गुरुवार, 4 जुलाई 2013

नागरिक लेखन 1 से 3 June 2013

* The TOP 10 of FACEBOOK UNCLE-1.Akhilesh Mourya,2.Dinesh Saxena,3.Shekhar Lakhchauraa,4.Sher Samant,5.Pitamber Prasad Dhyani,6.Ramgopal Singh,7.Bhagwan Singh,8.Ugra Nath,9.Kottapalli S Rao & 10.Devki Nandan Joshi.
[ Himanshu Prasad ]


* यह तो आपने वह बात लिख दी जिसे लिखने को मैं सोचता रह गया | सचमुच उधर तो नायक वैसे ही 15 -20 खल कर्मियों से जूझ रहा है , उधर नायिका अकेली एक पेंड़ की शाख से लटकी चिल्लाती है - विजय ! बचाओ , मुझे बचाओ | ऐसे दृश्यों द्वारा स्त्री को कमज़ोर दिखने की कोशिश होती है | और इससे समाज में पुरुषों के श्रेष्ठ और ताक़तवर होने का झूठ फैलता है | साधुवाद ऐसे जन सरोकार से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए | इसके लिए प्रिय संपादक का सार्वजनिक मंच जमकर इस्तेमाल कीजिये | [ ज्योत्सना बौद्ध ]

* मैं मूरख तो एक मौलिक बात ही नहीं समझ पाया कि इन्काउन्टर करने वाली एजेंसी यदि सरकारी थी , तो उसी सरकार में वह दोषी सिद्ध कैसे होने पाई ? कैसे उसने इतने सुराग छोड़ दिए ? जब इस सरकार पर पक्षपात के इतने आरोप लग रहे हैं , तो वह अपने कुकृत्य को बचा क्यों नहीं पाई ?  [ सन्दर्भ - इशरत जहाँ ]

* प्राप्ति स्वीकार - सधन्यवाद
अंक - 6 दिसम्बर 2012
पत्रिका - " तत्सम " (अव्यावसायिक )
विभिन्न अभिव्यक्तियों की साझी पत्रिका
संस्थापक संपादक : डॉ आमोद
संरक्षक - सुधी पाठकगण
मुख्य सम्पादक - अवधनरेश तिवारी
संपादक - डॉ. सत्य प्रकाश सिंह , लागत मूल्य - १०० रु.
संपर्क : ' अनुकंपा ' , बी - ४९ , दिव्यनगर , पोस्ट - खोराबार ,
गोरखपुर २७३ ०१० उत्तर प्रदेश (भारत )
फोन नं : ०५५१ - २२७२३४० , ९४१५१८४००५
e-mail :  spsb49@rediffmail.com  /  gkp.spsingh@gmail.com
[संपादक जी को पोस्ट कार्ड लिखा - उग्रनाथ नागरिक , " प्रियसंपादक " मासिक ]        

* उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया |
मेरा पे - स्लिप देखकर
अब वह प्यार - व्यार की बातें नहीं करते |

Shraddhanshu Shekhar

It seems to me that the real problem is the mind itself, and not the problem which the mind has created and tries to solve. If the mind is petty, small, narrow, limited, however great and complex the problem may be, the mind approaches that problem in terms of its own pettiness. If I have a little mind and I think of God, the God of my thinking will be a little God, though I may clothe him with grandeur, beauty,wisdom, and all the rest of it. It is the same with the problem of existence, the problem of bread, the problem of love, the problem of sex, the problem of relationship, the problem of death. These are all enormous problems, and we approach them with a small mind; we try to resolve them with a mind that is very limited. Though it has extraordinary capacities and is capable of invention, of subtle, cunning thought, the mind is still petty. It may be able to quote Marx, or the Gita, or some other religious book, but it is still a small mind, and a small mind confronted with a complex problem can only translate that problem in terms of itself, and therefore the problem, the misery increases. So the question is:

Can the mind that is small, petty, be transformed into something which is not bound by its own limitations?"

(Jiddu Krishnamurti - The Core of the Teachings)
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संयोग ही है कि आज ही मैं इस दिशा में सोच रहा था, पर लिखने से रुक गया क्योंकि वह विचार मुझे मानव विरोधी लगा | लेकिन श्रद्धा के पोस्ट में जिद्दु कृष्णमूर्ति ने सब कुछ साफ़ कर दिया | मैं अनुभव कर रहा था कि सोचना, विचार करना [सबके वश की बात नहीं होती /dt] हर किसी की प्रवृत्ति में नहीं होता | ऐसा नहीं कि उनकी सोचने की नीयत नहीं होती, लेकिन नहीं सोच पाते या सीमित दायरे में ही रह जाते हैं | इसलिए हमें ऐसे लोगो पर भरोसा करना पड जाता है जो चिंतन क्रिया में लीन,विचार  कर्म में स्वभावतः संलिप्त होते हैं [ वैसे ऐसा सोचना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है] | विदित हो कि मनुष्य अभी यूँ भी अधिक से अधिक अपने मस्तिष्क का केवल 6% ही इस्तेमाल करता है |      

* अभी, जब मैं Humanist Outlook का कालम लिखने के लिए मानववाद पर सोच रहा था, और इसकी सफलता की दृष्टि से इसकी राजनैतिक विकल्पता पर विचार कर रहा था, तो मुझे एक नैतिक शब्द हाथ लगा | - लोकधर्म | इसे Civic, "नागरिक धर्म "  भी कह सकते हैं | इस नाम का धर्म तो नहीं, पर संस्था हम लोग लखनऊ में चला चुके हैं और वह सफल भी रहा | लेकिन लोकधर्म को Secular Religion कहना ज्यादा उचित होगा | बावजूद इसके कि सेक्युलर को बहुत गलत राजनीतिक अर्थ दे दिया गया है | लेकिन मैं मानता हूँ कि विकृत राजनीति अभी इतनी शक्तिशाली नहीं हुई है, शायद कभी होती भी नहीं, कि वह लोक संस्कृति को अपने अधीन कर ले | सो , लोक तो लोक ही रहेगा, अपनी मर्ज़ी का अलमस्त, सबको अपने में समेटे |
सेकुलर हमेशा लोकतंत्र के साथ रहा है | दार्शनिक जगत में इन्हें एक दूजे से सदा अविच्छिन्न मना जाता है | लोकतंत्र है तो धर्मनिरपेक्षता है,  | धर्मनिरपेक्षता है तो लोकतंत्र है, अन्योन्याश्रित | ऐसा सिद्धांततः माना जाता है | और लोकतंत्र की स्थापित परिभाषाएं तो कई है, प्रचलित जैसे वही for, of & by वाली मशहूर | लेकिन उसके मूल्यों पर कोई विवाद नहीं है | वे हैं स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व | अंग्रेजी में - Liberty , Equality & Fraternity | बस मुझे अपने मानव धर्म का राजनीतिक सूत्र मिल गया | क्या ये मूल्य किसी व्यक्ति, देश के सभी नागरिकों के धारण करने के लिए नहीं हैं ? तो जो धारण किया, वही हमारा धर्म हुआ, हो गया | लोकधर्म हमारा धर्म है और यही है हमारी राजनीति का आधार भी | कोई शक ?        

*  घोषणा -
आज से हम ईश्वर, अल्ला, गॉड, खुदा, भगवान आदि को हम एक ही सत्ता मानेंगे, एक दूसरे का पर्यायवाची | एक अज्ञात, अज्ञेय [साहित्यिक] शक्ति के प्रतीक स्वरुप, जिसने कथित रूप से सृष्टि को बनाया और जिसके बारे में यह कहा और माना जाता है कि वही दुनिया को चलाता है | अब इसे जिसको बुरा मानना हो वह माना करे | इन नामों में से किसी भी की आलोचना सबकी निंदा समझी जाय और किसी की भी प्रशंसा सबकी प्रार्थना | कहने को तो सभी कह देते हैं - ईश्वर अल्ला तेरो नाम, लेकिन जब व्यवहार की बात आती है तब सब अलग हो जाते हैं | ईश्वर भगवान् हिन्दुओं के हो जाते हैं और अल्लाह मुसलमानों का ही खुदा होता है | और ये बाकायदा अपने अपने आराध्यों के लिए लड़ते भी हैं | तो हमने पहले सबको एक जगह कर दिया क्योंकि हमें सबका विरोध करना हैं | कहाँ तक हम इनसे एक एक करके लड़ेंगे ? और यह तो हमने कह ही दिया कि हम इन्हें नहीं मानते, केवल व्यवहार के लिए इनका नाम लेते हैं, क्योंकि हमारे कई साथी मनुष्य इन पर [अंध] विश्वास करते हैं, और हम उन साथियों के बीच सपरिवारं समाज में संग - साथ रहते हैं, और हमें इन्ही के बीच काम करना है | वरना हमारा ईश्वर अल्ला से क्या वास्ता ?      

* मुझे इसके अन्वेषक - आविष्कारक होने का दावा करने का कोई शौक नहीं है | सोचने विचारने का शौक है , तो वस्तुओं के गुणों पर सोचते हुए मुझे थोडा आगे एक और घर, कुटिया, झोपडी दिखाई देती है, जो इस प्रकार है :--
पहले पदार्थों को तीन आयामों में पहचाना जाता था | लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई | फिर विज्ञानं की खोज ने इसमें ' समय ' का एक और आयाम जोड़ दिया | इस तरह चार आयाम मनुष्य को ज्ञात हुए |
लेकिन इसमें मुझे कुछ कमी, किंचित अभाव नज़र आ रहा है | वस्तु का एक आयाम और है, और वह यह है कि वह कितनी शाश्वत है, कितनी टिकाऊ, कितने समय तक चलने और काम देने वाली अर्थात उपयोगी होगी ? उसकी प्रभावोत्पादकता कितनी है, आंतरिक जीवन्तता की शक्ति ?        
एक शब्द प्रेम भी है, एक शब्द गाली भी | भले दोनों की लम्बाई चौडाई ऊंचाई बराबर हो, या गाली ज्यादा देर तक दी जाय, लेकिन प्रेम का वज़न तो अधिक ही है क्योंकि उसका पांचवां आयाम बड़ा है, व्यापक और सार्थक प्रभावकारी है | एक अखबार, ढेर सारे पन्ने वाली पढ़कर फेंक दी जाती है, एक रामचरितमानस अथवा कुरानमजीद का गुटका सदियों तक मनुष्य अपने माथे से लगाता है | ऐसे ही अन्य उदाहरण ढूंढे जा सकते हैं | सोचना तो यह है कि क्या बात, क्या फर्क है इनमे, जो एक को विशिष्ट तो दूसरे को तात्कालिक महत्व का वस्तु बना देती है ? मेरे ख्याल से वस्तुओं में यह जो अन्तर है उसके कारक को " पांचवाँ आयाम " की संज्ञा दी जानी चाहिए |  
- प्रगल्भता , प्रगाढ़ता , शिद्दत आयाम [ Dimension ] ? ? ?

* Shashank Bharadwaj
नास्तिकता से कोई प्रॉब्लम नहीं....वो भगवान को नहीं मानते....न माने ..हमें कोई परेशानी नहीं पर वो भगवान को मानने वालों को कोसते रहते हैं...ये परेशानी की बात है..अरे आप आपने भगवान को माननेवाले वाले सिधान्त मे मस्त रहे हम अपने भगवान को मानने के सिधांत मे.......

इसमें दिक्कत क्या है ........

Ranjay Tripathi, बी.कामेश्वर राव and 2 others like this.

Naveen Raman दिक्कत यह है कि आप भगवान को अपनी जागीर समझने भ्रम पाल बैठे है.इतना भी चल जाता,पर बात यहां पर भी नहीं रूकती.यह निरंतर हिंसा की तरफ कदम बढाने लग जाती है.आस्तिकता और ढिंढोरा पीटने में फर्क होता है.

Shashank Bharadwaj bhagwan ko manane walo aur hinsa ka koi sambndh nahi balki sabse jyada hinsa to bhagwan ko na manne wale communisto ne ki hai naveen raman jee

Ugra Nath = दिक्कत है न शशांक भाई ! तभी तो आपने यह पोस्ट डाला ! अच्छा किया, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने आस पास के मानव समाज और सार्वजानिक जीवन से सर्वथा निरपेक्ष और कटा  हुआ नहीं रह सकता | मै आप की बात प्रिय संपादक से उठाकर नास्तिक धर्म - - तक ले आया | निश्चय ही आपको हक है नास्तिकों को समझाने का, बंधुत्व के नाते | उसी प्रकार नास्तिकों या नागरिकों का भी हक है आपको सार्वजानिक शिष्टाचार निभाने की बात याद दिलाने का = जब रात रात भर लाऊड स्पीकर बजते हैं, गली सड़क घेरे जाते हैं, जाम लगाये जाते हैं etc  etc | बात चुपचाप पूजा पाठ करने की होती तो क्या दिक्कत थी ?और भी बातें है, फिर कभी | पर अभी सौ की एक बात कोई किसी व्यक्ति / पड़ोस /समाज/देश से निरपेक्ष नहीं हो सकता | आप ने इस समस्या में हिस्सा लिया, आप साधुवाद के पात्र हैं |
दिक्कत न होती तो किसी मज़हब से दुसरे मज़हब वालों को परेशानी क्यों होती ? लेकिन होती तो है ! बस उसी प्रकार समझिये |

* अख़बारों में लेख के साथ लेखक का फोटो तो ठीक [ सबसे अच्छा तो मुझे चेहरे का स्केच लगता है ] | लेकिन लेख के साथ सम्पादक - लेखक का आदमक़द चित्र , हाथ बांधे पैर पर पैर टिकाये ? कितना तो हास्यास्पद लगता है ? समझ में नहीं आता लेखक बड़ा है या आलेख ?

* मुझे तो भाई ,पश्चिमी सभ्यता में कोई बुराई नज़र नहीं आती | कम से कम समय की पाबन्दी, कर्मनिष्ठा, कर्तव्यपालन, वैज्ञानिक नजरिया, देश की चिंता, प्रगतिशीलता की सीख तो हमें उनसे लेनी ही चाहिए !

* सार्वजनिक
( पक्ष & पार्टी )
Membership not essential - everyone deemed member ?
?   ?

[पार्टी ]
राजनीतिक इच्छा शक्ति = Political Will Power
No /
राष्ट्रीय  इच्छा   शक्ति  =  National Will Power
= = NWP ? no
=RIS = रिस , ज्यादा ठीक है , क्योंकि
रिस का अर्थ " गुस्सा " भी होता है | और वह तो है |
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* Secularism का मतलब = सभ्यता का धर्म |
धर्म का पालन - सभ्यता के साथ ,
संस्कृति सापेक्ष !

* काम आता है
थोडा भी अनुभव
बहुत ज्यादा |

* इतनी बातें
किससे करते हैं
ये युवजन ?

* सबके घर
अब पक्के हो गए
मेरा छप्पर !

* साथ निभाता
दोस्ती भी दुश्मनी भी
सब दोस्तों से |

* आँखें रोती हैं
तुम नहीं होते तो
दिल रोता है |

* बोलें तो बोलें
पर किसी और को
बोलने भी दें !

* बड़े जो होंगे
किसी से, तो किसी से
छोटे भी होंगे |

* ढाई आखर
पढ़ना, चलो ठीक
और भी ठीक
कुछ भी न पढ़ना
कोई अक्षर नहीं |

* क्या कर लेगा
अब पास आकर
मेरा निर्दयी ?
आकर तो देखे ज़रा
आये तो मैं भी देखूं |

* देखते नहीं
लिखने में कितना
थक जाता हूँ ?

* अब जाता हूँ
मैं विश्राम करूँगा
कुछ समय |

* देश भला है
किसके अजेंडे में
कोई बताये ?

* मानो न मानो
पूरा भारतवर्ष
लूट का अड्डा !

* इतना झूठ !
कितना झूठ झेलूं ?
अब असह्य |

* बात न करें
चीत न करें, तो क्या
कबड्डी खेलें ?

* फेसबुक तो
बड़ी अच्छी चीज़ है
पढ़ें तो जानें !

* अब अगर
कोई आपसे पूछे
तो क्या पूछेगा ,
जब आपने सब
स्वयं ही बता दिया ?


शिक्षा के सम्बन्ध में मेरी किंचित वान्छ्नाएं :-
* कोई होमवर्क न दिया जाय | घर पर बच्चा कुछ खेले कूदे , घर - समाज के कामों में हाथ बँटाये , और जिंदगी की शिक्षा ग्रहण करे | स्कूल का काम स्कूल में |
* सुलेख और द्रुत गति से पढ़ने का अभ्यास कराया जाय | स्पष्ट , सुंदर अक्षरों में सही वर्तनी सहित, तिस पर भी तेज़ लिखना और भाषा का सव्याकरण ज्ञान शिक्षा का महत्वपूर्ण अंग है |
* कोई स्कूल ड्रेस नहीं | बच्चा जो घर पर पहन सकता है वही स्कूल में पहने सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक भिन्नता के साथ | समानता का ढोंग न किया जाय, विषमता को झूठे खर पतवार से ढकने छिपाने की ज़रुरत नहीं | उन्हें हकीक़त / जीवन के यथार्थ से परिचित होने दिया जाय | फिर इस समानता के नाटक का आखिर तो भार निर्धन, कमज़ोर दम्पतियों पर ही तो पड़ता है नए नए स्कूल के लिए नए ड्रेस बनवाने में ? या हो तो सभी स्कूलों का एक ही ड्रेस हो, बैज पृथक हो | अच्छा तो है वही लिबास जिसे पहनकर बालक अपने ननिहाल , बुआ - मौसी के घर भी जा सके |
* और वह वहां जाकर वहां का स्कूल भी अटेंड कर सके | उसका ID अंतर्देशीय हो |
* शिक्षा को घंटों [ Periods ] और विषयों में न बांटा जाय - सतत continuous / inter connected समग्रता का attitude अपनाया जाय |
[ बात लम्बी है , अब थक गया , थोडा विश्राम :)]          

Notes :--
* जो स्वयं अराजक है , उसकी सत्ता अराजकता को नहीं रोक पायेगी |

* ऊँट पहले अपना मुंह ही ज़रा सा छिपाने की जगह आपसे मांगेगा |

* अगर आप बैठकर शालीनता से सभ्यतापूर्वक आपस में बात नहीं कर सकते , तो आज़ादी क्या बचायेंगे ?    लोकतंत्र कसे टिकेगा ?
Prabhat Chandra = apne virodhiyo ke sath aisa kaise ho sakta hai.dadda


Ugra Nath = यही तो पेंच है | विरोधियों के साथ भी हो सकता है , होना चाहिए | या वार्ता संभव न हो तो मौन या मुस्कान |
.=उदाहरणार्थ, हमारी आपसे बातचीत होती है कि नहीं ? क्या समझते हैं , हमारी आपसे सहमति है ? क्या जनाब रूसो की श्रीमान वाल्तेयर से सहमति थी ? तब भी उनके बीच का एक ऐतिहासिक संवाद अत्यंत प्रचलित है :- I do not agree with what you say , but I can lay down my life for your right to say . लोग समझते नहीं मित्र ! क्या किया जाये ? हम लोग लोकतान्त्रिक शिष्टाचार - व्यवहार में अनुशीलित नहीं है | यह अनायास ही नहीं है कि ब्रिटेन का शासन अलिखित संविधान, केवल परंपरा के बल बूते पर चल रहा है | वहां का  P M बहुमत खोने पर अपनी अटेची लेकर 10 डाउनिंग स्ट्रीट {प्रधान मंत्री का स्थाई आवास } से टैक्सी से अपने घर चला जाता है | यहाँ की तरह नहीं की वह खानदानी निवास बन जाये | बहुत सीखना है हमें, पर ग|ली देने से हमें छुट्टी मिले तब न ?    

Rough Work : --
* आज आये हो ज़मीं तक !
कहाँ थे जी तुम अभी तक ?

* पानी भी नही बरसा, और वह भी नहीं आये ,
क्या कहना मुझे उनसे, सब भूल गया - हाय |

* [संस्था ] :-- एतराज़ (उर्दू में) = आपत्ति = OBJECTION

* [पार्टी] :-- देहाती दल , Rural Party (for Indian climate)
                 / या फिर = NEW Party  अब इसमें समस्या यह है कि इसे
                    "नयी" लिखा जाय या "नई" ?

* मयंक पाठक जी ने अभी अभी सूचना (Message) दी है := "आप पागल हो "
   - (मुझ) पागल व्यक्ति को उन्होंने 'आप ' का संबोधन दिया | आभारी हूँ |
      जी , इलाज चल रहा है | आज ही दो बजे अस्पताल जाना है | याद् दिलाने के लिए शुक्रिया  |
मयंक पाठक जी के मुझे भेजे सन्देश पर बलरामपुर के दार्शनिक कवि का एक शेर याद आया | ग़ज़ल के दो तीन शेर याद हैं - लिख देता हूँ :-
अगर मानव नहीं बदला नयी दुनिया पुरानी है ,
कहीं शैली बदलने से नयी होती कहानी है ?

जहाँ स्वाधीनता के दो पुजारी युद्ध करते हों,
वहां समझो अभी बाकी गुलामी की निशानी है | [सन्दर्भ - गाँधी + सुभाष ]

प्रगति के हेतु कोई एक पागलपन ज़रूरी है ,
तुम्हारे मार्ग में बाधक तुम्हारी सावधानी है |  

* मैं लिखता नहीं , मैं अपने आप को उदघाटित करता हूँ | Expose / disclose / Unfold !

* हमको तो रोक दिया रह के खतरे बताकर ,
   और खुद चल दिए कहकर कि अभी आता हूँ |

* रुष्ट समाज / उग्र (Radical) समाज ?

* वेद  पुराण, गीता रामायण की बात मैं नहीं करता | मुझे तो गर्व होता है कि हमारे प्राचीन / सनातन / हिन्दू वांग्मय में ऋषि श्री वात्स्यायन लिखित "काम सूत्र " जैसा धार्मिक ग्रन्थ मजूद है | हिम्मत हो तो खंडन करे कोई मेरी बात का !

* सचमुच जैसा कि कुछ भाई लोग कहते हैं , यदि एक बार यह मान लिया जाय , दिल में बैठा लिया जाय कि भारत में मुस्लिम शासन है [ क्या पहले था नहीं ] , तो हमारी तमाम मानसिक परेशानियाँ दूर , रफूचक्कर , उड़नछू हो जायं | आज़म - मुलायम का शासन भला लगने लगे और अच्छी लगने लगे मना मोहन की उद्घोषणा - देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है |

* फूहड़ , वाहियात, नाकारा  जैसे शब्दों के पर्यायवाची और उनका अंग्रेजी बताइए , तब न तैयार करूँ मैं उनकी प्रोफाइल ? प्रस्तुत करूँ उनकी CV ?

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