बुधवार, 10 अप्रैल 2013

Nagrik Blog 10 / 04 / 2013

* केवल टाटा अम्बानियों के पास ही पैसा नहीं है | पंडा-पुजारी-संत-महात्माओं-मठों के पास भी है | फिर तो इनके भक्तों के पास भी होगा ही होगा !

* राहों पे नज़र रखना, होठों पे दुआ रखना ;
आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना |
[unknown]

* दोनों हाथों संभालिये दस्तार ,
'मीर' साहिब , ज़माना नाज़ुक है |

* मन में ख्यालात मेरे जो भी हों ,
नाम तो देंगे मोहब्बत का ही |

* साहित्य पर मैं कुछ नहीं कहता / जानता ही नहीं तो बोलूँगा क्या !  साहित्य तो मैं बस रचता हूँ !

* जानना यह नहीं है कि दुनिया को किसने बनाया, बल्कि सोचना यह है कि उसे संवारा कैसे जजी ?
[ महात्मा बुद्ध ]

* उसे हमारा वरदान, हम मनुष्यों का आशीर्वाद जो प्राप्त है | ईश्वर कभी नहीं मरेगा |   

* Blessed are they, who don't seek God's blessings .

* जो भगवान को नहीं मानते, वे मनुष्यों पर अपने विश्वास के कारण छले बहुत जाते हैं |  
एक फर्क है दोनों में | भगवान् पर विश्वास करने वाले भगवान् द्वारा नहीं बल्कि पंडों पुजारियों बाबाओं द्वारा छले जाते हैं | जब कि मनुष्य पर यकीन करने वाले मनुष्यों से ही धोखे खाते हैं | सीख यह मिलती है कि आँख मूँद कर किसी पर भी विश्वास न करो |

* हम भी करते तो तर्क ही हैं, कभी कभी ईश्वर के नाम का मनोरंजन के लिए शाब्दिक इस्तेमाल कर लेते हैं | आखिर हमारा ही बनाया हुआ है  वह | वरना तो हम जानते ही हैं " जन्नत की हकीकत लेकिन " |

* संविधान के अनुसार / कानूनी प्रयोग के लिए जो यह, वह, वह, वह नहीं है वह हिन्दू है |

* दलित नहीं हैं वे | पीड़ित हैं | दलित होने की मानसिक बीमारी से ग्रस्त / पीड़ित हैं | बस बीमार हैं | वरना वे प्रत्यक्षतः किसी दलन की स्थिति में नहीं हैं |

* छूटती जाये 
जितनी छोड़ते जाओ 
मन की डोर |  

* बड़ी चाहना 
प्राप्त हो सराहना 
करें कछु ना |

* हे भगवान् ! 
जवानी भी स्त्रीलिंग ? 
मर्द क्या करें ?

* है न साहित्य 
हर मर्ज़ की दवा ! 
अपनाईये |
 
* उनकी बात 
उनकी ही भाषा में  
देना उत्तम | 

* कौन था वह 
भीड़ के पार मुझे 
बुला रहा था ?

* कोई तो रास्ता 
इधर या उधर 
निकलेगा ही |

* प्यार की नहीं 
कोई गन्दी सी बात 
बोलो तो बोलो |

* लिखा पड़ा है 
इतना, कितना तो 
छापेगा कोई ? 

* थकी जुबान
सर सर कहते
अब रुकूँगा |

* शायद बचे
एक अकेला सत्य
' निरंतरता ' !

* थोडा सा सही  
कुछ आगे जाना है
यहाँ से आगे |

* जाना न होता
तो तैयारी भी कभी
पूरी न होती |

* न कह पाया
न उन्होंने समझा
तो बात ख़त्म !

* फल पकने
मेरी गोद गिरने
में देर लगी |

* अहिंसक हैं
तो क्या दे दें आपको
अपनी जान ?

* उनको देखा
देखता रह गया
अवाक आँखें |

* आपका साथ
होना ही बस होना
शेष बेकार |

* प्यार हो न हो
प्रकटीकरण है
तो खूब ज्यादा |

* सब तेरा है
रहो तो ऐसे रहो
या कुछ नहीं |

* भूल गया हूँ
उस पेड़ का नाम
जो लगाया था |

* चमत्कार ही
तो होते ही आये हैं
अब क्यों न हों ?

* चला तो आया
मैं प्यार जताकर
आगे होगा क्या ?


* अपने नमो जी बिजली की बड़ी बातें करते हैं | कहते हैं - जिन्होंने  मोबाईल दिए तो बिना बिजली मोबाइलों की चार्जिंग कैसे होगी ? अब बिजली नमो जी उपलब्ध कराएँगे | यूँ तो जब हम मोबाईल के पक्ष में ही वोटरी नहीं हैं तो चार्जर के पक्ष में कैसे होंगे | लेकिन यदि हम चार्जर के पक्ष में हो भी जायँ तो सवाल यह है कि नमो जी इतनी बिजली कहाँ से, कैसे बनाकर दे देंगे जिसका वह वादा कर रहे हैं | हाँ एक तरीका राज नारायण जी, जब वह बिजली मंत्री थे तो, बिजली के शिकयातियों से बता रहे थे, कि क्या वह इस तरीके से बिजली बनाकर दें ? [ पुराने पत्रकारों को ज़रूर याद होगा ] | संभव है नमो जी भी कुछ वैसा ही तरीका अपनाने को सोच रहे हों |        

* बिलकुल सही और सटीक अशोक भाई | मैं आपकी इस व्याख्या की तहेदिल से प्रशंसा और स्वागत करता हूँ | आज आपने मेरा दिन और दिल दोनों खुश कर दिया | हिन्दू होने की यह पूर्ण और पर्याप्त अहर्ता है, और मैं इसका वकील एवं प्रचारक हूँ | हिन्दू [ या इन अर्थों में कुछ भी ] होने के लिए कहीं से कोई शर्त आयद करना मुझे मंजूर नहीं | जो अपने को हिन्दू कहता है, वह हिन्दू है | इसे कोई अन्य तय नहीं करेगा, किसी को इसका अधिकार मैं नहीं देता | यह अधिकार उस व्यक्ति का है, न कि किसी मौलाना का | इसी बात पर कुछ ही दिन पूर्व मैंने आपका विरोध किया था कि जो बौद्ध अपने को बौद्ध कहता है वह पर्याप्त बौद्ध है, आचरण कुछ भी करे | आचरण तो कोई भी कैसा  भी करे | इस प्रकार सभी धर्मावलम्बियों का आचरण लगभग एक सा है , और तब धर्मों की विभाजन कर्ता दीवारें स्वयमेव धराशायी होंगी |         
मूलतः, यह जनगणना का मामला है , मनगणना का नहीं |          

* नाम और पहचान आपके सर्वथा सत्य हों , और असली UID / Pan Card / Driving Licence / Voter Card / Ration Card से मेल खाते हुए भी हों, तब भी मैं FB / Magazine / यहाँ तक कि Books पर भी लेखक का नाम नहीं देखता | यह मेरी अयोग्यता है | मैं केवल विचार देखता हूँ, और उन्ही पर टिप्पणियाँ करता हूँ / व्यक्ति पर नहीं | 

* उग्रनाथ [ नागरिक श्रीवास्तव ]
" सिद्धान्तकार "
[विचारक / कवि / लेखक / पत्रकार / साहित्यकार कहने से अच्छा यह एक शब्द है ]  
अरे हाँ , एक और परिचायक शब्द हो सकता है = " मानवाकार " | सचमुच हम देखने सुनने, आकार प्रकार में ही तो मानव हैं ? अन्यथा वास्तव में क्या हैं यह कौन जानता है ? 

* विगत दो दिवस ७ एवं ८ April पटना में बुद्धिवादी फाउंडेशन के मित्रों डॉ रामेन्द्र एवं डॉ कवलजीत के साथ रहा | युवा कथाकार डॉ जीतेंद्र वर्मा से मिलने का सुअवसर मिला | यात्रा सुखद और सार्थक रही | 9/4/13

* " ईश्वर को मानने की ज़रुरत क्या है ?
ईश्वर का नाम लेने में हर्ज़ क्या है ? "
तो ईश्वर का नाम लेकर विश्राम पर जाने की आप सब से अनुमति का याचक हूँ | अस्वस्थ हूँ | किंचित सार्थक वार्तालाप के लिए मित्रों का आभार | एक छोटे से संकेत के साथ - कि देखिये, हम विभिन्न मतावलंबी किस प्रकार प्रेम, स्नेह और सौहार्द्र पूर्वक बातचीत कर ले जाते हैं, अन्य समूहों की तुलना में जहाँ विद्वतजन फ़ौरन तू तू मैं मैं पर उतर कर वातावरण को विषाक्त करते हैं | धन्यवाद |  
" हमारे आपके झगड़ने से ईश्वर यदि नहीं हुआ तो वह हो नहीं जायगा, और यदि हुआ तो गायब नहीं हो जायगा | फिर हम आपस में अपना माथा क्यों फोड़ें | ईश्वरों को ज़रुरत हो तो आपस में लड़ें और अपना झगडा निपटाएँ | "  

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