उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
सोमवार, 16 अप्रैल 2012
ओ मेरे (नीत्शे के ) मरे हुए ईश्वर !
ओ मेरे (नीत्शे के ) मरे हुए ईश्वर ! अब तू जिंदा हो जा और जाग. लेकिन इस बार तू खुद कुछ मत करना. अब तू जन जन के मन ह्रदय में समा जा जिससे वे जाग के कल्याण में अपने स्वयं के विवेक से लग जाएँ.
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