[ कविता ]
वह औरत थी
ईंट के भट्ठे पर काम करती ,
वह थोड़ा सुस्ताने के लिए बैठी
और अपने पैर खुजलाने लगी ।
मैंने कहा - क्या भूतनी जैसा वेश बना रखा है
इतने गंदे नाखून ?
पैरों की सफाई का भी
ख्याल रखा करो ,
औरत की सुन्दरता
सिर्फ चेहरे से नहीं , उसके
पैरों से भी आँकी जाती है ,
और सुंदर लहराते बालों से भी
यह नहीं कि बस कड़वा तेल चुपड़ लिया ।
यह पकड़ो फेमिना , स्टारडस्ट
देखो और पढ़ो ।
उसने मेरे हाथ से पत्रिकाएँ ले लीं
फटे आँखों से पन्ने पलटती रही
फिर खिलखिला कर जोर से हँस दी
और मेरी किताबें
मेरी ओर फेंक दी ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें