मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

Nagrik Blog 3 April 2013


सप्रेम प्रणाम की जगह लाल सलाम |

* मैं गरीब नहीं , अजीबोगरीब हूँ |

* 31 मार्च की रात | 12 बजने वाले हैं | इसके पेश्तर कि पहली अप्रेल को मूर्ख घोषित हो जाऊँ, मैं आज ही अपनी बुद्धिमत्ता सिद्ध करके फेसबुक के पास दाखिल दफ्तर कर देना उचित समझता हूँ, जिससे वक़्त पर काम आये | हुआ यह कि बीते हुए कल 30 मार्च को मेरी पोती का जन्म दिन था | मुझे कुछ बर्गर बाज़ार से लाने को कहा गया | मैं Berger की दूकान गया, बर्गर की फरमाइश की और पाँच किलो Berger paint का डिब्बा लेकर समय से घर वापस आ गया |     

* मौलिक चिन्तक विवाद नहीं करते | वे गौर से सुनते हैं और धीरे से थोडा बोलते हैं |

* सब स्वार्थ है 
सबका स्वार्थ है जो 
उन्हें चलाता !

* मैं क्या जानता 
तुमने ही बताया 
तब मैं जाना |

* चोली दामन 
का साथ ? चोली तो है 
दामन कहाँ है ?

* तुम मेरे बचपन के साथी हो कि नहीं ?
इसीलिये मैंने अपना बचपना बचा रखा है 
तुम्हारे लिए !

* जिन्हें पढ़ने / पढ़कर महान बनने का शौक हो, वे मेरे "उच्च विचार " मेरे ब्लॉग पर जाकर आराम से पढ़ / पढ़ते रह सकते हैं | पता है = 

* अपना तो मोटो है - सादा जीवन उच्च विचार | अब इससे बड़ी मूर्खता और क्या हो सकती है ? कोई करके दिखाए !

* लड़ाका पत्नियों के पति अक्सर शांतिप्रिय होते हैं |

* लोक की कहावतों और संत के कठौतों में इतना ज्ञान भरा है कि हमारी सारी Libraries और अभिलेखागार बहुत छोटे हैं |

* " अपने बच्चों की Conditioning आप नहीं करेंगे तो कोई और करेगा | "
-- So said friend Sandeep, when I told him - " I don't and I didn't " 
-and he was true .

* बहुओं को यह सोचना चाहिए कि भले पुत्र के भय से सही, वह सास - ससुर के "ओ.के " पर ही वह घर की बहू बनी है | 

* अपना कठोरतम वचन भी कोई मानने को तैयार नहीं कि वह कठोर था | दूसरे का ज़रा सा भी कटु सत्य वचन सबको बहुत चुभता है |

* हाँ, बिल्कुल ही आम आदमी हूँ मैं | मैं दुःख में दुखी, सुख में ख़ुशी का अनुभव करता हूँ | मुझे भी चिंताएं सताती हैं | परिवार पूजा पाठ करता है तो मुझे क्रोध आता है | स्वाद और स्पर्श की इन्द्रियां मुझ पर भी प्रभाव दिखाती हैं | देवता नहीं हूँ मैं | बिल्कुल साधारण आदमी हूँ मैं !   

* मृत्यु से भय न खाओ, मरने से न डरो- यह तो गीता का ज्ञान है | इसी से मिलता जुलता ज्ञान भी है जो ज्यादा प्रचलित है ;- किसी को मारने से परहेज़ न करो |  

* [ Priya Sampadak, group ] उग्रनाथ ' नागरिक ' [ मूलवंशी श्रीवास्तव ] अपनी खराब बातें यहाँ लिखते हैं | कुछ ठीक - ठाक चीज़ें होम पेज पर जाती हैं | 

* यह बहस निरर्थक है कि अहिंसावादी बौद्ध हिंसा क्यों कर रहे हैं ? इस्लाम में तो भाईचारा और सब्र है तो आतंकवादी क्यों हैं ? ईसाई तो क्षमाशील होने थे वे क्रुसेड क्यों कर रहे हैं ? हिन्दू में तो छुआछूत है फिर ये समान क्यों हो रहे हैं ? इत्यादि | कोई कुछ भी अपने धर्म की मानने के लिए बाध्य नहीं होता | धर्म अब मानसिक और आध्यात्मिक नहीं रहे | पैदाईशी जातियाँ भर हैं | एक सामाजिक पहचान और सम्प्रदाय, राजनीतिक संख्याएँ हैं , जो अपने लौकिक - सामाजिक जीवन के लिए जद्दोज़हद कर रहे हैं | उनको उनके पारंपरिक या संलिखित मूल्यों के आधार पर जाँचना परखना, मूल्यांकित करना गलत और उन समुदायों के साथ नाइंसाफी होगी | अब आप या आपका धर्म ? उनमे से किसका पक्ष लेता है वह भी आप का नेता किसी नीति या नैतिकता के आधार पर नहीं, अपने राजनीतिक सर्वाइवल  को ध्यान में रखकर करेगा और आप उसका अनुगमन अपने स्वार्थ के लिए करेंगे | धार्मिक मूल्य लेकर चाटेंगे क्या, जब बचेंगे ही नहीं ?         
It is altogether nonsense to ask why buddhists are taking on violence ? Why the brotherhood and fraternity monger islamists are turning to terrorism ? Why peace loving Christians resorted to the crusade ? Why casteist Hindu are seeking equality ? etc . No, no one is now bound to follow the rules of their religion . Religions, now have no mental or spiritual ground . They all have become communities by birth, and are struggling for there social and political survival . What will they do of morals if they are not safe ? &c  [ To Shraddhaanshu  on his demand for English Traslation ]

* कहने / चिढ़ने से कुछ नहीं होगा | थोड़ी देर के लिए कोई भी स्वयं को शासक की भूमिका में डालकर देखें | उसे भी इसी नीति का पालन करना होगा | यदि शासन करना हो, राज्य को बनाये रखना हो तो | यह शाश्वत राजनीतिक नीति है | जो राजा इससे विरत होगा " मूर्ख " कहाएगा, राज्य गँवाएगा सो अलग |      [ To Prachand nag on Divide and Rule ]


* इसमें खराबी क्या है ? यह हमारा विकृत [ संशोधित/ polluted by modernization ?] मानस है जो इनमे दोष ही दोष देखता है | मेरे ख्याल से हमारी आदि / मूल / दलित संस्कृति विश्व की महान संस्कृति है | धीरे धीरे सभी इस और अग्रसित होंगे | हमें चुप हो देखना चाहिए |
और भी जोड़ लें - जो प्रकृति के अधिकांश निकटस्थ, सहज स्वाभाविक हो | बनावटी संस्कृति समय कि मार बहुत देर तक झेल नहीं पाती | कहीं यही - " कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी " तो नहीं है ? 
जितना ही शर्मिंदा होंगे हम उतने ही चिढ़ाए जायेंगे, और खिल्ली उड़ने वाले कोई सूप नहीं चलनियाँ ही होंगीं | गर्व और अहंकार की बात नहीं है, लेकिन हमारे कोणार्क-खजुराहो पर कोई हमारी हंसी क्यों उड़ाए ? सभ्यता संस्कृति का कोई निश्चित पैमाना नहीं है - वह ठीक था या यह ठीक है, कहना मुश्किल है | लेकिन अपनी नग्नता या सार्वजनिक चुम्बन पर पश्चिम तो शर्मसार नहीं होता | तिस पर भी हम गर्व क्यों करें कि यह तो उन्होंने हमसे सीखा ? विवाद बंद | 
उन्हें छूट "देने / न देने " का अधिकारी बनना ही तो समस्या की जड़ है | अपनी औरतों के हम हैं कौन ? होते कौन हैं ? होते क्यों हैं ?
इसमें मेरा कोई विचार नहीं है | मैं इतना काबिल नहीं हूँ | वस्तुतः, एक बार मैं अपनी शिक्षित/ नैतिक अवस्था में सरकारी काम से बलिया गया था | वहाँ ऐसे ही भोजपुरी गीत बजते रहते हैं | एकांत अवसर पाकर एक लगभग सत्तर के वृद्ध से इसलिए पूछा कि यह सज्जन तो मुझसे सहानुभूति रखेंगे ही  - " यह , इतने गंदे गाने बजते हैं  - - " | उन्होंने छूटते ही कहा - " इसमें आपको गन्दा क्या लगता है ?"   बस उन्ही कि बात मैंने भाई INDIA के पोस्ट पर उद्धृत कर दिया | जिसे इससे ज्यादा जानना हो वे उन्ही से पूछें जो इनके वास्तविक अवाम [ पालनकर्ता ] हैं |
To Display India on nude nagas and Holi .


* प्रचंड [नाग ] के कथन में मुझे दम लगता है | ब्राह्मण जो भी नीच से नीच काम करके, ढाबा चलाकर जूठे गिलास धोकर, अपनी रोजी चलाएगा | पर सीना तान कर पंडित जी कहाएगा | लेकिन दलित बड़ा सा बड़ा    काम करके, उच्च पद पर होकर भी अपने को दलित कहकर सर नीचा करेगा | दलित एक स्थिति हो तो उसे बदला जा सकता है, पर यदि उसे विशेषण बनाकर माथे पर चिपकाया जायगा, तो फिर उससे मुक्ति कहाँ ?   

* हिंदुस्तान चमत्कार चाहता है | और चमत्कार तो होने से रहा !

= Anti-Theists. Pro Active Atheists. Opposing Religious Harm.
* You are better than all the religious people put together, that's because you're good people. 

* साहित्य साधना का मतलब है झूठ की आराधना | सारा असत्य, गल्प - गपोड़, काल्पनिक - हवाई- वायवीय उड़ान ही तो होता है सब वहाँ ? अब मनोरंजक तो होगा ही वह | झूठ की तरह आनंददायी | कठोर, कष्टप्रद तो होता है - सत्य ! अवर्णनीय ! अवर्णित ही रह जाता है सत्य | नग्न होता है सत्य | साहित्य आवरण चढ़ाता है |


When sanity surrenders to insanity.

In the Muslim world cowardice and hypocrisy reigns supreme. As soon as the question of freedom and reason tries go forward Islamic dogmatism comes out with all force to stop the march. These dark forces are always successful because the governments in those nations are corrupted, immoral and totally subservient to the whims of the mullahs. In fact mullahs runs a parallel government there by issuing Fatwas to negate the established civil laws. In the recent days a few Bangladeshi youths dared to question the legitimacy of faith in a free society. This is largely a poor and illiterate nation where people are much concerned with their daily survival. But it has a powerful reactionary Islamic clerical circle who can do and undo lots of things. They work to save Islam from being questioned by anyone and the government there easily succumb to their pressure.
These mullahs are supported from the outside with money and guidance and the government is helpless to stop them.

Those few youths who raised voices against religious indoctrination has been arrested to face criminal charges for criticizing Islam. Like many other Muslim nations, Bangladesh has also succumbed to the pressure of the lunatic mullahs. The right to uphold the freedom of speech has again been muzzled. Religious insanity is out to stop the march of freedom. The era of darkness and dogmatism has again descended.

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