सोमवार, 25 अप्रैल 2011

ज़िम्मेदारी/नक्सलवाद/सर्वाइवल/आखिर

* आखिर रह जाता है
संग - साथ , परस्पर विश्वास
छूट जाता है
युवावस्था का चाँद ,
हनीमून ,सैर - सपाटा
सौन्दर्य -आकर्षण का पागलपन |
रह जाता है , दोनों के पास
अपनी  और अपनों   की जिम्मेदारी 
बच्चों की चिंता 
नाती पोतों , पोतियों का खैर मकदम \
जीवन सुन्दर ही रहता है ,पर 
भूचाल नहीं होता |
मिट जाती  है आपाधापी
पाने , और पाने, की इच्छा
देना , शेष रह जाता है
जीवन के अंतिम दिवसों में ,
मृत्यु को कुछ देकर ही
जीवन समाप्त किया जाता है |
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* हम समझते हैं
कि हम जानते हैं
तुम समझते हो कि 
तुम जानते हो ,
न हम जानते हैं 
न तुम जानते हो ,
या हम कम जानते हैं 
तुम भी 
कम जानते हो |
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* जहाँ  नक्सलवाद है 
वहां समझो अत्याचार है , और 
विकास अवरुद्ध है |
जहाँ माओवाद नहीं है 
क्या वहाँ सब ठीक -ठाक 
मौज - आनंद ,
सब शुद्ध है ?
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* विकास क्यों नहीं पहुँचा ?
जैसे हथियार पहुंचे
वैसे विकास भी तो
पहुँच सकता था ,
आदिवासियों के पास
यदि चाहते तो !
दूर  देश के माओ कैसे
पहुँच गए जंगलों में
और आदिवासी
अपना नाम बदल कर
माओवादी कैसे हो गए ?
कहीं  ऐसा तो नहीं कि
माओवादी कोई और हैं
और आदिवासी कोई और ?
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*पाली जाती हैं
या दुही जाती हैं , गायें - भैसें
मारी जाती हैं -
बकरियाँ , मुर्गे ?
खूब पलते - पाले तो जाते
पलते तो हैं ये जानवर !
क्या सर्वाइवल  ऑफ़ द फिटेस्ट ?
क्या ये ही उपयुक्त  हैं जिंदा रहने के लिए ?
तो फिट का मतलब क्या यही है कि -
जो जितना मारा जा सकता हो
मार खा सकता हो ,
प्राण गवां सकता हो
मनुष्य  की क्षुधा पूर्ति के मैदान में ?
क्या हम - आप अब भी सबसे
फिट बनना  चाहेंगे
बनना चाहते  हैं
दुनिया में सबसे योग्य ?

मैं तो इसीलिये अयोग्य -
कामना रहित हूँ |
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* सच पूछिये तो
काम देता है केवल
किसी एक के प्रति समर्पण ,
न कि विचारों का ढुलमुल पन|
निष्ठां की विच्छ्रंखलता |

काम देता है कामुकता का
संकेंद्रीकरण, न  कि बिखराव |
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                         *   ज़िम्मेदारी

वर्तमान समस्याओं में
क्या हमारा ,
हमारी सोच का
कोई योगदान नहीं है ?
या हम यूँ ही
अपनी जिम्मेदारियों से
पल्ला झाड़ते रहेंगे ?
हम स्त्री आन्दोलन में हों या 
पुरुष बलात्कारियों  के सगठन  में
या किसी  भी राजनीतिक -
धर्मवादी दल में |
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