सोमवार, 22 अप्रैल 2013

Nagrik Blog 22 April 2013


" इन्सानी धर्म "
मैं स्वीकार करना चाहता हूँ कि मानववाद Humanism भी भारत की हर भाषा में " इन्सानी " नाम से धर्म ही, बल्कि मज़हब भी कह सकते हैं, बनने जा रहा है | इसके बगैर इसकी सफलता की कोई सम्भावना नज़र नहीं आ रहा है | और अन्य धर्मों का यह धर्म बनने का अनुभव इसके भी काम आने जा रहा है | एक तरह से कहा जा सकता है कि मार्क्सवाद भी उतना तो फाफल हुआ ही जितना वह आस्था का विषय बना | और वह उतना ही असफल हुआ जितना वह धर्म नहीं बन सका | अतः " इन्सानी " को भी कम से कम भारत में " धारण करने योग्य " धर्म बनने में कोई खतरा नहीं है, तो इस्लाम के संग साथ इतने दिनों से रहने के नाते इसे " मज़हब " बनने में भी कोई परेशानी नहीं है | लेकिन, ज़ाहिर है सब कुछ अन्य धर्मों से अनेक मात्राओं में अंतर पर होगा | जैसे अन्य धर्म , उसी प्रकार मानव धर्म [ इन्सानी ] , अलबत्ता अलग मान्यताओं और आधुनिक वैज्ञानिक सोच के साथ | यहाँ ईश्वर नहीं होगा, और जो कुछ थोडा बहुत होगा उसका पूजा पाठ नमाज़ नहीं होगा | हम धर्मों की खिलाफत करेंगे, तिस पर भी हम धर्म बनेंगे | बनकर दिखायेंगे कि धर्म भी किस तरह रेशनल हो सकता है !  यह विस्तार की बात है | यहाँ संक्षेप में यह स्पष्ट करना है कि धर्मों की कुछ अनार्निहित बुराई की संभावना से हम इनकार नहीं करना चाहते | क्योंकि यह मनुष्यों द्वारा निर्मित और स्वार्पित धर्म है | इसका राज्य किसी स्वर्ग का वादा नहीं कर सकता, यद्यपि वह इसके प्रयास करेगा | वह झूठी राजनीति नहीं करेगा, और ऐसा भी नहीं कि वह मनुष्यों के साथ कोई सख्ती नहीं करेगा | आदमी विविध हैं तो उनके साथ बुद्धिपूर्वक ही व्यवहार होगा | फिर यह अलग नया धर्म क्यों ? अधिक स्पष्टीकरण न मांगिये | जवाब बस इतना है कि जिस प्रकार अन्य धर्म मार्किट में हैं और वे एक दूसरे से अलग हैं | उनसे पूछिए वे क्यों अस्तित्व में हैं ?    

* मैं जन्म से तो नहीं हो पाया लेकिन अब उम्र से तो मेरी श्रेणी [ Hierarchy ] बदल ही गयी | मैं SC हो गया | इसका अर्थ कोई Senior Citizen लगाये तो लगाये, लेकिन मैं तो Scheduled  Caste समझता हूँ | मैं न ST हूँ न OBC | 

* बड़ी लडाई लड़नी पड़ती है, अन्तर्द्वन्द्व से गुज़रना होता है अपनी पुरानी फफूंदों और काइयों से बाहर निकलने में | कभी कोलकाता आओ, किसी काम से कालीघाट जाओ, और मंदिर की पौराणिक महत्ता से परिचित होते हुए भी, बिना काली मंदिर गए या उधर सर करके माथा झुकाए वापस लौट आओ ! क्या समझते हैं इसमें कम मशक्कत करनी पड़ी मुझे पिछले 14 अप्रेल दिन रविवार को ?

* महिलायें, जो काबिल होती हैं, खूबसूरत होती हैं |        


* कुछ सशक्त 
कुछ कमजोर हूँ 
इंसान हूँ मैं |

* जो कुछ पढ़ा 
पीछे छूट गया है 
बची है याद |  

* हम दुखी हैं 
न कोई कारण है 
न निवारण |

* जोर से बोलो 
या धीरे, मत बोलो  
जय माता दी |

* क्या कीजियेगा ?
निर्वाह करना है 
किसी तरह |

* कर रहा हूँ 
सफ़र की तैयारी 
जल्दी चलूँगा |

* खून वाही है 
पानी भी वही होगा
स्वाभाविक है |

* सुंदर तो थी 
नहीं देख पाया मैं 
उसकी आभा |

* ज्यादा बोलना 
नहीं चाहिए, ज्यादा 
बोलना नहीं |

* काम चलता 
उसके बगैर भी 
काम चलायें |

* मासूमियत 
अज्ञानता समान
अज्ञानी बनूँ |

* वैसा ही चलो 
जैसा चल पाते हो 
तेज़ क्यों दोड़ो ?

* संबंध पक्का     
अब चाहे संबंध 
हो या नहीं हो |
[Haiku Poems]

[ कविता ]
* वेद मन्त्र कान में 
पिघले सीसे के 
समान पड़ते हैं ,
तिलमिलाता मन !

Gift तो देते रहे ,
Lift , लेकिन नहीं पाए |


* न ब्रूयात सत्यम अप्रियम | पोस्ट में लेखक की पसंद/ नापसंद पर कोई क्या कह सकता है ? उन्हें यह संस्कृति अच्छी लगी तो ठीक है , लगा करे | किसी को नहीं भी अच्छी लग सकती है, तो न लगे | सबका अपना निजी पैमाना हो सकता है | लेकिन ऐसे ही एक कथन को मैंने तब भी 'अश्लील उवाच' की श्रेणी में रखा था, जब एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री से इंदिरा गाँधी ने पूछा था -" भारत कैसा लग रहा है ?" और उसने जवाब दिया था - " सारे जहाँ से सुंदर |"  अच्छा मुझे भी लगता है अपने देश, बल्कि मैं तो राष्ट्रवादी भी हूँ | लेकिन इस जवाब पर तब उबकाई आई थी मुझे | वैज्ञानिक - प्राकृतिक सौन्दर्य चेतना के सरासर विरुद्ध और अवांछित राजनीतिक वक्तव्य था वह | अफ्रीका के जंगल सहारा के रेगिस्तान क्या सुंदर नहीं है ?   [ on Ujjwal's ]

* उन्होंने शादी इसलिए नहीं की क्योंकि वह नारी को मुक्त रखने के पक्षधर थे |

* तिस पर भी -
बिगाड़ कर रख दिया सांस्कृतिक पर्यावरण को ! " तिस पर भी " लोग इन्हें कलाकार कहते हैं, इनके लिए क्षमा याचना करते हैं ! 

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