गुरुवार, 29 अगस्त 2013

जैसा देश वैसा भेष -

जैसा देश वैसा भेष -
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यह ड्राफ्ट अधुरा पड़ा है | अधुरा तो अब भी रहेगा , फिर भी इसे भेज देना है | यह मित्र Byomkesh जी के एक ऐतराज़ से उपजा था | सन्दर्भ था सउदिया में रमजान माह में विदेशियों द्वारा कुले आम तावत उड़ाने और धमा चौकड़ी करने का | इस पर सउदिया को आपत्ति था और मैंने उनके पक्ष का समर्थन किया था | मूल कच्चा आलेख जोड़ने से पहले दो बातें लिखना चाहूँगा | पहला तो यह कि क्या आप चाहते हैं हर देश में धार्मिक अराजकता फैले ? हम इतने विश्व -प्रसार वादी क्यों बने ? कट मर कर एक घर में रहें , इससे अच्चा है चूल्हे अलग कार लें और सुख चैन अमन शान्ति से रहें | मुसलमान क्यों कहें कि अमरीका में जुमा को छुट्टी  करो , हम नमाज़ पढ़ेंगे ? और दुबई में रोज़ी के लिए गए हिन्दू इसकी मांग क्यों करें कि मंगल को हमें छुट्टी दो हम हनुमान जी का व्रत रखेंगे ? सब अपनी सांस्कृतिक सीमायें रख लें तो झगड़े कुछ तो कम हों !
दूसरा उदाहरन अभी कल ही गुज़रा त्यौहार कृष्ण जन्माष्टमी का है | बड़ी आपत्तियां हैं जनाब - सेक्युलर राज्य में सरकारी पुलिस लाइनों में यह क्यों मनाया जाए ? आपत्ति कतई नाजायज़ और निराधार है | भारत में सेक्युलरवाद का अनुकूलन भारत के हिसाब से करना पड़ेगा अन्यथा न सेक्युलरवाद सफल होगा न साम्प्रदायिकता रुकेगी | और सभी देशों में ऐसा ही होता है | ' IN GOD WE trust ' का सिक्का secular अमरीका में भी चलता है, और ब्रिटेन कि रानी ईसाई ही होती है , अपनी तमाम वज्ञानिक लोकतांत्रिक प्रगतिशीलता के बावजूद | हमें निश्चय ही अपनी सोच और निर्णयों में व्यावहारिक होना पड़ेगा |
अब पढ़िए मूल आलेख, जिसका मैंने पुनरावलोकन नहीं किया है | व्योम जी कि "भक्ति " विषय पर भी लिखना है | सोचता हूँ जल्दी ही उसे लिखकर अपना काम पूरा करूँ | उनके समूह में मैं नहीं हूँ पर वह हमारे समूह में हैं | वह इसे अवश्य पढ़ पाएंगे | इस पर अधिक खंडन मंडन वाद विवाद न करें तो ही शुभ | इसके आगे मेरे पास कोई ज्यादा जवाब नहीं है |
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बातें अभी घुमड़ रही है | वस्तुतः मैं समझने में असमर्थ हूँ कि लोगों की
असहमति किस बात को लेकर है |यह बात तो मैं अरसे से कह रहा हूँ और किसी
बुद्धिमत्ता -चालाकीवश बात कहाँ बदल रहा हूँ ? मेरी बात ठोस ज़मीन पर
आधारित है | जो मै कह रहा हूँ वही होना है और वही हो भी रहा है | हम
परिस्थितियों को अवश्य अनदेखा कर रहे हैं | बहुत वैश्विक सदाशयता ने अभी
तक तो काम नहीं, अलबत्ता भारत ने इसे खूब गाया और भूनाया | फिर, मैं
घृणा-द्वेष - अलगाव - असहिष्णुता की बात कहाँ कर रहा हूँ | विपरीत मैं तो
सामंजस्य -सहिष्णुता-तालमेल ही तो बिठा रहा हूँ ? भाई अपने अपने घर में
रहो, किसी के घर जाओ तो उसे मेजबान का घर समझो, मेहमान की तरह रहो | मैं
तो " जैसा देश वैसा भेष " की लोकनीति पर ही चलने का आग्रह कर रहा हूँ ,
इसमें त्रुटि कहाँ है ? यह ज़रूर है की मैं ऐसे हवाई आदर्श की बात नहीं कर
रहा हूँ जिसका पूरा होना असंभव हो | क्योंकि सामूहिक राजनीतिक नैतिक
व्यवहार अलग थलग रहकर नहीं किये जाते | हम कोई टापू हैं भी नहीं | वे
अन्योन्याश्रित, सापेक्षिक, तुलनात्मक विधि से संचालित होते हैं | इसलिए
मैं सम्पूर्ण व्यावहारिक पक्षों पर सोचता हूँ | विचारों को ज़मीन पर उतरने
लायक सोचता हूँ | मुझे कोई इधर उधर से टीपटाप कर कोई शोधपत्र दाखिल करके
डिग्री नहीं हासिल करनी, न ही लोकप्रियता |
चाहता तो मैं देशो का बंटवारा भी नहीं, तो क्या हम सभी देशों को एकीकृत
कर लेंगे ? मुझे आश्चर्य है कि हम इस बिल्कुल स्थूल तथ्य को क्यों न
देखने की जिद करते हैं ? एक हिन्द पाक का विभाजन तो रोक नहीं पाए, न इसके
पुनः एकीकरण की कोई सम्भावना ही है | और चले हैं विश्वगुरु बनने, विश्व
बंधुत्व का स्वप्न देखने | वह बिना किसी बैरियर के !
सपना तो चलो फिर भी ठीक | देखते रहे | लेकिन अभी, परस्पर प्रेम भाव,
सांस्कृतिक एकता के लिए यह कहाँ से ज़रूरी हो गया कि प्रत्येक व्यक्ति,
प्रत्येक व्यक्ति के गर्भगृह (Bedroom) में प्रवेश का हकदार हो, या इसका
दावा करे ? मैं तो सास्कृतिक बहुलता - विविधता (Pluralism ) को स्वीकारने
की बात कह रहा हूँ | विश्व सम्राट बनने की गरज से सारी मनुष्यता / जनता
की एकता की अनहोनी संकल्पना, खासकर जब तमाम आस्थाएँ, संस्कृतियाँ और धर्म
उसमे समाविष्ट हों, तनाव और फिर युद्ध तक का कारक हो जाता है | मैं तो
जनाब हट्टिंगटन के ' सांस्कृतिक महाभारत' को रोकने का प्रस्ताव कर रहा
हूँ | इसलिए मैं अभी भी मानता हूँ जिन्ना की सोच में कोई दोष न था | जिसे
सावरकर ने थोडा पहले ही समझ लिया था |
इसमें क्या दिक्कत है कि भारतीय (और ये वहां से लौट कर बताते भी हैं )
कनाडा जायें तो वहां गन्दगी (litter) न फैलाएं | और यदि कोई भारतवर्ष आये
तो यह मानकर, मन बनाकर आये कि यहाँ दीवालों पर पेशाब, खुले में शौच किया
जाता है, लोग इधर उधर थूकते हैं | यहाँ जातिवाद वगैरह का भेद और तद्जनित
संघर्ष हैं,भीषण गरीबी और आभाव है | यहाँ गोबर से घर लीपे जाते हैं,
गाय-पीपल पेंड़ - सांप पूजे जाते हैं |  इत्यादि | जिससे यहाँ आकर वह इन
पर नाक भौं न चढ़ाए, न अपमानजनक टिप्पणियाँ करके हमारा दिल दुखाये,
सांस्कृतिक आस्था को चोट पहुंचाए | ज़ाहिर है, टूरिज्म से हमारी राष्ट्रीय
आय ज़रूर अभी कम होगी | ठीक है जब हम बदलकर कुछ "सभ्य" हो जाएँ, तब जितना
हम उनके अनुकूल बैठें, उसी अनुपात में "हमरे गाँव" आयें | लेकिन अभी तो
इसी स्थिति से समझौता करें | इसी से शांति स्थापित होगी | यही तो मैंने
कहा ?
यह विचार यूँ ही दिमाग में नहीं आया | विश्वप्रेम अटूट रखते हुए भी जब
मैंने अपने विश्वास को बार बार टूटते देखा और पाया , तो मैंने इसके कारण
और निदान के लिए स्थूल विज्ञानं की ओर रुख किया |
और मैंने पाया कि यहाँ भी तो तत्व और पदार्थों का विश्लेष्ण उसे अलग अलग करके ही किया जाता है | यह sepal - petal - andrucium -gynecium है , यह एक दालीय-द्विदालीय , यह solid - liquid -gas hai . Yh Mammelia yh Reptile | अब मुझसे यह तो न पूछिए कि मनुष्य जब मैमेल्स कि श्रेणी में आता है तो वह सरीसृप reptile व्यवहार कैसे करने लगा ? :)  

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