रविवार, 4 अगस्त 2013

14 Poems to Hindi Samay

To Hindi Samay
अभी कविताएँ         द्वारा -  उग्रनाथ नागरिक
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तूफ़ान में बहते लोग

[कविता नहीं ]

1 *मैं कविता नहीं लिख पाता
बस सोचता भर हूँ -
क्या दस- पचास हज़ार लोग सचमुच मर गए ?
क्या वे लोग भी मेरी तरह ही आदमी थे
जिन्दा, सांस लेते लोग ?
सोचता हूँ मैं उनकी तरह
मर रहा हॉता तो क्या दशा होती मेरी ?
कैसा अफनाए, छटपटाए होंगे
हाथ पैर मारे होंगे बचने के लिए
सांस फूली होगी, आँखें बाहर निकल आई होंगी
असफल प्रयास में, बच नहीं पाए
लाश होकर बह गए ?
क्या वे बच्चे, औरतें, बूढ़े, हमारे
घर के बच्चों, औरतों बूढ़े माँ - बाप
की तरह ही रहे होंगे
जिनसे मैं इतना प्यार करता हूँ ?
मैं अपने परिवार के लोगों को
निर्निमेष देखता हूँ
उनके इस तरह बिछड़ने की कल्पना से सिहर जाता हूँ |
डरा, सहमा हुआ बैठा हूँ मैं
मुझसे कविता नहीं हो पाती |
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[कविता ]
2 किसी के घर
एक वक़्त खा लेता हूँ
उसका शुक्रगुजार हो जाता हूँ
देश का तो रोज़ ही खाता हूँ |
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[कविता ]
3- जलता तो है तवा
तपता, आँच सहता

और सिंकती है 'रोटी '
उस पर किसी और की ?
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[कविता ]
4 उस औरत में
जिसके लिए पुरुष
अपनी जान
देता - छिड़कता है ,
उसकी माँ - बहन भी
शामिल है ,

और वह पुरुष
जिसके लिए औरत
तड़पती, छ्टपटाती है ,
उसका बाप और
भाई भी हो सकता है |
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[कविता ]
5 - मुसीबतें हमेशा
मेरे साथ चलती हैं ,
अभाव मेरे पीछे पडा रहता हैं ,
परेशानियाँ पीछे लगी रहती हैं ,
बीमारियाँ मुझे घेरे रहती हैं ,
क्या क्या कहूँ
सारे दुःख तो मेरे पीछे चलते हैं
अर्थात, मैं
उनके आगे चलने वाला,
कोई महामहिम
नेता हो गया हूँ !
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[कविता ]
6 - आज मेरे बेटे ने
अपना कद नापा
वह अंदर से दौड़कर आया
पापा , मैं मम्मी के
दूध के बराबर हो गया हूँ
अब आप से नापूं
वह मेरे कलेजे तक था
और बड़ी बहन के चश्मे के बराबर .
मैंने कहा , बेटे
यह तो तुम्हारा स्थाई कद है
इससे कम तो तुम कभी न थे
इससे परे तो तुम
कभी न जाओगे |
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[कविता ]
7 - मैं जानता हूँ , लोग हँसेंगे
सुनकर मेरी पीड़ा
तिस पर भी , मैं अपने दोस्तों को अपना दुःख
तार तार करके सुनाता हूँ ,
आखिर दोस्त हैं मेरे
थोडा हँस ही लें ,
वरना उन्हें भी जिंदगी में
कहाँ सुख नसीब !
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[कविता ]
8 - अरे ! बारिश हो रही है
छज्जे पर मैंने
तुम्हारे लिए
आँखें बिछा रखी थीं ,
देखो, कहीं
भीग तो नहीं गयीं !
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- [कविता ]
9 - हाँ बच्चो , मूर्ख तो हैं तुम्हारी दादियाँ
उन्हें अंग्रेजी डिमोक्रेसी के मूल्य पता नहीं -
व्यक्तिगत स्वतंत्रता उसने जानी ही नहीं
प्राईवेसी का आदर वह क्या जाने ?
तुम आधे कपडे पहनकर बाहर निकलती हो
तो वह टोक देती है ,
भाई घुटनों के बल गिर जाता है
वह दौड़ कर धूल झाडती है
तेल मालिश करती, काजल लगा देती
और माथे पर दिठौना ,
उसके गले से नहीं उतरता कि अंग्रेजी डॉक्टर ने
यह सब करने से मना क्यों किया है ?
चलो अच्छा हुआ, अब वह गाँव भेज दी गयी
लेकिन क्या हुआ ? कल से जब से फोन आया
छुटकी को बुखार आ गया है , वह तड़प रही है |
मुझे हर घंटे बोलती है फोन करो, पूछो हाल !
बूढ़ा तो मैं भी हूँ, लेकिन थोड़ी दुनिया जानता हूँ
समझाता हूँ आज़ादी की बात - किसी की
व्यक्तिगत स्वतंत्रता में दखल नहीं देना चाहिए ,
लेकिन वह मानती ही नहीं
मूर्ख जो है न ! तुमारी दादी |
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10 -  [कविता ] " धोबी का कुत्ता "

पहले एक धोबी होता था
उसका एक घर होता था
उसका एक घाट होता था ,
उसका एक कुत्ता भी होता था
जो न घर का होता था
न घात का होता था |
लेकिन अब
सिर्फ कुत्ते होते हैं
उन्ही के घर भी होते है
उन्ही के घाट भी होते है
और विडम्बना !
उनका कोई धोबी नहीं होता |
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[कविता ]
11- बड़ी मुश्किल से तो
खंडहर हुयीं हैं इमारतें
जर्जर हुई थीं किताबें ,
तिस पर भी
इनके संरक्षण के लिए
पुरातत्व विभाग /
अभिलेखागार बनाये हमने !
क्या यह कम सबूत है
हमारी भलमनसाहत का ?
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[कविता ]
12 - मैं एक कफ़न हूँ
ज़िंदा ही जला दिया जाता हूँ
एक मुर्दा लाश के साथ
गोया कि मैं एक ज़िंदा लाश हूँ
लेकिन मुझे गर्व है कि
मैं शव का देता हूँ कब्र तक साथ
और उसके ख़ाक होने तक
उसकी लाज ढके रहता हूँ
तथा राख बनकर भी
तन से लगा रहता हूँ
फिर भी मुझे खेद है
कोई मुझे जीवन में
प्यार नहीं करता
आखिरी सांस तक
स्वीकार नहीं करता
बस चंद शहीदों के सिवा
वही तो मुझे
अपनाते हैं जीते जी
और मैं भी उन्हें
कभी मरने नहीं देता .
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[कविता ]
13 - शहीद !
मर गए
चिरायु हैं ,
वे गिद्ध नहीं
जटायु हैं |
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आखिरी [ कविता ]
14 - तुम जीवन में ऐसे आये ,
जैसे सुबह की पहली चाये |

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