गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

Nagrik Blog 25/4/2013


* Work is worship 
Alright !
But ,
Worship is not ' work' .

* मानववादी या मानवतावादी  =
* हमारी संख्या बहुत है | हमारे मानववादी घुसपैठिये विश्व के हर कोने में, संसार के सभी धर्मों में व्याप्त हैं जो इंसानियत को सर्वोपरि मानते हैं और कर्मकांड, पाखण्ड में कम विश्वास करते हैं | अलबत्ता वे कहते अपने को ज़रूर हिन्दू - मुसलमान वगैरह हैं |

* ज्ञानी होने का अहंकार या ज्ञानी बनने / दिखने / कहलाये जाने की लालसा ही व्यक्ति को विवादप्रिय बनती है | वरना ज्ञानी जन तो अधिकाँश चुप रहते हैं |

* लडकियाँ इतना तो अपने पहनावे पर ध्यान देती हैं, वेशभूषा को लेकर सतर्क रहती हैं | फिर भी कुछ पुराने ख्याल के लोग कहते हैं कि वे कम कपडे पहनती हैं !   

* अक्ल बड़ी या भैंस ?
- बड़ी नहीं , बहुत बड़ी होती है भैंस |

* आइये हम लोग भी अपने लिए एक एक वाद चुन लें और उसके वादी बन जाँय | कुछ वादों की सूची इमाग से निकाल रहा हूँ , आप को जो अपने लिए पसंद आये ले लें | अपवाद , आशीर्वाद , अनेक्वाद . अनुवाद , गुणानुवाद , संवाद , परिवाद , अनापवाद, धन्यवाद ,  

* हम करें तो क्या करें ? मार्क्सवाद के अलावा और कोई बौद्धिक वाद भी तो नहीं दिखाई पड़ रहा है जिसकी कोई नीति हो ? और जो हैं भी वे राजनीति में नहीं हैं | 


*अन्यथा न लेंगे कामेश्वर जी ! आपके बहाने अपना भी याद करना सुखद लगा, कि 1966 से 2004 तक 38 वर्ष की सेवा अकलंक बिता ले गया, वह भी जूनियर एवं सहायक इंजीनियर जैसे खतरनाक पदों पर | फिर ज़रुरत न रहने पर समय से पहले त्यागपत्र दे दिया |   

* न्यायाधीश बनते बहुत हैं अपने आप को, लेकिन उनके यहाँ बहुत खोट है |
[ बनते की जगह " लगाते " भी अच्छा हो सकता था ]

 Till there are nations , nationalism can not be done away, however soft or broadminded it be . The quote shows humanism and intelligence, but beyond practice . Hence obsolete .
Rather, Internationalism - Marxism,Islamism,globalization etc are developing diseases. 

* पोर्नो इतनी दिखेंगी की वे बेमतलब हो जायेंगी | 

* कोई आदमी जब विशिष्ट बन जाता है, मेरी नज़रों से गिर जाता है | मैं उससे कटा - कटा रहने लगता हूँ | [ इसे मेरा दोष माना जाय ]   
Shriniwas Rai Shankar दोष और द्वेष दोनों माना जायेगा सर |
- इच्छा तो थी इन्कार करने की, लेकिन सोचता हूँ ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए जिस पर सामान्यतः कोई विश्वास न करे | फिर यह भी तो हो सकता है कि आप की ही बात सूक्ष्मतः सत्य हो ! आभारी हूँ आपका |  
- मेरी कामना है सब सामान्य हों, सामान्य तरीके से रहें, उनके साथ सामान्य व्यवहार हो |
मैंने अपने Visiting Card पर दो वाक्य छपवायें हैं - 1 - Always in love , always at war , 2 - विशिष्टता के खिलाफ मेरी विशेष लडाई है | 

* अभी अनायास मार्गरेट थैचर जी की याद आ गयी | कुछ ही दिन पूर्व वह दिवंगत हुईं | उन्हें ब्रिटेन का आयरन लेडी कहा जाता है | पलट हमारे मनमोहन जी की दशा देख लीजिये, उन्हें क्या कहा जाता है ? अब मेरी बात यह है की ये दोनों ही डिमोक्रेसी की वेस्ट मिनिस्टर प्रणाली के मुखिया थे या रहे हैं | फिर दोनों में इतना अंतर क्यों ? कि जिसके चलते भारत में राष्ट्रपति प्रणाली का सुझाव दिया जा रहा है | जब कि यह इंग्लैण्ड में भली भाँति चल रहा है ?    

* अपनी अपनी चिंता -
मैं दो चिंताओं की आग में जलता रहता हूँ | एक तो महिलाओं के बारे में है, जिसे तो मैं बताने से रहा |  दूसरी यह कि संदीप, अंशुमान और कुछ अन्य उन जैसे टी टोटलर साथी कैसे चौबीस के चौबीस घंटे बिना एक भी सिगरेट पिए जीवित रह लेते हैं ?    


* मैं त्रुटिमुक्त नहीं हूँ | मैं गलतियाँ करता हूँ और गलती को गलती मान भी लेता हूँ | उसे हर हाल में सही साबित करने का जिद नहीं करता |

* Sorry भाई, आप तो दलित हो गए . I am not so privileged .

* [ संस्था ]  ? ?
तमाशा ( TAMASHA)
तार्किक मानववादी Secular - Humanist - Atheist

* उग्रनाथ नागरिक 
" मानवमात्र " 
L - V - L / Aliganj , Lucknow - 226024 { U . P .}  
or " पूर्ण निरपेक्ष "
L - V - L / Aliganj , Lucknow - 226024 { U . P .}

* उग्रनाथ 
नागरिक धर्म , अलीगंज , 
लखनऊ , 226024 [उ.प्र.]

* गलत जगह पर सही बात कहना भी गलत बात कहना है |

* जाने का मन न हो तो जाने की तैयारी में कुछ न कुछ छूट ही जाता है |

* मोलभाव नहीं कर पाता तो बाद में कचोटता है - हाय , इतना बोला होता तो भी शायद दे देता !

* घाव को यूँ खुला तो छोडो मत ,
मक्खियाँ भिनभिना रही हैं बहुत |

* जो मन में कुछ खटास भरे वह अधर्म है ,
जो मन को कुछ उदास करे वह अधर्म है |


[ कविता ]
* तथ्य तमाम हैं 
कुछ कथ्य हैं 
और कुछ -
न कहने लायक ,
न सुनने लायक |
# #

* हम दोनों 
दो समानांतर रेखाएं है 
मिल नहीं सकते तो क्या 
प्यार के देश की तो 
संरक्षित सीमायें है ?
थोडा मैं दूर हटा 
थोडा सा तुम भी परे 
फिर , बढ़ ही तो गया 
क्षेत्रफल , हमारे प्यार का ?
# # 

* सिंहासन खाली करो क्या ?
सिंहासन तो खाली है 
बस कोई सुपात्र हो 
तो बैठ जाये 
जनता तो चाहती है 
उसके मन के सिंहासन पर 
कोई विराजमान हो ,
वह तो खाली है 
कोई बैठने वाला तो हो ! 
# #

# Ramji Tiwari =
प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लॉग पर युवा कवि नवनीत की कविता

* एक दिन घृणा
प्रेम किये जाने की तरह
आसान हो जाय,
और बुराईयो को याद करना
किसी को याद करने
जैसा सुखद,

एक दिन
युद्ध से भागने की मजबूरी
कायरता नही,
साहसी होने की शुरूआत कही जाय
और तटस्थता सबसे बङा अपराध

एक दिन
धर्मनिरपेक्षता अपने चेहरे से
मुखौटे को हटाये
और दुनियाँ के सारे कट्टरपंथी शब्द
एक नये शब्द के स्वागत मे
खङे होकर तालियाँ बजाये

मुमकिन हो एक दिन |
_________________

[ कविता ]
* सच कहता हूँ 
गहरे मन की बात 
मैं प्रेम करना 
नहीं सीखना चाहता 
मैं घृणा प्रदर्शित 
करना चाहता हूँ ,
मैं मंदिर - मस्जिद 
जाने वालों से 
घृणा करना चाहता हूँ |
# # #   

* अपना होना 
सिद्ध करना होगा 
जीने वालों को |

* समस्याओं के 
मूल में तो है पैसा
समाधान भी |

* कोई भी सार
तत्त्व जग में नहीं
प्रेम (नेह) सरीखा |

* थोडा तो पास
रहूँगा मैं आपके
थोडा दूर भी |

* कूदो आग में
कूदो, कूदो आग में
पानी मिलेगा |

* अपने प्रति
क्यों नहीं होता कोई
ईमानदार ?

* कितना झूठ
कितना खूब झूठ
बोलोगे यार ?

* कविताई में
मैं कहाँ टिकता हूँ
सबसे पीछे |

* इन्सानी बातें 
अव्यावहारिक हैं 
इस काल में |

* कैसे तो आयें 
बेहतर विचार 
या वृहत्तर 
माँजना होगा मन,
दिल - दिमाग |  

* झूठा प्यार ही 
मुझे तो चाहिए था 
सो मुझे मिला |

* इस्लाम है न 
हिन्दू राजनीति की  
पवित्र गाय !

* दिल दे आया 
एक अजनबी को 
अब क्या होगा !

* प्रकृतिपूजा 
उसके सम्मुख मैं 
नतमस्तक |

* नया फार्मूला 
पैसा न खर्च करें 
दानी कहाएँ |

* मुझे पता है 
तुमने वह सब 
लिखा हास्य में |  

* दुस्साध्य कर्म 
मौन निश्चल मन 
हो भावशून्य |

* तज संदेह 
देह निस्संदेह है 
नेह का गेह | 

* बोल करके 
मन में पछताती 
कठोर जिह्वा |

* बड़ा कठिन 
मन को समझाना 
माने तब न !

* फ़ौरन जाओ 
उनकी शरण में 
जो हैं ही नहीं |

* यह तो मैंने 
किसी के कहने से 
लिखा नहीं है !

* रह ही जाता 
कितना भी चुनिए 
दाल में काला | 

* नवागंतुक 
नेह का स्वागत है 
मन के द्वारे | 

* कल करेंगे, 
आज मन नहीं है,
प्रेम की बातें |

* मूल संस्कृति 
पसंद करता हूँ 
पालन नहीं |

* डाला तुमने  
नींद में व्यवधान 
जुर्माना भरो | 

* सत्य और है 
प्रकट कुछ और 
नर नारी का |

* बुद्धि लगाओ 
चाहे जहाँ भी जाओ 
हिन्द या पाक |

* अजूबा हुआ ?
यह तो होता ही है 
ऐसा समझो |

* क्या कर लेते ?
लेकिन करते तो 
भरसक हैं |

* भेड़िया आया   
देखो इधर देखो
ईश्वर आया |

* भूल जाइये 
कभी भ्रष्टाचार था 
इस देश में 
भ्रष्टाचार नहीं है 
इस देश में |

* जो ही कोई इसे लूटे, बेइज्ज़त करे , यह देश उसी का है |

* उनका कहना है कि मेहतर या भंगी को यदि कचरा प्रबंधन समिति का अध्यक्ष कहा जाय तो स्थिति बदल जाती है |

* बाकी सब लोग तो शरीक हुए ,
जिनसे उम्मीद थी , नहीं आये |

लड़की होना, या न होना |
* लड़की होना कितना त्रासद ! प्रेमी से विवाह करे तो बाप मार डाले | न करे तो प्रेमी गला काट दे !
* पुत्री का होना माँ- बाप के लिए इस मायने में अच्छा है कि वह उन पर बोझ नहीं बनती | विवाह के बाद वे बोझ से मुक्त हो जाते हैं | जब कि पुत्र जीवन भर उनके सर का भार, उन्हें सताता रहता है | 

* जो पति - पत्नी शक्की नहीं होते, उनका यौनिक जीवन सुखमय बीतता है | 

एक नयी संविधान सभा व नये संविधान की मांग व‍ाजिब है

संविधान-विषयक कांग्रेसी विश्वासघात को उजागर करने के लिए एक तथ्य को याद दिलाना जरूरी है। मेरठ अधिवेशन में 'सब्जेक्ट्स कमेटी' की बैठक में बोलते हुए जवाहरलाल नेहरू ने वायदा किया था कि आजादी मिल जाने के बाद सार्विक वयस्क मताधिकार पर आधारित एक नयी संविधान सभा बुलायी जायेगी (एस. गोपाल सम्पादित 'सेलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ जवाहरलाल नेहरू', खण्ड1, पृ. 19)। लेकिन तमाम वायदों की तरह यह वायदा भी भुला दिया गया। इसके बाद कांग्रेस ने कभी भी सार्विक वयस्क मताधिकार आधारित संविधान सभा बुलाने की बात नहीं की।

आज बहुत कम लोगों को ही इस तथ्य की जानकारी है कि जो संविधान भारतीय लोकतन्त्र (जनवाद) का ''पवित्र'' आधार ग्रन्थ है, जो हर नागरिक के लिए अनुल्लंघ्य और बाध्‍यताकारी है, उसका निर्माण भारतीय जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने नहीं किया था, न ही चुने हुए प्रतिनिधियों के किसी निकाय द्वारा उसे पारित ही किया गया था। संविधान बनाने वाली संविधान सभा को उन प्रान्तीय विधानमण्डल के सदस्यों ने चुना था, स्वयं जिनका चुनाव देश की कुल वयस्क आबादी के मात्र 11.5 प्रतिशत हिस्से से बने निर्वाचक मण्डल ने किया था। जाहिर है कि इनमें से चन्द एक कांस्टीच्युएंसी से चुने गये प्रतिनिधियों को छोड़कर शेष सभी सम्पत्तिशाली कुलीनों के प्रतिनिधि थे। यानी संविधान सभा सार्विक नहीं बल्कि अतिसीमित वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी गयी थी और प्रत्यक्ष नहीं बल्कि परोक्ष चुनाव के आधार पर चुनी गयी थी। इन चुने गये प्रतिनिधियों के अतिरिक्त उसमें राजाओं-नवाबों के मनोनीत प्रतिनिधि थे। कुछ उच्च मध्‍यवर्गीय विधिवेत्ता और प्रशासकों को भी उसमें मनोनीत किया गया था। यहाँ यह भी जोड़ दें कि इस संविधान सभा को चुनने वाले प्रान्तीय विधान मण्डलों का चुनाव (अतिसीमित मताधिकार पर आधारित होने के अतिरिक्त) धार्मिक एवं जातिगत आधार पर पृथक् निर्वाचक-मण्डलों द्वारा किया गया था। चुनाव के इन आधारों और प्रक्रिया का निर्धारण 'गवर्नमेण्ट ऑफ इण्डिया ऐक्ट, 1935' के द्वारा औपनिवेशिक शासकों ने किया था। संविधान सभा ने 1946 में जब काम करना शुरू किया तो देश अभी ग़ुलाम था। 1950 में संविधान जब बनकर तैयार हुआ तो देश आजाद हो चुका था। लेकिन सार्विक मताधिकार के आधार पर चुने गये किसी नये निकाय द्वारा पारित या पुष्ट किये जाने के बजाय उसी पुरानी संविधान सभा द्वारा इसे पारित करके पूरे देश की जनता पर इसे लाद दिया गया।


दुनिया को नर्क बना रखा है देवों के देव महादेव ने


  •   'रामायण' धारावाहिक के बाद इधर टी वी पर इस तरह के मिथकीय धारावाहिक कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं. अंधविश्वास और पूरी तरह सामंती तथा कबीलाई मानसिकता से भरे इन धारावाहिकों ने समाज की मानसिकता को अपने तरीके से प्रभावित तो किया ही है साथ में वह संकटों से घिरी इस व्यवस्था के लिए भी बड़े मुफीद हैं. अप्रासंगिक हो गयी जादू-टोने की किताबों से किये 'शोध' के ये परिणाम समाज के भविष्य और वर्तमान दोनों के लिए घातक हैं. जाने माने लेखक और पेशे से चिकित्सकराम प्रकाश अनंत का यह आलेख इन चमकदार धारावाहिकों के इन्हीं प्रभावों पर केन्द्रित है.


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        २८ मार्च को राजस्थान के स्वामी माधोपुर जिले के गंगापुर सिटी के रहने वाले एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी,भाई,पुत्र व पुत्री के साथ मिलकर ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली। उसने मरने से पहले एक विडियो बनाया और उसमें बताया कि वे लोग क्यों आत्महत्या कर रहे हैं. पुलिस छानबीन से पता चला कि वह परिवार अति धार्मिक प्रवृत्ति  का था .धार्मिक आयोजनों में काफी हिस्सा लेता थायहाँ तक कि टीवी पर भी धार्मिक सीरियल ही देखता था। वह महादेव सीरियल से बहुत प्रभावित था। बहुत से लोग ये तर्क दे सकते हैं कि महादेव सीरियल तो पूरा देश देखता है और किसी ने तो आत्महत्या नहीं कीअब वह परिवार मूर्ख था तो इसमें महादेव सीरियल का क्या दोष है।  
हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं और यह विज्ञान का युग है। विज्ञान ने आज चाँद सितारों तक की दूरियां तय कर ली हैं लेकिन विडम्बना है कि तमाम तरक्की के बाद भी आज समाज की सोच आदिम सामंती संस्कृति की सोच से ऊपर नहीं उठ पाई है। उसकी बड़ी वजह यह है कि शासक वर्ग ने समाज का ऐसा ताना वाना बुन रखा है कि वह अपने हित के लिए समाज की सोच को ऊपर नहीं उठने देना चाहता। यही वजह है कि तमाम वैज्ञानिक प्रगति के बाद भी समाज का पढ़ा लिखा तबका भी अपनी पुरातनपंथी सोच से बाहर नहीं आ पाया है। उसकी वजह यही है कि  शासक वर्ग के पास जनता की चेतना को कुंद करने के तमाम हथियार हैं। वह चाहता है कि जनता की समझ वहीं तक विकसित हो जहां तक उसके हित में है। यह बिला वजह नहीं है कि निर्मल बाबा(और ऐसे तमाम बाबाओं)के दरबार में जनता की काफी भीड़ जुटती है,पढ़े लिखे लोग उसके बेहूदे उपायों पर विश्वास करते हैं, टीवी चैनलों पर निर्मल बाबा के कार्यक्रम छाए रहते हैं।

विजुअल मीडिया का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। तमाम चैनल जिस तरह राशिफल, तंत्र-मन्त्र, बाबाओं और धार्मिक सीरियलों को परोसते हैं उसने जनता की सांस्कृतिक चेतना को मटियामेट कर दिया है और वह उसे फिर उसी आदिम युग में ले जाना चाहते हैं। ऐसे में किसी परिवार के पांच सदस्य ज़हर खाकर देवों के देव महादेव से मिलने चले जाते हैं या हज़ारों महिलाएं डाइन बता कर मार दी जाती हैं या तंत्रमन्त्र के चक्कर में लोग पड़ौसियोंजहां तक कि अपने ही बच्चों की बलि दे देते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।  अन्धविश्वास से लेकर परम शक्ति यानी ईश्वर से सम्बंधित जो सीरियल टीवी पर दिखाए जाते हैं वे हमारी सांस्कृतिक चेतना को एक ही जगह ले जाते हैं परन्तु इनमें एक बहुत बड़ा अंतर है। हो सकता है एक धार्मिक व्यक्ति तंत्र मन्त्र को सही मानता हो और दूसरा ग़लत या एक धार्मिक निर्मल बाबा को ढोंगी मानता हो और आशाराम बापू का भक्त हो जबकि दूसरा आशा राम को ढोंगी मानता हो और निर्मल बाबा का भक्त हो लेकिन जो इस तरह के धार्मिक सीरियल हैं उनमें सभी धार्मिक  अंधी श्रद्धा रखते हैं। इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं।
         
कुछ दिन पहले टीवी पर ऐसे बहुत से विज्ञापन आ रहे थे जो विशेष छूट के साथ तीन-साढ़े तीन हज़ार में लक्ष्मी यंत्र कुबेर की चाबी आदि देते थे जिसकी स्थापना के बाद खरीदने वाले का घर दौलत से भर जाएगा। बहुत से धार्मिक व्यक्ति इस पर विश्वास नहीं करते होंगे। लेकिन यही बात महादेव सीरियल में कुबेर वाले एपीसोड में दिखाया गया है जिस पर हिन्दू माइथोलोजी में विश्वास करने वाला हर व्यक्ति विश्वास करेगा। जहां तक कि उसके विश्वास करने या न करने का कोई सवाल ही नहीं उठता यह बात उसके अवचेतन में सीधे प्रवेश कर जाती है। कुबेर में अपने धन के प्रति लोभ पैदा हो जाता है। महादेव उसे फटकारते हैं कि लोगों में असंतोष बढ़ रहा है,दुनिया में जिनके पास धन है उनका दायित्व है कि वे अपना धन संसार आवश्यकताओं में लगाएं। दरअस्ल यहाँ महादेव पूंजीवाद के असमानता के अन्तर्विरोध को उसी उपदेशात्मक तरीके से हल कर देते हैं जैसे अब तक गली मोहल्ले के कथा वाचक हल करते आ रहे हैं। साथ ही वे निर्धनों को आश्वस्त करते हैं की वे अपने काम में लगे रहें उन्होंने कुबेर को डांट कर ठीक कर दिया है वह एक दिन आपके लिए भी अपना खजाना खोल देगा।
             
राजा- महाराजाओं के समय में लिखी गईँ ये  धार्मिक कथाएं शासक वर्ग के हितों के लिए वर्तमान समाज को पुराने सामंती मूल्यों की जकडबंदी में जकड़े रखना चाहती हैं। देवताओं का राजा इंद्र है।उसमें वे सारे गुण हैं जो उस समय राजा महाराजाओं में होते थे। धूर्तता,मक्कारी,अय्याशी और हमेशा अपने राज्य के लिए चिंतित। इससे यही पता चलता है कि जिस दौर में ये कथाएँ लिखी गईं उस दौर में इन्हें इसी तरह सोचा जा सकता था। लेकिन अफ़सोसजनक यह है कि इन कथाओं का धार्मिक जनमानस में काफ़ी प्रभाव है और शासक वर्ग जनता की मानसिकता को उन्हीं सामंती मूल्यों में जकड़े रखने के लिए इन कथाओं का इस्तेमाल कर रहा है। 
       
महादेव बार -बार यह बात दोहराते हैं कि कैलाशउनका परिवार सिर्फ उनका परिवार नहीं है,वह संसार के लिए एक आदर्श है। सही भी है। महादेव यानी इस सृष्टि के ईश्वर को शादी और बच्चे पैदा कर परिवार बसाने की भला क्या ज़रुरत है। उन्होंने यह सब संसार के लिए आदर्श स्थापित करने के लिए किया होगा। तब कुछ महिलाएं व पुरुष विवाह नाम की संस्था को स्त्री के विरुद्ध बताते हैं वे भी सही ही बताते हैं। क्योंकि महादेव ने परिवार का जो आदर्श स्थापित किया था वही अभी तक चला आ रहा है और उसे बदलने की ज़रुरत है। इस पारिवारिक व्यवस्था में महादेव विवाहित पुरुष का आदर्श हैं और पार्वती विवाहित स्त्री का। महादेव एक दूसरे ईश्वर नारायण के साथ मिलकर संसार की फर्जी चिंताओं (ध्यान रहे ईश्वर दुनिया की वास्तविक चिंताओं से निरपेक्ष है) में व्यस्त रहते हैं और पार्वती के तीन काम हैं- स्वामी के मूड को दुरुस्त रखना, बच्चों के भरण पोषण के लिए लड्डू बनाना और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखना। वे एक अच्छी गृहणी की तरह हमेशा चिंतित रहती हैं कि बच्चों की सुरक्षा के लिए एक भवन का निर्माण कर लिया जाए। वे बार -बार रट लगाए रहती हैं स्वामी बच्चों की सुरक्षा के लिए भवन का निर्माण कर लिया जाए। महादेव प्रकृति के निकट रहने का आदर्श स्थापित करते हैं कि इंसान को भवन की आवश्यकता ही नहीं है। आज जब करोड़ों लोगों के सर पर मकान नहीं है उनके लिए महादेव का यह आदर्श कितना सुन्दर है। कभी कभी महादेव यह कह कर कि पार्वती तुम आदि शक्ति हो यह सन्देश देते हैं कि दिव्य शक्तियों से संपन्न ईश्वर पुरुष रूप में ही नहीं स्त्री रूप में भी होता है। लेकिन पार्वती की शक्ति का संचालन महादेव के अधीन तो है ही वे अपनी शक्ति का उपयोग तभी करती हैं जब महादेव उसकी भूमिका बना देते हैं और उनके बच्चों पर कोई गहरा संकट आने को होता है। वे दुर्गा बन कर महिषासुर को मारती हैं क्योंकि वह उनके पुत्र कार्तिकेय पर हमला करता है।वे काली का रूप धरती हैं क्योंकि हुन्ड नाम का असुर उनके भावी दामाद नहुस को मारना चाहता है। वे एक अच्छी माँ की तरह बेहद चिंतित रहते हुए नहुस को  तत्काल विवाह योग्य बनाने की जिद पकड़ लेती हैं। महादेव के समझाने के बावजूद पार्वती का बार बार जिद पकड़ना समाज में प्रचलित कहावत तिरिया हठ और बाल हठ की ही पुष्टि करता है।  पार्वती की जिद पर महादेव अपने जादू से दस-बारह साल के दिखाई देने वाले नहुस को विवाह योग्य पूर्ण युवा बना देते हैं। स्त्री होते हुए भी पार्वती का नहुस को विवाह योग्य बनाने के लिए इतना चिंतित होना और महादेव का उसे विवाह योग्य बना देना सामंती युग में अधिक उम्र के पुरुषों द्वारा कम उम्र की नाबालिग लड़कियों से विवाह करने की प्रवृत्ति का ही प्रतीक है। कैसी विडम्बना है की देश में जब बहस छिड़ी हुई है कि लड़की की यौन स्वीकृति की उम्र सोलह साल हो या अठारह साल हो ऐसे समय में महादेव एक  कम उम्र के लडके को विवाह योग्य बना कर अपनी पुत्री जो विवाह योग्य नहीं है उससे शादी करने का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। आधुनिक युग में भी लड़कियां अच्छे पति के लिए व्रत रखती हैं महादेव सीरियल इसकी सार्थकता की पुष्टि करता है। महादेव की पुत्री बाल्यावस्था में नहुस से विवाह करने के लिए तपस्या करने चली जाती है और लक्ष्मी की पांच बहनें अपने जीजा नारायण से विवाह करने के लिए घोर तपस्या करती हैं। जो कामकाजी महिलाएं यह शिकायत करती हैं कि उनके पति घर में सहयोग नहीं करते उन्हें समझना चाहिए की महादेव और पार्वती ने यही आदर्श प्रस्तुत किया है।
           
महादेव जैसे सीरियल समाज की चेतना का जिस तरह क्षरण करते हैं वह समाज की सोच को सदियों पीछे ले जाते हैं। धार्मिक संस्कार किस कदर व्यक्ति की चेतना में अन्दर तक घुस जाते हैं कि व्यक्ति चेतना के स्तर पर उनसे मुक्त भी हो जाए तब भी अवचेतन से ये संस्कार आदत के रूप में प्रदर्शित होते रहते हैं और व्यक्ति को उसका पता भी नहीं चलता। लोग डॉक्टर,इंजीनियर,वैज्ञानिक  बन जाते हैं फिर भी उनकी सोच इन्हीं संस्कारों की वजह से एक अनपढ़ अन्धविश्वासी व्यक्ति की सोच से ऊपर नहीं उठ पाती।उनकी इस सोच को बनाए रखने में रामायण,महाभारत,महादेव जैसे सीरियलों का बड़ा योगदान है।

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