बुधवार, 8 मई 2013

Nagrik Blog 8 May, 2013


[ कविता ]
कमर दर्द के कारण 
तुम्हारी याद कुछ 
कम तो हुई है,
फिर भी कभी 
आती तो है |
- - - - - - - - 
[ कविता ]
काँटा गुलाब में ही नहीं 
मछली में भी है,
गुलाब तो छोड़ भी दूँ |
- - - - - - - - - -  
[ कविता ]
* कभी तो मुझे 
आगे निकलने दो 
प्रणाम करने में, 
सलाम बोलने, या   
चरणस्पर्श में !
- - - - - - -  -
[ कविता ]
* यहाँ तो 
रास्ते पर  
चलने से पहले ही 
बिल्ली 
रास्ता काट जाती |
# #

* Famine [फेमीन] कहते हैं अकाल को | इस प्रकार Feminist का अर्थ निकलना चाहिए -  जिसके पास पौरुष का अकाल पड़ गया हो |

* गैरबराबरी के मंज़र तो यूँ ही समाज के बाज़ार में यत्र - तत्र - सर्वत्र है | e.g. दूल्हा दुल्हन बड़ी सी कर में चलेंगे और बाराती भले ट्रैक्टर ट्राली में | अब इसमें जाति, धर्म, नर-नारी का क्या भेद ? फिर पुराणी किताबों को ही हम क्यों कोसें ?

* नाक पर कपडा बाँधने से क्या दुर्गन्ध छन जाती है ?     

* असंभव शब्द डिक्शनरी में नहीं, रास्तों में होता है | चलने पर पता चलता है |

* यदि कुछ लोग इसकी सेवा बंद कर दें तो समाज का बड़ा कल्याण हो जाय |

* मान लीजिये वह है भी, तो भी यह तय है कि हम उसे जान नहीं सकते | फिर जानने का इतना ढिंढोरा क्यों ?

* - What do I do ?
= Poetry , personal poetry , practical poetry of life .

* सारी अच्छाई 
मेल मिलाप में है 
द्वेष में नहीं |

* दिल पसीजा 
उनका भी, जिनका 
पत्थर का था |
 
* क्रिकेट क्या है 
दौड़ने का बहाना 
फुटबाल भी |

* चाँदनी बस 
चार दिन ही ठीक 
फिर उबाऊ | 

* बस बात है 
प्यार नहीं करता 
मैं भी किसी को | 
 
* सारा संदेह 
सुबह होते होते 
दूर हो गया |

* खुल जाएगा 
सुबह होते होते 
सारा ही भ्रम |
 
* कह तो दिया 
न तुम हमें जानो 
बात झूठ थी | 

* मुल्ला से पूछो 
मस्जिद का महत्व 
मैं क्या बताऊँ ?

* तमाम पाया 
ज़िन्दगी का हिसाब 
कुछ दे दिया 
लेकर बराबर 
देकर बराबर |

* मुसलमान 
इस मामले में तो 
पक्के हैं हम |

* भारतीयों का 
है न एक इलाज 
अच्छा सा डंडा |

* जिया, जी लिया 
अच्छी ज़िन्दगी जिया 
संतोषप्रद |

* नागरिकता 
धर्म बना ले जो भी 
नागरिक है |   

* सवालाती  हैं   
सब, जवाब नहीं 
किसी के पास |

* छंदों में त्रुटि
अहसास दिलाती 
वृद्धावस्था की |  

* निपट गया 
आखिर तो यह भी  
दिन दुर्दिन |

* न ऊपर है
किधर गया पानी,  
न ही नीचे है |

* न रामायण 
महाभारत सही 
गोर्की की माँ ही !

* न रामायण 
महाभारत सही 
गोर्की की माँ ही ,  
कोई भी किताब हो    
भरती विश्वास ही |

* कोई विषय 
शायद ही बचा हो 
लिखा न हो 
जिस पर हमने 
हाइकु काव्य 
चुटकुला लेख या  
किसी विधा में कुछ |

* हाय रे दैय्या 
इतनी निष्पक्षता !
न्याय भी डरे ?

* मुझे पता है 
छूट जायँगे साथी 
अकेला हूँगा |  

* मेरी तो बातें 
कहने योग्य नहीं 
मैं कैसे बोलूं ?

* सब किताबी 
बातें हवा हवाई 
करते लोग |

* व्यवस्था होगी 
तो स्वतंत्रता कुछ 
सीमित होगी |

* झूठ नहीं था 
न अब, न तब भी  
मेरा कहना |

* सारी समस्या 
मनुष्य के मन में 
कैसे सुलझे 
बाहर बाहर से 
ऊपरी इलाज से ?

* उनसे हम 
प्रेम क्यों नहीं करें 
इसलिए कि
समाज ने बरजा
माँ बाप ने रोका है ?

* लर्न तो लिव [ Learn to live ]  
एंड वाइस वर्सा [ And vice-versa ]
लिव तो लर्न [ Live to learn ]  
 
* हाँ यह तो है 
बुरा लगा न लगा 
अच्छा न लगा  |

* जवाबदेह 
मैं हूँ तो ज़रूर 
पर उत्तर 
देने के मैं अयोग्य 
जवाब नहीं कोई |

* प्रायवेट है 
लेकिन पवित्र है 
काम संबंध |

* कुछ तो होगा 
जिसका परिणाम 
बलात्कार है !

* जो मिल गया 
जाने या अनजाने 
उसे छोड़ें क्यों 
चाहे या अनचाहे 
उसके साथ रहें |

  * जल्दी नहीं है 
बहुत समय है 
अभी सोच लो !

* जीवन स्वाहा 
हाँड़ तोड़ श्रम में 
सत्यनिष्ठा में |

* फोन तो नहीं 
फोन का इंतज़ार 
ज़रूर किया |

* तुम्हारी नहीं 
गलती हमारी थी 
जो दिल दिया |

* टूट जाती है 
जो परंपरा, फिर 
नहीं बनती |

* नहीं है कोई 
मेरे सरीखा दुष्ट 
इस जग में |

* यह गहना
- - -- - - - 
स्वर्ण गहना  
बेकार ही पहना 
फेंक बहना !  

[मूल भाव = 
किसी को हम 
ओवरटेक करते हैं 
कोई हमको |
[लेकिन यह तो गलत हाइकु हो गया | अब इसे दो तरह से लिखा जा  सकता है =] 
1 - किसी को हम 
ओवरटेक करें  
कोई हमको |
2 - किसी से हम 
आगे निकलते, तो 
कोई हमसे | 

* [ शायरी ]
मैंने तुमसे कह दिया था शाम को ही 
आज मेरे स्वप्न में तुम मत आना 
और तुम फिर आ गए ?

* यह शेर कुकुरनिदिया सोता है | सोता है, ज़रा सी आहट पर फिर भोंकने लगता है |   

* मई दिवस पूंजीवादी - साम्राज्यवादी अमेरिका के शिकागो शहर से आयातित है | कम्युनिस्ट भला इसे क्यों कर स्वीकार करेंगे ? 
वहाँ तो काम के घंटे कम करके आठ करने के लिए खून बहाए गए, हम कोशिश में हैं यह यहाँ लगभग 'शून्य' हो जाय |    

* मनुष्य की ज़िन्दगी को नर्क बना कर रख दिया है इस सभ्यता ने | बच्चों को पढ़ाओ तो कहाँ से इतना पैसा लाओ ? बिटिया की शादी में पैसा ही पैसा लगता है फिजूल | बीमारी हेरामी तो खेत बेचो | कहाँ से इतना इंतजाम कैसे करे कोई | भगवान् ने हमें नाहक  ही पैदा करके इस दुनिया में भेज दिया ! पता नहीं उसे क्या मिला | हमारे खाते में तो दुःख ही दुःख ही है |

* लेकिन यह मापदंड हिन्दू वांग्मय पर खरा नहीं उतरता | कई दलित विद्वान उसके अध्ययन का दावा करते हुए भी उसके प्रखर,बल्कि उग्र आलोचक हैं | [ Nilakshi ]

* इस्लाम डेढ़ हजार साल में ही " थक " गया | हिन्दू भले ही चोटिल हुआ, पर सनातन तो सनातन ! अभी तक चल रहा है | [ chachal bhu ]

* आपके इस पोस्ट पर 70 के दशक में लिखी एक कविता याद आई     ;--

[ धोबी का कुत्ता ]
* पहले एक धोबी होता था 
उसका एक घर होता था 
उसका एक घाट होता था ,
उसका एक कुत्ता भी होता था 
जो न घर का होता था 
न घाट का होता था | 
लेकिन अब, 
सिर्फ कुत्ते होते हैं    
उन्ही के घर भी होते हैं 
उन्ही के घाट भी होते हैं
और विडम्बना, 
उनका कोई कुत्ता नहीं होता |  
#  #  #

- और एक अत्यंत छोटी सी कविता जो मुझे बहुत पसंद है | इसे लिखकर मैं बहुत आनंदित हुआ था | लेकिन कुछ मित्र इसे अस्पष्ट [ambiguous ] बताते है | पूछते हैं - " इसका क्या अर्थ " ? पर यदि इसे यहाँ ससंदर्भ पढ़ा जाय तो सुधी मित्रो के लिए इसे समझना, इसमें डूबना लगाना मुश्किल नहीं है | यहाँ धोबी के स्थान पर भंगी है | 

" कमोड साफ़ करता हूँ 
चमक जाता है 
ख़ुशी होती है | " 
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