उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
गुरुवार, 28 जुलाई 2011
अन्ना के सवार
कहीं मार न डाले
लोकपालिका !
## [हाइकु ]
* समय तो अवश्य ही व्यस्तता का है ,होना ही चाहिए प्रगति के लिए | वक्त आपाधापी का भी है | लेकिन उस अनुपात में समय की कीमत भी समझी जा रही है , इसमें मुझे संदेह है | एक टेम्पो में छः सवारियां बैठती हैं | कोई बीच में उतरता है , बड़े आराम से सभी जेबें टटोलता है ,पर्स के सारे खाने तलाशता है | फिर एक जेब से दो रूपये ,दूसरी से दो रूपये और ऊपर कमीज़ की जेब से एक रुपया , कुल पाँच रूपये ड्राइवर को देता है | इस दौरान शेष सात सवारियों का कितना समय बर्बाद होता है उसे इसकी कोई फ़िक्र नहीं होती | जब कि यह टटोलना गाडी रुकवाने से कुछ पहले भी बैठे - बैठे भी किया जा सकता है | तब तो कुछ और टटोलते हैं | और कहीं यदि कोई नारी सवारी उतरी तो गज़ब ही समझिये | उसका नाटकीय चित्रण बड़ा मनोरंजक हो सकता है दर्शकों के लिए | सहयात्रियों के लिए तो वह समय खाऊ ही होता है | पहले उतरेंगी ,फिर बड़ा बैग खोलेंगी | सारे खाने दूंध कार एक छोटा पर्स निकालेंगी | उसके सारे चेन चलाएंगी, पर कोई पैसा नहीं निकलेगा | निकलेगा तभी जब हाथ ब्लाउज के अन्दर जायगा |
यह तो सवारियों का हाल है जब वे छः हों | विक्रम टेम्पो ड्राइवर को यह मंजूर नहीं | उसे चार + चार + तीन सवारियां पूरी होनी चाहिए , तभी वह गाडी हांकेगा | आप को देर हो रही है तो आप चिल्लाते रहिये | बैठाने का गुन भी उसे मालूम है | बहन जी , आप पीछे खिसकिये , भाई साहब , आप आगे होकर बैठिये | और इस तरह इस तरह एक का पुट्ठा दूसरे की जांघ से सटा कर तीन की सीट पर चार सवारियां फिट कर देता है |
इस भ्रष्टाचार पर न राम देवता बोलेंगे , न किरन देवी और उनकी अन्ना -टीम ,न अति उत्साही बालक केजरीवाल , न घुटे हुए वकील भूषण बाप -बेटे | उन्हें तो सारा भ्रष्टाचार केवल पी एम की कुर्सी में नज़र आता है | मुझे कुछ अतिरिक्त नज़र आता है तो मैं टपर - टपर बोलता हूँ | तूती की आवाज़ की तरह | ##
दुपट्टा के मायने
२ - उत्तराखंड में कांवरियों को सरकारी प्रश्रय और रामदेव को समर्थन देने से यह निष्कर्ष निकलता है की क्या हिन्दू राज्य बन ने की सिविधा के लिए उत्तराखंड को अलग प्रदेश बनाया गया ? इसी पूर्वानुमान के साथ मैं देशह के छोटे छोटे टुकड़े करने के विरुद्ध हूँ | अति विकेंद्रीकरण इस देश के हित में नहीं है | यह देश केन्द्रीय कृत दूरस्थ सख्त सरकार की अभ्यस्त है और यह उसी से ठीक रहते है | मन ना पड़ेगा की हम अभी सचमुच लोकतंत्र के लिए अनुशासित , प्रशिक्षित नहीं है | हमारा वैयक्तिक - सार्वजनिक जीवन में लोकतान्त्रिक नहीं है | हमारी ऐसी सोच ही विकसित नहीं हुयी ,न की गयी | नेता जी सुभाष जी का भी लगभग यही आशय था | अभी देश को सुदृढ़ शासन की ज़रुरत है और इसके लिए होना तो यह चाहिए कि छोटे प्रदेश मिल कार बारे हों | जब कि हो उल्टा रहा है | थोड़ा इस परिप्रेक्ष में भी सोचा जाए | ##
३ - दुपट्टा के मायने और स्लत वाक := मेरा दिमाग पहले भी लड़कियों के दुपट्टे कि उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह उठता रहा था कि आखिर उनका क्या काम है ? अलबत्ता वे शोहदों द्वारा खींचे जाने , सायकिल रिक्शे के पहिये में फंसने के लिए अवश्य काम आते है | इसलिए जब जीन्स के आगमन के साथ दुपट्टा गायब हुवा तो मुझे ख़ुशी हुयी | जो अब दिल्ली में हुए स्लत वाक के साथ बढ़ गयी | ##
४ - वाम पंथी सांस्कृतिक संगठनोंमें और गायत्री जैसे धार्मिक parivaron me bhi ek samanta hai | gayatree parivaar daava karta hai ki unke paas enjeeniyar ,daktaraayi ye es ,saaintist hain | to idhar वाम पंथी सांस्कृतिक संगठनों के कविता - कहानी पाठ कार्य क्रमों में ये लोग साक्षात् नज़र आते हैं | ##
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बुधवार, 27 जुलाई 2011
भ्रष्टाचार से त्रस्त
* मेरे संज्ञान में यह बात आई है , और इसे कुछ लोगों ने मुझसे ही कही है कि वे स्वयं के भ्रष्टाचार से त्रस्त और तंग आ गए हैं | वे सरकार के छोटे मोटे कर्मचारी है जो अनियमित ताएँ करने के लिए विवश है | ज़ाहिर है इसमें उनको भी लाभ मिलता है , पर वे इसे जलालत की ज़िन्दगी मानते हैं , और इससे निकलना चाहते हैं | कहते हैं , कुछ जिम्मेदारियां पूरी हो जायं , जैसे बिटिया का ब्याह , तो वे समय पूर्व रिटायरमेंट ले लें | कहना न होगा , जैसा मैंने समय से पहले इस्तीफ़ा देकर किया | ##
* फँस ही गया
सीधा -सादा आदमी
अन्ना हजारे | # [हाइकु ]
धर्म का भ्रम
* हिन्दू जन अक्सर मुसलमानों की आलोचना करते हैं , की मुसलमान ऐसे , मुसलमान वैसे हैं | अब मैं उनसे पूंछता हूँ की यदि हिन्दू धर्म इतना ही महान और विशाल है तो फिर मुसलमानों की ज़िम्मेदारी उन पर क्यों नहीं है ? हिन्दू जवाब दे की मुसलमान ऐसे -वैसे क्यों हैं ? ##
* जो जन इस्लाम का ठीक -ठीक पालन पालन करते हैं , वे मुसलमान हों , न हों ,पर वे मुसलमान ज़रूर हैं जिनका खतना हो चुका है ! ##
* हिन्दू सचमुच धर्म नहीं है | कैसे ? और मुसलमान भी तो हैं ,ऐसे ! आस्थाएं अब अर्थ हीन हैं | पैदायशी जातियां हैं तो वे धर्म कैसे हो गयीं ? हिन्दू तो जाति प्रथा के लिए कृत संकल्प और विख्यात - कुख्यात है , इस से सिद्ध है किवह धर्म नहीं है | किन्तु इस्लाम भी तो जातियों में पूरी तरह विभक्त है , इसलिए अब उसे भी धर्म नहीं माना जा सकता / नहीं माना जाना चाहिए | अब कोई धर्म , धर्म नहीं रहा |
धर्म बचेगा तो व्यक्तियों में , क्योंकि वह आस्था का प्रश्न है | और आस्थाएं व्यक्ति पालता है , समूह नहीं | ##
* तक़रीर नहीं / तकरार बड़े हैं / बड़े -बड़े संतों / मौलाना -मौलवियों के बीच / हम तो / मामूली आदमी ! ##
* खुदा के वास्ते
खुदा पर
न कर तक़रीर तू ,
न फैला तकरार | ##
* हमारा विश्वास है कि ईश्वर नहीं है , लेकिन ईश्वर विश्वासियों की बातों से हमें तो ठेस नहीं लगती | फिर हमारी बातों से उनकी आस्था को क्यों चोट लग जाती है जो मानते हैं कि ईश्वर है ? ? ##
* आखिर पंक्ति -
ईश्वर धरती छोड़ कर भागे देख यहाँ की मंहगाई |
आये थे कुछ बात बताने, कुछ बातें तो बतलाईं , |
प्रवचन बीच में छोड़ के भागे देख यहाँ की मंहगाई | ##
समझाने आये हैं
* शेम -शेम |जय राम रमेश को | उन्हें पहनाये गए सूत की माला को उन्होंने अपने जूते पोंछने के लिए इस्तेमाल किया | उन्होंने सूत की कीमत नहीं समझी और उसकी बेक़द्री की | लानत है उन पर | ##
* जिस संस्था ने मौलाना बस्तान्वी को दारुल उलूम देवबंद का वी सी बनाया था , वह धन्यवाद की पात्र है | अब जिन लोगों ने उन्हें पद से च्युत किया , वे साधुवाद के पात्र नहीं हैं | क्योंकि हिन्दू मानस इसे मुसलमानों की नकारात्मक मानसिकता के रूप में देख रहा है | ##
* समझाने आये हैं | पता चल है कि अन्ना टीम देश में घूम -घूम कर जनता को अपना पक्ष समझाने निकलने वाले हैं | खुद तो समझ नहीं पाते , समझना नहीं चाहते | ##
* न्यायिक सक्रियता जैसी कोई चीज़ नहीं है | सब के सर पर नेतागिरी का भूत चढ़ कर बोल रहा है | अतिरिक्त किसान आन्दोलन भी मनुष्य की बढ़ती स्वार्थ लिप्सा , आर्थिक अभीप्सा का परिणाम है | ##
* जिन्ना की तमन्ना के अनुसार पाकिस्तान बन जाने के बाद तो भारत में हिन्दू - मुस्लिम समस्या का अंत हो जाना चाहिए था |
यह एक सूत्र वाक्य है जो मैंने कहा | और इसी में समस्या का निदान भी छिपा है | कारण यह है कि जिन्ना के विचार का पूरा पालन नहीं किया गया | पाकिस्तान इस्लामी राष्ट्र बना तो स्वाभाविक परिणति के रूप में भारत को , प्रतीकतः ही सही , हिन्दू राष्ट्र घोषित हो जाना चाहिए था } तब राजनीति बिल्कुल स्पष्ट हो जाती और सबकी सीमायें निर्धारित हो जातीं | ##
* आतंकवादियों ! तुम धर्म के सेवक बेशक हो सकते हो | लेकिन इंसानियत के सेवा तो उस से अलग बात है | ##
* आइये , हम देश के निर्माण के लिए एक हों | ##
मंगलवार, 26 जुलाई 2011
बदमाश चिंतन
*२ - मेरा ख्याल है, मनुष्य की आत्मा उसकी टाँगों के बीच बसती है ##
*3 - No girl is ever underage,
No boy is ever overage .###
*४ - पौरुष आन्दोलन क प्रारंभ - मैं अंग्रेजी भाषा से करूँगा । औरत सुंदर हो तो beautiful , पर पुरुष सुंदर हो तो handsome , यह नहीं चलेगा । अब तुम handsome बनो , मैं beautiful बनूँगा । ####
*५ - यदि आप किसी औरत को स्कूटर ,कार , सायकिल पर बिठाये हैं तो बहुत धीरे चलिए । दुर्घटना से बचना एक कारण तो है ही , मुख्य कारण यह है कि इससे आपको पार्टनर से बातें करने का समय ज्यादा मिल जाता है । #
*६ - सड़क पर चलते समय यदि कोई औरत सामने से आती दिख जाय तो मैं फ़ौरन अपने पन्त की जिप चेक करने लगता हूँ , क्योंकि ऐसा अक्सर हुआ है कि वह खुला रह गया है और कुछेक बार तो औरतों ने ही अपने मर्द से कहला कर बंद करवाया है । यह मेरी ख़ास समस्या है , पर इसमें गंदगी कोई नहीं है । #
*७ - जाति विरोधी होने के बावजूद भी लगेगा कि मैं जातिवादी हो गया हूँ , यदि मैं कहूँ कि दूसरों के बारे में तो नहीं कह सकता , पर बनियों के बारे में तो अवश्य देख रहा हूँ कि वे अपना संस्कारिक जातीय स्वभाव छोड़ नहीं पाते ! #
*८ - खुली हवा में पेशाब करने का आनंद कुछ और है । ##
सोमवार, 25 जुलाई 2011
सुंदर चेहरे
पता नहीं कैसे
इतने सुंदर हो गए चेहरे ,
कि जब देखो तब फोटोग्राफ |
मोबाइलों में फोटो ही फोटो
डिजिटल कैमरों से क्लिक पर समाज ,
पोज पर पोज़ चेहरों के |
फोटो खींचने और खिंचवाने का क्रेज़
एकाएक बढ़ गया |
इतने सुंदर हो गये चेहरे |
शहर हो या देहात
एलबम और कमरों की दीवारें
फोटुओं से ढक गयीं हैं |
दीवार गायब , तो नीव गायब
रह गयीं वहां तस्वीरें ,
बिगड़ा है वहीँ दर हकीकत
समाज का चेहरा
जैसे -जैसे सुंदर होते गए चेहरे | ##
* wahin se
*जिसे प्यार karo
uskee ungliyon
का पोर - पोर
प्यारा लगने लगता है | ##
बुधवार, 20 जुलाई 2011
पॉइंट्स एंड प्लान्स
* कथा-जारज पुरुष ने अपनी प्रेमिका से विवाह पूर्व यौन सम्बन्ध से मना कर दिया जिस से उनसे जारज संतान न पैदा हो । वह इसकी पीड़ा भुगत चुका था ।
* राजनीति राजा रानी डेमोक्रेसी इन - इंडिया स्वाभाविक
* हिन्दुस्तानी वांग्मय बताता है की राजे राजसी प्रवृत्ति के होते ही हैं ।
* संग्राम [Cantankerous]
* नेतृत्व [Leadership]
* तर्क संभव [Logic & literature]
रक्त का सत्त्व
रक्त का सत्त्व
वीर्य तो दिया
अब क्या खून भी दे दूं ? #
* दलितों या पिछड़ों का भी इतना मन नहीं बढ़ाया जाना चाहिए की वे भी बढ़ते -बढ़ते ब्राह्मण हो जाएँ #
* संवैधानिक आदेश के अनुसार हम चमारों को चमार नहीं कह सकते लेकिन किसी सवर्ण व्यक्ति को तो उसके चमरपन के कार्य व व्यवहार के नाते चमार तो कह सकते हैं ? अब यह शब्द शब्द कोष से तो हट नहीं जायगा , चाहें इस नाम की कोई जाति हो या ना हो ##
* भले - भले का युद्ध तो कभी नहीं सुना गया और अभी तक हमने भले - बुरे का ही युद्ध सुना है अब भूल जाईये भले - बुरे का युद्ध अब सिर्फ बुरे और बुरे के बीच लडाई है और जारी है ##
* मेरे पड़ोस में एक नया घर बन कर तैयार हुआ है अब किसी भी दिवस मेरी अपने गाँव जाने की तैयारी हो सकती है क्योंकि किसी भी दिवस उस घर में गृह प्रवेश के उपलक्ष में अखंड रामायण या भगवती जागरण का कार्यक्रम आयोजित हो सकता है तमाम परेशानियों के बावजूद इन्ही विषम दिनों के लिए अपने गाँव का मकान मैंने व्यवस्थित कर रखा है ##
शुक्रवार, 15 जुलाई 2011
केले का छिलका
* जिले बनाने के लिए , नए प्रदेशों की राजधानी बसाने के लिए ज़मीनें कहाँ से आएँगी ? जो अधिग्रहीत की जायगी वे सब क्या बंजर होंगी , जो शहर से सटी ही तो होगी ? क्या राजधानियाँ ,उद्योगों और सड़कों से ज्यादा ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण हैं ? [चिंता /विचार बिंदु ] ##
* केले का छिलका तब तक केले से अलग न करें , जब तक केला खाकर ख़त्म न कर लें [नागरिक पत्रकारिता] ##
* १ - जब ७० -७५ भारत की जनता की आमदनी बीस रु है , तो क्या वह एक din राहुल गाँधी को खिलाने के लिए दस रु खर्च नहीं कर सकती ? क्या रोज़ - रोज़ आते हैं राजकुमार द्वार पर ? आतिथ्य में क्या वह भूखी नहीं सो सकती ? लेकिन सोयेगी किस पर ! खात पर तो राजकुमार सोये हुए हैं
२ - यार बीस रु की आमदनी है तो क्या दस रु रोजाना सुलभ शौचालय पर नहीं खर्च कर सकते जो इधर -उधर खुले में बैठते हो और गंदगी फैलाते हो ?
३ - बीस रु रोज़ की आय में से क्या पंद्रह रु एक बोतल पानी पर नहीं लगा सकते , जो गन्दा -संदा बम्बे का पानी पीते हो ? ###
* चाहें मुंह पर गमछा लपेट कार घूमें या बिकनी में, लड़कियों को घूमने में मज़ा बहुत आता है [बदमाश चिंतन ]
* अंग्रेजी से नाता जोड़ो ,
हिंदी - हिन्दुस्तानी छोड़ो #
* अल्ला न अल्ली ,
तोड़ बकरे की नल्ली #
* कैसे कह सकते हैं की मुसलमानों ke दिलों me प्यार नहीं उपजता ? जब बकरे ke साथ कुछ ही दीं रहकर उनसे इतनी मोहब्बत करने लगते हैं की वे उसे प्यारा समझ कर बकरीद के दीं उसकी कुर्बानी दे डालते हैं ?[बदमाश चिंतन] ##
सोमवार, 11 जुलाई 2011
सजा की हिमायत
* बिल्कुल नाना पाटेकर की तर्ज़ पर एक टीआरएस विधायक ने एक बाबू को झापड़ -झापड़ मारा [२२/७/११ ] अब,यद्यपि मैं विधायकों -सांसदों और उच्च नेतृत्व के पदों स्वयं ही नैतिक एवं विश्वसनीय मानना अधिक उचित समझता रहा हूँ और इनके ऊपर किसी महा [अंकुश ] पाल का विरोध करता रहा हूँ , पर लगता है , इनकी बदतमीज़ियों को देखते हुए मुझे इनके खिलाफ सख्त से सख्त बंधन कारी कानून और सजा की हिमायत करनी पड़ेगी ##
* भारत का किसान -इतिहास केवल दो नामों se जाना जायगा एक अमिताभ बच्चन , दूसरे राहुल गाँधी [विडम्बना] ##
* [हाइकु ]
वीर्य तो दिया
तुम्हारी माँ को , तुम्हे
खून क्यों दे दूं ? #
* [kavita ]
रक्त का सत्त्व
वीर्य तो दिया
अब क्या खून भी दे दूं ? #
शनिवार, 9 जुलाई 2011
तब तक-जब तक
- मैं तब तक नक्सलवाद का समर्थन करता रहूँगा , जब तक मेरे घर - परिवार - रिश्तेदार का कोई सदस्य माओवादियों के हाथों मारा नहीं जाता । 0
- scientist होना आसान है , scientific होना मुश्किल ! #
- आप लोग 2G-Fuji scam, राजा -रानी -कलमंदी की बात करते हो | लेकिन अक्लमंदी इस में थी और मैं होता तो यही करता कि commonwealth Game ही भारत में न कराता | क्योंकि मुझे पता है कि हिन्दुस्तान के वश का कुछ नहीं है | फिर यह तो इतना बड़ा आयोजन था | गड़बड़ी और घोटाला तो होना ही था | अकूत पैसा , गैर ईमानदार , बे ईमान , कर्त्तव्य परायणता -विमुख , भुक्खड़ अधिकारी -कर्मचारी इसे ऐसा ही अंजाम देंगें इसे हम सब जानते थे, और हैं , सिवा उनके जो हिन्दुस्तान से परिचित नहीं हैं | अब , जो संपत्ति [wealth] सबकी [common ] थी , वह उन सबकी हो गयी तो क्यों चिल्लाते हो ? तब तो बड़े गुरूर में थे कि इतना बड़ा खेल कराकर मेरे देश का मस्तक बड़ा ऊँचा होगा | लो ,हुआ तो ! अब जाँच-फाँच कराकर क्यों दुनिया के सामने अपनी फज़ीहत कराते हो ? #
* लगे रहो मुन्ना भाई मार्का राजनीति खूब चल रही है | बूढों की तो जैसे -तैसे निपट गयी , युवकों की बारी है | आज युवा इस संगठन ,उस संस्था , इस जुलूस , उस धरने , इनके सेमिनार , उनके विचार गोष्ठी , इनके नाटक , उनके केरीकेचर में आता -जाता ,भाग लेता रहता है , सक्रियता से शिरक़त करता रहता देखा / पाया जा सकता है | उसकी क्या ग़लती ? विचार , आस्था , नीति ,समर्पण , एकनिष्ठता , देश के लिए बलिदान या स्वयं कुछ कर गुज़रने का मनोबल , साहस या उत्साह तो है नहीं , और इस सबसे कोई फल भी मिलने वाला नहीं , तो फिर इन्ही के पीछे लग लिया जाए | और स्व -विवेक, अपनी समझदारी , सही - गलत का चुनाव तो बिलकुल न किया जाय , न किसी आदर्श के चक्कर में पड़ा जाय | ये जो कर रहे हैं वही ठीक है | इन्ही की हाँ में हाँ मिलाने में भलाई है | दूसरे मंच से भले दूसरी बात बिलकुल उल्टी कहनी पड़े लेकिन ज़रा बच -बचाकर ,भाषा को घुमा फिराकर | इसी को तो राजनीति कहते हैं ! नाराज़ किसी कार्य समूह को नहीं करना | न जाने कब किसकी बन जाए , कौन सत्ता में या सत्ता के पूछटटे में आ जाए ! सो, भाई मुन्ना भाई , बस लगे रहो | #
0-- LIKE SEPARATE ELECTORATE , LIKE THE AUTHORITY OF LOKPAL BILL.
* Knowledge-
"Aam admi is the largest generator of black money"
--Surjit S Bhalla [Indian Express 9/7/11] #
* I am not a citizen of God's kingdom . I don't pay taxes to him . #
* A civil society in the drafting committee of Jan Lokpal Bill is alright [UPA did it at centre]. But Salwa Judum , an armed civilian vigilante group to fight against is unconstitutional in Chhattisgarh [Said The Supreme court] . ? ? ?
* I appreciate the idea of Sri Sri Ravi Shankar ji [Indian express 29/6/11] . He says, we are all made up of a substance called God .
Really , instead of saying that GOD MADE US , it is very logical and aesthetc . Scientifically too , instead of naming so many things our body and mind is made up of , we can simply answer ,we are a combination of infinite substances and elements [ some may be yet unknown to us] which as a collective in one we have given a single name [proper noun. And ,that is God . that is a SUBSTANCE we all are made up of . ##
* [exerpt] A LETTER IN MY TUNE =
GUEST CONTROL
iT IS WITH DEEP ANGUISH that I AM WRITING this letter as a concerned citizen about the colossal wassage of food at weddings and other social functions . It is painful to see 100 dishes being served to a thosand or more guestsat several of these weddings. One can imagine the colossal wastage of food in a country where 40 per cent of the population sleeps on an empty stomach . how can we justify such vulgar displayof wealth and conspicuous consumption in a country with extreme poverty ? I sincerely feel that we need to revive the guest control order which limits the number of dishes that can be served and also limits the number of guests . This will help embellish the image of the government and show that it cares . It will be most appropriate if a guest control order is promulgated and implemented with all seriousness. #
- Sudarshan Agrawal , New Delhi [Indian Express 8/7/11]
* कहा तो कचहरी ने जे डे की हत्या के मामले में पुलिस से , कि प्रेस को हर बात न बताया करो । क्यों भाई , सूचनाओं की गर्मी का मौसम है । ल बताएँ तो आरटीआई वाले खा जायँ । इसलिए वाले बताते हैं - पत्रकार को इसने मारा । कल बताया था उसने मारा । कल बताएँगे , उसने मारा । लो सूचनाएँ, चलाओ प्रेस का कारोबार , जाँच का काम चले न चले । 0
0 (कविता)
मैंने तो एक
कविता करी थी ,
आप नाहक़
बुरा मान गये । 0
0 * वासांसि जीर्णानि -
0 बेईमानी का
उत्स क्या है , स्वार्थ तो
उसे मिटाओ
उसकी ज़रूरतें
तो पूरी करो । (हाइकु) 0
0 कुछ न भूलो
कुछ न याद करो
निरपेक्ष हो । (हाइकु) 0
0 बदसूरत
बहुत है जमाना
आईना देखो । (हाइकु) 0
0 हैं तो ज़रूर
लड़कियाँ सुंदर
जैसे भी हुईं । (हाइकु) 0
0 जैसे उड़ि जहाज का पंछी पुनि जहाज पर आवै , (एक राजनीतिक परिकथन)
- आप जैसी पंछियाँ जहाज पर आएँगी नहीं तो जहाज डूबेगा कैसे ।
0 सीबीआई को आरटीआई के दायरे बाहर रखने के विरुद्ध एक विशिष्ट व्यक्ति की टिप्पणी थी कि सीबीआई क्या है, जैसे पुलिस । आश्चर्य है कि फिर हर कांड पर जाँच की माँग सीबीआई से कराने की क्यों की जाती है , जब कि पुलिस वह काम करती ही करती है ।
0 डेनमार्क अदालत ने पुरुलिया केस के अपराधी किम डेवी को भारत को न सौंपने के निर्णय में भारत में मानवाधिकारों और जेलों की दशा पर जो टिप्पणी की है , उसका राजनयिक स्तर पर विरोध तो उचित ही है । लेकिन यह भारत के लिए आत्म निरीक्षण का भी क्षण है । हमें लोकतंत्र के लायक़ बनने के लिए मेहनत करने की जरूरत है । हमसे अभी लोकतांत्रिक संस्कृति में और अधिक शिक्षित - प्रशिक्षित-दीक्षित होना अपेक्षित है ।0
0 मैं मूर्ख हूँ या बेवकूफ़ ,कोई सही - सही उत्तर दे दे , तो उसे मैं अपना एक माह का पेन्सन ईनाम दूँ । 0
0 दरअसल, सचमुच मेरे साहित्य में ऐसा कुछ भी नहीं है जो उसे बिकाऊ बना
सके । 0
शायरी - 1 -औरतों से लोग घबराने लगे ,
मर्द मर्दुल्लों के संग जाने लगे । 0
2 - वह तो कुछ कम था , यह ज़ियादा है ,
यह तो बिल्कुल हरामज़ादा है । 0
3 - तुम भी तो यार शायर करते हो क्या कमाल ,
हरदम उसी का ख्याल , हरदम उसी का ख्याल ।0
4 - चाहिए तो मगर , करेंगे क्या ,
वह जो न मिली , मरेंगे क्या । 0
0 मेरे पास क्या नहीं है । मैं संसार का सर्वोत्तम ग़रीब हूँ । (व्यक्तिगत)0
0 भाग्यवान
कही जाए अभागी
जो औरत
हिंदुस्तान आ जाए । (बदमाश चिंतन)
0 जैसे कम आयु के बच्चों को चश्मा लग जाना कोई बीमारी नहीं है , वैसे ही लड़कियों का हाइमन फट दाना भी कोई हैरानी को बात नहीं है । (बदमाश चिंतन)0
शुक्रवार, 1 जुलाई 2011
निज़ाम पर कब्ज़ा
* I find, ordinariliness,simplicity is God . He could make our body and mind so typical and finely grained , because He did it very simply, rather in a playful manner . And Lo, God too ,is very simple to be known , if we could be so simple in our vision . #
* कभी नरम , कभी गरम
बेहया कभी शरम
दर्द से बेदर्द हम
खुशी कोई , न कोई ग़म | #
* - ऊपर नेकरल Substitute for Super Natural . #
* आज ग्रोवर हत्याकाण्ड का फैसला आया | कितने तो झमेले औरतों को लेकर होते हैं ! आदमी मारते , मरते हैं ? ###