* लगता नहीं है मन मेरा उजड़े दयार में |
Pramod Kumar Srivastava
* भाइयो थोडा हिंदुत्व को भी वैज्ञानिक होने का दावा पेश करने दिया जाय | युवाओं को मंदिर के कंगूरे पकड़ाने के बजाय उन्हें विज्ञानं अध्ययन की सुविधा दी जाय | क्या करेंगे ? कितने मंदिर चाहिए ? वह भी अयोध्या में , जो मंदिरों से अटा पटा पड़ा है ? अभी तो कुछ लोग जुगुप्सावश जा भी रहे हैं, भव्य मंदिर बनने पर वहां सिर्फ सैलानी जायेंगे | भक्त जनों के लिए तो हनुमान गढ़ी, दशरथ दरबार, सीता रसोई बहुत है |
तो इसलिए ,सारे ही परिसर को " अयोध्या विज्ञान केंद्र " बनाया जाय | हम दानिश्वर ज़िम्मेदार हिन्दू ऐसी सलाह सरकार को और भाजपा सहित सभी पार्टियों को क्यों न दें , और इसे अमल में लाने का दबाव क्यों न डालें ? क्या सब कुछ साम्प्रदायिकों के ही कहने से चलेगा ? हम रेशनलिस्ट हिन्दुओं की कुछ भी नहीं चलेगी ? तो क्या हिन्दुस्तान भी पाकिस्तान की तरह आतंकियों की गिरफ्त में न आ जायगा ? इतिहास को हम क्या उत्तर देंगे यह भी तो सोचिये ? कि हम मौजूद थे फिर भी गड़बड़ हो गया | इस प्रस्ताव में तो किसी की धार्मिक भावना को चोट भी नहीं है | पत्थर तराशे रखे भी हुए हैं | मुसलमान भी अपना हक छोड़े | सारी ज़मीन समतल कर दी जाय | हाँ , एक विकल्प दिया जा सकता है - विज्ञानं केंद्र का नाम ' श्री सीता राम चन्द्र ' के नाम स्मृति स्वरुप समर्पित किया जा सकता है |
* कुतर्क ज्यादा चल रहा है | कभी कभी ऊब, वितृष्णा होने लगती है | अरे हिन्दू नाम है तो है , गलत सलत ही सही !जैसे भूपट , दिगंबर , श्रीनिवास | क्या वे वास्तव में ऐसे हैं ? फिर हिन्दू के लिए ही हिन्दू होने कि जिद क्यों ? हम तो नास्तिक हैं , तो भी हिन्दू हैं | क्या क्या बदलें ? गलियों, सड़कों, पार्कों, दादा नानी, माँ बाप के नाम , प्रदेश देश नदी समुद्र सबके नाम कहाँ तक अनुकूल करें ? मुसलमान से पूछिए वह मुसलमान क्यों है ? क्या कोई और कौम या व्यक्ति अपने नाम पर इतनी मगजमारी करती है ? यह सारी कायनात, सृष्टि, आग, पानी, दिशाएँ और हवाएँ सब हवा हवाई है | कहीं तो पैर टिकाने की जगह बनाएँ !
* नागरिक संहिता कानून की बात है | एक किस्म के अपराध के लिए एक जैसी सजा सबके लिए | और इसकी मांग तो बहुत दिनों से उठ रही है | अब आप या राव साहेब पटा नहीं किस नागरिक संहिता की बात कर रहे हैं | वह कभी न भी रही हो तो क्या अब नहीं होनी चाहिये ?
* मेरा ख्याल [ ही है, दुराग्रह नहीं ] कि औरतों को बलात्कार से बचने के लिए स्वयं कोई तरीका, कोई रणनीति सोचनी चाहिए | पुरुष तो पुरुष ही हैं | मुझे नहीं लगता इसमें वे ज्यादा सहयोगी होंगे | ज्यादा से ज्यादा वे [ कुछ लोग ] यह कर सकते हैं कि वे बलात्कार नहीं करेंगे, छेड़खानी नहीं करेंगे, कुदृष्टि नहीं रखेंगे | लेकिन वे सबकी ज़िम्मेदारी तो नहीं ले सकते ? अब उस रणनीति में यह भी शामिल हो सकता है कि कभी वे लड़ें, कभी नज़र अंदाज़ करें, कभी सह जाएँ | लेकिन यह मानकर चलें कि यह एक पुरुष का सुझाव है |
* कुछ भी हो , आप महिलाओं के चक्कर में इतना क्यों रहते हैं, और वाद विवाद करने - बढ़ाने में ? यह उनका क्षेत्र है , उन्हें तय करने दीजिये | ज्यादा ज़िम्मेदारियाँ न उठाइए |
* भाइयो थोडा हिंदुत्व को भी वैज्ञानिक होने का दावा पेश करने दिया जाय | युवाओं को मंदिर के कंगूरे पकड़ाने के बजाय उन्हें विज्ञानं अध्ययन की सुविधा दी जाय | क्या करेंगे ? कितने मंदिर चाहिए ? वह भी अयोध्या में , जो मंदिरों से अटा पटा पड़ा है ? अभी तो कुछ लोग जुगुप्सावश जा भी रहे हैं, भव्य मंदिर बनने पर वहां सिर्फ सैलानी जायेंगे | भक्त जनों के लिए तो हनुमान गढ़ी, दशरथ दरबार, सीता रसोई बहुत है |
तो इसलिए ,सारे ही परिसर को " अयोध्या विज्ञान केंद्र " बनाया जाय | हम दानिश्वर ज़िम्मेदार हिन्दू ऐसी सलाह सरकार को और भाजपा सहित सभी पार्टियों को क्यों न दें , और इसे अमल में लाने का दबाव क्यों न डालें ? क्या सब कुछ साम्प्रदायिकों के ही कहने से चलेगा ? हम रेशनलिस्ट हिन्दुओं की कुछ भी नहीं चलेगी ? तो क्या हिन्दुस्तान भी पाकिस्तान की तरह आतंकियों की गिरफ्त में न आ जायगा ? इतिहास को हम क्या उत्तर देंगे यह भी तो सोचिये ? कि हम मौजूद थे फिर भी गड़बड़ हो गया | इस प्रस्ताव में तो किसी की धार्मिक भावना को चोट भी नहीं है | पत्थर तराशे रखे भी हुए हैं | मुसलमान भी अपना हक छोड़े | सारी ज़मीन समतल कर दी जाय | हाँ , एक विकल्प दिया जा सकता है - विज्ञानं केंद्र का नाम ' श्री सीता राम चन्द्र ' के नाम स्मृति स्वरुप समर्पित किया जा सकता है |
[साथ साथ ]
* रहते रहते ही
प्यार पनपता है ,
रहते रहते ही
घृणा उपजती है |
[ कविता ]
* देखो देखो युधिष्ठिर ,
तुम्हारे पीछे
एक कुत्ता चल रहा है |
धर्म है -
नाम उसका |
# #
" HYPOTHETICS" can be a good new subject / sreem for philosophy .
I say that we can and we should theatrically believe in a hypothetical God > After all our ancestors thought and brought forward the hypothesis of God having create the universe and lives on earth including humans . Now , why should we kill our imagination ? Just don't believe it true , but why not to use its concept in a positive manner for a cultural behavior of human beings ??
Yes , a hypothetical God can enhance religious science , and side by side it would not damage the human minds as a true God does today . I think so |
" A noted science fiction writer Robert J. Sawyer finds it amazing that 500 years after Copernicus, newspapers still publish astrology columns. Reality is what science fiction is all about . According to Sawyer, Science does hold all the answers - we just don't have all the science yet ."
Now , I take a clue from his experience . For us astrology columns would be interesting science fiction and the lack of ' science' would be supplemented by a hypothetical God , who has an ample presence here and does not agree to die or fade out . So let us evolve a theory of an imaginary and " HYPOTHETICAL" God . Right ? ?
So, we are all students of HYPOTHETICS ,. We are all hypotheticians ? We are not atheists ? We believe in a hypothetical God, never to come as true ??
* To Sandeep = ठीक है, देखता हूँ मित्र ! कहाँ रखा है , शायद ब्लॉग पर हो | पर यह तो तय है कि मैं सोचते विचरते इस निष्कर्ष पर दृढ़मत हूँ,[ जबकि मैं इसके लिए बड़ी निंदा और लताड़ खाता हूँ कि मैं बहुत जिद्दी हूँ ] कि भारत में दलित राज्य ही भारत का उत्थान कर सकता है , बल्कि अब तो इसका बचना, अस्तित्व में रहना ही इसी प्रकार संभव है | ढूँढता हूँ वह मूल प्रस्ताव | नहीं तो दुबारा लिखूंगा , बार बार लिखूँगा | इसीलिये मैंने आपसे एक बार पूछा था कि f b पर डाली गयी सामग्री का life span क्या है ?
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