रविवार, 28 अप्रैल 2013

Nagrik Blog 29 / 4 / 2013


* क्यों भला लूँ मैं तुम्हारा नाम ?
कोई अपने पूज्य का 
नाम लेता है कहीं ?
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* धर्म के रक्षक बहुत हैं ,
प्राण के भक्षक बहुत हैं |

* भय बिनु होय न प्रीत "
जब मुझे प्रीत करानी हो तब न भय दिखलाऊँ ! नहीं कराना मुझे उनसे अपनी प्रीत | वह रहें निर्भय |

I FANCIED FOR YOU . AND YOU, FOR FANCY CLOTHES .
मैंने तुम्हे चाहा, और तुमने फैंसी कपड़े |

सू सू की सीटी बजाकर बच्चों के पेशाब उतारने की कला भला माँओं ने किस विधि से सीखा 

Is it not a shame on us that many of our fellow brethren and sisters are very poor , and we some are enjoying a lavish life ? Some of our children are unfed, un-clothed  and some have all the facilities of education , plays and entertainment ?
[ Secular Gods' Union ]

* लगता है हम लोग कुछ ज्यादा ही तिल का ताड़ बना लेते हैं | जैसे यही कि हिन्दू गाय को माता मानते हैं | अरे हिन्दू तो अपनी माता को ही माता नहीं मानते, गाय को क्या मानेंगे | लेकिन है एक मान्यता, कथन या कहावत | और माने तो अच्छा ही है | इस पर इतनी हुज्ज़त की क्या ज़रूरत ? 
देखा ? यही तो हमने कहा था | हम लोग कुछ बातों को अनावश्यक तूल देते हैं | वही हो रहा है आपके वाल पर | इसमें कोई दम, कोई सार तत्व नहीं है, सिवा बिलावजह की कटुता बढ़ाने के | फिजूल की बहस | फिर भी जिसके पास समय और शौक है, करते ही हैं |    [ Prachand Nag ]

* तोहरे घरे निकार के बैठेन | 
बूझो काव है ? [ जूता ] 
तोहरे घरे खडियाय के बैठेन |
बूझो काव है ? [लाठी ]
और भी कुछ हैं, याद नहीं आ रहा है |
Wish U a विस्थापन ?  
[ Samar Anary]

* संस्कृति के बारे में ज्यादा सोचा विचारी मत कीजिये | सिनेमा और टी वी जैसे जैसे बताते जायँ, करते जाइये | वही संस्कृति है |

* कोर्ट ने तो अभी कुछ कहा ही नहीं , आपने तो पहले ही उन्हें "निर्दोष" करार दिया !

* Rajneeti Hauva nahi hai .
 राजनीति की नहीं जाती | सही बात है कि उसके करने वाले और होते हैं पूर्णकालिक, 'राज्य' के मामले देखने वाले | साधारण मनुष्य / नागरिक को राजनीति करनी नहीं होती | उससे हो जाती है, होनी ही होती है | क्योंकि जीवन का कोई भी अंग उससे अछूता  नहीं | घर से निकले तो सड़क बाज़ार दफ्तर , सब राजनीति है |  घर परिवार में भी राजनीति है | राजनीति जीवन की एक कला एक व्यावहारिक कौशल भी है | आपने हमसे कैसे बात की ? कैसे अपने रूठे बच्चे को मनाया ? पत्नी को समझाया , माता पिता को प्रसन्न किया , पड़ोसी ,मित्रों -अफसर -मातहतों से निपटे ? सबमे राजनीतिक बुद्धि चाहिए | इसी को थोडा आगे बढ़ा कर सोचा , समाज और राज्य पर गौर किया तो वह राजनीति हो जायगी जिसके बारे में यह पोस्ट है | न भी करें तो अपने आस पास आपके खिलाफ जो खेल चल रहे हैं उसे तो समझें , अन्यथा धोखे खायेंगे, नुक्सान उठाएंगे |   

* नग्न होना शर्म की बात नहीं है बिल्कुल | जिस बात पर शर्म आनी थी उस पर तो किसी ने सोचा ही नहीं | वह यह कि ऐसी स्थिति - परिस्थिति क्यों बनी ? मुसलमानों को सोचना था कि किस तरह उन्होंने अपने लिए पूरी दुनिया में यह संदेहास्पद स्थिति बना ली कि उनके समुदाय का उच्च पदस्थ ख्यातिप्राप्त व्यक्ति भी बिना गहन जाँच के किसी देश के भीतर नहीं जा पाता ?     

* हिन्दू कहाँ कटाते थे पहले चुटिया ? अब कितने लोग रखते हैं चुरकी ? ऐसे ही बाकी भी कुछ बदलेगा , कुछ कटे पिटेगा ,मिटेगा | 


* मैं अभी अभी ही सोच रहा था कि आप का पोस्ट आ गया | कुछ और सीधी सच्ची बात कह दो तो वह भड़क जाएगा | प्रेम, प्यार, दोस्त वगैरह कह दो तो वह बड़े आराम से झाँसे में आ जायगा , जाल में फँस जायगा | फिर तो वही होना है जो होता है | [ Atul Singh]

वदामि सत्यं 
- - - - - - - - 
सच कहूँ तो 
नहीं लगता मेरा    
यद्किंचित भी    
मन पूजा पाठ में
किसी अनुष्ठान में |

* कूड़ा कबाड़ 
मेरा पढ़ते हैं आप 
आप धन्य हैं ,
आभारी हूँ आपका 
मुझे स्नेह देते हैं |

* बहुत अच्छी 
स्मृति नहीं जिसकी  
वह मज़े में |

* लोग सिद्धांत 
बघारते ज्यादा हैं 
पालते कम |

* उन्हें न देखो 
अपनी राह चलो 
वही सही है |

* मेरे तो लेखे 
वही राम नाम है 
जो मेरा काम |

* हमारी दृष्टि 
कुछ गलत तो है 
नारी के प्रति |

* छिपते रहो 
मैं तुम्हे ढूँढ लूँगा 
सात पर्दों में |

* उदास होता 
कुछ खो जाने पर 
पाने पर भी 
उदासी छा जाती है 
ऐसा क्यों होता भला ?

* सोच रहे थे  
कहाँ जाएँ धूप में
सूर्य ने कहा 
आओ मेरी छाँव में  
मैं चला गया |

* वोट देना भी 
एक राजनीति है  
करनी होगी |
* राजनीति है
एक वोट देना भी
करनी ही है | 

* बड़ाई करो 
मार्क्सवाद की,बड़े 
बन जाओगे |

* सच कहता हूँ 
मैं बहुत दुखी हूँ 
किससे बोलूं ?

* हैं न हमारे 
बगल में छुरियाँ
मन में राम !

* प्यार करूँ हूँ 
कितनी बार कहूँ ?
कहता रहूँ ?

* हरी बत्ती है 
देखकर चलो 
तिस पर भी |

* नहीं लिखता  
मैं हाइकु या तांका
ज़िन्दगी जीता,
मैं ज़िन्दगी लिखता 
ज़िन्दगी जीते हुए |

लघु मानव 
छोटी सी है ज़िन्दगी 
छोटे हाइकु |

* कोई खिचड़ी
मचानों पर टँगी
पक रही है |   

* यही क्या कम 
अब भी याद उन्हें  
है मेरा नाम 
जानते हैं अब भी   
मुझे पहचानते |

* मुक्ति का रास्ता 
बंधनों से पूछिए 
यही बतायें  
कहाँ से बँधी हैं ये
कहाँ से खुलेंगी ये ?

* बात रहेगी 
तो चीत भी होगी ही 
इसे बचाओ | 

* अभी आपने 
धर्म देखे कहाँ हैं 
लहूलुहान ?

* अब तो भाई 
मेरा काम हो गया 
मैं चलता हूँ |

* देख आईना
तू ही मेरी दुर्दशा 
उनके बिना |

* हाइकु मैंने 
अनगिनत डाले हैं 
इस ब्लॉग में 
कापीराइट मुक्त 
समस्त रचनाएँ |
 
* मैं उग्रनाथ नागरिक, महापुरुष 
एक आदमी 
ठिकाना ढूँढता हूँ  
अपनी पसंद का 
ठीहा बदलना चाहता हूँ 
नहीं रहना चाहता यहाँ 
अगरु के धुओं में दम घुटता है |
नया " घर करना " चाहता हूँ 
जहाँ ईश्वर न हो 
आदमी हो, औरत हो,
जानवर भी स्वीकार 
पर पंडा पुजारिन नहीं   
न देवी देवता 
मैं ढूँढता |
[ 09415160913]

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