* Start your being as a Humanist by not showing any signs of religiosity except through your humane behavior . Avoid prayers in public, visiting religious places and shrines. Do not apply religious marks of identification - chandan teeka roli - choti kanthee maala , stones in rings etc. Whatever you believe, let it remain in your hearts. it is also useful in your spiritual journey too as well .
* समझ में नहीं आ रहा है कि मुसलमानों की हठधर्मिता और कट्टरता नहीं तो कट्टरता की प्रदर्शन प्रियता पर क्या किया जाय ? आये दिन जब तब बखेड़ा खड़ा किये रहते हैं | आजकल विश्वरूपम और सलमान रूश्दी हैं | इन्होने अपनी साख और इज्ज़त मिट्टी में मिलाई हुई है | फिर कहते हैं दुनिया को इस्लामो फोबिया हो गया है | मुझे तो लगता है ये जिस ईमान की बात करते हैं, इन्हें अल्लाह पर भरोसा कम से कम है, या है ही नहीं | तभी तो ये उसे, उसकी किताब आदि बचाने सड़कों पर मारे फिर रहे हैं ? अरे कुछ तो उसके ऊपर छोडो भाई या सब कुछ तुम्ही कर लोगे ? फिर ईश्वर क्या करेगा ? कुछ उग्र आन्दोलन कुत्सित दिमाग में आते हैं | जैसे किसी मुसलमान की लिखी कोई किताब न पढ़ी जाय, क्योंकि यहाँ रूश्दी या तसलीमा को लिखने, आने जाने की पाबंदी है | सरकार एक किनारे, समाज की अपनी भी ताक़त होती है, और उसे कोई चुनौती नहीं दे सकता क्योंकि वह सूक्ष्म रूप से कार्य करती है | हम किसकी कौन सी किताब पढ़ें, क्या न पढ़ें, यह तो हमारे अधिकार में है | इन्हें भारत में वोट न दिया जाय यह पुराना कार्यक्रम है | किये की सजा आखिरत में क्यों , अभी इसी दुनिया में इसी समय क्यों नहीं ? फिर हमें अपने प्रत्येक कृत्य को तार्किक, न्यायसंगत, अपने अनुकूल तो बनाना ही होता है ?
* वर्मा जी कमीशन ने बिना मुझसे चेक कराये अपनी रिपोर्ट दे ही दी वरना मैं उन्हें दो एक सुझाव और देने को कहता | लेकिन उनकी भी क्या गलती ? मुझे विचार भी तो अध्यक्षीय भाषण के बाद ही आते हैं | एक तो विचार यह था कि बलात्कारियों पर देश द्रोह का मुक़दमा चलाया जाय | क्योंकि इससे और तो जो नुकसान होता ही है, इससे राष्ट्र की छवि बहुत बिगडती है | देश शर्मसार होता है | वह धारा कौन सी है मुझे याद नहीं, जो विनायक सेन पर लगी थी - संदीप जी बता सकते हैं | लेकिन मेरे ख्याल से वह उचित सजा होती | दूसरा विचार यह था कि पीडिता को पीडक की संपत्ति से फ़ौरन हिस्सा दिला दिया जाय | जैसे यह मान कर चला जाय कि उसके साथ ज़बरदस्ती सुहागरात मनाई गयी | तो ज़मीन जायदाद में हिस्सा दो | वह तुम्हारे साथ अब नहीं रहेगी / या चाहे तो रहे | तो पीडिता को क्षणिक पत्नी का अधिकार क्यों न दिला दिया जाय ? दानिशवरों को याद होगा कैसे मुल्ला जी ने एक पतोहू को बेटे की माँ बता दिया था, क्योंकि ससुर ने उसके साथ सम्बन्ध बना लिया था | हम दरअसल कुछ सीखना ही नहीं चाहते वरना न्याय के तमाम सूत्र तो हमारे घर में ही बिखरे पड़े हैं |
* हम दृढ़मत 'नास्तिक जन' समूह हैं | हम मानववादी हैं, किसी अन्य लोक के ईश्वर के बगैर | हम इसी दुनिया में इंसानी ज़िन्दगी के कायल हैं | स्वर्ग नर्क, भगवानों की अनुकम्पा, की हमें दरकार नहीं | ईश्वर की नहीं, हमें मनुष्यों की ख़ुशी चाहिए | हमारे चिंतन और कर्म में मनुष्य है, और मनुष्य के इर्द गिर्द का वातावरण | यह प्रकृति और यह सृष्टि और इसकी जिजीविषा | पदार्थ और चेतना | इसलिए हमें ईश्वर से कोई परहेज़ नहीं जब तक वह मनुष्य की निर्मिति है और उसकी कल्पना | लेकिन इसके आगे नहीं | उसे हम अपनी तार्किकता और वैज्ञानिकता में बाधक नहीं होने देते | इसी प्रकार हमारी किताबें हमारे पूर्वजों की कविताएँ मात्र हैं, आदेश नहीं | भारत के सन्दर्भ में धर्म भी मानवता के प्रति हमारी सत्यनिष्ठा, कर्तव्यपरायणता है | यह हमारी आध्यात्मिक प्रेरणा है, हमारा संगठन नहीं | हम व्यक्ति की आत्मा के अभ्युत्थान के आकांक्षी हैं |
* झूठ से मुझे
चिढ़ तो है ज़रूर
पर क्या करूँ ?
* दलित नहीं
दलितावस्था में तो
ज़रूर हूँ मैं |
* दुःख पड़ा तो
झेलना ही पड़ेगा
चाहो न चाहो |
* पवित्र गाय
इस्लाम धर्म है न
पवित्र गाय !
* हिन्दू हाफ़िज़ =
इस्लाम मज़हब में उनकी किताब कुरान मजीद की हिफाज़त का पक्का बंदोबस्त है | वहाँ हाफ़िज़ साहेबान होते हैं जिन्हें पूरी किताब ज़ुबानी याद , कंठस्थ होती है | व्यवस्था यह है कि किसी भी वजह से यदि कुरआन की सारी प्रतियाँ गुम हो जाएँ, और दुनिया में एक भी हाफ़िज़ जिंदा हो तो वह उसे पुनः लिख देगा |
हिन्दू धर्म में न तो ऐसी कोई किताब है, न उसकी सुरक्षा का ऐसा कोई इंतजाम | लेकिन भारतीय परिवेश को देखा जाय तो कहा जा सकता है कि संसार में जब तक एक भी यादव, या अहीर कह लीजिये, हिन्दू धर्म बचा रहेगा, उसका रूप - स्वरुप जो भी हो | शायद यदा यदा हि धर्मस्य - - का प्रभाव हो !
* हाँ , यह बात भी सही है | नैतिकता वादी लोग सही दिशा में भौतिकता के बारे में कुछ सोचते हि नहीं | वाकई १८ से २१ के बीच में वह क्या करेगा ? ब्रह्मचर्य का निर्वाह तो करेगा नहीं | फिर तो जो विकल्प है, वह स्वास्थ्य के लिए शुभ नहीं | इसीलिये मैं तो बहुत प्रारम्भ से बाल विवाह का हिमायती हूँ, जिसका बड़ा विरोध होता है आधुनिकता द्वारा | हाँ गौना १६- १८ कि आयु पर आये | शहरी लोग तो विवाह और गौन में हि अंतर नहीं जानते | और आधुनिकता के चक्कर में बुढ़ौती में विवाह को प्रश्रय देते हैं , जिसका कुफल समाज को भुगतना पड़ता है |
* किसी को भी फँसाने के लिए लोकपाल के अतिरिक्त तमाम कानून पहले से ह़ी हैं | और तमाम लोग उसी के तहत दण्डित भी किये जा चुके हैं | लेकिन जब हम लोग [ आन्दोलनकारी ] सरकार से नाटक करवाना ह़ी चाहते हैं, तो वह कर भी रही है |
* "साबार ऊपर मानुष सत्य, ताहार ऊपर नाइ"
= नहि मानुषेत श्रेष्ठतरं हि किंचित | ?
* भला यह प्यार व्यार क्या होता है भाइयो ? क्या यौन सुख से फर्क कुछ होता है? कहीं ऐसा तो नहीं की दोनों एक ही हों और हम इनमे द्वैत पैदा करके समस्या को जटिल बना रहे हों ? मैं स्थिति स्पष्ट कर दूँ | मैं भी ५० साल तक प्यार में घायल रहा, पर अभी इल्हाम हुआ कि यार यह तो कुछ था ही नहीं, मैंने बेकार जीवन को नर्क बनाया | उधर प्रमोद K S जी [ Lucknow School ] कह ही रहे हैं कि ईश्वर भी नहीं होता | उसके पीछे तो पूरी दुनिया पागल है - अतः बातें ठीक लग रही हैं | ये हमारे मन के भ्रम हैं मात्र | मैं तो मित्रो अब लाटरी पद्धति से विवाह के पक्ष में जा रहा हूँ | और यदि मैं इसे जन गण मन में डाल / स्थापित कर पाया तो मानवता को अवश्य थोडा सुखी कर पाऊँगा | इधर मैं नास्तिक मानव वादी भी तो हुआ हूँ ? सचमुच सौ में से निन्यानबे रिश्तों को नकारना [ Reject ] कितना CRUEL काम है ? विवाह का बंधन भी कैसा ? अरे उन्हें जिस मिलन की शारीरिक ज़रुरत है, उसके लिए समय से उनके जोड़े बना देना है | इतने भर के लिए कितने झमेला है ? कई कई लाख अनावश्यक व्यय और राष्ट्रीय श्रम - समय की बर्बादी ! अब तो मैं किसी शादी समारोह में नहीं जाता | फ़िज़ूल का काम | यह अलग बात है की मुझे हर उत्सव अब पीड़ित मानवता विरोधी लगने लगे हैं, नैतिकता की खिल्ली उड़ाते |
* रुश्दी ने लिखा ही तो है ; नंदी ने कहा ही तो है ? उनके लिए इतनी बड़ी सजा की माँग ? इन्ही लोगों को हिंसक - नक्सलवादियों के खिलाफ हर कार्यवाही राजकीय हिंसा लगती है | विनायक सेन के पक्ष में ये तमाम मोमबत्तियाँ जलाते हैं | वह समाज कैसा होगा जिसमे अपने मन की बात कोई नहीं कह पाए भले वह वक्ती तौर पर समय को कितना भी अप्रिय हो | अँधेरा होने वाला है , अंधेरगर्दी चलने वाली है |
हाँ जब कानून बना है तो उसका सदुरुपयोग होना ही चाहिए | वर्ना अकादमीय मामलों में सजा यह होती है कि वक्ता अपनी साख और विश्वसनीयता खोता है | फेसबुक पर ही कितने अनाप शनाप बकने वाले लताड़े या अन्फ्रेंड किये जाते हैं | फिर भी हमें क्या ऐतराज़, कानून अपना काम करे | पर ध्यान रहे, फिर हर मामले में उसे "काम" करने दिया जाय | किन्ही मामलों में उसे अपने हित में न मोड़ा जाय | और हाँ भाई, बताते हैं कि कभी ब्रूनो वगैरह पर भी 'धर्म' ने "धार्मिक" कार्यवाही की थी | अब राज्य सबल हो गया है तो उसे भी सख्त कार्यवाही करनी ही चाहिए | तथापि एक चाहत तो थी कि कोई संज्ञ [sane] दलित संगठन यह बयान देता कि भ्रष्ट समाज और व्यवस्था में सभी भ्रष्ट है और दलित इस व्यवस्था और समाज से बाहर नहीं हैं |
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