रविवार, 6 अक्टूबर 2013

नागरिक पत्रिका 1 से 5 अक्टूबर

* पराये लोगों का झूठ तो पकड़ में आ जाता है , लेकिन अपनों का छद्म समझ में नहीं आता |

* साबुन कभी गन्दा नहीं होता |

* मम्मी ने राहुल गाँधी से कहा बेटा, तुम्हारी नीयत सही थी लेकिन तुमने गलत शब्दों का प्रयोग किया |
- तो मम्मी के बेटा जी, जब मम्मी का हाथ पकड़े बिना सही बोलना सीख लेना तब आना पार्टी में , और प्रधान मंत्री बनने |

* रामदेव बोले , पी एम नामर्द |
तब तो तलाक का पुख्ता मामला बनता है | रामदेव की खीज स्वाभाविक है | पी एम को वही सलवार कुरता भेंट में दे दें रामदेव | नमो से डेटिंग का कारण समझ में आ रहा है |

* ईश्वर रो रहा है , और इन्हें भजन कीर्तन की सूझी है | घंटे घड़ियालों की शोर में ये सुन ही नहीं पा रहे हैं उसकी सिसकियाँ | वह दुखी है अपने संतों और भक्तों के कर्मों - व्यवहारों से | और निदान यह कि उसे मनुष्य के कर्मों से ही प्रसन्न किया जा सकता है , उसकी पूजा - पाठ से नहीं | इसलिए बुद्धा को हंसाने , ईश्वर को खिलखिलाने के ज़रूरी है कि हम मनुष्य उसके (व्यक्ति ) के प्रति नास्तिक , और (उसके मूल्यों ) अपने कर्तव्यों के प्रति आस्तिक बने , अपने विचार शुद्ध और सुव्यवस्थित करें , मनुष्य के प्रति |
ईश्वर के रोने का हम नास्तिक मज़ाक नहीं उड़ाते , उसके दुखी होने से हम खुश नहीं होते | क्योंकि हम ईश्वर
को वस्तुतः सांगोपांग जानते हैं |

* वैसे आपके अनुभव के लिए निवदन कर दूँ, कि नास्तिक - मानववादी - तार्किक लोग बेहतर इंसान होते हैं , और बहुत बुरे तो बिल्कुल नहीं होते | चाहे आजमाकर देख लीजिये | और क्या चाहिए ? क्योंकि वे थोडा दो चार इंच आगे की सोच लेते हैं कि वह जो व्यवहार कर रहे हैं या करेंगे उसका क्या असर होगा | राज्यों और सरकारों पर न जाइए |

* इस ग्रुप में दो संयोग additions किया जा रहे हैं | एक तो सुश्री दीपा अग्रवाल को Admin बनाया जा रहा है | इनका बुद्धि पक्ष प्रबल है | दूसरे इन्ही के साथ एक विद्वतविचारक ब्योमकेश मिश्रा जी को भी प्रशासक बनाया जा रहा है | इनका भाव पक्ष सुदृढ़ है और विवेक से कसा हुआ | ये केवल नास्तिकता ही नहीं, आस्तिकता को भी पुनर्परिभाषित करने में समर्थ हैं | आशा है ह्रदय और बुद्धि का समन्वय नास्तिकता को , ईश्वरविहीन नैतिकता को अधिकाधिक तर्कसंगत और ग्राह्य बनाएगा | स्वागत !

* मैं सोचता हूँ , यह सब क्या लिखता हूँ मैं ? तो पाता हूँ कि सारा का सारा यह तो आत्मकथा है | सब आत्मकथा लिखता हूँ मैं | लेकिन ग्रुप का नाम इस प्रकार नहीं बदलूँगा | यह यही रहेगा " लकीरों के बाहर " | सब व्यक्तिगत है , तो व्यक्ति तो हर एक कुछ न कुछ अलग होता ही है किन्ही भी लकीरों से !

* नास्तिक वह है जो ईश्वर को जानता है | उसके सारे भेद , सारे गुणावगुण |

* गहरी आध्यात्मिक चेतना से नास्तिकता पैदा होती है !

* हम एक पंथ चलाना चाहते हैं | कमीना पंथ कैसा रहेगा ?

* मुझे कहने दीजिये कि लोहिया के अनुयायी अथवा सपा सरकार सर्वथा धर्म का काम अंजाम दे रहे हैं | लोहिया ने कहा नहीं था कि राजनीति अल्पकालिक धर्म है , short term religion ?
और यह तो मैं भी मित्रों को याद दिलाता रहता हूँ , जब वह धर्म पर बात करते हैं - कि दोस्तों मत भूलो धर्म दीर्घकालिक राजनीति है, long term politics .

* मेरे आने से कितना खुश है वह ,
मेरा ईश्वर मुगालते में है |
- [नास्मि (न मैं हूँ, न ईश्वर है )]

* क्या बात है भगवान जी बड़े खुश नज़र आ रहे हो ? भक्तगण खूब रूपये , फल फूल, मिठाईयाँ लेकर आ रहे हैं , इसीलिए न ? गफलत में न रहो गुरू जी,  कि ये तुम पर आस्था - विश्वास रखते हैं, तुमसे प्रेम करते हैं | ये सबके सब नितांत स्वार्थी जीव हैं | ये मेहनत और ईमानदारी से कमाकर खाने वाले लोग नहीं हैं | दया प्रेम इंसानियत इनके ह्रदय में नहीं है | गलत पैसे कमा रहे हैं, और समझते हैं कि उन्हें यह सब तुम दे रहो हो, तुम उनकी रक्षा कर रहे हो | जिस दिन इन्हें यह पता चल जायगा, सोच जागृत हो जायगी कि यह सब तुम्हारा काम नहीं है, तुम्हारा सृजन तो बृहत्तर उद्देश्य के निमित्त है , तुम्हारे निवास की यह भीड़ शून्य हो जायगी | हाँ, हम रह जायेंगे यही तुम्हारे पास , तुम्हारे शुभचिंतक, मानवता के हितैषी | लेकिन सम्प्रति तो तुम भी मुगालते में हो और तुम्हारे भक्त भी गफलत में हैं |

* लोग Live- in- relationship की मान्यता का लिए मरे जा रहे हैं | जिसे हमने कब का कर दिखाया | हमने सम्बन्ध का नाम तो विवाह भले दिया, लेकिन वह Live- in- relationship ही होकर रह गया !

* अब लीजिये एक और भाषा -
अभी तक हम लोग समझते थे कि हिन्दी आम व्यवहार में और अंग्रेजी रोज़ी के लिए हम लोग काम में लेते हैं | लेकिन नहीं , अब इस कथन को ठीक करना होगा | हम तीन भाषाएं प्रयोग करते हैं | पढ़ने -लिखने के लिए हिंदी , रोज़गार के लिए अंग्रेजी , और  बोलचाल के लिए उर्दू |
यह ठीक है |

* सुनो सबकी
अपनी यह नीति
धुनों अपनी |

* खाना खाता हूँ
फिर दवा खाता हूँ
फिर सोता हूँ |

* मरना है क्या ?
हाँ , मरना तो है ही
अभी तो नहीं |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें