शुक्रवार, 10 मई 2013

Nagrik Posts 10 May , 2013


* पांच अक्षर 
कोई बोल देता 
सात अक्षर 
मैं हाइकु बनाता
सुन्दर जोड़कर |

* तरबतर 
स्वेद से जिंदगानी 
जब भी पूरी     
पसीने से नहायी  
धूप खिलखिलाई |  

* सोचना हो तो 
कुछ सोचो ही मत 
सोच आएगा |

* आप हँसे तो 
बहुत अच्छा लगा ! 
फिर हँसो तो |

* क्या बिना खड्ग 
दे दी हमें आज़ादी ,
क्या बिना ढाल ?

* ईंट प्रश्न का 
पाषाण पत्थर से 
उत्तर न दें !

* जो भाव आये 
वही तो मैंने लिखा 
और क्या लिखूं ?

* आदमी बनें 
आदमी ही बनाएँ
जातियाँ नहीं  |

* हमारे बीच 
छत्तीस का आँकड़ा
कायम अभी |
* बाबा कहते -
सोलह दूनी आठ 
हो गयी शिक्षा |
* नौ गुणे नौ हो 
तो चूल्हे में लकड़ी 
जले = इक्यासी |
* नौ गुणे चार 
मतलब निकालो -
मुँह चूमना | 

* धर्म पालन 
सामूहिक चेतना 
अवचेतना |

* कौन साथी है 
धैर्य के अतिरिक्त 
दुःख पीड़ा में ?

* भारतवर्ष 
असह्य आपत्तियाँ
झेलता देश | 

* अत्यंत आश्चर्य और  शोध का विषय है कि ऐसा क्या है इस्लाम में जो अपने सदस्यों को ऐसी घुट्टी पिला देता है कि अच्छे अच्छे पढ़े लिखे (?) लोग भी उसकी मान्यताओं पर संदेह नहीं कर पाते ? ऐसा तो नहीं हो सकता कि हर आदमी केवल भय से इस्लाम पर उँगली उठाने का साहस न कर पाए ? ज़रूर उसमे कोई मनोवैज्ञानिक रणनीति, दुआ की दवा, या पागलपन का नश्शा अन्तर्निहित है | उसी को शोध किये जाने कि बात है जिससे विज्ञानं भी मानव जाति को अपना गुलाम बना सके |   

* जो मुझे प्यार करेगा वह ईश्वर - अल्ला - भगवान् को प्यारा होगा |

* पैसा पानी की तरह बहाओ तो बहाओ | लेकिन पानी को पानी की तरह नहीं, पैसा की तरह बहाओ | 

* देश में बिजली की कमी Mobiles के charging के कारण हुई | बात तो बात , SMS Chat अलग से | ज़रा देर बैठे तो कानों में Plug और सुनना गाने | अब इनमें बिजली तो खर्च होती ही है !

* थोड़ी थोड़ी यात्रा
पिछले अप्रेल माह कोलकाता प्रवास के दौरान भाई मनबोध जी के साथ कुछ यात्रायें की | कुछ नोट्स ;-- * सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार | इसका जो अर्थ प्रचलित है वह सत्य नहीं है, ऐसा प्रकाशित पुस्तक से ज्ञात हुआ | इसका सही अर्थ यह है कि सारे तीर्थों की बार बार यात्रा करने में जितनी तरद्दुद - तकलीफें उठानी पड़ती हैं, उतनी तो परेशानियाँ गंगा सागर की एक बार की यात्रा में ही  उठानी पड़ जातीं हैं | किताब से ज्ञात हुआ कि पहले यह घने जंगलों से घिरा था, हिंसक पशु भी थे | रास्ता कठिन था और आज की भाँति आवागमन के साधन भी सुलभ नहीं थे | आज भी कोलकाता से सौ किमी दूर यह तीरथ एक दिन में जाकर लौट आना दुष्कर है | 
यहाँ कपिल मुनि का आश्रम है जिसका जीर्णोद्धार हो रहा है | कपिल मुनि सांख्य दर्शन के जनक थे, जो एक नास्तिक भारतीय दर्शन है | लेकिन उनके आश्रम में दुर्गा - हनुमान आदि समस्त देवी देवताओं -अवतारों की मूर्तियाँ एक लम्बी लाईन में लगा दिया गया है | इस पर अब कुछ क्या कहना !
* १८ अप्रेल को राजधानी से पुरी जाना हुआ | AC chair car थी , सो ठंडा तो होना था, लेकिन समझ में नहीं आता कि डिब्बे इतने ठन्डे क्यों कर दिए जाते हैं कि आदमी सिकुड़ जाय ? क्या सामान्य शीतलता यात्रियों को नहीं दी जा सकती ?               
* अब यहाँ एक टिप्पणी अप्रिय हो सकती है | मैंने यह अनुभव किया कि समाज में दलित कैसे बनते हैं, कल्पना किया कि दलित कैसे बने होंगे ? किसी किताब में लिखकर तो ऐसा नहीं किया जा सकता | हुआ यह कि वेज -नॉनवेज थालियाँ परोसने के बाद वेटर सौंफ- मिश्री लेकर आया | ज़ाहिर है होटलों की तरह बख्शीश लेने के लिए | यह मैं कई बार लिख चुका हूँ कियह प्रथा उन्हें नीचा दिखने के लिया पर्याप्त है | पहले पवनी परजा होली दीवाली की त्योहारी लेने आते थे | वही अब भी कायम है | वह व्यक्ति क्या यात्री के बराबर बैठ सकता हैं ? देने वाले का हाथ और स्थान ऊपर हो जाता है, और लेने वाले की स्थिति कथित दलित | वे अपनी मजदूरी और वेतन में सम्मान का अनुभव करें तो स्थिति बदलनी शुरू हो जाय |  

* खुन्नस , The Prejudice  
मेरा नाम = U.N.S.= उन्स
मेरी संस्था का नाम = खुन्नस

* हमारा सुंदर राष्ट्र गीत होना चाहिए =
" खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों "
अब इस पर भी खाप पंचायत वाले एतराज़ तो करेंगे !


* प्रश्न इनसे नहीं, उन प्रगतिशील तबकों से पूछो जो ऐसी सूरतेहाल में भी अपने को हिन्दू कहलाने कहे जाने में भी शर्म और निंदा समझते हैं ? मैं भी उन्ही में शामिल था | लेकिन मैं सोचता हूँ कि यदि मैं " ऐसा " मुसलमान नहीं हो सकता जो अपने मज़हब और किताब केप्रति इतना दृढ़ हो तो क्या मुझे ढीला ढाला हिन्दू होना स्वीकार नहीं कर लेना चाहिए इनके बरक्स , इनके बरखिलाफ ? और मैं हो गया | हर गैर मुसलमान को अब हिन्दू हो जाना चाहिए पाकिस्तान बन जाने के बाद | आध्यात्मिक भले न सही , राजनीतिक रूप से तो ज़रूर ही |
 तिस पर लोग कहते हैं कि साम्प्रदायिकता तो कुछ कठमुल्लाओं की देन  है, साधारण मुसलमान तो बस - - -|  जब कि स्थिति यह है कि निश्चित मामलों में हर मुसलमान एक सा कट्टर होता है, उसे होना ही  होता है |  यह भी कहते हैं कि आतंकवाद कुछ सिरफिरों का काम है और आतंकी का कोई धर्म नहीं होता | जब कि सच यह है कि धर्म तो आतंकी का ही होता है | अहिंसक के धर्म कि कहाँ पूँछ होती है |
इसलिए इनसे बहस मत करो, इनकी बातों से इनका मन पकड़ो, नीयत पहचानो, सबक लो और तब अपने लिए कोई रास्ता कोई रणनीति बनाओ |   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें