[ कविताएँ ]
* मैं जानता नहीं
और जो जानता हूँ
उसे जानो
भूल गया |
# #
* पहने तो हैं कपडे
सर से पाँव तक
सिर पर टोपी
पैर में जूते !
और कितने
कपडे पहनें ?
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[ टांका ]
* धूल उड़ेगा
झाड़ू जो लगाओगे
दुर्गन्ध देगी
नालियों की सफाई
तो क्या करोगे नहीं ?
* यह कोई ज़रूरी नहीं है | जो जहाँ काम कर कर रहा है, वह वहीँ काम करे | इसमें कोई बुराई नहीं है | यह क्या बात हुई कि हर मीडिया वाले हर मीडिया में आयें | उन्हें अपने क्षेत्र की उपयोगिता पर भरोसा रखना चाहिए | यह आत्मविश्वास हटते ही पत्रकार जन राजनीति में आने लगते हैं,किंवा [ मानो ] पत्रकारिता कुछ छोटी चीज़ है |
* 6 लाख रूपये वार्षिक आमदनी वाले अब क्रीमी लेयर में नहीं आते | ढाई लाख से अधिक आमदनी वाले पेन्सन भोगी बाकायदा आयकर देंगे | ध्यातव्य है कि इनकम टैक्स देने वालों कि समाज में एक हैसियत होती है, उन्हें क्रीमी मलाईदार माना जाता है | ज़ाहिर है सरकार भी उन्हें अतिरिक्त समृद्ध मानती है तभी तो उनसे आयकर वसूलती है ?
* आजकल घर में अकेला हूँ | सन्नाटे का फायदा यह है कि फोन की घंटी बजती है तो सुन पाता हूँ |
* Close friend वे होते हैं जिनसे बातचीत " बंद " हो ?
* व्यापार चोखा
आयुर्वेद का नाम
संत का मान |
* रुक भी जाओ
जब कह रहे हैं
तो मान जाओ |
* आपने कहा
बड़ी मंहगाई है
बेईमानी है ,
बड़ा भ्रष्टाचार है
हो गयी पोलिटिक्स |
* कितनी देर
पाले रहोगे गुस्सा ?
थूको इसको |
* गला खुलेगा
रोने धोने से ही
खूब चिल्लाओ |
* फेसबुकिया
दोस्त भी तो दोस्त हैं
दुश्मन नहीं |
* वह प्रसन्न
सारा जग प्रसन्न
मैं भी प्रसन्न |
* बड़े तो हुए
किताबें पढ़कर
छोटा भी हुआ |
* अच्छी लगतीं
जब खिलखिलातीं
बच्चे बच्चियाँ |
* इष्ट छोडिये
अनिष्ट नहीं हुआ
खुदा का शुक्र |
* कोई भी नीति
काम नहीं करती
हर जगह |
* तर्क यह कि
तर्क मत कीजिये
हर जगह |
* तर्क यह कि
प्रत्येक मुद्दे पर
तर्क न करें |
* थोडा लिहाज़
करना ही होता है
महिलाओं का |
* हारता नहीं
मेहनती मनुष्य
जीवन जंग ,
पर हार रहा है
कारण क्या है |
* ब्राह्मणवाद
आवश्यकता वश
ज़रुरी हो तो
मार्क्स-दलितवाद ,
वक़्त की माँग ?
* " कल मिलेंगे "
अभी कल ही कहा ,
आज भी वही |
* फूल पत्तियाँ
नहीं होता है वृक्ष
जड़ में जाओ |
* सब सवर्ण
हो जाते तो अच्छा था
कुछ तो होता !
* तर्क यह कि
काम नहीं करता
तर्क हमेशा |
* पास आने की
काबलियत नहीं
अन्यथा आता |
* दूरी ज़रूरी
संबंधों में मिठास
बनी तो रही !
* इस पर तो
हाइकु बना लेना
बड़ा आसान -
" रूप तेरा मस्ताना "
टांका बन गया न !
सब उद्भूत
होता है, नहीं हूँ मैं
इसका कर्ता |
सब उद्भूत
होता है, अद्भुत मैं
नहीं लिखता |
नहीं लिखता
मैं कुछ भी अद्भुत
उद्भूत सारा,
मेरा कुछ नहीं है
इसमें योगदान |
कुछ किया क्या
लीक से हटकर
जो मैं दाद दूँ ?
* दृष्टि नहीं है
पढ़ाई लिखाई है
तो उससे क्या !
* हम आपके
यकीनन जानिए
दुःख के संगी |
* बुरे दिनों में
जाने कैसे आ जाता
इतना धैर्य !
* चलोगे तुम
जितनी दूर तक
मैं भी चलूँगा |
* दिया न दिया
तूने बोल तो दिया
जी खोलकर |
* मैं तो मैं ही हूँ
कोई दूसरा नहीं,
न होगा ऐसा |
* कहानियाँ हैं
मनुष्यों के तमाम
पाप पुण्य की |
* हाथ बढ़ाया
सबकी ओर पर
साथ न पाया |
* हस्तलाघव
हाइकु बनाना है
हमारे लेखे |
* ऐसा होना था
इसलिए हो गया
ऐसा होना था
नहीं तो नहीं होता
ऐसा न होना होता |
* फ्यूज़ वायर
जैसे होते हैं बच्चे
माँ - बाप मध्य |
* ईमानदार
हो ही नहीं सकते
हम खुद से |
* प्यार के लिए
क्या क्या करते लोग
बिलावजह |
* तुमने कहने का मन बनाया है ,
मेरा भी मन है उसे सुनने का |
* मैं समझ नहीं पाता, बेवकूफ लड़के लड़कियों के पीछे क्यों पड़े रहते हैं ? उन्हें तो उनके आगे पड़ना चाहिए |
* Next Shift =
अनैतिक जन ( AGAR)
Anti God - Anti Religion
अनैतिक जन ( AGAR)
Anti God - Anti Religion
* Love marriage is no better than married Love .
* औरतों में कोई काबलियत नहीं होती | फिर भी मैं उनकी उच्च पदों पर नियुक्ति की अनुशंसा करता हूँ |
* तो आइये / बुलाइए | मैंने भी तो चिट्ठियों की पत्रिका [ प्रिय संपादक ] जिन्दगी भर निकली | उसके लिए जिया = मरा | पत्र -पत्रकारिता को प्रतिष्ठित करने में लगा रहा | मेरे सारे मित्र पत्र मित्र ही हैं | पर अब ' ज्यादा ' लिखना नहीं हो पाता | फिर fb blog पर तो सार्वजनिक लिखता ही हूँ | निजी बातें फोन कर लेने में हर्ज़ क्या है, जब यह कपूत आ ही गया है ? [ Sandeep]
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