* आखिर रह जाता है
संग - साथ , परस्पर विश्वास
छूट जाता है
युवावस्था का चाँद ,
हनीमून ,सैर - सपाटा
सौन्दर्य -आकर्षण का पागलपन |
रह जाता है , दोनों के पास
अपनी और अपनों की जिम्मेदारी
बच्चों की चिंता
नाती पोतों , पोतियों का खैर मकदम \
जीवन सुन्दर ही रहता है ,पर
भूचाल नहीं होता |
मिट जाती है आपाधापी
पाने , और पाने, की इच्छा
देना , शेष रह जाता है
जीवन के अंतिम दिवसों में ,
मृत्यु को कुछ देकर ही
जीवन समाप्त किया जाता है |
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कि हम जानते हैं
तुम समझते हो कि
तुम जानते हो ,
न हम जानते हैं
न तुम जानते हो ,
या हम कम जानते हैं
तुम भी
कम जानते हो |
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* जहाँ नक्सलवाद है
वहां समझो अत्याचार है , और
विकास अवरुद्ध है |
जहाँ माओवाद नहीं है
क्या वहाँ सब ठीक -ठाक
मौज - आनंद ,
सब शुद्ध है ?
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* विकास क्यों नहीं पहुँचा ?
जैसे हथियार पहुंचे
वैसे विकास भी तो
पहुँच सकता था ,
आदिवासियों के पास
यदि चाहते तो !
दूर देश के माओ कैसे
पहुँच गए जंगलों में
और आदिवासी
अपना नाम बदल कर
माओवादी कैसे हो गए ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि
माओवादी कोई और हैं
और आदिवासी कोई और ?
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*पाली जाती हैं
या दुही जाती हैं , गायें - भैसें
मारी जाती हैं -
बकरियाँ , मुर्गे ?
खूब पलते - पाले तो जाते
पलते तो हैं ये जानवर !
क्या सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट ?
क्या ये ही उपयुक्त हैं जिंदा रहने के लिए ?
तो फिट का मतलब क्या यही है कि -
जो जितना मारा जा सकता हो
मार खा सकता हो ,
प्राण गवां सकता हो
मनुष्य की क्षुधा पूर्ति के मैदान में ?
क्या हम - आप अब भी सबसे
फिट बनना चाहेंगे
बनना चाहते हैं
दुनिया में सबसे योग्य ?
मैं तो इसीलिये अयोग्य -
कामना रहित हूँ |
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* सच पूछिये तो
काम देता है केवल
किसी एक के प्रति समर्पण ,
न कि विचारों का ढुलमुल पन|
निष्ठां की विच्छ्रंखलता |
काम देता है कामुकता का
संकेंद्रीकरण, न कि बिखराव |
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* ज़िम्मेदारी
वर्तमान समस्याओं में
क्या हमारा ,
हमारी सोच का
कोई योगदान नहीं है ?
या हम यूँ ही
अपनी जिम्मेदारियों से
पल्ला झाड़ते रहेंगे ?
हम स्त्री आन्दोलन में हों या
पुरुष बलात्कारियों के सगठन में
या किसी भी राजनीतिक -
धर्मवादी दल में |
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