बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

मेरा रावण [ नागरिक पत्रिका ] 9 से 15 अक्टूबर , 2013

* मेरा रावण
अधिक विशाल है
(अधिक बड़ा है रे )
तेरे वाले से |

* एक दिन में
कहाँ से कहाँ आये
एक जन्म में ?

* सच नहीं हैं
संतोष के साधन
सब के सब
आत्मा हो परमात्मा
जन्म, पुनर्जन्म वा
स्वयं ईश्वर |

* छोड़ो , जाने दो
अंगूर खट्टे नहीं ,
स्तर के नहीं |

* उन्हें मिलना
बहुत आसान है -
चाहो ही नहीं |

* प्यार तो करो
मुझे अपने प्यारे
देश की भांति !

* कविता लिखूं
कहानियाँ लिखता
क्या क्या लिखता !

* आत्मकथा ही
सुनता सुनाता हूँ
मैं तो अपनी |

* है तो ज़रूर
कुछ खराब स्वास्थ्य
लेकिन क्या करूँ !

* गालियाँ न दें
काम चल जाता है
तिस पर भी |

* व्यवहार से
बदल भी जाता है
सौन्दर्यबोध |

* मुसलमान
हमारे मेहमान
आदरणीय |

* मेरे देश में
अतिथि देवो भव
देव विदेशी |

* सभी स्वच्छ हैं
अपने हिसाब से
ब्राह्मण म्लेच्छ |

* उन्हें देखते
हिरन हो जाती हैं
सारी इच्छाएँ |

* तुमने कहा
हमने मान लिया -
यह पाप है |

* स्वार्थ ही नहीं
आवश्यकता भी तो
बनाती भ्रष्ट !

* खूबसूरती
निहित समझिये
नयापन में |


* Don't expect / डोंट एक्स्पेक्ट
Anything for you / एनीथिंग फार यू
From others / फ्रॉम अदर्स |

* Where we are / व्हेर वी आर
Where we had been / व्हेर वी हैड बीन
Where we were / व्हेर वी व्येर ?
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[कविता ]

* मेरा हाथ छोड़ो
मुझे अपना पैर
खुजलाना है |

[कविता ]

* हाँ , मैंने तुम्हे मारा
और अभी फिर मारूंगा ,
यह लो एक झापड़ और दिया |
मैंने मारा तो सही ,
लेकिन इसलिए नहीं
कि तुम हिन्दू - मुसलमान हो ,
मैंने तुम्हे इसलिए मारा क्योंकि
तुमने मुझे गाली दी ,
तुमने मेरा नमक चुराया
झूठ बोला, धोखाधड़ी की |
क्या तुम मेरी मार खाने के नाते
हिन्दू - मुसलमान हो गये ?

और यदि मुझे आतंकवादी कहते हो
तो चलो , जसे तुम कहते थे -
आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता
वैसे मैं कहता हूँ -
मार खाने वाले का भी कोई धर्म नहीं होता
न तुम्हारा कोई धर्म ,
न मेरा कोई धर्म !
#    #

[कविता ]
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हारता गया
जंग ,
बोलता गया -
जय श्री राम !
#  #
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* इतने करोड़ देवी देवताओं के होते हुए भारत देश की रक्षा नहीं हो पा रही है | क्या इससे अच्छा यह न होता कि इतने या कुछ कम ही मनुष्यों पर देश रक्षा का भार छोड़ दिया जाता ?

* शायद अब ईश्वर भी नहीं चाहता कि लोग धार्मिक पाखण्ड का पालन करें ! देखिये किस तरह श्रद्धालुओं, तीर्थयात्रियों को धडाधड मृत्यु के घाट उतार रहा है ?

* दुर्गा पूजा की धूम है | क्या यही दुर्गा पूजा है ? हे माता , इन्हें तो बाद में बचाना , पहले तुम तो बचो इनके वार - व्यवहार से !
* जैसे राजनीति अपने निम्नतम स्तर पर है , उसी प्रकार धर्म भी गहन हानिग्रस्त है | किंवा , जीवन और सभ्यता के सभी क्षेत्र अपनी अधोगति के शीर्ष पर हैं | कोई भी क्षेत्र सडांध और गंगी से मुक्त नहीं है |
* इतने लोग तो मांगने वाले हैं | क्या समझते हैं माता जी सबकी झोली भर देंगीं ?
* दशम दुर्गा - नव दुर्गा के क्रम में यदि देवी ने फिर अवतार लिया तो वह इस बार एक चमार - चमारिन के घर जन्म लेंगी | दशम चमारिनम | वही हिन्दुस्तान के राक्षसों का संहार करके देश को बचाएंगी | जय माता दी |
* इससे पहले कि हिन्दू धर्म नेस्तनाबूद ही हो जाय , इसे लुहेड़ई से बचाइए |

* एक दिन मैंने यह घोषणा करने की जिद बना ली (और नास्तिक ग्रुप में तो लगभग ऐसा लागू भी है ) कि हम इस्लाम (और तदर्थ मुसलमान) की कोई बात नहीं करें / करेंगे | लेकिन जैसे ही बोलना शुरू करता हूँ कि भारत इस्लामिक या मुसलमानों का देश नहीं है, यह हिन्दू राष्ट्र है | वैसे ही सेक्युलर ही नहीं अच्छे भले धार्मिक और राष्ट्रवादी हिन्दू मेरे ऊपर पिल पड़ते हैं - " यह क्या बोला तू ?" और मैं चुप हो जाता हूँ | फिर भी बात तो है | हम, अर्थात हिन्दू अपने से ज्यादा उनकी फिक्र में रहते हैं | कभी - कभी तो संदेह होता है कि यदि इस्लाम और मुस्लिम न होते तो क्या हिन्दू धर्म कुछ होता ? और तब क्या होता /  होना चाहिए होता हिन्दू को ? उसकी चिंता में मैं हूँ |

* आप की समस्या है कि लोगों मे एकता क्यों नहीं स्थापित हो रही है , और मेरी परेशानी है कि लोग अलग क्यों नही हो रहे हैं - भिन्न , विभिन्न -पृथक ? हर कोई किसी दुसरे जैसा बन रहा है | नेता अधिकारी बन रहे हैं , अधिकारी नेता बन रहे हैं , संत व्यापारी बन रहे हैं , टुच्चे धनवान बन रहे हैं , धनवान टुच्चई क्र रहे हैं , इत्यादि | किसी का कोई निजत्व , कोई अस्मिता पूर्ण जीवन बन ही नहीं रहा है | कोई सबसे अलग हो ही नहीं रहा है , जब कि पृथकत्व ही प्राकृतिक - नैसर्गिक दर्शन है | किसी मनुष्य की आकृति , चेहरा मोहरा , उसकी आवाज़ किसी अन्य से मेल नहीं खाती |
[ इस पोस्ट के लिए पृथक बटोही को अपवाद समझा जाय , जैसा मैंने उनके वाल से जाना ]

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