सोमवार, 15 अप्रैल 2013

Nagrik Posts 14 April 2013


कोई रक्त बीज राक्षस था क्या मैकाले ?
* न मैकाले का भूत भागेगा, न अंग्रेजों का प्रेत पीछा छोड़ने वाला | ऐसे में तो  गाँधी तो गाँधी, मैं भी आपके किसी काम न आऊँगा |  आहा ! कितना महान था - एक था  जो मैकाले और सशक्त उसकी औलादें, गाँधी और उनकी संततियों की तुलना में ? क्यों , यही तो कहना, बताना, भावना प्रतिष्ठित करना, चाहते हैं न नयी पीढ़ी में ?

* आज एक दलित महोदय के घर के किचेन में दाल  कच्ची रह गयी | बड़ी कोशिशों पर भी ठीक से नहीं पकी | सुना है उनके पानी को किसी ब्राह्मण ने छू लिया था | 

* मैं मुक्ति चाहता हूँ | मुक्ति दुनिया से नहीं | घर के झंझटों से , परिवार के तनाव से | संभवतः सत्यतः , इसी को तब भी मुक्ति कहते रहे होंगे, जब परेशान जन जंगलों की राह ले लेते रहे होंगे ! बाक़ी तप- तपस्या, भिक्षाटन तीर्थयात्रा आदि सब बहाने हैं |    

* हमारा धर्म = " इंसानी "  
[ Humanists in India ] 

* उतना ही तो किया जितना साधारण आदमी कर सकता था ! कुछ विशेष नहीं | इसलिए कृपया मुझे कोई विशेष दर्ज़ा न दिया जाय | 

बस वही 
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* गोल चक्कर 
हम घूमते जाते 
कहीं न जाते |

* तरक्की के तो 
लक्षण ही नहीं हैं 
खाक करेंगे ?

* बस हो चुका
बहुत हुयी तलाश 
घर को लौटो \

* धीरे ही चलो 
नहीं चल पाते तो  
लेकिन चलो |

* बच्चे मम्मी को 
बहुत मानते हैं 
पापा को कम |


कविता  =  " मेट्रो "

* मैं रेलिंग पकड़कर 
सीढ़ियाँ उतर रहा था 
तुम्हे भी 
रेलिंग के सहारे की 
ज़रुरत थी ,
मेट्रो ट्रेन से उतारकर 
मैं लिफ्ट की तलाश में था 
तुम भी लिफ्ट के बगैर 
ऊपर नहीं चढ़ सकती थी |
इसी प्रकार हम मिलते हैं 
मेट्रो ट्रेन से 
आते हैं जाते हैं |
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* ब्राह्मण यही चाहता है 
नाचो गाओ 
जन्म दिन - जयन्ती मनाओ
किसी महामानव के 
पीछे भागो  
उसे देवता बनाओ ,
फिर तो ब्राह्मण की 
बन ही आएगी 
एक न एक दिन !
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* बच्चे बड़े हो रहे हैं 
उनसे दूरियाँ भी 
बढ़ रही हैं ,
उनका व्यक्तित्व 
विकसित हो रहा है ,
हम तो जो हैं, सो हैं 
उनसे कुछ तो भिन्न !
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[कविता ?]
न इतनी डांट को डांट मानूँ  ,
न इतने गुस्से को गुस्सा ,
तो मै भी पीड़ा से 
बच जाता हूँ  
सर झटकता हूँ और 
भूल जाता हूँ 
कब किसने कितना 
मुझे कटुवचन बोला ! 
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* हम आप की बात क्यों मानें ? हम अपनी बात आप से क्यों मनवाएं  ? आप अपनी बात बात मेरे झोले में रख दीजिये , मैं अपनी बात आप की जेब में डाल देता हूँ | जिसको जो ज़रुरत होगी, निकाल कर पढ़ लेगा, अन्यथा फेंक देगा | बस !

* आधुनिक पति पत्नी स्वयं तो नौ बजे तक या आगे भी सोते हैं, लेकिन चाहते हैं की काम वाली बिल्कुल सुबह घर क्र काम कर जाए | घर में कुछ न बने तो दोनों बाहर से खान खा आयेंगे, लेकिन नौकरानी को साथ नहीं नहीं ले जायेंगे | कह देंगे अपने लिए कुछ बना लेना |

ॐ ॐ ॐ  जीवनाय नमः !
ॐ मम्मी डैडी, गुरु -गुरुवानी, पति -पत्नी, प्रेमी प्रेमिका, बाल बच्चे नमः !
ॐ भावनाय,स्कूटर,मोटराय, टीवी फ्रिजाय, लेपटॉप-कम्प्युटराय नमः !
ॐ दूध अंडा ब्रेड मक्खन, अखबाराय नमः !
इत्यादि - - - - - - to be extended by readers -------                   


* दलितों ने 'लाखों ' वर्ष ब्राह्मणों की जो सेवा की है, अब "उसी " का फल खा रहे हैं तो बुरा क्या है ?

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