रविवार, 3 फ़रवरी 2013

प्रगति की कहानी


प्रगति की कोई भी कहानी जनसँख्या की चर्चा के बिना पूरी नहीं हो सकती | इसके नियमन के बिना कोई योजना सफल नहीं हो सकती | लेकिन विडम्बना है कि राजनीति, आधुनिक राज्य तंत्र ही इसमें बाधक है | अद्भुत बात है कि लोकतान्त्रिक प्रणाली इस दोष में अभिवृद्धि करती है | क्योंकि यह संख्या पर आधारित है, जनमत की बहुलता पर | " जिसकी जितनी संख्या भारी " इस समस्या को जटिल बनाती है | इसलिए जिस भी समूह को राज्य पर लोकतान्त्रिक ढंग से कब्ज़ा करना होता है, वह अपनी संख्या बढ़ाना अपना प्रथम कार्यक्रम बनाता है | आश्चर्य नहीं कि मुसलमानों पर ज्यादा बच्चे पैदा करने का आरोप इस कारण सही ही हो | और इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर संघी सुदर्शन प्रत्येक हिन्दू को नौ बच्चे धरती पर भार बढ़ाने के लिए उतारने का शुभ परामर्श देते थे | जनतंत्र के हिसाब से इसमें प्रथमदृष्टया तो कोई दोष नहीं दिखता लेकिन यह कार्यक्रम देश और संसार की जनसँख्या तो बढ़ाता ही है, और इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय समस्या आसमान चढ़ती है | गज़ब की शोकजनक बात यह कि तमाम सम्मानित और अपमानित किये जाने वाले विचारक इस का कोई ठोस उपाय बताये बिना ही सामाजिक विज्ञानी बने हुए हैं / बन जाते हैं |
लेकिन मैं , समाज का एक अदना सिपाही इसका एक समाधान बताता हूँ | वह यह कि समूहों में परिवार नियोजन को प्रोत्साहित करने के लिए उनके सदस्यों के वोट की कीमत आनुपातिक ढंग से points में बढ़ा दी जाय | जैसे राष्ट्रपति चुनाव में सांसदों - विधायकों के वोटों के points होते हैं | उदाहरणार्थ मान लिया जाय कि भारत की कुल जनसँख्या एक अरब है | इसमें हिन्दू ६० करोड़ , मुस्लिम २० करोड़ ,सिख ईसाई आदि अन्य जातियाँ १९ करोड़ और सेक्युलर /नास्तिक/ ह्युमनिस्ट [ हुमी] बचे एक करोड़ | तो हिदुओं के ६ वोटों की कीमत एक वोट , मुस्लिमों के एक वोट को आधा वोट , अन्य जातियों के १.९ वोट एक point बनायेंगे | जबकि सेक्युलरों के एक वोट का मूल्य १० पॉइंट हो जायगा | [लागू करते समय इसकी गणित ठीक की जा सकती है ] | यानी प्रत्येक समुदाय के हाथ में १० - १० करोड़ के कीमती वोट होंगे , और अपने वोट की ताक़त से अपनी पसंद की सरकार बना सकेंगें | किसी को इस बात की ग्लानि तो न होगी कि हाय हम तो छोटी सी संख्या में हैं , क्या सरकार बनायें और हमारी क्या कीमत ? सरकार हमारी क्यों सुने जब हम कोई वोट बैंक ही नहीं हैं ? इससे गन्दी वोट बैंक की राजनीति पर रोक लगेगी | राजनीति साफ़ और स्वच्छ होगी | अल्पसंख्यक - बहुसंख्यक का रोग समाप्त होगा | और सबसे बड़ी बात इससे अपने एक वोट के पॉइंट्स बढ़ जाने की व्यवस्था से लोग अपने परिवार कम से कम बढ़ाएंगे और देश की आर्थिक प्रगतिवादी योजनायें सफलता की ओर कदम बढ़ा सकेंगीं | सोचिये सभी जन आगे सोचिये | कोई मेरे अकेले के जिम्मे तो नहीं है यह देश ? और मैं एकला सोचूँ भी तो कितना सोचूँ ?    A

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