* अधूरी गजलों का संग्रह मैं हूँ ,
लोक - परलोक का विग्रह मैं हूँ |
* कहते तो हैं प्यार की बातें /
करते नहीं इकरार की बातें |
* ईश्वर - अल्ला ढूँढ कर देखो ,
अपनी आँखें मूँद कर देखो ;
मूंदहु आँख कतहूँ कछु नाहीं ,
फिर तो आँखें खोलकर देखो |
[LINES ]
* हिम्मत है तो बोल कर देखो ,
लिखकर या मुँह खोल कर देखो |
* हिम्मत है - मैदान में आओ '
दूर दूर से मत डरपाओ |
* दिल का हाल बताया तो !
मैंने प्यार जताया तो !
* फोन करने की तो हिम्मत नहीं है ,
चले हैं डरने वाले प्यार करने !
* हिम्मत है तो बोल कर देखो ,
लिखकर या मुँह खोल कर देखो |
* हिम्मत है - मैदान में आओ '
दूर दूर से मत डरपाओ |
* दिल का हाल बताया तो !
मैंने प्यार जताया तो !
* फोन करने की तो हिम्मत नहीं है ,
चले हैं डरने वाले प्यार करने !
[ गीत ]
* हर्ज़ क्या अपनों से कहने में , अपने मन के बुरे खयालात ?
प्रश्न जिनके न मिल सके उत्तर , मन में उठते हुए सवालात ?
[ शेर ]
* गजलों में बड़ी मोहब्बत की बातें ,
देखो तो कैसी हैं तरेरती आँखें !
* यदि ईश्वर तुम्हे आदेश न दे तो क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करोगे ?
* जो आप बोल रहे / रही हैं, उसका अर्थ प्रकारांतर से यह निकलता है कि मानो 'अल्लाह' नहीं है | तो बहनों और भाइयो उसका मतलब प्रकारांतर से तो यह भी सिद्ध होता है कि कोई 'ईश्वर' भी नहीं है |
* मेरा ख्याल है , प्यार जताने से पहले मुझे [ मतलब हर किसी को ] अपना चेहरा शीशे में देख लेना चाहिए |
* यह तो आपने अपने यह तो आपने अपने प्रिय / परिजनों से कहा होगा, उनके मुँह से सुना होगा कि मौसम बदल रहा है , अपना ख्याल रखना | अब इसे उलट कर मैं यह कविता लिख रहा हूँ :-
* मौसम, सावधान !
मैं बदल रहा हूँ ,
तुम ,
अपना ख्याल रखना |
# #
[ कविता बनी या नहीं ?]
* वस्तुतः तो लोकप्रिय वही होगा , जिसमें लोकप्रियता खोने की कुव्वत होगी |
[ उवाच ]
# आज लखनऊ में ओले पड़े | इस पर अपनी एक पुरानी [एक शेर की ] ग़ज़ल याद आई | :--
* ओले पड़े हैं आज तो घबरा रहे हैं आप ,
किसने कहा था आप मेरे साथ आइये ?
* शिक्षा का मतलब है - एक अतिरिक्त मात्रा जोड़कर = सभ्यता |
* प्यार है ? ठीक !
ज़रा दूर रहिये
तब तो जानें !
* मिट जायेगा
भ्रम को भ्रम कहो
तो कुछ बार !
* साज़ न होते
देखते क्या तो गाते
आवाज़ वाले !
* लगता मानो
रस सूख गया है
गीत न भाते |
[ हाइकू ]
* प्यार तो तब मानें जब किसी अन्य की सूरत मन को न ललचाये , उससे उत्तेजना ग्रहण करने की बात तो दूर | जैसे मीरा का " मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई " |
* मैं जो सिगरेट पीता हूँ उसका अधिकतम मूल्य 48 रु प्रति डिब्बी [दस सिगरेट] है | फुटकर एक सिगरेट लूँ तो 6 रु देने पड़ते हैं | अर्थात, यदि बीस पैसे एक माचिस की तीली के लगा लिए जायँ, तो एक सिगरेट पर विक्रेता एक रु मुनाफा लेता है | वह भी क्या करे ? अठन्नी तो चलती नहीं | हैं भी छोटे व्यापारी बेचारे पान सिगरेट चाट छोले खोमचे वाले ! वे कोई आयकर दाता की सूची में तो हैं नहीं !
* घर में अखबार आता था तो सवेरे सवेरे उसे लेकर बैठ जाता था, और बाहर टहलने जाने का मौक़ा नहीं मिलता था | अब मैंने अखबार लेना बंद कर दिया | जब लखनऊ में रहता हूँ तो अखबार का चस्का या आवश्यकता होने के कारण उसे खरीदने पैदल चलकर जाता हूँ | इस बहाने थोड़ा टहलना हो जाता है, जो इस आयु के स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी है [ लोग बताते हैं ] |
* तुम भी क्या बात करते हो यार नागरिक ! कहना तो यहाँ बच्चों का भी मानना पड़ता है, और वह तो भगवान् [?] है |
* बातें कितनी सिमट गयी हैं, तुमसे मिल जाने के बाद ,
आँखें कितनी फ़ैल गयी हैं, तुमसे मिल जाने के बाद !
नैतिक मार्क्सवादी =
भला हम क्यों न मार्क्सवाद को महत्त्व व आदर देंगे ? मार्क्स जीते जागते आदमी थे , कोई काल्पनिक देवता नहीं | उन्होंने तप, त्याग- तपस्या की , अपना जीवन खपाया | तो वह निर्मूल तो नहीं होगा ! अतः, मार्क्सवाद मानव की धरोहर है | उससे आपत्तियाँ जो हैं व्यक्तिगत मेरी [ पार्टी और संगठनों में न जाने का यह कारण हो या न हो ] कि उसमे व्यक्तिगत नैतिकता का व्यवहार मार्क्सवादियों के आचरण में दृष्टिगोचर नहीं हुआ | बस यही तो ? उसे दूर कर लीजिये | नैतिक मार्क्सवादी बन जाइये | पर मार्क्स की मोटी मोटी यह बात तो सच है कि सारे व्यवहार धन संपत्ति , रूपये पैसों से तय होते हैं | वह इसे उत्पादन की शक्तियाँ वगैरह कहते हैं | जो भी हो, यदि इसे ध्यान में नहीं रखा तो निश्चित दुःख पाओगे - Tension & shock |
इस सत्य को गाँठ बाँध लीजिये | इसमें कोई साम्प्रदायिकता नहीं है | इसे जान लेने में कोई हर्ज़ भी नहीं है | इससे अपने व्यवहार को सँभालने में आसानी होती है | इस तथ्य से अनावश्यक उत्तेजित न हों | वह यह कि हमारे मुसलमान भाई सदा मुसलमान ही रहेंगे | इसमें कोई बुराई नहीं है , न कोई पाप | यह उनकी, उनके बनावट की मजबूरी है | दुनिया के किसी भी कोने में मुसलमान के साथ जो होगा उससे वे प्रभावित और आंदोलित ओङ्गे , यह मान कर चलिए | मुसलमान पहले और सबसे पहले मुसलमान होंगे फिर कुछ और | [सत्यंवद ]
" अगर मुसलमान आतंकवाद का साथ देता है तो वह सच्चा मुसलमान नहीं है "
[ a statement from seminar @ Centre for Objective Research & Development (Lucknow) ]
= फिर पुरोहित का ज़िक्र ' हिन्दू ' के रूप में क्यों करते हो भाई ? उन्हें भी सच्चा हिन्दू न मान लेते |
अंतर / फर्क / Difference =
इसे लोग भूल जाते हैं | बल्कि करते ही नहीं | हिन्दुस्तान में हिन्दू उग्रवाद विद्रोह है, पाकिस्तान में इस्लामी उग्रवाद राज्य से विद्रोह है | पाकिस्तान में हिन्दू उग्रवाद आतंकवाद है, हिंदुस्तान में इस्लामी उग्रवाद आतंकवाद है | [ आमीन ]
सही बात है रति जी | लेकिन कहीं से भी अच्छे और मूल्यवान विचार लेने और उस पर अमल करना तो हमारी संस्कृति बननी चाहिए [ सदा रही है - लोग कहते हैं ] |
* यदि जाति ही हिन्दू धर्म की पहचान है [ जैसा कि विद्वान लोग बताते हैं ] , और वह मिट नहीं सकती , तो हिन्दू बने रहने के लिए तो हमें जाति माननी ही पड़ेगी ! [ nonsense ? ]
अब हम " विक्षिप्ताश्रम " में जाने को सोच रहे हैं | क्या कहा ऐसी कोई व्यवस्था भारतीय संस्कृति में नहीं है ? तो हम नयी बनायेंगे न ? जानते हैं , यह आश्रम संन्यास आश्रम में जाने से बचने का पूर्वाभ्यास है |
* कहीं नहीं है
तो यहीं क्यों हो भला
ईमानदारी |
* कविता नहीं
अहंकार पहले
आता कवि में |
* अभी सेक्स को खुली मान्यता नहीं मिली हुयी है इसलिए युवा लोग 'प्यार' का नाम लेकर गलत संबंध बनाते हैं, एक दुसरे को धोखा देते हैं | अभी उसे मान्यता प्राप्त हो जाय तो देखिये इनका सार प्रेम - प्यार हवा - हवाई हो जाय !
" Man without Mission "
* यद्यपि मैं कोई क्रांतिकारी नहीं हूँ, न क्रांतिकारिता का बहुत मुरीद ही | बल्कि मैं तो उसके पक्ष में ही नहीं , उसका विरोधी भी हूँ | कह सकते हैं यथास्थितिवादी हूँ | तथापि मुझे निष्प्रयोजन जीने वाले लोग पसंद नहीं आते | वह मिशन भले ही कोई साधारण सा जीवन का दार्शनिक विचार हो | यथा - औरत मर्द में फर्क नहीं करेगा , कतई बलात्कार नहीं करेगा | या जाति भेद नहीं मानेगा | या यहाँ तक कि वह हमेशा बाएं चलेगा और ज़ेबरा लाइन पार नहीं करेगा |
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