* मित्रगण मुझसे सहानुभुति रखते हुए कहते हैं - तुम्हारा कुछ भी तो सफल नहीं हुआ, न कविता, न पत्रकारिता, न नास्तिकता, न धर्मनिरपेक्षता,न दलित राज्य,न वैज्ञानिक चेतना, न राष्ट्रहित में स्वार्थविमुखता , कुछ भी तो नहीं ।
तो अब मैं एक काम करने जा रहा हूँ। पाखण्ड योग संस्थान ( HYPOCRICY YOG INSTITUTE ) खोलकर मानवता की सेवा करूँगा । तब तो सफल हूँगा, या तब भी नहीं।
तो अब मैं एक काम करने जा रहा हूँ। पाखण्ड योग संस्थान ( HYPOCRICY YOG INSTITUTE ) खोलकर मानवता की सेवा करूँगा । तब तो सफल हूँगा, या तब भी नहीं।
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