[ कविता ]
कमर दर्द के कारण
तुम्हारी याद कुछ
कम तो हुई है,
फिर भी कभी
आती तो है |
- - - - - - - -
[ कविता ]
काँटा गुलाब में ही नहीं
मछली में भी है,
गुलाब तो छोड़ भी दूँ |
- - - - - - - - - -
[ कविता ]
* कभी तो मुझे
आगे निकलने दो
प्रणाम करने में,
सलाम बोलने, या
चरणस्पर्श में !
- - - - - - - -
[ कविता ]
* यहाँ तो
रास्ते पर
चलने से पहले ही
बिल्ली
रास्ता काट जाती |
# #
* Famine [फेमीन] कहते हैं अकाल को | इस प्रकार Feminist का अर्थ निकलना चाहिए - जिसके पास पौरुष का अकाल पड़ गया हो |
* गैरबराबरी के मंज़र तो यूँ ही समाज के बाज़ार में यत्र - तत्र - सर्वत्र है | e.g. दूल्हा दुल्हन बड़ी सी कर में चलेंगे और बाराती भले ट्रैक्टर ट्राली में | अब इसमें जाति, धर्म, नर-नारी का क्या भेद ? फिर पुराणी किताबों को ही हम क्यों कोसें ?
* नाक पर कपडा बाँधने से क्या दुर्गन्ध छन जाती है ?
* असंभव शब्द डिक्शनरी में नहीं, रास्तों में होता है | चलने पर पता चलता है |
* यदि कुछ लोग इसकी सेवा बंद कर दें तो समाज का बड़ा कल्याण हो जाय |
* मान लीजिये वह है भी, तो भी यह तय है कि हम उसे जान नहीं सकते | फिर जानने का इतना ढिंढोरा क्यों ?
* - What do I do ?
= Poetry , personal poetry , practical poetry of life .
* सारी अच्छाई
मेल मिलाप में है
द्वेष में नहीं |
* दिल पसीजा
उनका भी, जिनका
पत्थर का था |
* क्रिकेट क्या है
दौड़ने का बहाना
फुटबाल भी |
* चाँदनी बस
चार दिन ही ठीक
फिर उबाऊ |
* बस बात है
प्यार नहीं करता
मैं भी किसी को |
* सारा संदेह
सुबह होते होते
दूर हो गया |
* खुल जाएगा
सुबह होते होते
सारा ही भ्रम |
* कह तो दिया
न तुम हमें जानो
बात झूठ थी |
* मुल्ला से पूछो
मस्जिद का महत्व
मैं क्या बताऊँ ?
* तमाम पाया
ज़िन्दगी का हिसाब
कुछ दे दिया
लेकर बराबर
देकर बराबर |
* मुसलमान
इस मामले में तो
पक्के हैं हम |
* भारतीयों का
है न एक इलाज
अच्छा सा डंडा |
* जिया, जी लिया
अच्छी ज़िन्दगी जिया
संतोषप्रद |
* नागरिकता
धर्म बना ले जो भी
नागरिक है |
* सवालाती हैं
सब, जवाब नहीं
किसी के पास |
* छंदों में त्रुटि
अहसास दिलाती
वृद्धावस्था की |
* निपट गया
आखिर तो यह भी
दिन दुर्दिन |
* न ऊपर है
किधर गया पानी,
न ही नीचे है |
* न रामायण
महाभारत सही
गोर्की की माँ ही !
* न रामायण
महाभारत सही
गोर्की की माँ ही ,
कोई भी किताब हो
भरती विश्वास ही |
* कोई विषय
शायद ही बचा हो
लिखा न हो
जिस पर हमने
हाइकु काव्य
चुटकुला लेख या
किसी विधा में कुछ |
* हाय रे दैय्या
इतनी निष्पक्षता !
न्याय भी डरे ?
* मुझे पता है
छूट जायँगे साथी
अकेला हूँगा |
* मेरी तो बातें
कहने योग्य नहीं
मैं कैसे बोलूं ?
* सब किताबी
बातें हवा हवाई
करते लोग |
* व्यवस्था होगी
तो स्वतंत्रता कुछ
सीमित होगी |
* झूठ नहीं था
न अब, न तब भी
मेरा कहना |
* सारी समस्या
मनुष्य के मन में
कैसे सुलझे
बाहर बाहर से
ऊपरी इलाज से ?
* उनसे हम
प्रेम क्यों नहीं करें
इसलिए कि
समाज ने बरजा
माँ बाप ने रोका है ?
* लर्न तो लिव [ Learn to live ]
एंड वाइस वर्सा [ And vice-versa ]
लिव तो लर्न [ Live to learn ]
* हाँ यह तो है
बुरा लगा न लगा
अच्छा न लगा |
* जवाबदेह
मैं हूँ तो ज़रूर
पर उत्तर
देने के मैं अयोग्य
जवाब नहीं कोई |
* प्रायवेट है
लेकिन पवित्र है
काम संबंध |
* कुछ तो होगा
जिसका परिणाम
बलात्कार है !
* जो मिल गया
जाने या अनजाने
उसे छोड़ें क्यों
चाहे या अनचाहे
उसके साथ रहें |
* जल्दी नहीं है
बहुत समय है
अभी सोच लो !
* जीवन स्वाहा
हाँड़ तोड़ श्रम में
सत्यनिष्ठा में |
फोन का इंतज़ार
ज़रूर किया |
* तुम्हारी नहीं
गलती हमारी थी
जो दिल दिया |
* टूट जाती है
जो परंपरा, फिर
नहीं बनती |
* नहीं है कोई
मेरे सरीखा दुष्ट
इस जग में |
* यह गहना
- - -- - - -
स्वर्ण गहना
बेकार ही पहना
फेंक बहना !
[मूल भाव =
किसी को हम
ओवरटेक करते हैं
कोई हमको |
[लेकिन यह तो गलत हाइकु हो गया | अब इसे दो तरह से लिखा जा सकता है =]
1 - किसी को हम
ओवरटेक करें
कोई हमको |
2 - किसी से हम
आगे निकलते, तो
कोई हमसे |
* [ शायरी ]
मैंने तुमसे कह दिया था शाम को ही
आज मेरे स्वप्न में तुम मत आना
और तुम फिर आ गए ?
* यह शेर कुकुरनिदिया सोता है | सोता है, ज़रा सी आहट पर फिर भोंकने लगता है |
* मई दिवस पूंजीवादी - साम्राज्यवादी अमेरिका के शिकागो शहर से आयातित है | कम्युनिस्ट भला इसे क्यों कर स्वीकार करेंगे ?
वहाँ तो काम के घंटे कम करके आठ करने के लिए खून बहाए गए, हम कोशिश में हैं यह यहाँ लगभग 'शून्य' हो जाय |
* मनुष्य की ज़िन्दगी को नर्क बना कर रख दिया है इस सभ्यता ने | बच्चों को पढ़ाओ तो कहाँ से इतना पैसा लाओ ? बिटिया की शादी में पैसा ही पैसा लगता है फिजूल | बीमारी हेरामी तो खेत बेचो | कहाँ से इतना इंतजाम कैसे करे कोई | भगवान् ने हमें नाहक ही पैदा करके इस दुनिया में भेज दिया ! पता नहीं उसे क्या मिला | हमारे खाते में तो दुःख ही दुःख ही है |
* लेकिन यह मापदंड हिन्दू वांग्मय पर खरा नहीं उतरता | कई दलित विद्वान उसके अध्ययन का दावा करते हुए भी उसके प्रखर,बल्कि उग्र आलोचक हैं | [ Nilakshi ]
* इस्लाम डेढ़ हजार साल में ही " थक " गया | हिन्दू भले ही चोटिल हुआ, पर सनातन तो सनातन ! अभी तक चल रहा है | [ chachal bhu ]
* आपके इस पोस्ट पर 70 के दशक में लिखी एक कविता याद आई ;--
[ धोबी का कुत्ता ]
* पहले एक धोबी होता था
उसका एक घर होता था
उसका एक घाट होता था ,
उसका एक कुत्ता भी होता था
जो न घर का होता था
न घाट का होता था |
लेकिन अब,
सिर्फ कुत्ते होते हैं
उन्ही के घर भी होते हैं
उन्ही के घाट भी होते हैं
और विडम्बना,
उनका कोई कुत्ता नहीं होता |
# # #
- और एक अत्यंत छोटी सी कविता जो मुझे बहुत पसंद है | इसे लिखकर मैं बहुत आनंदित हुआ था | लेकिन कुछ मित्र इसे अस्पष्ट [ambiguous ] बताते है | पूछते हैं - " इसका क्या अर्थ " ? पर यदि इसे यहाँ ससंदर्भ पढ़ा जाय तो सुधी मित्रो के लिए इसे समझना, इसमें डूबना लगाना मुश्किल नहीं है | यहाँ धोबी के स्थान पर भंगी है |
" कमोड साफ़ करता हूँ
चमक जाता है
ख़ुशी होती है | "
# # #
" कमोड साफ़ करता हूँ
चमक जाता है
ख़ुशी होती है | "
# # #
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें