* यदि आपने Top पहना हुआ है तो फिर Bottomless होने का अहसास जाता रहता है |
* अनुमानतः, कुछ लोग फेसबुक स्वयं स्वेच्छा से नहीं आये हैं | वे कहीं से भेजे या किन्ही द्वारा लाये गए हैं, उनके काम से | [ यथा सिमोन द बोउआ ]
* किसी भी पगड़ी धारी सिख को सरदार जी कहिये, नाम जानिए या नहीं | वह बोलेगा | अर्थात यहाँ व्यक्तिवाद तिरोहित होकर एक समूहवाद / किंवा समाजवाद में तब्दील हो जाता है | फिर पता नहीं क्यों लोग जातीय समूहों [ यादव अपवाद ] से चिढ़ते हैं ? उनके नाम तक उखाड़ फेंकना चाहते हैं, चाहे उखाड़ कुछ न पायें | यहाँ तक कि कम्यून [समूह ] वादी भी जब देखो तब जातिवाद के पीछे पड़े रहते हैं | यह गलत बात है कि नहीं ?
* यही झकाझोरी में हेराय गए कँगना |
यह हम लोगों के यहाँ का देसी गीत है | किसी को यह अश्लील भी लग सकता है, क्योंकि मामला तो वही है | हमें भी लगता यदि इसका राग इतने प्यारा न होता | इसलिए मैं कभी मौज में अकेले खूब गता हूँ | आज इसकी याद दुसरे सन्दर्भ में आई | क्योंकि मेरा मिजाज कुछ पोयटिक भी है, इसलिए इसको जोड़ा मैंने फेसबुक पर चलने वाले बहसों विवादों से | कभी कभी यह झकाझोरी इतनी तेज हो जाती है की वार्ता का असली उद्देश्य, मंतव्य यानी जिसकी उपमा मैंने कँगना से दी वही हेराय, गायब हो जाता है |
* एक कोण से और देखना होगा | आज़म खान मुसलमान थे या नहीं, वह हमारे भारत देश के राज्य प्रतिनिधि थे | किसी भी कार्यवश वह गए हों मेज़बान मुल्क को उनकी हैसियत के मुताबिक उनसे ससम्मान ही पेश आना था | इस असम्मान का विरोध वाजिब था | इधर हम हैं कि आपसी इतर विवाद में उलझ कर देश कि कमजोरी प्रकट करते हैं |
* प्रेमचंद सरीखे, और उनके समेत, लेखक दलित लेखन नहीं कर सकते | अतः इन्हें सवर्ण लेखक कहा जाना चाहिए | साधारण - सामान्य लेखक तो कोई होता नहीं |
* एक बात तो मुझे लगभग तय दिखाई देती है | मार्क्सवादी पैदायशी मूर्ख नहीं होते | वे बाद में बनाये जाते हैं |
* अभी तरुणाई में सुना एक पंडित जी का सुमधुर स्वर में गाया निर्गुण भजन याद आया तो उन्ही की लय में गाने लगा :--
* यही अजरोरे बिछाई लेबा हो, अंधेरवा में ना बनिहैं राम |
क्या यहाँ अजरोरे का अर्थ - प्रकाश [ enlightenment ] से है ?
*अरुण जी , आप तो सर न कहिये | किसी के लिए भी मैं यह रिवाज़ बंद करवाना चाहता हूँ | हम किन्ही professional school में नहीं हैं, न किसी के गुरु चेला | नाम के साथ ' जी ' या और कोई मित्रवत - भाई / साथी ठीक होगा | मेरे लिए उग्र जी चलता | वैसे मेरा उपनाम ' नागरिक ' है और मैं इसे '' कामरेड " की तरह सबके लिए इस्तेमाल कर सकता हूँ | " नागरिक धर्म " का प्रचारक रहा / हूँ मैं | [Rohela ]
* आप लोगों की घृणा का पात्र बनने का खतरा तो है लेकिन यह सच है कि मेरी वैचारिक पटरी लोगों से कम ही खाती है | मैं नालायक अपने आप में सरल किन्तु विरल हूँ | इसी को उस हाइकु कविता में व्यक्त किया है | लेकिन आप कविता पर न जाइए | संपर्क न तोडिये, स्नेह भाव बनाये रखियेगा | अंशुमान जी से पूछिए, इनसे मेरा प्रेम कितने झगड़ों के बाद हुआ, और आपसे कितने संकोच के साथ | आभारी हूँ | इतना अवश्य है कि संस्कारवश मैं अधिक अशिष्टता बर्दाश्त नहीं कर पाता, जो कि अधिकतर विमर्शों में व्याप्त है | यद्यपि मैं स्वयं उग्र हूँ | अभी आप लोगों के कमेन्ट आ रहे थे तब मैं " जनमत निर्माण " की भूमिका लिख रहा था | क्षमा ! [ अंशुमन/वन्दिता ]
* सवर्ण राजनीति तो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भारत में इस्लामी राज्य लेन कि और अग्रसर है | ऐसे में यदि राज्य दलितों के हाथ में नहीं दिया गया तो नतीजा बुरा होने वाला है | इनके वश का नहीं भारत में हिन्दू राज्य बनाना | देख लीजिये इनके झगड़े | अवर्ण हिन्दू राज्य ही एकमात्र विकल्प है |
* यदि ब्राह्मण ही बनना है तो अब दलित बनेंगे ब्राह्मण | ये ही उनका स्थान लेंगे, उन्हें रिप्लेस करेंगे | नव / भव ब्राह्मण नहीं, वही पुराने वाले ब्राह्मण - कुछ भी नयापन नहीं | वही पूजे जायँगे, उन्ही का वचन ब्रह्मवाक्य होगा | अब लोकतांत्रिक व्यवस्था में वही सर्वोच्च होगे, शासक या शासक निर्माता | वाही चुनाव लड़ेंगे | और हम उन्ही को जितायेंगे | उनके ऊपर कोई कृपा करके नहीं | अपने स्वार्थवश, भारत में हिन्दू राज्य के लिए | इसे इस्लामी चंगुल से बचाने के लिए |
* आत्मरक्षा का भरोसेमंद कुदरती हथियार | बलात्कार से बचने के लिए अपने दाँत मजबूत कीजिये | अमुक वज्रदंती , फलाँ लौह्दंती मंजन इस्तेमाल कीजिये |
* काहे चिल्लात हौ ? अबहीं चीन बहुत दूर है | हम तो लखनऊ में हन | बैंड बाजा बरात लेके आवत है, देखो कब तक पहुँचे | तब तनिक और पीछे खिसक लेब | काहे अब्बै से जान दिहे डारत हो ?
[त्रियक रेखाएँ ]
* एक रेखा हो
तो उसे फोन करें
इतनी सारी - - ?
* मैं राज्य की हिंसा का इसलिए समर्थक हूँ कि अन्यथा तो तमाम पहलवान लोग और संगठन हिंसा द्वारा समाज और मानव जीवन को अपने कब्ज़े में ले लेंगे | ध्यान से देखिये, भगत सिंह के समर्थक वे लोग हैं जो जीवन तो क्या, अपना एक कौड़ी भी त्यागने को तैयार नहीं | नारा ज़रूर ज़ोरदार लगायेंगे क्योंकि भगत,राजगुरु आदि ने इनके लिए अपनी जान दी | जिस प्रकार ईसा ने ईसाइयों के पापों के एवज में सूली पर चढ़ना स्वीकार किया | लेकिन स्वयं कोई ईसा, कोई भगत सिंह नहीं बनता | उधर अहिंसावादी गांधी के सींकिया चेले कम से कम अपना निजी जीवन तो थोडा बहुत जी जाते हैं !
* लिखित दे रहा हूँ
जुबानी नहीं है ,
समय पास करना
जवानी नहीं है |
* जग में देखो, वह उतना ही लम्बरदार हुआ ;
जग में छोड़ी जिसने जितनी बदबूदार हवा |
एक बहुत अच्छा शेर हो गया है | सुनाकर फिर काम पर निकलूँगा |
* नींद आ तो जा रही तेरे बगैर ,
अब तू आ या भाड़ या चूल्हे में जा |
- - - - - - --
[ तो कैसा हो ? ]
* मैं सोचता हूँ
शिक्षा का मतलब
नैतिकता हो |
नैतिकता का [5]
नाम सार्वजनीन [7]
नागरिकता [5]
मनुष्य केन्द्रीयता [7]
समता,सम्मान्यता [7]
{ हाइकू - ताँका, Poetry = 5 -7 -5 -7 -7 }
* तुम्हारी याद
जैसे जलती हुई
अगरबत्ती |
खुशबु भरी
सुगन्धित करती
धुआं उड़ाती |
* कब आओगे
मित्र, पड़ोसी चीन
मेरे घर में ?
* बच्चे हैं या हैं
ये कोई पुष्पगुच्छ
क्या अंतर है !
* बातें खूब हैं
बातें हैं बातों का क्या
खूब कीजिये |
* वही मेरा है
जो मेरे काम आये
शेष पराये |
* मार भगाओ
विचार आ जाएँ तो
ध्यान लगाओ |
* पाला पड़ता
ऐसे ऐसे लोगों से
जान बचाता
कैसे कैसे लोगों से
जैसे तैसे लोगों से |
* वह आयेंगे
यदि विश्वास है तो
वह आयेंगे |
* वह जानते
जेब से निकालना
हमारा पैसा
बहुराष्ट्रीय हैं वे
बड़े ताक़तवर |
* वह आये हैं
विश्वास नहीं होता
छूकर देखूँ !
* आप नेता हैं
और मुझे चिढ़ है
नेतागिरी से |
* क्या करता हूँ ?
बुद्धि का इस्तेमाल
यथासंभव |
* समान होंगे
आदमी से आदमी
धर्म से धर्म
नहीं, हिन्दू से तुर्क
न सिख से ईसाई |
* व्यस्त रहता
यही स्वास्थ्य का राज़
मस्त रहता |
* मेरी नियति
सबसे दुश्मनी है
वैचारिक तो !
* मेरी दृष्टि में
हर किस्म की नारी
आदर योग्य |
* बताईयेगा
जब ऊब जाइए
मेरे पोस्ट्स से |
* ऊटपटाँग
लिखने में क्या श्रम
मैं लिखता हूँ |
* सूरत नहीं
सीरत से बनता
आदमी प्यारा |
* लोग कहेंगे
अच्छाई का ज़माना
नहीं रहा, तो
उन्हें चुप कराओ
पूछो, तुम अच्छे हो ?
* रंग बिरंगे
कुछ लोग, तो कुछ
बदरंग क्यों ?
* माँ के मानी क्या
परंपरा वाहिनी
दकियानूसी ?
* ब्राह्मणवाद
परोक्ष शासन का
शाश्वत [शाब्दिक ] वाद
सार्वकालिक सच
सम्प्रति विद्यमान |
* नास्तिकता तो
देती बड़ा संबल
" आत्मविश्वास "
* लिख दीजिये
आपका काम ख़त्म
अब वे जानें
उनका काम जाने
क्या करते हैं वे ?
* आगे ही आगे
और आगे सोचना
रुक न जाना
बहुत दूरस्थ है
विचारों की मंजिल |
* जातिगत जो
गैरबराबरी है
न अभी बाक़ी
शिक्षा में बराबरी
उसे दूर करेगी |
* सस्ती हो गयी
आसानी से मिल गयी
जो कोई वस्तु ?
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