थोड़ी देर के लिए मान लीजिए कि आप दलित नहीं हैं । वैसे भी कितने दिन दलित रहना ही है ! यह आरक्षण, दलितपन बस कुछ ही दिनों के मेहमान हैं । यह अस्थायी स्थिति है । इसलिए इस आंदोलन को बहुत लंबा नहीं खींचा जा सकता, भले समय कुछ ज़्यादा लगे । लेकिन साम्यवाद तो मनुष्य की मानुषिक जीवन की स्थायी प्रवृत्ति है ? दलित न होकर भी साम्यवादी होना, समाजवादी जीवन जीना है । तो क्यों न अभी से अभ्यास करें, उच्चतर जीवन मूल्य और उसके लिए संघर्ष की ?
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