* रंग महलों के
बिस्तरों की सलवटें
यदि जान ले लें तो ?
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[ Ambiguous / Gibberish ]
क्या करें भाई साहेब , कोई आता ही नहीं | न लिखता है न पढ़ता है | आलोक जी ने इकलौता पोस्ट डाला था | फिर बहुत दिन बाद टोह लेने के लिए मैंने उन्हें छेड़ा - Is there any suspended thought ,Alok ji ? कोई स्पंदन नहीं | गुरजीत जी का LIKE आया , बस | वस्तुतः वह एक समय की आवश्यकता थी जो न रही , न वे लोग रहे | जो हैं उनकी नई प्राथमिकतायें हैं | हरजिंदर काम में हैं, मैं अपने कुछ ग्रुप्स मुर्गी के अंडे की तरह " से " रहा हूँ, प्रमोद जी के अपने आग्रह हैं | सुना है शहीद स्मारक में वह " शनिवार गोष्ठी " चला रहे हैं | अम्बरीश कॉफ़ी हॉउस आदि सबसे विलग जनादेश पोर्टल चला रहे हैं | आपके भी विचार आ ही जाते हैं | तो काम तो चल ही रहा है | यह तो आलोक जी का इसके प्रति पुराना मोह था जिसके तहत उन्होंने यह ग्रुप बनाया | फिर जब वह स्वयं इसे छोड़ गए तो कैसे चले यह | एक बात और आप के संज्ञान में लाना चाहता हूँ | हम लोगों के वे दिन कुछ सीखने, जानने सुनने के थे | अब हम सब अपने विचारों पर दृढ़ नहीं तो कुछ स्थिर ज़रूर हुए हैं | कब तक भटकते ? पुराने members हमें हमारे पुराने चेहरों में पहचानते, जो कि हम अब नहीं रहे | परिचय बदल गए तो अपरिचय की स्थिति में वार्तालाप थोडा दुष्कर था |
आप रेगुलर लिखे तो ! इसे आप अपना ग्रुप बना लें तो चल सकता तो है यह - प्रौढ़ विचारों से युक्त , बिना तू तू मैं मैं के | क्योंकि हम लोग स्वाभाविक रूप से पहले से ही मित्रता भाव से बंधे हैं, एक दूसरे के प्रति सहज स्नेह या कहें आदर - अनुशासन के साथ | ऐसे ही सदस्यों को भरती करें जो कम से कम वार्तालाप के संयम को तो जानें , प्रतिवाद / आन्दोलन उनके कैसे भी हों | चलाइए इसे, अच्छी परंपरा का स्कूल है / होगा यह | और प्रतिष्ठित भी खूब होगा, मुझे विश्वास है | यदि संपादन भारआप उठा लें |
एक तरीका और हो सकता है जैसा अज्ञेय जी ने " मत - सम्मत " स्तम्भ के लिए सुझाया था कि कुछ दिन पत्र अपने सम्पादकीय टीम से लिखायें | उसी प्रकार आप भी इधर उधर से समुचित सामग्री उठा कर इस पर पोस्ट कीजिये | फिर तो वही लोग स्वयं आपसे इसकी सदस्यता माँगेंगे और लिखेंगे | और यह एक उत्कृष्ट समूह बनकर उभरेगा | यह काम आप कीजिये भाई साहेब, बड़ा ही उत्तम venture, साहसिक कार्य होगा यह | अपने अनुभव और संपादन कला को फिर से एक मंच दीजिये | पुराना " हिंदुस्तान " पराने " लखनऊ स्कूल " में तब्दील हो जायगा | बड़ा मज़ा आएगा | मेरा भी स्वार्थ - " नागरिक उवाच " जिंदा हो जायगा यदि उचित हुआ | पंकज चतुर्वेदी को शामिल कीजिये, और भी अनेक हैं , आप उन्हें पकड़ लेंगे | पुरानों [संस्थापकों ] को चाहे बाहर करना पड़े | वैसे भी वे निष्क्रिय हैं | आप ने छेड़ा तो थोडा उत्साह बना | शेष निर्णय आपका - -
[ To Pramod Joshi]
* Global Secular Humanist Movement - SAYS =
Humanists need to participate more and more. [ AND QUOTED =
THOSE WHO REFUSE TO PARTICIPATE IN POLITICS SHALL BE GOVERNED BY THEIR INFERIORS ." [ - PLATO ]
* अल्लाह - गॉड के बारे में तो कुछ कहना मुश्किल है | इतनी हिम्मत नहीं है मेरी, और हिम्मत हो भी तो कहना नहीं चाहिए, क्योंकि मैं इनकी मान्यता वाले समुदाय में नहीं हूँ | लेकिन ईश्वर-भगवान् के बारे में तो मैं जानता हूँ कि वह " नेति नेति (नहीं नहीं )" है |
* स्वर्ग का बोर्ड लगा है लेकिन स्वर्ग जैसा यहाँ कुछ तो नहीं है !
[ means - स्वर्ग अभिकल्पना मात्र , न की यथार्थ | [ Style of saying ]
मुझे आवश्यकता है मेरे साथ अंडा शेयर करने वाले साथी की |
डॉक्टर ने मुझे अंडा खाने से मना तो नहीं किया है लेकिन केवल सफेदी वाला हिस्सा ही मेरे लिए prescribed है | अब बाज़ार में ऐसा अंडा तो उपलब्ध नहीं है जिसमे केवल सफेदी ही सफेदी हो | इसलिए एक भी अंडा पूरा ज़र्दी समेत खरीदना पड़ता है | ऐसे में यदि कोई साथी हो जो ज़र्दी खा ले तो मैं भी सफ़ेद भाग खा सकूँ |
* कोई पैदायशी ब्राह्मण नहीं होता तो कोई पैदायशी दलित भी नहीं होता ,
अथवा यूँ कहें =
कोई पैदायशी दलित नहीं होता तो कोई पैदायशी ब्राह्मण भी नहीं होता |
लेकिन दलित और ब्राह्मण होते तो हैं भले वे किसी खानदान में पैदा हुए हों | निश्चय ही कुछ लोग उच्च कोटि के तो स्पष्ट है कुछ निम्न कोटि के होते हैं समाज में | ऐसा वे किसी भी प्रकार बने हों, परवरिश के कारण या जींस डीएनए के प्रभाव से [यह शोध मेरे क्षेत्र में नहीं ] | लेकिन तथ्य से इनकार करना तो हठधर्मिता ही कही जायगी | अब दिल्ली या कहीं के बलात्कारियों को कोई उच्च कोटि का तो नहीं कहेगा ? यह अंतर हमें स्वीकार करना , अच्छे बुरे का भेद करना हमें सीखना चाहिए नहीं तो सब घाल मेल हो जायगा | कोई अच्छा क्यों बनना चाहेगा यदि उसकी कोई पहचान ही न होगी ? क्योंकि बुराई में तो बड़ा आनंद है न ? और ऊपर से इन्हें समान सम्मान दिया जाय तो फिर कहना क्या ? कोई आन्दोलन इसे नज़र अंदाज़ कर रहे हैं , इसलिए उनसे पृथक यह पोस्ट लिख रहा हूँ कि समाज में ब्राह्मण और दलित , ऊँच और नीच तो हैं ही | निर्विवाद
* तो कुछ झूठ बोलना ही सीख लो ब्राह्मणों से , उन्ही की तरह लन्तरानियाँ उड़ाना | वह योग्यता मुझमे नहीं लेकिन मसलन द्रोण का अंगूठा कुत्ते ने काट खाया था इसलिए एकलव्य ने उन पर दया करके अपना अंगूठा काट कर उनकी हथेली पर लगा दिया था | पुष्पक विमान तो था पर उसका चालक दलित दुसाध था | शबरी प्रकरण तो नाटक था | शबरी, बूढ़ी ब्राह्मणी, ताज होटल की रिटायर्ड शेफ थी पाक कला में कुशल सिद्धहस्त | और वह बेर नहीं स्वादिष्ट नूडल्स थे जिसे उसने राम लखन को खिलाये | राम कुछ आधुनिक थे सो खा गए, लखन दकियानूसी थे इसलिए फेंक दिया | जब शबरी ने उन्हें देसी संजीवनी बनाकर दिया तब उन्होंने खाया | राम लखन के तीर धनुष दक्षिण टोला के रहमनिया लोहार ने बनाये थे तब वे युद्ध जीत पाए | पर्ण कुटी वास्तव में एस्बेस्टस शीट का था , उसका पूरा Fabrication & फिटिंग - फिक्सिंग Maya Structural Co . Ltd का था | इत्यादि इत्यादि | यारो जब ऐसे ही झूठ-झाठ अफवाह फैला कर इन्होने हजारो साल इतने मनुष्यों को गुलाम बनाया | तो क्या हम तुम सब मिलकर ऐसे हजारों झूठ ईजाद नहीं कर सकते जिससे ब्राह्मणों का साम्राज्य धराशायी हो जाय, और इतने लोग जो फेसबुक पर और इतर जगहों पर आंदोलनों में दिन रात लगे हैं वे कुछ अमन चैन सुख शांति से जी सकें | दुःख के दिन तो रे भैया
और यह तो बहुत ज़रूरी है कहना कि पहले ब्राह्मण लोग ब्रह्मा के मुँह से पैदा होते थे | पर उन्होंने इतना पूजा पाठ यज्ञ हवन किया, देवी देवताओं, श्री राम चन्द्र के पाँव पखारे कि वे ब्रह्मा के पैर से पैदा होने लगे और जो दलित पहले पैर से जन्मते थे उनके मुँह से निकलने लगे | इसलिए अब दलित पूज्य हैं , ये ही विप्र हैं | सही है पूजहि विप्र सकल गुन हीना | दोहा चौपाई वही , उनका प्रभाव बदल जाय |
* इतना लिखता हूँ तो डरा डरा सा रहता हूँ | कहीं मैं किसी का " मुंशी " न कह दिया जाऊँ ?
* हरि अनंत
हरि कथा अनंता
सुनो न संता |
[ अर्थात, इस विवाद का कोई अंत नहीं है,
इसलिए हे संत इसे मत सुनो ]
[सुनो प्रचंडा ]
* दूर हो तुम
तो बहुत अच्छा है
सर का दर्द !
* सोचता हूँ क्या
पहनकर जाऊँ
उनके द्वार ?
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