शुक्रवार, 17 मई 2013

Nagrik Blog 16 May 2013


[ कविताएँ ]
* मैं जानता नहीं 
और जो जानता हूँ 
उसे जानो 
भूल गया |
# # 

* पहने तो हैं कपडे 
सर से पाँव तक 
सिर पर टोपी 
पैर में जूते !
और कितने 
कपडे पहनें ?
# # 

[ टांका ]
* धूल उड़ेगा 
झाड़ू जो लगाओगे
दुर्गन्ध देगी 
नालियों की सफाई 
तो क्या करोगे नहीं ?

* यह कोई ज़रूरी नहीं है | जो जहाँ काम कर कर रहा है, वह वहीँ काम करे | इसमें कोई बुराई नहीं है | यह क्या बात हुई कि हर मीडिया वाले हर मीडिया में आयें | उन्हें अपने क्षेत्र की उपयोगिता पर भरोसा रखना चाहिए | यह आत्मविश्वास हटते ही पत्रकार जन राजनीति में आने लगते हैं,किंवा [ मानो ] पत्रकारिता कुछ छोटी चीज़ है |

* 6 लाख रूपये वार्षिक आमदनी वाले अब क्रीमी लेयर में नहीं आते | ढाई लाख से अधिक आमदनी वाले पेन्सन भोगी बाकायदा आयकर देंगे | ध्यातव्य है कि इनकम टैक्स देने वालों कि समाज में एक हैसियत होती है, उन्हें क्रीमी मलाईदार माना जाता है | ज़ाहिर है सरकार भी उन्हें अतिरिक्त समृद्ध मानती है तभी तो उनसे आयकर वसूलती है ?

* आजकल घर में अकेला हूँ | सन्नाटे का फायदा यह है कि फोन की घंटी बजती है तो सुन पाता हूँ |

* लोग ग्रुप बनाते हैं फेसबुक पर और मुझे Admin बना देते हैं | I follow lane driving / Absolute Nonsense / नोक झोंक | कहना न होगा इनके निर्माता [ नहीं, निर्मात्री ] स्त्रियाँ ही हैं | राकेश किरन / नीलाक्षी / श्रीमती राकेश | सब मुझे मूर्ख समझती हैं | तो मैंने बुद्धिमत्ता का मार्ग निकाल लिया | तुलना करता हूँ इनकी प्रकृति से | ऐसे ही प्रकृति भी दुनिया बनाती है और हम निरीह, बेचारे मनुष्यों के कमज़ोर [ अथवा सशक्त जैसे भी ] हाथों में सौंप देती है |    

* Close friend वे होते हैं जिनसे बातचीत " बंद " हो ?
 

* व्यापार चोखा 
आयुर्वेद का नाम 
संत का मान |

* रुक भी जाओ 
जब कह रहे हैं 
तो मान जाओ |

* आपने कहा 
बड़ी मंहगाई है 
बेईमानी है ,
बड़ा भ्रष्टाचार है 
हो गयी पोलिटिक्स | 

* कितनी देर 
पाले रहोगे गुस्सा ?
थूको इसको |

* गला खुलेगा 
रोने धोने से ही 
खूब चिल्लाओ |

* फेसबुकिया
दोस्त भी तो दोस्त हैं 
दुश्मन नहीं |

* वह प्रसन्न 
सारा जग प्रसन्न 
मैं भी प्रसन्न |

* बड़े तो हुए  
किताबें पढ़कर 
छोटा भी हुआ |

* अच्छी लगतीं 
जब खिलखिलातीं 
बच्चे बच्चियाँ |

* इष्ट छोडिये 
अनिष्ट नहीं हुआ  
खुदा का शुक्र |

* कोई भी नीति 
काम नहीं करती  
हर जगह |

* तर्क यह कि 
तर्क मत कीजिये 
हर जगह |

* तर्क यह कि 
प्रत्येक मुद्दे पर 
तर्क न करें |

* थोडा लिहाज़ 
करना ही होता है 
महिलाओं का |

* हारता नहीं 
मेहनती मनुष्य 
जीवन जंग ,
पर हार रहा है 
कारण क्या है |

* ब्राह्मणवाद 
आवश्यकता वश 
ज़रुरी हो तो  
मार्क्स-दलितवाद ,
वक़्त की माँग ?

* " कल मिलेंगे "
अभी कल ही कहा ,
आज भी वही |

* फूल पत्तियाँ
नहीं होता है वृक्ष  
जड़ में जाओ |

* सब सवर्ण 
हो जाते तो अच्छा था 
कुछ तो होता !

* तर्क यह कि
काम नहीं करता 
तर्क हमेशा |

* पास आने की 
काबलियत नहीं 
अन्यथा आता |

* दूरी ज़रूरी 
संबंधों में मिठास 
बनी तो रही ! 

* इस पर तो 
हाइकु बना लेना 
बड़ा आसान  -
" रूप तेरा मस्ताना "
टांका बन गया न !

सब उद्भूत 
होता है, नहीं हूँ मैं 
इसका कर्ता |  

सब उद्भूत 
होता है, अद्भुत मैं 
नहीं लिखता |

नहीं लिखता 
मैं कुछ भी अद्भुत 
उद्भूत सारा,
मेरा कुछ नहीं है 
इसमें योगदान |

कुछ किया क्या 
लीक से हटकर 
जो मैं दाद दूँ ?

* दृष्टि नहीं है 
पढ़ाई लिखाई है 
तो उससे क्या ! 

* हम आपके  
यकीनन जानिए 
दुःख के संगी | 

* बुरे दिनों में 
जाने कैसे आ जाता 
इतना धैर्य !

* चलोगे तुम 
जितनी दूर तक 
मैं भी चलूँगा |

* दिया न दिया 
तूने बोल तो दिया 
जी खोलकर |

* मैं तो मैं ही हूँ 
कोई दूसरा नहीं,
न होगा ऐसा | 

* कहानियाँ हैं 
मनुष्यों के तमाम 
पाप पुण्य की |  

* हाथ बढ़ाया 
सबकी ओर पर 
साथ न पाया |  

* हस्तलाघव 
हाइकु बनाना है 
हमारे लेखे |

* ऐसा होना था 
इसलिए हो गया 
ऐसा होना था 
नहीं तो नहीं होता 
ऐसा न होना होता |

* फ्यूज़ वायर 
जैसे होते हैं बच्चे 
माँ - बाप मध्य |

* ईमानदार 
हो ही नहीं सकते 
हम खुद से |

* प्यार के लिए 
क्या क्या करते लोग 
बिलावजह |

* तुमने कहने का मन बनाया है ,
मेरा भी मन है उसे सुनने का |

* मैं समझ नहीं पाता, बेवकूफ लड़के लड़कियों के पीछे क्यों पड़े रहते हैं ? उन्हें तो उनके आगे पड़ना चाहिए |

* Next Shift = 
अनैतिक जन ( AGAR)
Anti God - Anti Religion

* Love marriage is no better than married Love .

* औरतों में कोई काबलियत नहीं होती | फिर भी मैं उनकी उच्च पदों पर नियुक्ति की अनुशंसा करता हूँ |

* तो आइये / बुलाइए | मैंने भी तो चिट्ठियों की पत्रिका [ प्रिय संपादक ] जिन्दगी भर निकली | उसके लिए जिया = मरा | पत्र -पत्रकारिता को प्रतिष्ठित करने में लगा रहा | मेरे सारे मित्र पत्र मित्र ही हैं | पर अब ' ज्यादा ' लिखना नहीं हो पाता | फिर fb blog पर तो सार्वजनिक लिखता ही हूँ | निजी बातें फोन कर लेने में हर्ज़ क्या है, जब यह कपूत आ ही गया है ?  [ Sandeep]

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें