शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

[ नागरिक पत्रिका ] 27 से 31 अक्टूबर , 2013

* अपना पक्ष तो हर किसी का कुछ न कुछ होता ही है | लेकिन जो दूसरे का पक्ष जान -सुन - समझ कर  अपनी राय बनाने - बदलने को तैयार होता है , उसे 'निष्पक्ष ' कहा जाता है |

* कहते हैं धर्म तो एक है - मानव धर्म | तो धर्म की भाँति राजनीति भी तो एक हो - जन सेवा की नीति ! अतः पार्टी भी एक ही हो , नाम कांग्रेस ही हो सकता है ( मानो JP की दलविहीनता की तरह ) | उसके भीतर ही वैचारिक विविधता वाले गुट - समूह हो ( जैसे स्वयं भारत देश ) | लोकतांत्रिक चुनाव आयोग तो पार्तितों पर रोक लगा नहीं सकता | लेकिन कुकुरमुत्तों से नुक्सान भी बहुत हो रहा है | अतः वोटर यदि यह मन बना ले कि वह केवल एक ही पार्टी को रखेगा | और यदि उसमे उसके पसंद का उम्मीदवार खड़ा किया गया है { जैसे मेरे लिए हिन्दू - दलित } तब वह वोट देगा , अन्यथा रिजेक्ट करेगा | यह विषय नया है , गंभीर और लम्बा | वोटर तय करेंगे | अभी हमारी वोटिंग राईट की ताकत अनेक दलों में बाँट कर  बेअसर हो रही है |

* Walking while talking , is what mobile phone is meant for !

* विवाह या सहजीवन प्रस्ताव के लिए न सही , मैं यूँ ही बताता हूँ कि मैं मानसिक - वैचारिक स्तर पर एकल , अकेला हूँ | मैं Single हूँ | इस मायने में कि मैं दोगला नहीं हूँ | मैं विचारों में दोगलापन नहीं करता | तो single ही तो हुआ ?

* तेरा द्वार खटखटाए क्यों ?
कोई तेरे पास जाए क्यों ?
तमाम बंदिशें हैं तेरे दर /
तुझे देवता बनाए क्यों ?

* कवियों की दशा देखी ,
कविता का नशा छूटा |
#    #

[कविता ? ]
* आगे देखना ,
दायें बाएं का
ख्याल रखना
उनका काम |
मेरा काम , केवल
उन्हें देखना |
#   #

* आस्तिक होने के लिए कोई ज़रूरी तो नहीं कि अपनी सारी बुद्धि को गिरवी रख दिया जाय ? जैसे मैं राष्ट्र में विश्वास रखता हूँ तो भी यह क्यों समझूं और कहूँ कि 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा ' ?

* मरहूम राजेन्द्र यादव ने यह दिखा दिया कि वह दलितों के अतिरिक्त नवयौवना लेखिकाओं से भी कुछ आत्मकथाएँ बुनवाकर उन्हें कहानीकार बना सकते हैं | अब उन्हें प्रोत्साहन कौन देगा ? निश्चय ही श्री यादव एक सकर्मक साहित्यकार, या नहीं तो, सम्पादक थे |

* स्वतंत्रता पूर्व मुसलमानों को लगा होगा कि अलग पाकिस्तान बनने से उनका फायदा होगा | इसलिए  देश बंटा | अपनी सुविधा के लिए वहां से उन्होंने हिन्दुओं से छुटकारा पाने की भी जुर्रत की | और अब , ज़ाहिर है पाक देश को भारत से दुश्मनी करने में लाभ नज़र आ रहा होगा , इसलिए वह हर संभव सामरिक तरीके हिन्दुस्तान के विरुद्ध अपना रहा है |
अब इतना यदि अब इस तरीके से समझ लें तो यह रास्ता भारत के लिए ईजाद करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि पाकिस्तान का सही, सटीक, प्रतिरक्षात्मक उत्तर यह होना चाहिए कि पाकिस्तान से शेष बचे भारत के मुसलामानों को यह निश्चित आभास दिया जाय कि " पाकिस्तान का बनना उनके लिए फायदेमंद नहीं हुआ " | उन्हें इसका खामियाजा स्वयं भुगतना चाहिए, भुगतने का आफर करना चाहिए | उन्हें नैतिक साहस करके यह कहना चाहिए कि चूँकि पकिस्तान भारत से तकसीम होकर बना | मुसलमानों का इस्लामी देश बना, बांगला देश भी कोई सेक्युलर शासन नहीं बना | और वह उस भारत से दुश्मनी निभा रहा है जिसमे हम रह रहे हैं | तो ऐसे में एक नैतिक , ईमानदार मुसलमान की हैसियत से हिन्दुस्तान पर राज करने, राज करने वालों की श्रेणी से अपना अधिकार हम विद्ड्रा करते हैं , वापस लेते हैं | निश्चय ही यह भारत के सेक्युलरवाद और लोकतंत्र की कृपा है कि हम सत्ता में इस प्रकार भागिदार हैं कि हम वोट दे सकते हैं | लेकिन हम शासक नहीं होंगे | हम किसी चुनाव में खड़े नहीं होंगे | तभी वे पाकिस्तान के खिलाफ भारत की लडाई को मजबूती दे सकेंगे |
यह कुछ अति दिख सकता है , लेकिन यदि हम देवता बनने की महत्वाकांक्षा न पालें , तो यह मानना होगा कि इतिहास का फल वर्तमान को भुगतना पड़ता है | ब्राह्मणों को दलितों के लिए आरक्षण स्वीकार करना पड़ता है | बाप का किया या क़र्ज़ सन्तान को भरना होता है | तो यह ठीक है कि सर्कार बनाने की प्रक्रिया में वे भाग लें , वोट दें | लेकिन सरकार न बनें, MLA , MP, मंत्री वगैरह | देश के संसाधनों पर 'पहला हक ' भी लें , अच्छी से अच्छी , बड़ी से बड़ी नौकरियाँ करें , लेकिन देश के विधाता बनने का सत्यशः उनका हक तो नहीं बनता | कहे कोई कुछ भी | अन्यथा वे यह तो बताएं कि कश्मीर मुद्दे और भारत पर होते रहते आतंवादी तो छोड़ दीजिये , सरकारी हमलों के मुद्दे पर भारतीय मुसलमान कहाँ खड़ा है ? कितना सक्रीय और उत्तेजित है पाकिस्तान के खिलाफ ? तो क्या साड़ी सदाशयता केवल हिन्दुस्तान के ही जिम्मे है या होना चाहिए ? यह तो सरासर और सीधे सीधे अत्याचार है भारत पर , मानसिक रूप से | इसलिए पाक से भारत की राजनय कुछ अलग ढंग की होनी चाहिए | ध्यान देना होगा कि इनकी उत्पत्ति और विकास की कथा अलग है | पाकिस्तान में भी कुछ हिन्दुस्तान शेष है तो हिन्दुस्तान में कुछ ज्यादा ही पाकिस्तान भी है | ये दोनों अभी कुछ ही समय पहले तक एक ही थे , और यह विभाजन वृहद् भारत अभी भुला नहीं पाया है |      
सही है मुसलमान भारत के द्रोही नहीं , लेकिन न्याय होना ही तो काफी नहीं है | न्याय होते कुछ साफ़ , स्पष्ट और कड़क दिखना भी तो चाहिए |
आखिर उनके अपने तमाम किस्म के राजनीतिक आन्दोलन हो रहे हैं , तो अत्यंत राष्ट्रीय महत्व के इस मुद्दे पर क्यों नहीं , जिस पर कि भारत में मुसलामानों का भविष्य निर्भर है ? या वे यहाँ अपनी स्थिति के प्रति बिलकुल मुतमईन हैं , कि हिन्दू भारत उनका कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा | ऐसे में यह शक होता है कहीं वे इस आशंका में तो नहीं हैं कि वे तो भारत को इस्लामी राज्य देर - सवेर बना ही लेंगे ? देखा नहीं आपने AMU के अल्पसंख्यक चरित्र के उन्होंने ज़मीन आसमान एक किया , उर्दू के लिए , मदरसों के लिए , इत्यादि | यहाँ यह बात भी उठती है कि अल्पसंख्यक के मायने क्या हैं ? अल्पसंख्यक हो तो उसी तरह रहो | बहुसंख्यक पर शासन क्यों करना चाहते हो, उन्हें परेशान क्यों करते हो दबंगई द्वारा ? अन्य और भी तो समुदाय अल्पसंख्यक हैं , वे तो इतना उत्पात नहीं मचाते |

* " बच्चे ईश्वर की देन नहीं हैं | "
[ चाहे एक हों या एक दर्जन | आज अमर उजाला में एक खबर है - ' पोषक तत्व न मिलने से अपंग हो रहे हैं गर्भस्थ शिशु ' | अब चाहे संघ की सलाह मानिए या अपने स्वयं के विवेक की ]

* " दिल्ली दूर नहीं है "| यह मुहावरा उनके लिए तो ठीक जो दिल्ली से दूर हैं, और दिल्ली फ़तेह करना चाहते हैं | लेकिन यदि " आप " का  कार्यक्षेत्र ही दिल्ली है, तो आपको क्या खा जाय ? यही तो कि " दिल्ली भारतवर्ष नहीं है " |

* मैं इस कथन के लिए पूरी तरह से मुआफी मांगता हूँ , लेकिन जो मैं महसूस करता हूँ उसे कहने से बचना नहीं चाहिए | कि इस्लाम ने वैश्विक अध्यात्म का बड़ा नुकसान किया | आदमी के दिमाग को ऐसा बाँध दिया की उसकी आत्मा खुल कर बाहर आ ही नहीं पाती | कहीं बंधे , बने बनाये तरीके से पूजा करने नमाज़ पढ़ने से रूहानी तरक्की होती है ? निश्चय ही इससे निकलने का प्रयास हुआ , शायरों ने किया | लेकिन वह बस शेरो शायरी में गम हो गयी | चिन्तन में , निबंध में , दर्शन में इसके कोई परिवर्तन नहीं हुआ | और होता भी कैसे , जब इसे अपनी कोई आलोचना बर्दाश्त नहीं | और नए प्रयोगों का तो कोई सवाल ही नहीं उठता ! क्या कुछ हुआ इतने वर्षों में ? बस यह हुआ कि बहत्तर फिरकों में बंट गए , लेकिन मूल विशवास , अंधविश्वास वही रहे | मेरी तरफ से किसी परायेपन का भाव नहीं , हमारी चिंता मनुष्य का नैसर्गिक विकास है | भारत में तमाम गड़बड़ियां हुयीं , वह आलोच्य हो सकते हैं पर मानना होगा कि यहाँ इसकी गुंजाईश तो है ? विविध , विरोधी विचार धाराएं पनप तो सकती हैं | यहीं यह भी तो संभव हुआ कि जे कृष्णामूर्ति order of star तक को फेंक कर किनारे हो जाते हैं !

* खाप पंचायत की भूमिका -
एक गोत्र में शादी नहीं हो सकती , या लड़का लड़की अपनी मर्ज़ी से विवाह नहीं कर सकते | ये बातें अब आधुनिक युग में नहीं चलेंगी | फिर भी सत्ता के विकेंद्रीकरण और सामजिक दबाव के तहत पंचायतों की भूमिका से तो इन्कार नहीं किया जा सकता | तो फिर इन्हें भी अपनी मानसिकता प्रगतिशील समय के साथ बदलना होगा | अब इन्हें यह भूमिका ऐडा करनी पड़ेगी कि इनकी लडकियां  जो अन्य जाती व धर्म में विवाह करके गयी हैं , उन्हें उनके ससुराल वाले किसी प्रकार तंग - परेशान न कर सकें | और यदि वे ऐसा कुछ करने की हिमाकत करें तो इनकी खाप पंचायतें वही करें जो आज ये अपने ही मासूम संतानों के खिलाफ करते हैं |

* धर्म तब मज़हब होता है , जब कोई किताब किसी की होती है किन्तु वह दूसरे की नहीं होती | जब कुरआन हिन्दू नहीं पढ़ता , गीता मुसलमान की पुस्तक नहीं नहीं होती | लेकिन इतनी भर परिभाषा मज़हब के लिए काफी नहीं है | अब पारी आती है इस बात की , कि धर्म धर्म तब बनता है , जब उसके लिए कोई मर मिटता है , उसकी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकता | यदि कोई हुसैन के चित्र नहीं देख सकता तो समझिये वह हिन्दू है | हिन्दू तब धर्म न होकर मज़हब हो जाता है | और मुसलमान है वह जो मोहम्मद के कार्टून बर्दाश्त नहीं कर सकता |

* Logic Machine : by : [ er.ugranath.nagrik@gmail.com ]
प्रवचन (sb) Tungston
बीरबल (युक्ति न्याय)

* बल जो है तो
बलात्कार करेंगे ?
अजीब बात !

* सोचिये कुछ
कुछ सोचिये भाई
लक्ष्य पूरा हो |

* काँटे ही काँटे
चुने अपने लिए
पुष्प तुम लो |

* जाने क्या बात
मन नहीं लगता
चकाचौंध में |

* जाल हटाओ 
पंछी उड़े न उड़े 
उसका काम !

* शिक्षा तो मात्र 
समानता का पाठ 
पढ़ाया जाए |

* कहानी वह 
जो जिया न जा सका 
जीवन भर |

* कुछ न कुछ 
न कुछ है न कुछ 

न कुछ कुछ |

* चाय गुमटी 
औरत चलाती है 
मर्द खाता है | 

(गीत )
* मन के भ्रम 
हम सब जीते हैं 
विष पीते हैं |
+ + + + + 

* भगवानों की 
मूर्तियाँ जो हैं वही 
रह जायेंगी |

* हर औरत 
सुंदर दिखती है 
फोटोग्राफी में |

* होली अथवा 
दीवाली , मतलब 
छुट्टियाँ , बस !

* कहाँ हम हैं
और कहाँ हो तुम
क्या मुकाबला ?

* Little touch
Makes strong connect
Lifelong .

* To make up
Your mind , some
Go behind .
(मात्रा नागरी में गिनें )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें