* यदि जातीय सम्मेलन होंगें , तो उनमें " अंतर
जातीय " सम्बन्ध की बातें कैसे होगी ?
* कुछ और क्षेत्र हैं जिनमे दलित ब्राह्मनानुपात का कुछ पता नहीं है - संगीत , नृत्य , कला (विभिन्न ), विभिन्न खेल कूद , फिल्म जगत ! और अपराध जगत को भी एक क्षेत्र मान लिया जाय तो ?
[ नीलाक्षी जी की पोस्ट से साभार प्रेरित !]
* मुझे खेद है Vandita जी, कि मेरा काम आपको करना पड़ा | तो अंतिम कड़ी में मैं भी कुछ काम कर दूँ - हस्तलिखित गोंजो {सम्मिश्र } फाईल किताबें - 1 - से - 33 अदद . A -4 आकार में .
पुस्तकाकार [हस्तलिखित अथवा टंकित किन्तु मशीन मुद्रित ]
34 - जो चाहो उजियार (कविता ) 35 - बिना नेकर का आदमी (सम्मिश्र ) 36 - धारा प्रवाह (सम्मिश्र ) 37 - रैन्डम रबल (सम्मिश्र ) 38 - आगे और हैं कविताएँ (कविता पाठ ) 39 - मानुषेर मुंशी (सम्मिश्र ) 40 - बुद्धिविहीना (सम्मिश्र ) 41 - सुनो भारत ( कथन / उवाच - विचार ) 42 - तेरह पन्ने ( अशुभ अंक - आलेख संकलन ) 43 - खुल जा सिमसिम [सतत डायरी - blog लिखित ] 44 - आमी नदी (कविता संग्रह ) [ प्रतियाँ अनुपलब्ध ]
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नहीं Sandeep जी , मैं मैदान में नहीं उतरूँगा | कारण, एक तो मैंने अपने लिए " गौतम युद्ध " :) का मैदान लड़ाई के लिए चुन लिया है, और उसमें मैं व्यस्त हूँ | दूसरे आप लोग जिस शाब्दिक विवाद में संलग्न हैं, उस पर निर्णय भारतीय जनमानस में बखूबी सुरक्षित है | वह इसे अच्छी तरह समझता है,समझ रहा है, समझ गया है | वह भी अब अनुभवी हो गया है | जिसे वह समय आने पर प्रकट करेगा - जिसका छोटा सा अंश श्रीनिवास जी की पंक्ति में परिलक्षित हुआ | लेकिन दिक्कत यह है कि फिर उसे आप "पण्डित जी की बखेड़ा" कहकर खिल्ली में टाल देंगे | आखिर कुछ तो है ही !
Sandeep जी , मैं कुछ ठगा सा महसूस कर रहा हूँ और depressed | मुझे पता है कि shankar जी की पंक्ति आपके सर्वथा मनोनुकूल है, क्योंकि उन्होंने हिन्दू हुडदंगियों की ही आलोचना की है जो आपका प्रिय विषय है | [ मैं होता तो इस मुद्दे पर अभी इस तरह के सेक्युलर शासन में नहीं उठाता, क्योंकि यह हुडदंगई का युग ही है, पर निवास जी स्थायी प्रबुद्द व्यक्ति हैं] , लेकिन आपने अपने चड्ढी ( पहनते तो आप भी होंगे ?) के चिरविरोध की जिद में उसे धता बता दिया | अरे, जो व्यक्ति - संस्था जिसे भी ' तुष्टीकरण' कह - समझ कर उसका विरोध कर रहा है , उसके लिए वही ' तुष्टीकरण' है | फिर जब संघ ने इस शब्द को उछाला है, तो वह इसी नाम से तो इसका विरोध करेगा ? आप उसे किसी अन्य शब्द से समझ लीजिये | पर विरोध को देखिये तो !
चलिए ऐसा करते हैं कि उनकी लफंगई की अनदेखी करना, और उसे देखते हुए भी किन्ही राजनीतिक लालचवश उनका पिष्टपेषण और उनके समक्ष घुटने 'टेकना' को हम सप्रति तुष्टीकरण कह लें | तो क्या वह सच नहीं है ? भलमनई श्री जी विकास की बात करते हैं | मैं कहता हूँ मनमोहन जी द्वारा राष्ट्र के संसाधनों पर पहला हक देश के गरीबों - दलितों के अलावा किसी और को देना, तसलीमा को भगाना, रुश्दी को डराना, मुस्लिम महिला गायिकाओं को धमकाना, दो नापाक शब्द 'वन्दे माँ ' का सदन में बहिष्कार, आये दिन दकियानूसी फतवे, और लखनऊ जैसे शहर में बुद्ध का मूर्ति भंजन. वह भी म्यांमार के विरोध में | कार्टून कहाँ बना, या विश्व में कहीं कुछ हो जले भारतवर्ष ? इत्यादि | और फिर भी - - - - ! आखिर यह क्या है ? इसे किसी भी नाम से कहो, लेकिन पुष्टीकरण तो करो | तो, किसके विकास, किसके लिए वैकासिक आरक्षण मांग रहे होगे भाई श्री निवास shankaर राय जी ?
और हाँ, अब मैं मैदान में उपलब्ध नहीं हूँ |
* सांप्रदायिक नहीं बनोगे तो सम्प्रदाय कैसे बचेगा ?
Navneet Tiwari
Rajneetik adange jitne kam honge desh vikas bhi utni hi teji se karega.."
* जातिवाद चल भी रहा है और कोई किसी से छोटा बनने को तैयार भी नहीं है | तो, यह कैसा जातिवाद है ?
* चलने दीजिये नक्सलवाद को | राज्य धीरे धीरे इतना निस्तेज और प्राणशून्य हो जायेंगे कि कोई सड़क चलता राहगीर भी उधर से गुज़र रहे विधायक और मंत्री को थप्पड़ रसीद कर देगा !
* चाहे जितना गरियाओ नेताओं को लेकिन इनके बिना तुम्हारी भी किताब, पत्रिका, अख़बार का विमोचन पूरा नहीं होता |
* ईश्वर को यदि अपनी पसंद के कैसे भी कपडे, या चीथड़े भी, पहना कर बिजूके की तरह भी खड़ा कर दो तो वह इनकार नहीं करेगा | वह मनुष्यों की तरह चेतन नहीं जो " वासांसि जीर्णानि " की तरह पुराने कपडे फेंक कर नया धारण करे | इसीलिये कहते हैं वह मरता नहीं | लेकिन वह नए से नए धर्म के कपडे के नीचे पुराने से पुराना जीर्ण शीर्ण, मटमैला,गन्धाता धर्म का कपडा भी पहने रहता है | ऊपर जैसा कोई पहनाये, पहनता भी जाता है | वह मना नहीं करता | वह मनुष्य की मान्यता के अधीन है |
* हमें हिन्दू मुसलमान से क्या मतलब ? हमें तो नास्तिकता फैलानी है , जहाँ तक पहुंचे |
* अभी कर्म से नीचों, दलितों का राज चल रहा है , तो यदि अब जन्म से दलितों का राज हो जाय, तो हर्ज़ क्या है ?
* प्रश्न है -
क्या वोट देना, राजनीति में सीधे भाग लेना किसी नागरिक के मौलिक अधिकार की श्रेणी में रखना ज़रूरी है ?
[ क्या ऐसी मर्ज़ी सरकार की भी हो सकती है , कि चाहे तो वोट ले, न चाहे तो न ले ? (S.Shekhar)]
- यदि अरब में, अमेरिका में, पाकिस्तान में वहां के हिन्दू नागरिकों को वोट का अधिकार न मिले, तो क्या इसे शासन का अत्याचार माना जाना ज़रूरी है ?
इसी उत्तर पर पहुँचाना था | बाह्य सामुदायिक नागरिकों को भारत में वोट का अधिकार न देना विचार का मुद्दा था | क्या यह व्यावहारिक होगा ? कैसे ? [ navneet तिवारी ]
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Soni Shekhawat
☞ यदि कभी आप आइसलैण्ड जाएं तो वहां कभी भी रेस्त्रां में बैरे
को टिप न दें।
ऐसा करना वहां अपमान
समझा जाता है।
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ऐसा सुझाव मैं भी दलित आन्दोलन को देता हूँ | उन्हें भी यजमान [ बखरी ] से होली दीवाली की त्योहारी नहीं लेनी चाहिए |
* 11/07/2013
गौतम युद्ध [ पार्टी , संस्था या कर्म ] - War For Enlightenment
( सत्य, समता, स्वतन्त्रता, और न्याय के लिए शांतिपूर्ण संघर्ष )
आज एक और शब्द ईजाद में आया -
" आत्मना " (The Individualist) , अपने मन के मौजी लोग |
अब आप बोलिए
* नवनीत जी , कुछ अप्रत्याशित भी हो तो सकता ही है | जो कुछ अतीत में हुआ क्या किसी ने सोचा था ? क्या पाक का बनना सुचिंतित था ? मैं इस पर लोगों की राय जानना चाहता था कि रोज़ी रोटी मकान तो ठीक ,वोट देने का अधिकार क्यों मौलिक और आवश्यक हो ? मेरा निजी खुराफाती विचार है कि नैतिक दृष्टि से तमाम स्थितियों के मद्देनज़र मुसलमानों को भारत की राजनीती में सीधे भाग नहीं लेना चाहिए, स्वयं, स्वेच्छा से, जब कि भारत तो उन्हें इसका अधिकार तो देगा ही | यह उनकी नैतिकता पर मुनहसर है | पाकिस्तान बन जाने के बाद | बस ख्याल ही है , लेकिन मैं किसी अमानवीय व्यवहार के तो पक्ष में नहीं हूँगा किसी के भी, चाहे वह भारत का हो या विदेश का | मैं तो अपनी ओर से उन्हें देश का मुआज्ज़िज़ मेहमान की तरह आदरणीय मानता हूँ |
* एक उम्दा ख्याल आया है ,
आज उनका ख्याल आया है |
* दोस्त सब तो आ गए हैं महफ़िल में ,
मैं दुखी हूँ, मेरा दुश्मन अभी नहीं आया |
* आप तो हर किसी से बढ़कर हैं,
आप कम होते तो हम उधर जाते !
* जो कुछ सेक्युलर आन्दोलन चल रहे हैं उसका हश्र [परिणाम, नतीजा ] आप जानते हैं ? और उसे निष्क्रिय निष्फल करने की कोई जुगत योजना आपके पास है ? नहीं है , तो फिर भुगतिएगा ! मेरे पास जो है उसे कई बार बता चुका हूँ | अब नहीं बताऊंगा | भले मित्र लोग बिफर पड़ते हैं |
* मेरे भी मन में एक सवाल है , ऋचा जी | अभी तक सारे हिन्दू नास्तिक क्यों नहीं हुए ?
* आखिर जातिवाद से परेशानी क्या है, जो तमाम लोग इसके पीछे डंडा लेकर पड़े हैं ? और यह है कि कानी कुतिया की तरह पों पों करके फिर चुपके से आकर चारपाई के नीचे बैठ जाती है | अरे , डोमिनो वाले पिज़्ज़ा बनाएँ, बागी बलिया वाले लिट्टी चोखा, KFC वाले मुर्गे के व्यंजन और टुंडे कबाबी लजीज कबाब बनायें, चिकवा भाई कलिया - मुर्गा काटें | आनंद सिनेमा के बगल लस्सी बिके तो जयहिंद पर बाईक बने | चौक में चिकन, दयाल -प्रकाश वाले कुल्फी तो नाजा में कम्प्यूटर बिके, मरम्मत हो | etc etc | सब लोग सभी काम करेंगे तो काम भी ठीक नहीं होगी और इनकी रोजी भी जायगी |
* जाति विरोध पूरी तरह जातिवाद से ग्रस्त और अनुप्राणित है | और हो भी क्यों न ? जाति का उल्लेख किये बिना जातिवाद के खिलाफ लड़ा भी तो नहीं जा सकता ? :)
* मैं सउदिया से सहमत हूँ | हमें उनसे सीख लेनी चाहिए और इसकी एक राष्ट्रीय नैतिक - सांस्कृतिक अवधारणा विकसित करनी चाहिए | ऐसा विचार मैं कई बार प्रचारित कर रहा हूँ | हर देश की एक मौलिक संस्कृति होनी चाहिए, होती ही है | इसे आदरपूर्वक मान लिया जाना चाहिए | न अरब में हिंदुइज्म सिखइज्म चले, न अमेरिका ब्रिटेन में इस्लामइज्म, हिंदुइज्म सिखइज्म चले | तो फिर हिंदुस्तान में भी ईसाइयत - दार उल इस्लाम नहीं चले | इसीलिये मैं घोर नास्तिक सेक्युलर होकर भी भारत में हिन्दू राज्य की वकालत करता हूँ, क्योंकि तमाम देश इस्लामिक होने से बाज़ नहीं आये और सेक्युलर पश्चिमी देशों में भी ईसाईयत को एक ख़ास आदर प्राप्त है | अमेरिका के सिक्के पर In God we trust है , तो ब्रिटेन में ईसाई रानी ही प्रमुख होगी | लेकिन इस बात पर मेरे अभिन्न मित्र मुझसे नाराज़ हो जाते हैं | #
उचित तो असहमत होना ही है | मैं भी सायास स्वयं से असहमत ही होना चाहता हूँ | लेकिन क्या ऐसे उन्ही की चलती रहेगी ? क्या हम कटु -अप्रिय यथार्थ से ता-सदी और सदियाँ मुंह फेरे रह सकते हैं ? और मात और मार ही खाते रहेंगे ? उग्र तो वे हैं , मेरी तो काउन्टर उग्रता है | मैं तो राष्ट्रवाद को भी नहीं मानता, लेकिन मानता हूँ आदर्शों का हवाई जहाज हर आसमान में नहीं उड़ता | [To byom टिप्पणी के लिए आभार सहित, ]
Byomkesh Mishra = आदरणीय उग्रनाथ जी, गुरुवर आपने विषय बदल डाला (आप चतुर हैं), या कहूँ विषय को वैचारिक (सैद्धांतिक) उच्चता की ओर ले जाना चाहा, किन्तु इस प्रक्रिया में आपके वास्तविक "अभिप्राय" का क्षणिक दर्शन भी हुआ । आपने जानबूझकर "यथार्थ" शब्द का प्रयोग किया है "सत्य" शब्द का नहीं, क्योंकि "यथार्थ" सापेक्षिक व्याख्या के अधीन है, और "सत्य" की तरह ब्रह्म नहीं । तो यथार्थ आपका । कटु, अप्रिय इत्यादि भी निर्णयात्मक निष्कर्ष है । सो निर्णय भी आपका । सबकुछ आपका, फिर भी आप कहते हैं कि आप सहमति चाहते हैं ? बिना सहमति का प्रयास किये ही गुरुवर ? सच्चा प्रयास ? व्यक्तिगत रूप से मैं हर उस सिद्धांत या संकल्पना से असहमत रहूँगा जो तोड़ती है, जोड़ती नहीं । चाहे वह संस्कृति हो, संस्कार हो या राष्ट्रवाद ।
[Me] = अवगत हुआ | ध्यान रखूँगा, रखता भी हूँ | सूक्ष्मता से देखें तो जनमत ही तो मना रहा हूँ, सहमति असहमति का सर्वेक्षण - शिक्षण ! :) कौन सा मेरे कहने से कुछ फलित होने जा रहा है ? कह ही तो रहा हूँ ? शायद इस विद्यमान वर्मान (अ)सांस्कृतिक काष्ठ छड़ी को तोड़कर , फिर उनके टुकड़े लपेट-जोड़ कर ही एक सुदृढ़ संस्कृति का विकास संभव हो ? कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन अभी इससे असंतोष तो है | पुनः धन्यवाद | आपके परामर्श को मैं बहुत महत्वपूर्ण मानता हूँ | मैं जानता हूँ आप बहुत समझदार और विद्वान जन हैं |
* आपकी टिप्पणियां बहुत विद्वतापूर्ण होती हैं | लेकिन खेद के साथ कहना पड रहा है कि आप विद्वान नही,
विदुषी हैं | :)
* लोग कहते हैं - आमूल चूल परिवर्तन होना चाहिए | यहाँ मैं देखता हूँ तिलचट्टा एक बार उलट जाता है तो अपने आप खड़ा नहीं हो पाता | कोई दूसरा पलट दे भले | वह दूसरा कौन हो सकता है भला ?
* कल फिर एक पत्रिका की शुरुवात हुई | और मैं गया भी, न जाने की इच्छा के बावजूद | साथी कमलेश श्रीवास्तव ने फोन कर्केबुलाया था | "ग्राम्य सन्देश " नाम है | पत्रिका चिकनी चुपड़ी है | ऊबड़ खाबड़, खुरदुरी गाँव की दशा के विपरीत | सुना है किसी ने इसे बंद न होने देने का आश्वासन दिया है | फिर तो चलेगी |
* मैं दुखी हूँ यह देखकर कि लड़कियों का आजकल भी सर्वाधिक प्रयोग ,उपयोग हो रहा है किन्ही भी कार्यक्रमों में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने में |
* बुलाये कोई तो चले जाओ ,
यूँ तुम्हे कौन बुलाता ही है |
* भवानी शंकर मिश्र जी के " जिस तरह मैं बोलता हूँ, उस तरह तू लिख " का पालन / समर्थक मैं नहीं हूँ | बोलता तो मैं क्या क्या हूँ | उसी तरह तुम लिख डोज तो गड़बड़ हो जायगा |
* Individualism का हिंदी व्यक्तिवाद तो नहीं हो सकता | " निजवाद "हो सकता है ,जन कीनिजता से युक्त , न कि स्व अहंकार से |
* नकार - वकार [ Negative Vigative ]
- Cut Off Party [कटुता पार्टी ]
- दुश्मन दल { Enemy Party }
- एकान्तिक दल / अल्पिका / अदृश्य पार्टी
- गुरुता [समता की तरह ]/ गुरु गंभीर / ----- गुरुजन पार्टी
- निजी पार्टी [ Individualist Party ]
- उदास पार्टी [ U.P.] सही बात है | हमें कोई उम्मीद तो दिखती नहीं |
इसलिए हम राजनीति में दखल तो रखने है, पर राजनीति में सीधे भाग नहीं लेते | यह तो जे पी की ' दल 'विहीन राजनीति ' जैसी बात हो गयी !
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* कबाड़ीवाला अपने कबाड़ कक्ष के सामान समेट उसमें अधिकाधिक जगह बना रहा था |
पूछने पर उसने बताया | थोक में laptop का कबाड़ मिलने वाला है | :)
* मुसलमान बहुत अच्छे हैं | इसमें शक की क्या बात ! लेकिन यह समझ में नहीं आता कि वे अपनी अच्छाई के सबूत के तौर पर ऐसी जगह ( cutting) खतना क्यों करा लेते हैं जिसे उन्हें छिपा कर ही रखना होता है ? हिन्दू सम्प्रदायों की तरह नाक कान जिह्वा कटाते तो और बात होती !
मैं हिन्दुओं को भी इसकी सलाह देने देने वाला हूँ | क्योंकि जिया भाई भी बता ह रहे हैं कि यह विज्ञानसम्मत भी है | संभवतः ऐसी ही विज्ञानं सहमति पर भारत के कुछ सन्यासी समुदाय नाक कान भी कटाते, छ्द्वाते रहे हैं , जिससे उनकी सफाई में सुविधा हो | दक्षिण अफ्रीका में औरतों के क्लिट भी सकारण ही कटे जाते हैं | स्वागत है [ Ref जिया खान ]
अभी कान पर जनेऊ चढ़ाने, खडाऊं पहनने, त्रिनेत्र स्थल पर टीका लगाने, कपडे उतारकर पीढ़ा पर बैठकर खाना खाने आदि की वैज्ञानिकता का मेरे पास कोई लिंक नहीं है | उनसे डायरेक्ट पूछिये, बाकायदा बताएँगे | तो मतलब यह निकला कि कुदरत के निर्माण में कुछ खोट है, लिसे अब मनुष्य अपनी "वैज्ञानिक ? " खोज द्वारा दुरुस्त कर रहा है | मैं इससे सहमत हूँ क्योंकि उसने कान के पास मोबाईल रखने की थैली नहीं बनायीं | लेकिन यह क्या खुदा की शान में गुस्ताखी नहीं हो जायगी यदि उसकी बनायीं चीज़ में कुछ अ -वैज्ञानिकता बताई जाय ? लेकिन यह हमारी नहीं [हम ईश्वर को मानते ही नहीं ] उनकी समस्या है जो ईश्वर के अलावा किसी को 'वन्दे ' नहीं कह सकते , किसी विज्ञानं की नहीं | जो मनुष्य के बनाये कानून / संविधान से बंधे नहीं हैं | [ Ref - जिया खान ]
* इतने पारदर्शी [ऐसे कपडे हमने देखे] कपड़ों में तो मुझे महिलाओं का नकाब धारण करना भी मंजूर है | प्रगतिशील महिलाओं को भी कोई एतराज़ न होगा | क्योंकि इससे नारी दासता नहीं झलकती |
* भाई , इस फेसबुक से कहो - LIKE के साथ UNLIKE / DISLIKE तो रखे ही , साथ में एक और option भी रखे | केवल READ [ पढ़ा / पढ़ लिया] का | अभी बहुत परेशानी होती है , सही राय देने में |
* बड़ी मुश्किल से तो
खंडहर हुयीं हैं इमारतें
जर्जर हुई थीं किताबें ,
तिस पर भी
इनके संरक्षण के लिए
पुरातत्व विभाग /
अभिलेखागार बनाये हमने !
क्या यह कम सबूत है
हमारी भलमनसाहत का ?
# #
* सब राजनीति है भाई
कोई मंदिर मस्जिद नहीं जाता
पूजा पाठ नमाज़ क्या घर पर न हो जाता
सब संख्या का खेल
यानी , राजनीति | जहाँ सिर गिने जाते हैं
दिखाना है - हम इतने हैं
संख्या में भारी हैं
मजबूत ,ताक़तवर हैं
हमारी बात मानो
मानोगे कैसे नहीं ?
मानो, नहीं तो जाते हैं हम मंदिर बनाने
, मस्जिद , नमाज़ पढ़ने , अजान देने !
# #
आज एक अच्छी कविता [ हाइकु ] हो गई, सुनना चाहता हूँ -
* कौन आया है ?
चुप भी कर यार !
कोई नहीं है |
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अब इसके साथ कुछ पुछल्ले - दुमछल्ले भी हैं, उन्हें कहाँ ले जाऊं ?
* लाखपति की
क्या कीमत, कहिये
करोडपति |
* फिर भी अभी
बहुत करना है
कुछ तमाम |
* उन्होंने कहा -
सर्वर डाउन है
बाद में आना
* नहाना खाना
फेसबुक लिखना
यही काम है | —
1 - जो देशभक्ति
के नारे लगायेगा
पछतायेगा |
2 - अलोकप्रिय
यह एक शब्द है
जो देशभक्ति |
किन्तु आदरणीय
नागरिक चेतना |
* सादे वेश में
जैसे होता जासूस
वैसे मैं साधू |
* जब भी कभी
मेरी ज़रुरत हो
बुलाना मुझे |
* जीना तो ठीक
लेकिन समता हो
तब न बात !
* मेरा आग्रह
जनमत जानिए
फेसबुक से !
* धर्म बने थे
अब बिगड़ गए
एक बनेंगे |
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