तमाम लोगों नें इसे अपने अनुसार ढालना शुरू किया। जब आदमियों ने संगठित होना शुरू किया तो उसी के अनुसार से उन्होंने एक जैसे लोगों को जाति, समूहों, नस्लों और धर्मों में बाँटना भी शुरू कर दिया। वास्तव में वह ये समझ ही नहीं पाए की वो खान-पान या आदतों में अलग दिखने वाले लोगों के साथ एक साथ कैसे रहे । इसलिए उसने धर्म जैसी ताकतवर सत्ता को जन्म दिया और फिर इसे इतना ज्यादा शक्तिशाली बना दिया की जीवन के हर अंगों में इसका प्रवेश करा दिया। जन्म, नाम, जीवन के ढंग, विवाह और यहाँ तक मृत्य के बाद के कर्म काण्ड तक।

आखिर में बस यही कहना चाहूँगा की धर्म हर शख्स के लिए बेहद व्यक्तिगत विषय होता है लेकिन सार्वजनिक नीतियों या सार्वजनिक बातों के मंचों पर अगर इस पर चर्चा होने लगती है तो ये बेहद शर्मिंदगी का विषय भी होता है और मेरा व्यक्तिगत मत भी यही है कि धार्मिक विलासिता मानवीय मूल्यों का ह्रास करती है। चाहे वो भारत से बाहर हज के माध्यम से हो या भारत मे चारधाम यात्रा के अनुसार हो। ये सरप्लस को बढ़ावा देता है और अन्य नागरिको से आर्थिक असामनता को दर्शाता है। मनुष्य जब हवाई जहाज से या दूसरे मनुष्यों की पीठ पर कंडियो मे बैठकर या खच्चरो पर सवार होकर जाता है और एक रूम मे ठहरने के हजारो रूपये वहन करता है तो साफ़ नज़र आता है की ये धर्म का नहीं पूंजी का खेल है और पूंजी मे एक पक्ष दूसरे पक्ष से कई गुना मज़बूत है। अब कहने को बहुत कुछ था मेरे पास उस अपडेट पर कमेन्ट के लिए लेकिन फिर से मैंने सोचा कि धर्म बेहद व्यक्तिगत मसला होता है इसलिए ना ही बोलूं तो बेहतर है।

रूद्र प्रताप दुबे

[ नागरिक उवाच ]
* अपने को समतावादी कहने वाले लोग जब ब्राह्मणों से इतनी घृणा पाले हुए हैं, फिर ब्राह्मण तो घोषित विषमतावादी थे   | अब किसे झूठा कहें, किसे सच्चा कहेंगे - सोचना है !

* हम बोधगया पर धमाकों से अत्यंत रुष्ट हैं | और मामूली नहीं, बहुत कड़े शब्दों में निंदा करते हैं | सुना है बिहार सरकार को खतरे की सूचना थी | राजीव गाँधी - विकेंद्रीकरण योजना के समर्थक कहें कि यह ज़िम्मेदारी स्थानीय निकाय की थी | खूब पावर और पैसा जा रहा है उनके पास | इसीलिए मेरी राय में हिन्दुस्तान एक बिखरा हुआ मुल्क है , इसके लिए सख्त - सशक्त केन्द्रीय शासन ही चाहिए |
कुछ पता नहीं किसने अंजाम दिया इसे ? कहीं से मुस्लिम आतंकी संगठनों का नाम आया न आया , उसके पहले मुस्लिम फेसबुकियों के IM, मुजाहिदीन आदि संगठनों को बचने के बयान आने लगे- इन पर झूठे आरोप लगते हैं | उनका रिहाई मंच तो बना ही हुआ है, बाख ले जायेंगे | लेकिन पुरानी घटना तो सच है जब म्यांमार विरोधी प्रदर्शन में लखनऊ में आतंक फैलाया गया था और बुद्ध की मूर्ति तोड़ी गयी थी, तो वह निस्संदेह मुसलमानों [ कुछ सिरफिरे जवानों ?] की ही कारगुजारी थी | क्या कोई गिरफ़्तारी हुई ? मुलायम सरकार तो इनकी है |क्या मुस्लिम संगठनों ने इस मांग को लेकर कोई धरना प्रदर्शन किया, कि उन तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही हो ? कल की ही घटना पर इनका कोई निंदा - बयान आया ? अलबत्ता "इशरत जहाँ के हत्यारों को सजा दो " को लेकर GPO पर प्रदर्शन ज़रुर हुआ ? " अल्ला बचाए इन जवानों से "         :)
(देहाती दल)
Demonstration and hooliganism against Myanmar, against Taslima was not done by Brahimins . Now,the whole Hindustan is under attack . " Defend it with all your might ". Buddhism v/s barahiminism episode has lost its fervor, Days lost and last, matter of history, which some people carry on singing . Their views are biased . They fail to understand, [ and they will repent for it in future for having been fighting with their home natives ] , that these are attacks on the whole Indian nation which we belong to .[ To, Prabhat Chandra ]

* ब्राह्मण भी सवर्ण होता है | सवर्ण अवर्ण (जिसका लाभ कुछ को प्राप्तेय है ) ब्राह्मणवाद का ही खेल है | सचमुच तो वह हमारी गलियों का पात्र है जिसके नाते हम सवर्ण बने और कुछ [? समता भी तो ] खोने के अतिरिक्त अवर्णों द्वारा धिक्कार भी ग्रहण करने को विवश  हैं | आरक्षित वर्ग को तो ब्राह्मणों का शुक्रगुज़ार होना चाहिए जिनके कारण उन्हें कुछ हासिलात हो रहे हैं | हिंदी में बड़ा अच्छा शब्द है , याद नहीं आ रहा है | उर्दू में ' अहसान फरामोश ' कहते हैं |  :)

[कविता नहीं ]
*मैं कविता नहीं लिख पाता
बस सोचता भर हूँ -
क्या दस- पचास हज़ार लोग सचमुच में गए ?
क्या वे लोग भी मेरी तरह ही आदमी थे
जिन्दा, सांस लेते लोग ?
सोचता हूँ मैं उनकी तरह
मर रहा हॉता तो क्या दशा होती मेरी ?
कैसा अफनाए, छटपटाए होंगे      
हाथ पैर मारे होंगे बचने के लिए
सांस फूली होगी, आँखें बाहर निकल आई होंगी
असफल प्रयास में, बच नहीं पाए
लाश होकर बह गए ?
क्या वे बच्चे, औरतें, बूढ़े, हमारे
घर के बच्चों, औरतों बूढ़े माँ - बाप  
की तरह ही रहे होंगे
जिनसे मैं इतना प्यार करता हूँ ?
मैं अपने परिवार के लोगों को
निर्निमेष देखता हूँ
उनके इस तरह बिछड़ने की कल्पना से सिहर जाता हूँ |
डरा, सहमा हुआ बैठा हूँ मैं
मुझसे कविता नहीं हो पाती |      
#  #

 * तुम पास बैठे, तो
हम भी करीब हो लिए समझो
तुम दूर होते , तो
हम कैसे तुम्हारे पास बैठते !
#
* एक जनसाधारण टिप्पणी :-
ठीक है यदि इशरत जहाँ का इनकाउंटर हुआ तो गलत हुआ | लेकिन उस पर आतंवादी होना का संदेह है, और आतंकवाद से मुल्क सख्त खफा है | इसलिए हम उसके पक्ष में नहीं हो सकते | हमे अपने देश के जनमत का भी ख्याल रखना है | राजनेति यही कहती है |
( देहाती दल )

* Jonathon Lee Howell
I've always found it sad that most religious people out there need religion to be good. That most of them probably wouldn't be good without it. I also find it ironic that a good number of devout Christians I've met have had some criminal background of some sort. They felt the only way they could turn their life around was through a book of fairy tales. The thing is that you shouldn't need religion to be good. The only person that can pull yourself away from a bad path is you.

* मनुष्य की स्वयं की इच्छा के विपरीत कोई भी धर्म उसे नैतिक नहीं बना सकता | बना सकता तो इतने धर्मों और उनके शक्तिमान भगवानों के रहते आज दुनिया में अनैतिकता जैसी कोई वस्तु शेष न होती | अतः ईश्वर तो है नहीं और धर्म पाखंड भर हैं | अब तो मनुष्य से कहा जाना चाहिए कि नैतिकता  , लोक्नैतिकता [स्वतंत्रता - समता और बंधुत्व ] की ज़िम्मेदारी वह अपने ऊपर ले | अन्यथा तो भविष्य अंधकारमय है |

* धर्मों से छुटकारा तो लेना ही पड़ेगा | उसकी आलोचना या अवमानना किये बगैर उसे विदा करना होगा | पुरानी चीज़ है, अब प्रभावी नहीं रह गई है | किन्ही वक्तों में हमने ही बनाई थी इन्हें | ईश्वर भी हमारी खोज है | अब विज्ञानं ने उन्हें रिप्लेस कर दिया है |और सचमुच प्रतिस्थापित ही करनी है | निर्वात ( vacuum ) तो नहीं हो सकता न ! पुरानी अच्छी चीज़ें रहने भी देनी हैं |इस प्रकार अब वैज्ञानिक चिंतन से नए ईश्वर ( नैतिक मूल्य ) और उनके पालन की नयी " धार्मिकता " की शुरुआत करनी पड़ेगी | शुरू कर ही दिया जाय , जल्दी से जल्दी |

* नहीं काटेंगे
मोहल्ले के कुत्ते हैं
भोंकने से क्या !

* जनमत का
अनुमान कीजिये
शांत बैठिये |

* भूल जाते हैं
गुरुओं के सन्देश
समय पर
याद ही नहीं आते
ज़रूरत के वक़्त |

* कवि जीता है
काल्पनिक स्थितियां
तो लिखता है |

* सब वही था
जहाँ तक भी देखा
एक सा ही था |

* कितना हुआ
मेरे देश का हित
तेरे कृत्य से ?

* कहाँ जाओगे ?
कुछ बताओगे भी
भले आदमी ?

* भीड़ भाड़ में
मन नहीं लगता
बकवास में |

* नहीं बनना
छुई मुई , बेटियो !
कुम्हलाओगी !

* कुछ कहना
नियति है अपनी
कुछ छिपाना |

* जियो तो जियो
गरीब की तरह
धन बचाओ !

* जो था, वह तो
था ही, जो है वह भी
दोषपूर्ण है |

* वह है नहीं
एक हो या अनेक
काल्पनिक है |

* होता रहता
ध्यान में व्यवधान
मन अशांत |

* चला जाता हूँ
तड़ाक से शून्य में
मौका मिलते |

* कहाँ जायगा
मुझे देखने वाला
पास ही होगा |    

* काम इतना
कठिन ही नहीं था
कि न करता !

* नारा लगाना ,
कब ताली बजाना
आता है हमें |

* नहीं निभेगी
सारी ईमानदारी
एक जन से |

* शरीफ बनो
और शरीफ दिखो
दोनों ज़रूरी |

* बस थोडा सा
प्रयास और पाओ
लक्ष्य हासिल !

* गनीमत कि
तुम संगती हुए
वरना मैं तो - - 

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