शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

Nagrik Blog 22/2/2013


* हट जाऊँ 
तुम्हारे सामने से 
शायद तुम्हारे दिल में 
मेरे लिए 
प्रेम उपजे !
# #  [blog]

प्यार का चक्कर 
* जब से मैंने माना कि प्यार जैसी कोई चीज़ नहीं होती , तब से मनस्क्लेश का एक नया चक्कर शुरू हो गया | कि हाय ! तब तो मुझे भी कोई प्यार नहीं करेगा , अब क्या करूँ , मेरी जीवन नैया कैसे पार होगी ?   क्या यह ऐसे ही नीरस और शुष्क रह जायगी ? 
लेकिन आगे का ध्यान किया तो पाया कि प्यार का जो जल तुम्हे दिखाई दे रहा है , वह तो विज्ञानं के टोटल रिफ्लेक्सन का खेल है | वहाँ पानी नहीं है | इसी फेनामेना को मृग तृष्णा कहा जाता है | तब मन को समझाया - रे मन , जब प्यार जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं तो तुझे कोई प्यार क्यों करेगा ? कर ही कैसे सकता है ? तो सच्चाई तो यही है , इसे सहर्ष स्वीकार करो | ऐसे में तो यदि कोई तुमसे कहे कि " मैं तुमसे प्यार करती हूँ " तो उसे केवल तन की भूख समझो | उसे मन से मत जोड़ो वर्ना भ्रम और मृग मरीचिका में पड़ोगे तथा दुःख और संताप झेलोगे | अच्छा ही तो है और सही भी जो मुझसे कोई प्यार नहीं करता | इसकी आशा ही मत करो क्योंकि वस्तुतः ऐसी कोई चीज़ नहीं होती | निश्चिन्त - निष्काम चैन की नींद लो ,और अपना जीवन सार्थक सार्वजानिक कार्यों में लगाओ | शरीर की आवश्यकता को, शरीर की आवश्यकता की तरह पूरी करो | प्यार के चक्कर में मन और आत्मा का सत्यानाश मत करो | इससे एक लाभ यह भी है की तुमसे कोई यह नहीं कहेगा की तुम उसे प्यार करो | न तुम किसी को प्यार करो , न कोई तुमसे प्यार करे तो जीवन में न लाभ हो न घाटा , न इनकी बिलावजह चिंता , न कोई फ़िल्मी उपन्यास कथा का निर्माण , जिनसे प्रोत्साहित होकर तमाम युवा ज़िंदगियाँ बरबादी की और कदम बढ़ाती हैं | आमीन |    [ blog]

* मैं  हमेशा सच ही नहीं बोलता | कभी कभी, नही ज़्यादातर तो मैं झूठ ही बोलता हूँ | जैसे कहता हूँ - मैं प्यार करता हूँ , हे प्रियतम ! प्रिय मित्र के संबोधन से पत्र प्रारंभ करता हूँ | और यह भी तो कहता हूँ - हे ईश्वर ! प्रभु जी तेरा सहारा ! भगवान् आपका भला करे | जब कि यह सब झूठ है - न प्रेम जैसी कोई वास्तु है, न ईश्वर का कोई अस्तित्व | मैं सत्य कहाँ बोलता हूँ ? [blog ]

* अल्ला देख रहा है 
कोई देखे या न देखे अल्ला देख रहा है | बहुत से धार्मिक, सांप्रदायिक, राजनीतिक संस्थाएं और संगठन तमाम ऐसे काम कर रहे हैं, उन्हें मैं यह तो कहने का सहस नहीं करूँगा कि वे राष्ट्र हित में नहीं हैं, लेकिन वे सामान्य जनता को समझ और पसंद नहीं आते | ज़ाहिर है वे अपने कर्मों पर लीपा पोती करके उनका औचित्य सिद्ध करते हैं | मैं उनसे यह कहना/बताना  चाहता हूँ कि जनता भले आपके खिलाफ कुछ कह / बोल नहीं पा रही है लेकिन जान लीजिये कि वह बड़े ध्यान से आप लोगों को देख रही है और अपना मन कुछ बना रही है चुपचाप , जो समय पर , यदि उसे मिला तो , ज़ाहिर होगा | इतना मूर्ख न समझिये हमें कि आप झूठी साफ़ सफाई दें और हम मानते जाएँ | इनके अतिरिक्त इनके समर्थक एन जी ओ संगठनों और अग्रजन व्यक्तियों से निवेदन है कि इस देश में वैसे ही ३३ करोड़ देवता हैं , और उनसे देश कम परेशान नहीं है | अब आप लोग भी देवता और भगवान् बनकर इनकी संख्या में वृद्धि न करें | आदमी बने रहिये और साधारण आदमी की तरह ही सोचिये और उसका साथ दीजिये | समय देख कर रंग और राजनीति बदलियेगा तो अभी कुछ पैसा कौड़ी और ख्याति मिल जा रही है , अंततः आपको इतिहास की धूल चाटनी पड़ेगी |    [ अस्पष्ट Ambiguous बयान ]

* " CULTURE  IS POLITICS OF SOCIAL LIFE  "
इस विचार को सोचते जायंगे तो इसे क्रमशः सत्य ही पाएंगे | यह तो हम एक दूसरे से शिष्ट सभी - प्रेम व्यवहार करते, सलाम दुआ, खान पान करते, तीज त्यौहार मानते / शरीक होते हैं, सब ज़िन्दगी की राजनीति है | राजनीति का मतलब जिसमे बनावट और झूठ ज्यादा हो और सच्चाई की मात्रा कम | इस प्रकार हम अपने सुख और शक्ति को बढ़ाते हैं | अन्यथा हम अकेले , अलग थलग न पड़ जायं ? इसीलिए जो सीधे सादे लोग सामाजिक कम होते हैं वे कमज़ोर पड़ जाते हैं | और जो समाज Social Life को सक्षम राजनीतिक रूप से जीता है वह अधिक शक्तिशाली हो जाता है | यहाँ तक की वह राज / शासन करने की स्थिति में आ जाते हैं |  

* धोखा है , सब फरेब है इस युग के प्यार में ,
बरबाद एक पल भी न कर इंतज़ार में |

* मैं किस किस को कितनों को जवाब देता फिरूँगा ? मैं कोई परीक्षार्थी नहीं जो उत्तर लिखने को विवश हूँ | और मैं शिक्षक भी नहीं जो विषयों को समझाने के लिए क्लास लेकर बैठूँ | जिसे चिंतन की गहराई में जाना हो वह जाय, न जाना हो तो इसे भूल जाय | मैं इसी प्रकार " उलटी गंगा " बहाता और लिखता हूँ कोई पढ़े यह ज़रूरी नहीं | लेकिन कोई मुझसे घिसी पिटी लकीर का फकीर समझने की भूल न करे | और  यह तो बहुत प्राथमिक विषय है | नास्तिकता का प्रसार बहुत पुराना है | सिद्ध -असिद्ध पाठक की ज़िम्मेदारी है |

* कोई लिक्खाड़ बड़े आराम से यह लिखकर पोस्ट कर सकता है कि यह सब किया धरा सरदार पटेल का है | उन्होंने ही जबरदस्ती हैदराबाद को हिन्दुस्तान में मिलाया था, जिसका खमियाजा राष्ट्र को भुगतना पद रहा है | 

* यह क्या भाई ? हैदराबाद धमाका के सम्बन्ध में कुछ मुसलमान जैसे नाम सुनाई दे रहे हैं ! बिलकुल झूठ | असम्भवामि !

[ गीत शुरू ]
* (प्यार) प्रेम को अभिव्यक्ति मत दो !
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* ईश्वर होता तो क्या मैं कह पाता कि ईश्वर नहीं है ?

* " वो हँस के मिले हमसे , हम प्यार समझ बैठे "
- यही है प्यार का हाल | ऐसे ही होता है प्यार और आदमी हलकान होता है |
मेरा तो फ़र्ज़ है आदमी को धोखे खाने से बचाना | वह मैं पूरा कर रहा हूँ | कोई माने , न माने |

औरतें, मेरा ख्याल है, आतंकवाद निर्मूलन की दिशा में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकती हैं | आठ मार्च, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आने वाला है | उनके जुड़े में एक मयूरपंख लग जायगा | समाप्त तो वे देश से भ्रष्टाचार भी कर सकती हैं क्योंकि उन्हें पतियों की कलि कमाई का पूरा पता होता है | और यदि उनसे वे कह दें कि गलत पैसा कमाओगे तो मैं तुम्हे खान या ऐसा ही कुछ नहीं दूँगीया फिर तलाक़ दे दूँगी तो क्या मजाल डरपोक प्रेमी पति की जो एक रुपया भी घूस ले ले | लेकिन मैं इतना बड़ा खतरा उठाने को उनसे नहीं कहूँगा क्योंकि फिर उनके सेनुर टिकुली अंगूठी, कानो की बाली वगैरह खतरे में पड़ जायगी | लेकिन इतना तो अवश्य कहूँगा कि यदि उन्हें ज्ञात हो कि उनका पति आतंकवादी कार्यवाहियों में लिप्त है तब तो उसे अवश्य ही देश हित में पहले तलाक़ की धमकी दें और तब भी न मने तो तलाक़ दे दें | या हम लोगों के गाँव में जैसा होता है चुपके से किसी और पर ' बैठ ' जाएँ/ दूसरा घर कर लें | बच्चू को पता चल जाय आतंक की क्या सजा हो सकती है ? 
[ khyali pulao]

यह भला " हुडदंगी " कौन सी नयी जमात पैदा हो गया या नया नया कोई एन जी ओ बन गया इतनी जल्दी देखते ही देखते ? फिर यह आन्दोलनकारियों के बीच क्या कर रही थी, और कमाल कि उसकी शिनाख्त हडताली हुजूम भी नहीं कर पायी और इनकी करतूतों के कारण बिलावजह बदनाम हुयी | अभी तक बजरंगी नाम ही बदनाम था, अब उनके चलते हुडदंगी भी बदनाम हो गए | कहीं ऐसा तो नहीं कि ये वे लोग हैं जिनका कोई "मर्म" नहीं होता, जिस प्रकार आतंकवादियों के लिए कहा जाता है कि उनका कोई "धर्म" नहीं होता ? 
[ astray thoughts ]

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