रविवार, 17 अप्रैल 2011

गाँधी पर किताब / अज्ञेय की जन्म शताब्दी

* गाँधी पर लिखे  गए किसी किताब पर प्रतिबन्ध लगाना गाँधी का नितांत अपमान है | गाँधी जी स्वयं ऐसा  न होने देते | राजनीति की तो कुछ मजबूरियां हो सकती हैं ,पर यह गाँधी वादियों को क्या हो गया है ? लोगों का उन पर एक पुराना आरोप अब उचित ही है याद आना कि गाँधीवाद की मौत गाँधीवादियों द्वारा होगी  | अभी एक अँगरेज़ द्वारा गाँधी जी पर लिखी एक किताब को , जिसकी अभी केवल समीक्षा आई है ,जिसका  जीवित लेखक ने स्वयं खंडन किया है ,उसे गाँधी वादी blasphemy [ईशनिंदा]की संज्ञा दे रहे हैं | भाई वाह ! मानो गाँधी न हुए भगवान हो गए | यह है इनकी बुद्धि | अरे मूर्खो ! यदि हिंदुस्तान गाँधी को चाँद या सूरज समझता है , तो वह किसी को उन पर थूकने से कैसे रोक सकता  है ? गिरने दो उसका थूक उसके ऊपर  |
       मैं इस प्रतिबंधवादी प्रवृत्ति का सख्त विरोध करता हूँ , और उलटे  किताबों का विरोध करने वालों को निकटतम विद्युत् वाहक संयोजक सूत्र धारक स्तम्भ  [electric  pole ] से उल्टा लटकाने की माँग करता हूँ |[नेहरु वाद] ##     


* अज्ञेय  की जन्म शताब्दी  
लेकिन   ठहरिये | मूर्खता किसी की बपौती नहीं है | व्यक्तिगत संपत्ति के विरोधी इसे सार्वजनिक बनाने पर तुले हुए हैं  
और इसमें वे कोई छद्म नहीं करते | इसका वे स्वयं ,पूरे समर्पण के साथ पालन करते हैं | यह वर्ष कुछ हिंदी -उर्दू -बांग्ला के मूर्धन्य कवियों का जन्म शती वर्ष है | कुछ लोग सबकी मना रहे हैं , कुछ किन्ही की मना रहे हैं ,कुछ किसी की मना रहे हैं ,तो कुछ किसी की भी नहीं मना रहे हैं |इसमें किसी को भला क्या आपत्ति हो सकती है ? लेकिन नहीं , कुछ लोग हैं जो वैज्ञानिक  सोच के नाम पर विज्ञानं के कोख की अवैध संतानें हैं ,जो इसे उचित नहीं मानती | उनका अन्वेषण है कि जिसकी  या जिनकी जन्म शताब्दी मनाने की इजाज़त वह दें,केवल उन्हीकी मनाई जाए | कोई जन संस्कृति मंच पर आसीन मठाधीश , झोला -लटक नेता या तानाशाह अधिकारी हैं [सचमुच वाम सैद्धांतिक दलों में polit bureau hote    हैं Polite bureau  नहीं ]| उन्होंने आह्वान किया है कि प्रगतिशील जन और जन sangathan [जन शब्द inke साथ और इनकी jubanon पर ज़रूर होता है , अलबत्ता ये पूर्णतः निर्जन hote हैं ] अज्ञेय कीजन्म सदी न मनाएं | यद्यपि वे न मनाएं तो अज्ञेय की [दाढ़ी के] कितने बाल गिर जायेंगे , तथापि प्रश्न यह है कि क्या किसी ने इनसे कहा था कि अज्ञेय की जन्मसदी ज़रूर मनाओ ? या किसी संगठन ने क्या कोई प्रति -आह्वान किया था कि नागार्जुन की न मनाओ ? फिर इन्हें इस की ज़रुरत क्यों आन पड़ी ?मैं कहने वाला था पर  मैंने भी ऐसा  नहीं कहा  कि  फैज़ की बरसी हिंदुस्तान में मनाना वाजिब नहीं है kyonki वह हिंदुस्तान छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे | फिर चाहे कितने  बड़े शायर रहे हों | दुनिया के तमाम देशों के बड़े -बड़े साहित्यकारों की सदी होगी इस साल ,तो हम क्या करें ? कितनों की मनाएंगे ?  लेकिन अशिष्ट संस्कृति कर्मियों ने यह गुस्ताखी कर ही डाली ,जो उनसे सहज अपेक्षित होती है |इसीलिये मैं कहता हूँ कि ऐसे असभ्यों के लिए हिंदुस्तान में कोई जगह नहीं होनी चाहिए | हम इसे सभ्य -सु संस्कृत देश के रूप में विकसित करना चाहते हैं | कोई दर्शन जिसमे विरोधी विचारों  के लिए कोई जगह न हो , जो असहिष्णु हो ,दर्शन के नाम पर कलंक है | उसे यहाँ से जाना चाहिए | इसमें जीवन की कला और सौन्दर्य चेतना नहीं है |  अज्ञेय का कलावादी होना ही inke लिए   अज्ञेय का पाप है | तो किमाश्चर्यम कि ये कलाप्रिय  बंगाल से अगले चुनाव में निष्कासित होने के लिए संसूचित हों ! enough  is  enough | अब समय आ गया है कि इनका हर स्तर पर पुरजोर विरोध किया जाय | शांत समाज की सहनशील चुप्पी  से इनका मन बहुत बढ़ गया है और ये घातक रूप धारण करते जा रहे हैं | इन्ही की प्रिय कविता के अनुसार हमको भी "अब उठाने ही होंगे खतरे अभिव्यक्ति के"| इसमें मैं जोड़ता हूँ कि अब  उठाने होंगे प्रगतिशील न कहलाये जाने के , दकियानूस कहे जाने के खतरे "|क्योंकि  इन्होने एक भ्रम शिक्षित समाज में त्रुटितः यह फैलाया है कि हिंदुस्तान का कोई दर्शन या जीवन मार्ग संसार के लिए क्या हिंदुस्तान के लिए ही उपयोगी नहीं रह गया है | अब कोई सोच बाहर से लानी पड़ेगी | इसीलिए इन्होने  मार्क्सवाद के विशाल वट-वृक्ष को  रूस से समूल  उखाड़ लाकर भारत में रोपने का बीड़ा उठाया हुआ है |हमारा    मूल मुद्दा यह है कि यह देश किसी एक दर्शन का गुलाम नहीं हो सकता जैसा ये चाहते हैं ,और एक स्वर्णिम भविष्य का लोलीपॉप दिखा कर लोगों को बरगलाते हैं |किसान -मजदूर -कामगार के भी ये हितैषी नहीं हैं ,न आदिवासियों के | ये केवल उनका उपयोग करते हैं | शास्त्रीय  भाषा में कहें  तो इनका वाद सारी मानव पीड़ा के लिए एक sluice valve , जड़ता का safety  valve  भर है | inke  पास केवल परिकल्पना है | समाज में मानव मूल्यों की स्थापना इनका उद्देश्य नहीं | उद्देश्य है तो सत्ता प्राप्ति , येन -केन -प्रकारेण |तब सब ठीक हो जायगा | तब तक कुछ भी ठीक नहीं | इसलिए सारी संस्थाओं को ध्वस्त करते जाना इनका कार्यक्रम होता है | अब हमारा काम इनको          ध्वस्त करना होना चाहिए |inke किसी भी कविता -कहानी -नाटक -नाच गाना कार्यक्रम में कतई शिरकत  नहीं करना | कैसा भी सही आन्दोलन -धरना -प्रदर्शन करें ,नहीं भाग लेना | इनकी क्रांति नामक कृमि को विनष्ट करना | जन जीवन में भी ऐसे झूठे लोगों का बहिष्कार करना | inke छद्म का हर यथा संभव अनावरण करना | किसी द्वेष भावना से नहीं , बल्कि मानवता के विशाल  हित में | याद रखना होगा , विशेषकर हिंदुस्तान जैसे दर्शन -पुंज देश को , कि किसी भी कपडे की गाँठ में कसकर बंधा हुआ और उच्छृंखल व्यव्हार  से हमारी खोपड़ियों को तोड़ता हुआ , स्वतंत्र सोच युक्त मस्तिष्क को कुंद करता हुआ कोई भी विचार कभी मनुष्यता का हितैषी नहीं हो सकता |##       

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