सोमवार, 19 अगस्त 2013

जग में रहो , My posts ending 20 / 8 / 2013

* जग में रहो
जग में रमो नहीं
अच्छी नीति है |

* बहुत कुछ
मेरे मन में, तुम्हे
बताने को है |

* सब का सब
सब पैसों का खेल
पैसा ही पैसा !

* अराजकता
स्वयं तय करेगी
अपना रास्ता |

*सवर्ण हो या
आदमी बने रहो
दलित हो या |

* प्याज के बारे एक क्षीण स्मृति उभर रही है | कुलदीप नैयर या किसी अन्य की किताब में पढ़ा था | इंदिरा गाँधी ने अपने विवाह के अवसर पर प्याजी रंग की साड़ी पहनी थी |

* एक नयी हरकत मेरी शुरू हुई है | कमेन्ट करने के बाद मैं पूर्णविराम नहीं लगा रहा हूँ | न जाने फिर कुछ और लिखना पड़े !

* वास्तव में ईश्वर पर आस्था से हमारा ऐतराज़ इसलिए है , कि ईश्वर से मनुष्य  को कुछ छुट्टी मिले तब न आदमी कुछ सोचे !

* हम ईश्वर को नहीं मानते | तो क्या हम मनुष्य नहीं रहे ? लोग देखते तो ऐसे ही हैं !

* जब हम कुछ बड़ा होने कि कोशिश करते हैं तो जानते हैं क्या करते हैं ? हम बराबरी का सत्यानाश करते हैं |

* Communists are Elitists of Rural India .

* और कोई सुविधा गावों में भले नहीं पंहुची , लेकिन गावों की दशा के तमाम सर्वेक्षणों की बड़ी बड़ी रपटें तो ज़रूर पहुँच गयीं | गावों के बारे में जितनी सूचनाएं और आंकड़े NGO'S के पास है , उतनी किसी गाँव वाले को भी नहीं पता होगी |

* मुझे तो घर में काम करने वाले नौकर को भी नौकर करते अच्छा नहीं लगता |और इधर दलित भाई हैं जिन्हें दलित से इतर कुछ कह दो तो बुरा मान जाते हैं | कैसी उलटबासी है ?


नास्तिक The Atheist एक ग्रुप और है अलग | और वह ठीक चल रहा है | उसमे भी हमारे कई साथी  शामिल भी हैं | चिंतनीय है कि शुद्ध नास्तिकता कि बात वहीँ एक जगह चलाई जाय और हम यहाँ कुछ अपने विषय और उद्देश्य बदल लें | क्या राय है आप लोगों कि ?
एक और दिक्कत समक्ष आ रही है कि लोग निश्चय ही अपनी आस्था लेकर बीच में आते हैं | ग्रुप में आना और बहस में आना अलग बातें हैं |मसलन कहा जाता है आस्था निजी चीज है | अब इतनी primary बात पर कितना समय बर्बाद किया जाय ? निजी है तो हम यहाँ सार्वजनिक मंच पर क्यों हैं ? रहिये अपने निज में ! यह मौलिक बात तो मानकर चलनी पड़ेगी कि निजी आस्थाएं बनती कैसे हैं ? वे स्थितियां परिस्थितियां , परवेश हमारी चिंता के विषयों में हैं और होनी चाहियें | व्यक्तिगत कह कर उन्हें छोड़ा तो नहीं जा सकता ? किसी को नहीं पसंद तो वह पोस्ट को निजी रूप से पढ़कर चुप रहे | लेकिन ऐसा होता नहीं | अपनी आस्थाओं कि लडियां पिरोते रहते हैं और comments बेमकसद बढ़ते बढ़ते बिना कहीं पहुंचे रह जाते हैं | इतने पर भी किसी के विचार पर विचार का "निजी " संकल्प लेकर कोई सब्र करना तो जानता ही नहीं | बहरहाल ग्रुप के नए स्वरुप को सोच रहे हैं- -

* भारत का 'राष्ट्रीय ग्रन्थ ' कौन सा है ? इस पर मेरी राष्ट्रीय राय है - " गुरु ग्रन्थ साहेब " | यह 'ग्रन्थ ' है , यह सांप्रदायिक नहीं है | इसमें नीति - उपदेश हैं भारत के तमाम गुरुओं - कबीर - रैदास आदि सबके | यह संकलन है , न कि कोई आसमानी धार्मिक किताब | यह आलोचना से परे है | यह हिन्दुस्तान का आध्यात्मिक दस्तावेज़  है | मैं इस बात को आगे ले जाना चाहता हूँ और राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करना चाहता हूँ | होना भी चाहिए किसी भी राष्ट्र के पास उसका ' राष्ट्रीय ग्रन्थ ' | इस पोस्ट के लिए मैं आप की प्रशंसा करता हूँ कि इसके माध्यम से आपने इस मुद्दे को उठाने का अवसर दिया | मैं  इसे राष्ट्रीय मुद्दा मानता हूँ | [ राकेश ]

* Now , in independent India , there should be a law like - " RIGHT TO DIE OF HUNGER STRIKE " . It is also according to wishes of Dr B R Ambedkar.

* सुबह ही एक Documentary या वैज्ञानिक चैनेल का दृश्य सामने है | उसमे एक पुरुष डाक्टर एक महिला को खड़े खड़े ही प्रसव करा रहा था , और सफलता पूर्वक कराया | ज़ाहिर है ऐसे वैज्ञानिक प्रदर्शनों में शर्म या परदे का कोई स्थान नहीं होता | उसका यह प्रयोग था , जिसके पीछे अनुभव यह था कि मनुष्य एक जानवर ही है और उसका प्रसव भी जानवरों की तरह खड़े खड़े ही सामान्य और सुविधाजनक होगा |
बात सचमुच गौर करने की है | मैं इसे उसे अन्य व्यवहारों पर भी लागू करता हूँ | सब तो नहीं लेकिन सेक्स के मामले में भी वैसा ही है | सारे धर्म इसकी वर्जना में लगे और सब औंधे मुंह गिरे | मेरा सोचना है इस सम्बन्ध में जो भी नीति , कानून बने , मनुष्य की पशुता को स्वीकार करके बने तो वह ज्यादा व्यवहारिक होगा , और ग्राह्य |

* यह कोई अंग्रेजी राज तो है नहीं जो भूख हडताल से डर जाए !

[19 / 8 / 2013 ] नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा मुसलामानों को रिझाने का कार्यक्रम बना रही है |
- - तब तो मिल चुका उसको मेरा वोट !

* 19/8/2013/ ] अवधी और भोजपुरी का यह विभाजन ही गलत है | फिर तो मालिनी अवस्थी और मनोज तिवारी में झगडा तो होना ही था | जिस भोजपुरी पर आज इतनी दृढ़ता दिखाई जा रही है , मालिनी के अवधी गायिका होने के तर्क पर , उस भोजपुरी समाज का कार्यक्रमों में मंचों पर भोजपुरी "न बोला जाता " सुना है | इस तरह की क्षेत्रीयता उचित नहीं | देखा जाय तो हर व्यक्ति अपनी एक अलग ही भाषा अलग अंदाज़ में बोलता है | और हर व्यक्ति एक समाज होता भी है | तो ?

* उन सभी को धन्यवाद जिन्होंने जिंदगी में मेरा साथ दिया |
Thanks to each and everyone who accompanied me in my life .

* एक मित्र का ग्रूप के पाठकों से अनुरोध है कि " राजनीति , संगठित धर्म और आतकवाद " के अंतरसंबंधों को रेखांकित करते हए अपने तथ्यात्मक आलेख { प्रकाश्य पुस्तक के लिए } लिखकर निम्न    मेल पर भेजने का कष्ट करें -
priyasampadak@gmail.com

* और कुछ हो न हो , यह अनुभव ग्रहण करने योग्य है कि नास्तिक व्यक्ति भी चाहे पैदायशी संस्कार या सामाजिक राजनीति के कारण हिन्दू - मुसलमान दुनियादारी के दबाव में मजबूरन होता ही है, होना ही होता है | एक मित्र तो कहते हैं कि भारत में कोई जातिविहीन रह ही नहीं सकता | यह हिदू की ख़ास समस्या है | अब बड़ी जाति के तहत हिन्दू - मुस्लिम भी आ जाता है | मैं इसे पहले भी समझता था | लेकिन शावेज़ साहेब की इस आवाज़ पर कि नास्तिक में हिन्दू मुस्लिम क्या, मैं चुप कर गया | देखा जाय , शायद उन्ही की बात सच हो | लेकिन कहाँ हुआ ? वरना यदि यह क़ुबूल भी कर लिया जाय कि इस्लाम की आलोचना ज्यादा हो गई, तो भी नास्तिक शावेज़ साहेब को इससे क्या फर्क पड़ता | जब कि सच यह है भी नहीं और हिन्दू देवताओं, भगवानों , पुराणों रिवाजों आदि की खूब धज्जियां उड़ाई जाती हैं यहाँ | बल्कि यह इसी निमित्त था भी (है भी ), और मैंने इसी गरज से मुस्लिम मित्रों को थोडा इससे दूर रहने का निवेदन किया था | मुझे पता था कि चोट लगेगी | तथापि उन्हें मना तो किया नहीं जा सकता था | इसलिए मुस्लिम मित्र आये लेकिन स्वाभाविक था कि इनकी भी कुछ अवशिष्ट आस्थाएं इनके साथ थीं , जिससे इन्हें कथित [क्या सत्यशः] हिन्दू आलोचनाएँ बुरी लगीं | इसका मुझे निजी तौर पर बहुत खेद है | हम इससे बचना चाहते हैं | इसलिए हम शायद यह निर्णय लेना चाहें कि ग्रुप हिन्दू नास्तिकों के लिए हो | अनावश्यक विवाद और वैमनस्यता हमारा उद्देश्य नहीं | आ बैल मुझे मार तो गलती से हो गया | मुस्लिम नास्तिक यदि चाहें तो ग्रुप बनाकर अलग से चर्चा करें | वह ज्यादा मुनासिब होगा और उसका कुछ फायदा भी होगा | किसी चर्चा से किसी को तकलीफ हुई तो मैं माफ़ी चाहता हूँ | हमने ऐसा चाहा न था | एक तजरबा तो ज़रूर हो गया |

- Alok Chantia [Astt Prof. SJN]PG college Lko . @ All India Rights Organisation ]
To live in a certain geographia does not manifest one’s right to be a true/real citizen of that country. The Law or Constitution of a country decides only parameters of citizenship and if any one fulfils it, he/she may be a legal citizen of that country, but ethics, values and self consciousness are some other parameters which decide whether a person has/ has not the quality to be a citizen of that country.

If a person, who lives in a country gets job, livelihood and protection but does not know his/her right in that country, may be subjected to violence of some kind or the other. In general practice when we talk about common law which empowers a person as real citizen, almost every person denies to have any concern with it. And that is the reason why we find dozens of stories of Human Rights Violation across the country and at the global level as well. To lead a life of equality and dignity, one needs to adhere to common features of Human Rights as described in the Charter of United Nation Organisation (UNO). The tenets of Human Rights of UNO may or may not have been incorporated by any country of this globe according to their law and constitution for the protection of Human Rights. Violation of Human Rights is not a rare subject on the path of human cultural evolution.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें