रविवार, 4 अगस्त 2013

Rough Notes , 21 July 2013

Rough Notes  , 21 July 2013  (Two )

भक्ति का उपरांत

हम होंगे कामयाब
चलिए एक काम करते हैं | हम मिलकर एक गाना गाते हैं | हम होंगे कामयाब, एक दिन / मन में है विश्वास / पक्का है विश्वास /  हम होंगे कामयाब, एक दिन | चौंक गए आप ? इसे हम कैसे गायें ? इसमें तो विश्वास की बात है ? और विश्वास तो विश्वास ? निश्चय ही आपका संदेह उचित न सही पर निराधार नहीं है | ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अंधविश्वास को भी धार्मिक-संप्रदायों के लोग विश्वास ही कहते हैं | वह अपने विश्वासों को भला अन्धविश्वास भला क्योंकर कहेंगे जब कि वे भी जानते हैं कि अंधविश्वास गलत बात है | {इस चेतना के लिए गॉड-ईश्वर-अल्लाह सबको धन्यवाद दिया जा सकता है}| वे भी उन्हें तार्किक ही मानते हैं, बल्कि एक होड़ से चल निकली है तमाम दकियानूसी बातों को विज्ञानंसम्मत सिद्ध करने की (शुभ लक्षण ?) | तथापि हमें इस गाने को गाने को कोई हर्ज़ नहीं है क्योंकि यह आत्मविश्वास का मामला है | कहते भले हम भी इसे विश्वास ही हैं | कौन 'आत्म' या ''अंध" जोड़कर शब्द को बड़ा करने जाय ? (काहिली नहीं, सुविधा के लिए ) | फिर सत्य यह तो है ही कि दोनों ही हैं विश्वास ही और दोनों में ताक़त है | दोनों शब्दों में एकात्मकता, घालमेल इसलिए भी है क्योंकि वे भी आप के विश्वास को अंधविश्वास ही कहते हैं, जैसा कि आप उनके अन्धविश्वास को अन्धविश्वास कहते हैं |
अब आत्मविश्वास का तकाज़ा यह है कि हम पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी परिभाषा वाले 'विश्वास' पर कायम हों और गायें गीत - हम होंगे कामयाब |    
आपका विश्वास अपने निज के संकल्प पर तार्किक - नैतिक निष्ठां है | उनका विश्वास पराया, परवासी {जिसे एक पुराणी कहानी 'बासी' कहती है}खामख्याली है | उसमे पुरातन, अनिश्चित, अवैज्ञानिक आदेशो- निर्देशों या जानकारियों के प्रति "आत्मसमर्पण" है | इसी लिए उसे "आत्मविश्वास" नहीं कह सकते | आत्मविश्वास में जहाँ सकारात्मक रचनात्मक ऊर्जा है, अंधविश्वास में नकारात्मक ध्वंसात्मक विश्रान्ति- सुषुप्ति है |
इसी तरह कल गुरु पूर्णिमा [मैं ओशो प्रेमी हूँ इसलिए मैंने अपना दिन अपनी तरह उल्लास में बिताया] | इस पर एक अख़बार ने प्रश्न उठाया - गुरु की उपासना कैसे की जाय ? मैंने सोचा अब हम लोग क्या करें, क्योंकि हमारा तो कोई गुरु है / होता नहीं ? फिर विचार किया कि ऐसा नकारात्मक भाव क्यों बनाये ? थोडा सकारात्मक सोच रखें | आखिर कुछ सीखना ही तो होता है | तो चलिए गुरु बनाया जाय किसी को ! तब शब्द निकला ' आत्म गुरु ' | है न अपना वह ? अप्प दीपो भव कहा भी गया है | तो हम हुए, हम हैं अपने गुरु | क्या हमें जब कुछ पूछना होता है, कोई प्रश्न - कोई संदेह मन में उठता है तो हम वैसे ही आत्म चिंतन-मंथन नहीं करते जैसे किसी से वाद -विवाद -वार्तालाप कर रहे हों ? [मैं तो स्वाभाविक काफी तेज़ आवाज़ में आत्मालाप करता हूँ, पत्नी पूछती है किससे बात कर रहे थे ?]
लेकिन ऐसा तो हम रोज़ करते है, गुरुपूर्णिमा के दिन का क्या ? लेकिन नहीं, इस दिन हम अपनी जिज्ञासा, the thirst for learning को तीब्रता से उच्च शिखर पर ले जाकर अपने आत्म(गुरु) से कुछ ज्यादा पूछताछ तो कर सकते हैं |  
   # हाँ, एक बात तो लिखना भूल ही गया था | दरअसल बातें तमाम घुमड़ती हैं, कुछ तो अभिव्यक्ति पा जाती हैं कुछ गम हो जाती हैं | मैं कह रहा था कि मेरा तो अनुभव है और आप भी अवसर लगे तो ध्यान से देखिएगा कि अन्धविश्वासी  लोगों में  [ऐसा न कहकर मैं इन्हें सीधे पूजापाठी- तीर्थयात्री कहता हूँ ] दैनिक जीवन के लिए ज़रूरी न्यूनतम आत्मविश्वास का भी नितांत अभाव होता है | कोई दुःख क्या ज़रा सा इंजेक्शन या परीक्षण हेतु खून निकलवाने में भी सीत्कार करने लगते हैं | वैसे भी हर दम  राम राम सित्ता राम , अरे  राम, हे राम जी सहाय बनो  इत्यादि इनका तकिया कलम हॉता है |  


   * सद्भावना प्रदर्शन के लिए भी कुछ मौलिक जानकारियाँ ज़रूरी हैं | वरना आप भी मेरे मित्र की तरह "मुहर्रम मुबारक" बाँटते फिरेंगे |


" हास्य प्रवाह "
आज (से) मैं जिस संस्था के काम कर रहा हूँ उसका नाम है = " हास्य प्रवाह " /
( ख़ुशी ही जीवन है ) आज गुरु पूर्णिमा है | ओशो प्रेमी नीलेश देशभ्रातार एवं अन्य मित्रों ने बुलाया है | लेकिन बहुत दूर है | ओशो की साधना विधियों में हास्य का प्रमुख स्थान है |


* मित्रो , अब तो मेरा मन हो रहा है भारत में ब्रिटेन जैसी ' रानीशाही ' शासन लाने, एतदर्थ वकालत करने का । जैसे वहाँ ईसाई ही रानी बनती है , वैसे यहाँ की मूलनिवासी, शूद्र, दलित {जो भी कहें / कहते हों} मायावती को रानी बना दिया जाय । बाकी सब वैसे ही हो जैसे ब्रिटेन (लोकतंत्र की जननी) में होता है । उसी तरह संविधान रहित-परम्परा आधारित शासन प्रणाली । हटाइए इस मोटे, भारी-भरकम संविधान को । बड़ा विवाद है इसपर और बेअसर भी हो रहा है यह, रोज़ रोज़ बदलकर। यह बाबा साहेब का बनाया मूल संविधान रह भी नहीं गया । फिर तो यह देश भी अब मूल संस्कृति, मूलवंशी परम्पराओं पर चले । हमें यह सर्वथा उचित और राष्ट्र के लिए सभी प्रकार से हितकर लगता है । 2014 में चुनाव आने वाले हैं । ऐसा कुछ कीजिये कि आप के वोटों से ही ऐसी व्यवस्था हो जाये, प्रत्यक्ष या परोक्ष । हिन्दू राष्ट्रवादी भी खुश होकर तालियाँ बजाएँ कि इस विधि से भारत में सचमुच हिन्दू राज्य की स्थापना हो जायगी और "विदेशी-आततायी-आक्रमणकारी-बर्बर-लुटेरे-हिंसक-चंगेज़ी और क्या-क्या तो तमाम गंदे विशेषण युक्त", हाँ आतंकवाद से छुटकारा मिल जायगा । यह भी कि, बासठ वर्षों से चल रही ' छद्म धर्मनिरपेक्षता (जिससे वह बहुत ज्यादा तंग और कुपित हैं) से देश को निज़ात मिल जायगी । वास्तविक पंथनिरपेक्षता का तभी आगमन होगा । विश्व बंधुत्व, सर्वे भवन्तु सुखिना, सर्वजन हिताय की प्रतिष्ठा होगी । भारत देश पुनः अपनी खोया सम्मान, विलुप्त गरिमा को प्राप्त करेगा और विश्वगुरु के शीर्ष शिखर पर पदासीन होकर अपनी आभा से विश्व को आलोकित करेगा । एवमस्तु !       

* [कविता ]     " धोबी का कुत्ता "
पहले एक धोबी होता था
उसका एक घर होता था
उसका एक घाट होता था ,
उसका एक कुत्ता भी होता था
जो न घर का होता था
न घात का होता था |
लेकिन अब
सिर्फ कुत्ते होते हैं
उन्ही के घर भी होते है
उन्ही के घाट भी होते है
और विडम्बना !
उनका कोई धोबी नहीं होता |
#  #

* सब छोडो यार नागरिक ! तुम भी क्या रोज़ रोज़ संस्था / पार्टी बनाते रहते हो ? सारा काम 'दिनमान ' के नाम से करो | यह तुम्हारी प्रेरणा भी थी और अब प्रपौत्र का नाम |घर का नाम हुआ " दिनमान कोठी " | " दिनमान DINMAN , The Day Time "

* मैं सोचता हूँ
सोचता रहता हूँ
मैं क्या क्या सोचूँ  ?

* जो था वह था
अब जो है, वह है
देखो आज को |

* स्वीकार करो
जैसा निज जीवन
जैसा है जग |

* सब तो मैं हूँ
तुम तो बहाना हो
- उसने कहा |

* भाई साहेब
काम बहुत,समय
बहुत कम !

* इतना कुछ
लिखने को पड़ा है
लिखूँ तो कैसे !

* मन में आया
यह, और यह भी
लिखता गया |

* कोई लडाई
मेरे वश की नहीं
शब्दों के सिवा ।

* मेरी उग्रता
मेरे लिए घातक
साबित हुई ।

* होते ही नहीं
कपडे सहनीय
इस ऊष्मा में । ।

* CBI चाहे इनके हाथ में रहे चाहे उनके या चाहे अपने हाथ में रहे , वह स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं रहेगी । उनका इस तरह दबाव नहीं होगा, तो इनका इस तरह का दबाव हो जायगा जिसे वह आज़ादी पूर्वक स्वीकार करेगी ।

* वह होंगे हिन्दू ह्रदय सम्राट लेकिन पता नहीं क्यों ( हर बात का कारण नहीं बताया जा सकता ), मुझे नमो महोदय के हाव भाव, देह भाषा, अदा समेत सम्पूर्ण व्यक्तित्व ( सभी अटल जी बनना चाहते हैं ) पसंद नहीं आया । उन्हें PM के रूप में रोज़ किसी न किसी बहाने TV के परदे पर आना मुझे अच्छा नहीं लगेगा । [व्यक्तिगत]

* केवल जाति है हिंदुस्तान में | कोई धर्म वर्म नहीं | हिन्दू तो कहते ही हैं वे जीवन शैली हैं | उसी प्रकार सब ज़िन्दगी के तरीके ही हैं | यह जो मुस्लिम सिख ईसाई को धर्म कहा जाता है , वे धर्म नहीं [हिन्दू न कहें ] हिंदुस्तान की जातियां है | नहीं समझ में आया तो सिख जैन को देखिये | इन्हें धर्म भी कहा जाता है लेकिन इनका व्यवहार भारतीय जाति की तरह है या नहीं ? इन्हें समाज ऐसे ही देखता है | इसी प्रकार मुस्लिम ईसाई थोडा अभी थोडा दूर दिखते हैं लेकिन ये सब भी जातिवाद से पूर्णतः ग्रस्त [क्यों कहें, परिपूर्ण ] हैं | जो कि हिन्दू की विशिष्टता है | इसे सांप्रदायिक शीशे से नहीं सांस्कृतिक तरीके से देखा समझा और व्यवहार किया जाय , तो भारत की साम्प्रदायिकता का दोष बहुत हद तक मिट जाय | फिर , झगड़ा ही तो करना है ? तो जातियों में क्या संघर्ष नहीं होता ?

* मेरा अब भी ख्याल है कि -
फेसबुक को अभिव्यक्ति का मंच होना चाहिए , बहस - विवाद का नहीं | हर साथी अपने चेतन- अर्द्धचेतन- अचेतन के अक्षर-वाक्य-शब्द अपने वाल पर निःसंकोच लिखे | मित्रों को ध्यान रखना चाहिए कि भले समक्ष नहीं, आभासी सही, टेढ़ा मेढ़ा, गलत सही लिख रहा है वह अपना मित्र ही है | हो सकता है वह बीमार हो शरीर या मानस से , और मनोरंजन के लिए अपने दीवाल का इस्तेमाल कर रहा हो | संभव है उसे कुछ सोचकर लिखना न आता हो, सीखने के लिए लिए अपने स्लेट - तख्ती - श्यामपट - व्हाइट बोर्ड का सहारा ले रहा हो | हमें जहाँ तक हो सके इसने उसकी मदद करनी चाहिए, न कि उसे हतोत्साहित करना | हमें उसे सुनना, बिटवीन द लाईन्स पढ़ना चाहिए | अभी तो केवल दूरस्थ मित्र है, उसका आत्मीय बनना चाहिए | हमें सौभाग्य (जो भाग्य न मानते हों तो कहें विज्ञान की कृपा = विज्ञाग्य ) से यह अवसर मिला है कि हम विश्व के कोने कोने से इतने सरे लोगों से एक साथ घर बैठे मिलने बैठने, कहने सुनने का मौका मिला है तो उसका सदुपयोग करें | अन्यथा तो विज्ञान वैसे ही अपने आविष्कारों के दुरूपयोग के लिए बदनाम है |
कोई अपनी पार्टी का प्रचार कर रहा है, धर्म का विस्तार कर रहा है तो कोई दूसरी पार्टी की आलोचना, अन्य धर्म को अपवित्र कर रहा है | करने दीजिये, यह उसका हक है | कोई सामंती युग तो है नहीं ! वैसे भी उसका लिखा कोई पत्थर पर लकीर तो है नहीं | बालुका तल पर वह उँगलियों की खटपट कर रहा है तो आप भी उसी प्रकार समुद्र तट पर कुछ चित्र उकेर रहे हैं मन बहलाने के लिए | सब मूलतः मन की भंडास ही निकाल रहे हैं | कोई साहित्यिक अभिलेख, शोध प्रबंध नहीं लिख रहा है इस पर | लिख भी रहा है तो वह भी स्वान्तःसुखाय, मनोरंजनार्थ | सुना है इस हेतु विदेशों में वृद्धजन किराये पर श्रोता इम्प्ल्वाय करते हैं | फेसबुक की यह सुविधा कोई मामूली नहीं असाधारण है |
ठीक है, कोई प्रतिक्रिया उपजती है जो कि स्वाभाविक है | तो, साधारण बात तो कमेन्ट में लिख दें और कोई बात स्पष्ट न हुई हो, अर्थ - भावार्थ समझ में न आया हो तो पूछ लें | पर यदि आप बहुत विद्वान है, और आपका विचार बहुत लम्बा जोर मार रहा हो तो अपनी बात अलग से अपने वाल पर लिखें | एक पोस्ट को इतना न खींचें कि दिल्ली से दौलताबाद तक हाईवे बन जाय |
हर हाल में इसे मेले जैसा मनोरंजन स्थल बनायें रखें | एक बार जो मिल जाये तो वह बार बार मेले में आना चाहे, आपसे मिलना चाहे |

*  एक कविता है :-                      
साधु अपना काम करता है /
मैं अपना काम करता हूँ |
वह मुझे बार बार /
पानी से बाहर निकलता है /
मैं उसे बार बार डंक मारता हूँ |
साधु अपना काम करता है /
मैं अपना काम करता हूँ |
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* आज रविवार ! पत्रकार मित्र K.B. Singh घर आये | उन्होंने एक e-paper computer पर दिखाया | उन्होंने कहा आप का आन्दोलन यह अखबार पूरा कर रहा है , जो अख़बारों से मेरी चिर - Demand है | DAWN अखबार एक पूरा पृष्ठ सम्पादक के नाम पत्रों को देता है | मुझे ख़ुशी हुई | फिर याद दिला दूँ - मैंने प्रिय संपादक मासिक पूर्णतया इसी हेतु अभिचिन्तित कर 1984 में पंजीकृत कराया था | उसी ग्रुप में यहाँ हम आप शामिल है | बधाई !{ 21 जुलाई 2013  }




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